ज्योति के कष्ट भरे जीवन और संघर्ष की दास्तां
एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)
ज्योति के कष्ट भरे जीवन और संघर्ष की दास्तां वाकई हतप्रभ करने वाली है। 1970 में वारंगल में जन्मी ज्योति का बचपन भयंकर गरीबी में गुजरा। पांच बहनों में सबसे बड़ी ज्योति को उसकी मां ने इसलिए अनाथाश्रम भेज दिया ताकि खाने वाले मुंह कम हो सकें। अनाथाश्रम में ज्योति को अनाथ बताकर भर्ती करा दिया। अनाथाश्रम में ढेरों बच्चों के बीच पलती ज्योति अपने घरवालों से दूर कष्ट और बेचारगी की जीवन जीने को मजबूर हुई। इसी दौरान ज्योति ने अपनी मेहनत से अनाथाश्रम की सुपरिटेंडेंट का दिल जीता और सुपरिटेंडेंट उसे अपने घर बर्तन साफ करने और सफाई करने के काम पर लगा लिया। सुपरिटेंडेंट के घर पर रहकर ज्योति अनाथाश्रम में मिले कष्ट भूल जाया करती थी। वो दिल लगाकर काम करती और सुपरिटेंडेंट की तरह बड़ा बनने का सपना देखती। यहां रहकर ज्योति ने सरकारी स्कूल से दसवीं पास की और टाइपराइटिंग भी सीखी। ज्योति दसवीं पास करके एक नौकरी के सपने देखने लगी थी ताकि अपने घर लौटकर घरवालों की मदद कर सके।
यह कहानी वहां से शुरू होती है जब उनके teacher पिता अपनी नौकरी छुट जाने पर अपनी दो बेटियों को अनाथ आश्रम मे एवं अपने बेटे को अपने साथ रखने का निश्च्य किया | ज्योति की बहन भाग कर वापस अपने घर आ गयी जबकि ज्योति 9 साल की उम्र मे वही रुक कर आगे बढ़ने का मन बना चुकी थी | अनाथ आश्रम मे अपने परिवार के प्यार के बिना बहुत भी बुरा समय निकला और सरकारी स्कूल मे पढ़ाई शुरू की लेकिन 16 साल की उम्र मे जबरदस्ती उनकी शादी उनसे उम्र मे बहुत बड़े आदमी से करा दी गयी|
इन सब तकलीफों से गुजरने के बाद जिस चीज से ज्योति को सबसे ज्यादा नफरत थी वह थी गरीबी | उन्हें रोज अपने सपनों के पीछे भागना पड़ता| उनके कुछ सपने तो बहुत सरल थे| जैसे चार डब्बे दाल चावल ताकि उनके बच्चे ठीक से खाना खा सके| और कुछ सपने बढ़े थे कैसे सूटकेस में 10 नई साड़ियां
उनका संघर्ष जारी रहा और उन्होंने 1992 मे किसी तरह अपनी बीए पूरी की | और बाद मे एक 396 Rupees वेतन मे अध्यापक बन कर स्कूल मे पढ़ाने लगी | बाद मे कंप्यूटर कोर्स ज्वाइन किया व् किसी के कहने पर Year 2000 मे यूएस का वीसा लेकर अपने सपने पुरे करने के लिए वहां चली गयी | सपना बड़ा था पर पैसे कम।
अमेरिका में करती रही कोशिश
अमेरिका पहुंचते ही उनपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा,जब उसके हर परिचित ने उसे अपने घर पर शरण देने से इनकार कर दिया। एक अनजाने देश निराश ज्योति को एक गुजराती परिवार ने पेइंग गेस्ट के रूप में शरण दी। दैनिक खर्च के लिए ज्योति ने न्यूजर्सी में एक वीडियो शॉप में सेल्सगर्ल की नौकरी की।
यहां ज्योति के जोश और काम के प्रति इनके लगन को देखकर एक भारतीय व्यक्ति ने उसे CS America नामक कंपनी में रिक्रूटर की जॉब ऑफर की। ज्योति ने कुछ समय यहां काम किया और जल्द ही ICSA नामक कंपनी से उसे बेहतर पैकेज पर जॉब ऑफर मिली। ज्योति ने झट से ये ऑफर स्वीकार कर लिया।
लेकिन कुछ ही दिन बाद आइसीएसए ने यह कहते हुए ज्योति को नौकरी से निकाल दिया कि उसके पास अमेरिका में वर्किंग वीजा नहीं है। नौकरी छोड़ने के बाद वर्किंग वीजा पाने में कई महीने लग गए और ये महिना ज्योति के लिए बहुत कष्टकारी थे। ज्योति ने इस दौरान गैस स्टेशन पर काम किया और बेबी सिटिंग तक की। वर्किंग वीजा पाने के लिए ज्योति मैक्सिको गई और वहां भी वीजा पाने में कई पापड़ बेलने पड़े। तब ज्योति को अहसास हुआ कि वीजा पाने की कोशिशों में वो इतना पेपरवर्क कर चुकी है कि अपनी कंसलटेंसी फर्म तक खोल सकती है। उसने तय किया कि नौकरी की बजाय अपने बिजनेस में हाथ आजमाया जाए।
’ 16 वर्ष की उम्र में विवाह होने के बाद ज्योति ने मात्र 17 की उम्र में एक बेटी को जन्म दिया और इसके एक वर्ष के भीतर ही वे एक और बेटी की मां बनी। ‘‘मात्र 18 वर्ष की उम्र में मैं 2 लड़कियों की मां बन चुकी थी। हमारे पास कभी भी इतने पैसे नहीं होते थे कि हम उनके लिये दवाईयां खरीद सकें या फिर उन्हें उनके पसंदीदा खिलौने खरीदकर दे सकें।
’’ जब इन बच्चियो को स्कूल भेजने का समय आया तो उन्होंने अंग्रेजी माध्यम के स्थान पर तेलगू माध्यम का चुनाव किया, क्योंकि उसकी फीस सिर्फ 25 रुपये प्रतिमाह थी, जो अंग्रेजी माध्यम की आधी थी। ‘‘मेरे पास अपनी दोनों बेटियों को पढ़ाने के लिये प्रतिमाह सिर्फ 50 रुपये होते थे इसीलिये मैंने उनके लिये तेलुगू माध्यम का चुनाव किया।’’
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