किसानों का प्रदर्शित आंदोलन कितना सार्थक ? ,, देशहित में या किसान स्वयं अपने हित में कर रहे हैं प्रदर्शन?
सरकार द्वारा बनाया गया क़ानून किसानो के हित में है - नये क़ानून के तहत एसडीएम बाउंड है, अनुबंध तोड़ने पर एसडीएम को कोई पॉवर कम्पनी विरुद्ध फैसला देने का अधिकार है न की किसान के विरुद्ध कोई अधिकार दिया गया है - श्री अशोक ठाकुर (निर्देशक - नफेड)
इन सवालों का जवाब कुछ समाजिक संगठनो के संचालक और विभिन्न राजनितिक दलों के नेताओं से लेने की कोशिश करेंगे।
एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)
नई दिल्ली - दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर हजारों की संख्या में किसान बीते करीब चार हफ्ते से प्रदर्शन कर नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। लेकिन सरकार अपनी जगह पर अड़ंगीत है और किसान अपनी जगह पर। अब सवाल है की किसानो की मांग कितना सार्थक है ? जबकि एनआरसी और सीएए जैसे शाहीनबाग के आंदोलन जैसा आज यह दिल्ली एनसीआर से लगी दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन दिल्ली और एनसीआर के लोगों के लिए परेशानी का कारण बनता जा रहा है। भविष्य में भारत पर इसका क्या असर पड़ेगा इस मुद्दे पर आईना इंडिया ने विभिन्न समाजिक संगठनों के संचालक एवं कुछ राजनितिक दलों के नेताओं से बात चित कर के स्थिति जानने की कोशीश की प्रस्तुत है सब से पहले नफेड के निर्देशक और भाजपा के सक्रिय एवं
सरकार कृषि सुधार मुद्दे पर पिछले 5 वर्षों से लगातार काम कर रही है। 1991 से स्वामीनाथन आयोग एवं 2004 से 2006 में भी अन्य आयोग बनाये गए वह सभी तो कृषि संबंधित समस्या के समाधान के लिए ही तो बनाया गया लेकिन उसका क्या हुआ। 1965 में 58 से 60 से अब तक जीडीपी गिरते ही गई जो अब 15 प्रतिशत रह गया। मेरी समझ से अभी देश में और भी बड़ी मंडिया बढ़ाने की आवश्यकता है जो सरकार इसी योजना तहत काम कर रही है। कुलमिला कर विरोध ज़रूरी है लेकिन विरोध ऐसा न हो की किसान अपना ही नुक्सान कर लें।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता श्री शिव भाटिया द्वारा - सरकार किसानो के मुद्दे पर गंभीर नहीं है किसानो के साथ मज़ाक़ कर रही है - सरकार को यह खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा। किसानों का यह आंदोलन अपने आप में सार्थक के साथ
विजय भारतीय - समाजिक कार्यकर्ता - गुजरात - किसानो का आंदोलन बिलकुल सार्थक और देश हित में है -
किसानो के मुद्दे को लेकर केंद्र या राज्य सरकारें या कहें दोनों सरकार कभी भी न सक्रिय रही न कभी उस पर गंभीर रही। तीन बिल्स को लेकर किसानो में असमंजसता इसलिए बढ़ी की सरकार ने यह बिल अपने मर्ज़ी से मनमाने ढंग से संसद में पास करवा दिया और न तो किसी भी किसान संगठनों को विश्वास में लिया और न विपक्ष को ही विश्वास में लिया पर क़ानून बना दिया तो सरकार को एहसास दिलाने के लिए यह आंदोलन ज़रूरी था और इस आंदोलन में आज न केवल पंजाब और हरियाणा के किसान हैं बल्कि आज पुरे हिन्दुस्तान के किसानो के अतिरिक्त आम जनता किसानो के साथ है। और यह आंदोलन अभी अहिंसात्मक तरीके से लम्बा चलेगा। हिंसा सरकार फैला रही है न की किसान या जनता। इसलिए सरकार को चाहिए की यह आंदोलन वापस ले कर किसानो को अपने हिसाब से बाज़ार और दाम तय करने की आज़ादी देना चाहिए।चाहिए। एमएसपी - मिनिमम समर्थन मूल्य जो किसानो का अधिकार है जो उसे मिलना चाहिए, जैसे हमारे छत्तीसगढ़ एक मोडल है छत्तीसगढ़ सरकार किसानों को दे रही है। सरकार द्वारा किसानो को सहयोग समर्थन मूल्य जो छत्तीसगढ़ सरकार इस समय किसानों को दे रही है वह सम्पूर्ण भारत के लिए एक मिसाल है। केंद्र सरकार को अपने तीन क़ानून बनाने से बेहतर था की कांग्रेस द्वारा बनाये गए एमएसपी को ही प्राथमिकता से लागू कर किसानो की मदद करती बढ़ावा देती तो आज केंद्र की ऐसी फ़ज़ीहत नहीं होती। किसानो के सारे समस्याओं का समाधान हो जाता। न हमारे देश के किसान परेशान होते न तो नौजवान बेरोज़गार होते । सरकार की क्या मंशा है पता नहीं, लेकिन सरकार अपने मन की बात तो करती है लेकिन अपने दश की जनता के मन की बात नहीं सुनती।
उनकी मांग जाइज़ है सरकार को वह तीनो क़ानून वापस ले लेना चाहिए , किसान को अपने हिसाब से अपने माल को बाज़ार में अपने दाम में बेचने की पूरी छूट होनी चाहिए। सरकार द्वारा बनाये गई क़ानून किसानों को एक दायरे में सीमित कर देता है जो की गलत है। उनका अपना अधिकार है।