मूल रूप से अमीरी रेखा का निर्माण किए बिना समाज में कभी भी शांतिपूर्ण सामंजस्य की स्थापना नहीं की जा सकती क्योंकि यदि हम सब लोगों में शांति पूर्ण सामंजस्य स्थापित करना चाहते हैं तो एक व्यक्ति के मूलभूत संपत्ति अधिकार को परिभाषित करना सबसे पहली आवश्यकता होगी ताकि हर व्यक्ति को अपनी स्वतंत्रता मर्यादा या अधिकार की स्पष्ट जानकारी हो और वह दूसरे व्यक्ति के अधिकारों का हनन या अतिक्रमण ना करें.
वास्तव में लोगों के बीच होने वाली सारी लड़ाईयों का मूल कारण संपत्ति की अधिक से अधिक मात्रा पर अपना अधिकार कायम करना है सब लोग इसी प्रयास में लगे हैं जिसमें जितनी क्षमता योग्यता शक्ति या बुद्धि होती है वह उसका पूरा उपयोग अपनी संपत्ति को बढ़ाने के लिए करता है ताकि उसे वर्तमान और भविष्य में भी पूरी सुरक्षा मिलती रहे और कभी भी उसे अभाव का कष्ट पूर्ण जीवन ना जीना पड़े.
सभी इस सत्य को समझते हैं कि पर्याप्त संसाधनों पर अपना अधिकार स्थापित किए बिना केवल मेहनत के बल पर जीवन को सुरक्षित नहीं किया जा सकता. लेकिन इसके लिए सीमित मात्रा में संसाधन होना ही पर्याप्त है असीमित संसाधन व्यक्ति की आवश्यकता नहीं बल्कि उसकी लोभ लालच स्वार्थ और दूसरों का शोषण करने की प्रवृत्ति का परिणाम है और इस पर अंकुश लगाए बिना समाज में सब लोगों के बीच होने वाले टकराव पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता.
भौतिक विज्ञान की भारी उन्नति के कारण तो अब समाज में सामंजस्य की स्थापना करने के लिए केवल अमीरी रेखा का निर्माण ही एकमात्र रास्ता बच गया है इसका कारण यह है कि इसके के कारण अनेक प्रकार की मशीने और उपकरण उपलब्ध हैं जिन्होंने सारी आर्थिक क्रियाओं पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है इससे उत्पादन विनिमय या किसी भी अन्य कार्य में आदमी की मेहनत की भूमिका लगातार कम होते होते समाप्त सी हो गई है. आने वाले समय में श्रम की भूमिका का और भी कम होना निश्चित है.
इसलिए आज मेहनत से होने वाली आय व्यक्ति के जीवन का आधार नहीं हो सकती और आय न होने पर किसी भी व्यक्ति का जीवन नहीं चल सकता और लोगों में शांति की स्थापना भी नहीं की जा सकती.
भोतिक विज्ञान की उन्नति ने साधनों और संपत्ति के महत्व को अनंत गुना बढ़ा दिया है साधन और संपत्तियां ही अब व्यक्ति को होने वाली आय का मुख्य आधार बन चुकी है इसलिए हर व्यक्ति अपने साधनों और संपत्ति के अनुपात में ही आय प्राप्त कर रहा है जो लोग साधन और संपत्ति के मालिक नहीं है उनके सामने संपन्न लोगों की गुलामी करने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं रह गया है श्रमजीवी या गरीब लोग साधन संपन्न लोगों की हर शर्त को मानने के लिए मजबूर है और इसके कारण उनका भयानक शोषण उपेक्षा अपमान और उत्पीड़न होता है. जिसे केवल अमीरी रेखा बनाकर ही रोका जा सकता है.
इसलिए यदि हम शांतिपूर्ण और शोषण मुक्त समाज बनाना चाहते हैं तो अमीरी रेखा का निर्माण करना ही होगा.
यदि हम इन परिस्थितियों से अलग हटकर अपने विवेक का उपयोग करते हुए भी विचार करें तो यह साफ तौर पर समझा जा सकता है कि समाज में न्याय की स्थापना के लिए हर व्यक्ति के संपत्ति अधिकार की एक अधिकतम सीमा तो होनी ही चाहिए कोई व्यक्ति चाहे कितना ही योग्य क्यों न हो जब तक एक व्यक्ति के संपत्ति अधिकार की कोई सीमा ही नहीं होगी तो दूसरे व्यक्ति के जीवन जीने के अधिकार की रक्षा नहीं की जा सकती मूल रूप से संपत्ति सुखी और स्वतंत्र जीवन का आधार है मेहनत नहीं .
मुझे तो यह बात स्पष्ट रुप से समझ में आ रही है कि वास्तव में सामाजिक व्यवस्था की रचना करने के लिए सबसे पहले प्राकृतिक संसाधनों पर न्याय पूर्ण स्वामित्व के सवाल को हल किया जाना चाहिए था. यदि इस मूल सवाल को पहले ही हल कर लिया गया होता तो एक शांतिपूर्ण समृद्ध और हर प्रकार से सुरक्षित समाज की स्थापना का उद्देश्य पूरा हो चुका होता और मानवता को अनेक युद्ध और विनाश से नहीं गुजरना पड़ता.
यह बात पूरी गंभीरता से समझ लेने की है कि जब सारे प्राकृतिक संसाधनों पर ही सबका जीवन निर्भर है और ये हमेशा सीमित मात्रा में ही उपलब्ध होते हैं तो एक व्यक्ति को सीमाहीन संपत्ति का मालिक कैसे माना जा सकता है? सामंजस्य की दृष्टि से यह मूल अधिकार बराबर अर्थात ओसत सीमा तक ही प्रदान किया जा सकता है और यही होना भी चाहिए.
संपत्ति का यह मूल अधिकार ही हर व्यक्ति के जीवन का आधार है इसलिए इसे न तो कम या ज्यादा किया जा सकता है और ना ही किसी भी आधार पर समाप्त किया जा सकता है.
इससे यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि आज इस अधिकार को खरीदने और बेचने की परिपाटी पूरी तरह गलत है.
अब सवाल उठता है कि ओसत सीमा तक प्रत्येक व्यक्ति के मूल संपत्ति अधिकार को सुरक्षित रखते हुए अर्थव्यवस्था का निर्माण किस प्रकार किया जा सकता है यह काम बहुत ही आसान है
अर्थव्यवस्था केवल प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंध मात्र है. इसका उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों से व्यक्ति के उपभोग की उत्तम स्तर की सभी वस्तुएं पर्याप्त मात्रा में कम-से-कम श्रम और समय में निरंतरता के साथ सबको उपलब्ध कराते रहना है इसमें व्यक्ति की रुचि योग्यता क्षमता स्वभाव शिक्षण प्रशिक्षण आवश्यकता और अनुभव आदि का महत्वपूर्ण स्थान है.
इस समस्या का समाधान करने के लिए ही मनुष्य ने विनिमय की खोज की है हर व्यक्ति हर काम को सही ढंग से बिल्कुल नहीं कर सकता और विभिन्न कामों में रुचि और योग्यता आदि के आधार पर सब लोगों को अपना अपना कार्य चुनने की स्वतंत्रता देकर इसे आसानी से हल किया जा सकता है.
इसलिए ओसत सीमा तक स्वामित्व के अधिकार को मान लेने से अपनी समझ में केवल यह बदलाव लाना होगा की साधनों का स्वामित्व नहीं बदला जा सकता केवल प्रथम प्रबंध करने का अधिकार बदला जा सकता है और किसी भी व्यक्ति को उत्पादन के लिए ओसत सीमा से अधिक साधनों की आवश्यकता होगी तो वह उसे अवश्य ही प्राप्त कर सकेगा लेकिन वह समाज का कर्जदार माना जाएगा. और अब उसकी अधिक संपत्ति पर ब्याज की दर से संपत्ति कर लगाकर समाज का हिस्सा अलग से निकाल दिया जाएगा और उसे सारे नागरिकों के बीच लाभांश के रुप में समान रुप से बांट दिया जाएगा.
इसलिए ऐसी व्यवस्था बहुत ही सरल सहज मितव्ययी और पारदर्शी होगी जिसमें बेईमानी करना असंभव नहीं तो बहुत कठिन अवश्य होगा.
इससे व्यक्ति की लोभ लालच दूसरों का शोषण करने की स्वार्थी प्रवृत्ति पर भी न्याय का अंकुश लगेगा जिससे प्रकृति में हो रहा भारी विनाश असंतुलन और खतरनाक बदलावों को भी रोका जा सकेगा.
इस प्रकार व्यावहारिक दृष्टि से भी यह पूरी तरह सर्वश्रेष्ठ और आदर्श वैकल्पिक व्यवस्था होगी.