Thursday, August 27, 2020

जीएसटी के मुद्दे पर केंद्र, राज्य सरकारों के हाथे चढ़ी।

 जीएसटी के मुद्दे पर केंद्र, राज्य सरकारों के हाथे चढ़ी। 

केंद्र सरकार ,  संघवादी निति के तहत भारत के सभी राज्यों को पंख उजड़े मुर्गे की तरह अपने कदमो में रख कर दाना चुंगवाना चाहती है - शिव भाटिया.


एस. ज़ेड.मलिक (स्वतन्त्र पत्रकार)

नई दिल्ली - केंद्र और राज्यों में जीएसटी पर टकराओ आरम्भ हो चुका है। केंद्र ने राज्यों को अब जीएसटी का कम्पलसेशन देने से इंकार कर दिया है। जबकि केन्द्र ने जीएसटी लागू करने से पहले राज्य सरकारों से एग्रीमेंट है की 5 वर्षों तक केंद्र सरकार राज्य सरकारों के अपने कर संकलन में कमी आने पर उसकी भरपाई केंद्र सरकार करेगी। आज केंद्र राज्यों को जीएसटी कमलसेशन का हिंसा देना तो दूर राज्य सरकारों को उनका केंद्र पर जो अपना अधिकार है, केंद्र उसे भी देने से इंकार कर रही है। अब इस मुद्दे पर घेर ने को आतुर हो गयी। इस मुद्दे पर वेस्ट बंगाल ममताबनर्जी ने स्पष्ट कहा है की केंद्र की सरकार 53 हज़ार करोड़ रुपया जिस पर राज्य सरकार का अधिकार है, केंद्र से  हमे कम्पलसेशन नहीं चाहिए, राज्य का 53 हज़ार करोड़ रुपया जो हमारे राज्य का अधिकार है वही हमारे राज्य को दे दो नहीं हम दिल्ली में घेराव करेंगे वहीं  बिहार के उपमुख़्यमंत्री भाजपा के अपने ही नेता सुशिल मोदी ने पाटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारत की गिरती स्थिति को स्वीकार करते हुए केंद्र पर पर अपनी नाराज़गी स्पष्ट करते हुए कहते हैं की केंद्र ने राज्य के विकास के लिए अभी तक कोई आवंटन नहीं किये हैं जिसे इस समय पेंशन भी देने में दिक्क्त आ रही यही ऐसे में भारत सरकार के जीएसटी कम्पलसेशन पर भरोसा करना बे मानी है। 

  कोरोना महामारी  के कारण हुए लोकडाउन में भारत की आर्थिक दशा देनिय हो गई और दिशा बिलकुल ही विवृत हो गई, अब केंद्र सरकार राज्य सरकार से उधार मांग रही रही है।  तअज्जुब की बात,  केंद्र सरकार राज्य सरकारों को अल्टीमेटम दे रही रही की राज्य उधार ले कर अपने राज्य का खर्चा चालय और अदि  नहीं चला सकते तो अपने राज्य को केंद्र के हवाले करदो - इससे क्या स्पष्ट होता है ? है की केंद्र संघवादी मानसिकता के तहत सभी राज्यों पर अपना वर्चस्व अस्थापित क्र अपने चंगुल में पंख उजड़े मुर्गे की भाँती अपने क़दमों में रखना चाहती है। केंद्र ने जीएसटी लागू करते समय राज्यों से वादा भी किया था की  जीएसटी के मसले पर यदि राज्य को कभी ज़रुरत पड़ी तो केंद्र राज्य को मदद करेगी - अब जब लोकडाउन के कारण आज भारत में फैक्ट्रियां  गयीं , वैश्विक बाज़ारों व आयात निर्यात बंद हो गए प्राइवेट सेक्टर में 40 करोड़ नौकरियां समाप्त हो गयीं , जीडीपी का ग्रोथ रेट धरातल पर आ कर 1. 75 घाटे पर आ गया , ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार को अपने राज्यों को विकास के लिए कम से कम अपने किये हुए वायेदे के अनुसार राज्यों को उनका अधिकार देना चाहिए , जबकि अब केंद्र, राज्यों को मदद करना तो दूर, केंद्र राज्य को उलटे उधार ले कर अपना खर्च चलाने की सलाह दे रही है। केंद्र अब अपने ज़िम्मेवारिओं से राज्यों को मदद करने से पाला झाड़ रही है। जबकि केंद्र सरकार ने रेल बेच दिया , एयरपोर्ट बेच दिया। एलआईसी बेच दिया , अब Hindustan Aeronautics Limited में सरकार अपनी हिस्सेदारी बेचने जा रही है। सरकार Offer For Sale के जरिए 15 फीसदी हिस्सा बेचेगी। इसके जरिए 5 हजार करोड़ जुटाने का प्लान है। यह पैसा कहाँ जा रह है ?   कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शिव भाटिया ने यह सवाल उठा कर केंद्र सरकार को कटहरे में खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा की इस समय केंद्र सरकार के पास जनता को स्पष्ट जवाब देने की न तो क्षमता है न जनता का सामना करने की ताक़त ही है केंद्र ने देश की जनता से अपना विश्वास समाप्त  कर दिया है। देश की जनता के साथ विश्वघाट किया है।  जो सरकार राज्य का अधिकार देना नहीं चाहती, उसने  20 लाख करोड़ का पॅकेज बांटने का जनता से वायदा कर लिया और आज केंद्र की ओर से वायदा करने वाली वित्तीमंत्री सिरे से गायब हैं, कहाँ हैं, कहाँ गया वायदा और जनता को बांटने वाला 20 लाख का बजट ? आज देश में 87% बेरोज़गारी में बढ़ोतरी हो गई और महंगाई अपने चरम सीमा को लांघ चुकी है और उस पर से केंद्र अपने नयी शिक्षा नीतिओं के तहत ज़ी और नीट के 26 लाख छात्रों सड़कों पर खड़ा कर देना चाहती हैं।  30 लाख लोग भारत में कोरोना से पहले प्रभावित हैं और उस पर से छात्रों को सरकार अपनी संघवादी मनुवादी नीतिओं को अब छात्रों पर थोप कर सड़कों पर खड़ा कर कोरोना से आहात करना चाहती है भाजपा के पास न नेता है न नीति।    
लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया की यह सब कुछ देश की सब से पुरानी पार्टी और अभी कुछ राज्यों कांग्रस की सरकार होने के बावजूद डिवेट और प्रेस कॉन्फ्रेंस के अलावे कांग्रेस एक एक जुट क्यूँ नही हो कर आंदोलन का रूप ले रही आखिर क्यूँ कांग्रेस हाशिये पर है ? 
बहरहाल इस कोरोना काल में एक बात और उभर के सामने आई, न्यूज़ एक्सप्रेस के एक रिपोर्ट के अनुसार  पीएम केयर्स फंडेड और देशी कंपनियों से खरीदे गए वेंटिलेटर स्वास्थ्य मंत्रालय की टेक्निकल कमेटी के क्लीनिकल मूल्यांकन में नाकाम हो गए हैं। यह बात एक आरटीआई के जरिये सामने आयी है।
कंपनी ज्योति सीएनसी आटोमेशन और आंध्र प्रदेश मेडटेक जोन (एएमटीजेड)- को पहले उसी समय 22.50 करोड़ रुपये एडवांस पेमेंट के तौर पर हासिल हो चुके हैं जब पीएम केयर्स की ओर से आवंटन किया गया था। ज्योति सीएनसी एक गुजरात आधारित फर्म है जिसके वेंटिलेटरों के कोविड मरीजों के लिए अपर्याप्त होने के चलते अहमदाबाद सिविल अस्पताल में जमकर आलोचना हुई थी।
 लेकिन सवाल है विपक्ष में आज कोई भी ऐसा नेता नहीं है जो ज़मीनी स्तर पर पर जनता के बीच केंद्र की नीति को समझाएं ?  और जनता को लामबन्द कर सके ? जीएसटी की वजह कर राज्य में और भी संकट बढ़ता जा रहा है । सरकार का रवैये कही न कही संघवादको मज़बूत बनाता दर्शाता है।  

Tuesday, August 25, 2020

केरला निवासी डोमिनिक साइमन की सऊदी में गिरफ्तारी पर भारतीय दूतावास चुप क्यूँ ?

 सऊदी अरब के आईटी कम्पनी में कार्यरत केरला निवासी डोमिनिक साइमन की सऊदी में गिरफ्तारी पर भारतीय दूतावास चुप क्यूँ ? 

सऊदी में साइमन के बीवी बच्चे परिशानिओं का सामना कर रहे हैं -   

एस. ज़ेड. मलिक (स्वतंत्र पत्रकार )
  
नई दिल्ली :  पिछले महीने 8 जुलाई से सऊदी अरब की पुलिस ने एक भारतीय केरला निवासी रियाद की एक आईटी कम्पनी में कार्यरत डोमिनिक साइमन को पिछले एक महीने से अपने हिरासत में रखा हुआ है, और सऊदी में भारतीय दूतावास अब तकके इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हुए। जबकि उसकी पत्नी सलिनी स्कारिया जॉय जो वही एक कम्पनी में रिसर्चर है और उसे भी अपने पति के गिरफ्तार होने का असली कारण पता नहीं है और वह अपने पति डोमिनिक साइमन की रिहाई के लिए लगातार कोशिश जारी रखे हुए हैं। पत्रकार से सीधे बात-चीत में साइमन की पत्नी ने कहा कि पिछले दिनों दूतावास के कुछ अधिकारियों से मिली सभी से केवल सहानभूति और संतावना ही मिला । सालिनी स्कारिया का मानना है कि मुझे अब तक रियाद में स्थित भारतीय राजदूत श्री औसाफ़ सईद साहब से मिल कर उन के समक्ष अपनी सारी बात रखना चाहती हूं लेकिन या तो मुझे अधिकारी जान बूझ कर मिलने नही दे रहे हैं या भारतीय राजदूत श्री औसाफ़ सईद साहब वह स्वयं ही मुझसे मिलना नहीं चाहते । साइमन की पत्नी का कहना है कि रियाद स्थित दूतावास के अन्य पदाधिकारीगण कहते कि भारतीय राजदूत श्री औसाफ़ सईद बेहद शालीन और विन्रम स्वाभाव के है, यदि उन्होंने पूरी बात सुन लिया तो समस्या का समाधान निकल आएगा, उन अधिकारियों पर भरोसा कर सलिनी ने पत्रकार से कह की मुझे पूरा भरोसा है कि औसाफ़ सईद साहब से यदि एक बार  हमारी मीटिंग हो जाये तो समस्या का समाधान जो सकता है। परन्तु उनसे क्यूँ नही मिलने दिया जाता है यह संशय बना हुआ है। 
भारतीय राजदूत - श्री औसाफ़ सईद (रियाद)
बहरहाल मामला चाहे जो भी हो , विदेश में भारतीय दूतावास की ज़िम्मेवारी बनती है कि उसके देश के प्रवासियों के साथ कोई समस्या खड़ी होती है तो दूतावास को उस परिस्थितिवश अपने देश के नागरिको के साथ खड़े रहना चाहिये,  यदि कोई अपराधी प्रव्रीति में पकड़ाता है तो भी दूतावास का कर्तव्य है कि अपने देश को उसके अपराध के बारे मे स्पष्टरूप से सर्वजनिक करना चाहिये ताकि देश के नागरिओं में दूतावास के प्रति कोई शंका की गुंजाइश न रहे। परंतु आज सऊदी में भारतीय दूतावास द्वारा एक भारतीय नागरिक जो सऊदी सरकार द्वारा सिर्फ इसलिये गिरफ्तार किया गया है उसने सऊदी के भारतीय दूतावास में हो रहे भ्रष्टाचार की जानकारी भारत सरकार को दे कर आरटीआई में माध्यम से वंदे भारत मिशन की सही जानकारी ले कर भारतीय प्रवासियों को सोशल मीडिया द्वारा दे कर जागरूक किया था यह उसका सबसे बड़ा अपराध था ? इस पर भारतीय दूतावास के राजदूत औसाफ़ सईद को स्पष्ट जानकारी देना चाहिये।
   
साइमन के मित्र सोशल एवं आरटीआई एक्टिविस्ट महेश विजयन का आरोप है कि पिछले महीने 8 जुलाई को भारतीय दूतावास में या तो अधिकारियों द्वारा की गई शिकायत के आधार पर या डोमिनिक द्वारा प्रस्तुत आरटीआई प्रश्नों के प्रतिशोध में उनके द्वारा की गई शिकायत के आधार पर सऊदी अधिकारियों ने भर्मित हो कर डोमिनिक को हिरासत में ले लिया है। सऊदी अरब में एक केरला निवासी  भारतीय आरटीआई कार्यकर्ता डोमिनिक साइमन की गिरफ्तारी विचारणीय है। सवाल है क्या केरला निवासी  भारतीय आरटीआई कार्यकर्ता डोमिनिक साइमन अवैध रूप से रह रहा था ? क्या सऊदी में उसकी संदिग्ध भूमिका थी ?  या सऊदी अब प्रसाशन को गुमराह कर उसे जान बुझ कर एक षड्यंत्र के तहत फंसाया गया ? यह सवाल इस लिए अनिवार्य की जो व्यक्ति विशेषकर कोविड़ -19 महामारी के दौरान अपनी जान की परवाह किय बगैर लोगो को सुरक्षा के प्रति जागरूक करता हो और विशेष कर सऊदी में रह रहे प्रवासी केरल वासियों को उनके गंतव्य स्थान तक पहुंचाने के लिये सऊदी दूतावास और भारत सरकार से विमान की विशेष व्यावस्था कराने और प्रवासिओं को उनके गंतव्य स्थानों तक सुरक्षित पहुंचाने का सक्रिय भूमिका अदा कर सराहनीय कार्य कर रहा था। फिरभी उसकी गिरफ्तारी - सऊदी दूतावास को शक के दायरे में तो खड़ा करता है।  आरटीआई कार्यकर्ता डोमिनिक साइमन की गिरफ्तारी केवल इसलिये किया गया कि वह सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों का प्रभावी उपयोग कर लोगों को अधिकारों के बारे में शिक्षित और जागरूक कर रहा था। 

आखिर इसकी सच्चाई क्या है ? आइना इंडिया इस सच्चाई को जानने के किय कुछ तथ्य तलाशने की कोशिश में प्रथम एक एड्स संस्था के विशेषज्ञ और आरटीआई कार्यकर्ता महेश विजयन से फोन पर बात की उन्होंने बताया की डोमिनिक साइमन  रियाद के आईटी कम्पनी में कार्यरत था और वह हमेशा प्रवासी भारतीयों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाता था। वह केरल के पाल निवासीयों के विवारविकाशिकल आरवीआई उत्साही संस्था का वह एक सक्रिय सदस्य है , जो प्रवासी कानूनी प्रकोष्ठ के वैध सलाहकार के रूप में उसे प्रकोष्ठ की ओर से एक पुरस्कार भी दिया था। विजयन ने कहा साइमन ने इस साल मई में धमकी वाले कॉल के बारे में भारतीय दूतावास को जानकारी दे कर मदद की गुहार लगाईं थी लेकिन उसे कोई वैधानिक मदद तो छोड़िये आश्वासन तक नही मिला ।  

यह भारत सरकार के सरकारी तंत्र के व्यावसथा कि विडंबनाआ कहे कि साइमन का दुर्भाग्य की 8 जुलाई को उसकी गिरफ्तारी के बाद रियाद के अल हेयर जेल में रखा जा रहा है, लेकिन उसके परिवार को भारत सरकार ने सूचित करना उचित नहीं समझा, साइमन के घर वालों को आज भी साइमन की गिरफ्तारी के बारे में सही जानकारी नहीं है की सऊदी सरकार ने उसे किस जुर्म में गिरफ्तार किया था। इस बाबत में साइमन के परिवार वालों ने रियाद में भारतीय दूतावास एवं केंद्रीय विदेश मंत्रालय में याचिका दायर कर साइमन की जानकारी मांगी है।

ऐसा माना जाता है कि सोशल मीडिया की पोस्ट पर आलोचना करने के लिए किसी ने भारतीय दूतावास द्वारा एक झूठी शिकायत के आधार पर एक मिशन के तहत उन्हें गिरफ्तार किया गया था। इस मामले को ले कर उनकी मां बुधवार को हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है। 

 विजयन ने कहा की जैसा कि सूत्रों से पता चला कि इस वर्ष के मई में लोकडाउन के दौरान रियाद में फंसे हुए भारतीओं को भारत सरकार द्वारा वंदे भारत मिशन के तहत वहां के भारतीय दूतावास के माध्यम से उनके अपने गंतव्य स्थान तक पहुंचाने के लिये जिस फ्लाइट की व्यस्था की गई थी उसमे भारतीय दूतावास के कुछ ज़िम्मेवार अधिकारियों द्वारा अलग से पैसे लेकर उन्हें उनके गंतव्य स्थान तक भेजा जा रहा था। जब इस बात की जानकारी साइमन को मिली तो साइमन समाजिक कार्यकर्ता वह सहन नहीं कर सका और उसने इस बात की सही जानकारी लेने के लिये भारत के विदेश मंत्रालय में आरटीआई लगा कर रियाद में भारत दूतावास में हो रहे व्याप्त भ्र्ष्टाचार को उजागर करने के लिए वन्दे भारत मिशन के यात्रा सम्बंधित जानकारी मांगी, मंत्रालय का जवाब को साइमन ने प्रवासिओं के सुविधा के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर वंदे भारत मिशन की सही जानकारी सऊदी अरब में रह रहे केरला परवासिओं को देने कोशीश की जिससे दूतावास के अधिकारियों को काफी बुरा लगा, रियाद के भारतीय दूतावास के अधिकारिओं ने साइमन द्वारा सोशल मीडिया पर प्रसारित सुचना को गलत तरीके से प्रस्तुत कर सऊदी सरकार को गुमराह कर साइमन को सऊदी क़ानून के तहत गिरफ्ता करवा दिया गया और इसके गिरफ्तारी की सुचना को साइमन के परिवार वालों से रियाद के भारतीय दूतावास द्वारा गुप्त रखा गया लेकिन केरला परवासिओं को जानकारी मिलते ही केरला परवासिओं ने सोशल मीडिया के माध्यम से साइमन की गिरफ्तारी को स्वर्जनिक कर दिया। जिसका परिणाम आज साइमन को जेल में भुगतना पड़ रहा है।
ऐसा मानना है कि 8 जुलाई को भारतीय दूतावास में या तो अधिकारियों द्वारा की गई शिकायत के आधार पर या डोमिनिक द्वारा प्रस्तुत आरटीआई प्रश्नों के प्रतिशोध में उनके द्वारा की गई शिकायत के आधार पर सऊदी अधिकारियों ने भर्मित हो कर डोमिनिक को हिरासत में ले लिया है।  

Saturday, August 22, 2020

भाजपा सत्ता के घमंड चूर .

 भाजपा सत्ता के घमंड चूर , चरमारी प्रसाशनिक व्यावस्था, अन्याय बढ़ता वर्चस्व देश व भारतीय समाज के लिये खतरा - कांग्रेस नेता - शिव भाटिया .


भाजपा  समर्थित आरएस की सरकार के 6 वर्षों के कार्यकाल में भारत मे कोई दिन ऐसा नही जिसमे कभी सुख शांति का अनुभव हुआ हो । आये दिन विशेष कर उत्तर भारत के जम्मू और कश्मीर तथा उत्तर प्रदेश एवं पूर्वउत्तर राज्यों और दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में जहां जहां भी भाजपा का साशन या भाजपा का सत्ता में भागीदारी है वहां वहां साम, दाम, दण्ड, भेद, के तहत भाजपा साशन कर रही है और जहां कमज़ोर है वहां वहां अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिये साम, दाम, दण्ड, भेद, के तहत हर हरबे अपना कर प्रसाशन के अधिकारियों को अपने कब्जे में लेने के लिये उन्हें पहले तो लालच दे कर उन्हें अपने दबाव में रख रही है और जो ईमानदारी से अपना काम कर कर रहे उन्हें नौकरी से निकालने की धमकी दे कर उन्हें अपने दबाव में काम करने पर मजबूर कर रही है। ऐसे बहुत से मामले प्रकाश में आये है और आये दिन सुनने को और देखने मिल रहा है। 
अब ऐसा महसूस होने लगा है कि भाजपा अपनी सत्ता स्थापित रखने के लिये किसी भी हद तक जा सकती है ।   
बेहद अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि राजीव त्यागी की मौत सम्पूर्ण भारत के लिये चिंता का विषय है ? राजीव त्यागी केवल कांग्रेस के प्रवक्ता नही थे बल्कि वह सच्चे राष्ट्र हितैषी और सर्वो समाज के गरीबों के हमदर्द थे ज़मीन से जुड़े हुए व्यक्ति थे । उनकी मौत से न कि केवल कांग्रेस को नुकसान हुआ बल्कि भारत के उन समाज को नुकसान हुआ है जो ज़मीन से जुड़ा मेहनतकश मज़दूरों और मध्यम वर्ग थे उनको को क्षति पहुंची है जिसे भारत की जनता कभी माफ नही करेगी। 
    अजब तानाशाही है। और अजीब सा माहौल बनता जा रहा जिस देश की गिने चुने हुए न्यूज़ चैनलों को जनता ने राष्ट्रीय मीडिया की उपाधी दे कर उनको कभी निष्पक्ष तथा भारत में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ मानती थी, आज वही गिने चुने हुए देश के न्यूज़ चैनल सर्वप्रथम बाज़ारू और बिकाऊ हो गए। ऐसा कभी सोंचा भी नहीं जा सकता था। जिसने थोड़ेसे पैसे के लालच में अपना अस्तित्त्व को ही समाप्त कर दिया। इस मीडिया ने न की केवल अपना सतीत्व समाप्त किया बल्कि भारत को विश्व में झूठा और पाखंडी बनाने में कोई कोई कसर नहीं छोड़ा विश्व में बदनाम कर के छोड़ दिया। आज इन मीडिया के कारण विश्व भर में भारत की क्षवी धूमिल हुयी है।  वही भाजपा के कार्यकर्ताओं के मनो मष्तिस्क में यह बैठ गया की मेरी सरकार ने मीडिया खरीद लिया और अब भाजपा के वैसे प्रवक्ता जिन्हे भारत का इत्तिहास तो दूर उन्हें अपने इत्तिहास के बारे में ही पता नहीं की उनका इत्तिहास क्या है ? वह वर्चस्व और दबंगई झूठ और मक्कारी को ही बेहतर निति और वर्तमान और भविष्य समझने लगे हैं।   
जहां भारत में  60  करोड़ लोगों के पास भोजन नहीं है, 70 करोड़ लोगों के पास काम नहीं है, 14 करोड़ लोगों की नौकरियां समाप्त हो चुकी है, देश में ताला बंदी है , कोरोना महामारी से लग भाग 50 लाख लोगों की मृत्यु हो चुकी है, 25 लाख लोग बीमार हैं , सरहद पर दुश्मन युद्ध के लिए तैयार है, चीन - सियाचीन , अरुणाचल , लद्दाक के गहलवान घाटी में घुसा बैठा है। देश की एकता और अखंडता में सेंध लगा दिया गया , भाजपा की उन्मादी नीतिओं ने सामाज में जाती धर्म वर्ण व्यवस्था का ऐसा घिनौना जाल फेक कर भारतीय समाज को नफरतों में उलझा दिया है, की बजाए उस जाल से निकलने की कोशश करने के लोग एक दूसरे को शक की निगाह से देखते हैं। आये दिन महिलाओं पर अत्यचार हो रहा है और उनके साथ दुष्कर्म बलात्कार हो रहा है। न्याय का नामो निशान नही है। भ्रष्टाचार का यह आलम है की एलआईसी बेच दिया , दूरसंचार बेच दिया , एयरपोर्ट बेच दिया, रेलवे बेच दिया। भारत के कम्पनियों में जीडीपी में साढ़े सोलह फीसदी और गिरावट देखने को मिल रहा। एसबीआई अब लोन देने से मना कर कहा है। 
चैनल वाले कुछ लोगों अपने डेक्स पर बुला कर भाजपा की बात ज़बरदस्ती भाजपा के नीतियों पर सवाल करने वालों पर अपनी बात डालते हैं।  जब कोई विपक्ष का प्रवक्ता भाजपा प्रवक्ता या मीडिया से सवाल करता है तो चैनल का ऐंकर और भाजपा प्रवक्ता दोनों उस विपक्ष गेस्ट के साथ बत्तमीज़ी पर उतर आते हैं।  सवाल यदि चाइना पर पूछा जाए तो जवाब हिन्दू हो या नहीं हो सवाल यह पूछा जाता है ? सवाल करो विकास के मुद्दे पर तो सवाल करने वाला हिन्दू विरोधी हो जाता है।  सवाल पूछो भारत की गिरती अर्थव्यवस्था पर तो जवाब मिलता तुम रष्ट्र विरोधी हो। सवाल उठाओ न्याय वयवस्था लायन ऑडर पर जवाब मिलता तुम आतंकवादियों से मिले हुए हो हिन्दू और मुसलमान जिन्ना और पाकिस्तान जिसका सवाल से कोई मतलब नहीं वह बाते बोल कर जहां अपने जवाब को गोल मटोल कर देते हैं वही मीडिया उनका साथ दे कर उन प्रवक्ताओं का समय समाप्त कर उन्हें बोलने से रोक देता हैं। सच तो यह है की प्रवक्ताओं के पास जब कोई जवाब ही नहीं रहता तो उल जलूल बाते करके स्वयं तो भटके हुए हैं ही दूसरों को भटकाने का काम कर रहे हैं और जब देश के प्रधानमंत्री ही देश को 6 वर्षों से आज तक भटकाने का काम ही कर रहे हैं तो यह उनके ही कारीकर्ता तो हैं । यह उनकी बात नही करेंगे तो और उम्मीद रखी जाए यह देश और समाज के हित की बात करेंगे ? इस लिए मैं तो इन्हे "भटकाऊ झूठी पार्टी" अर्थात भाजपा कहता हूँ।
जो जज न्याय की बात करता है उसे हत्या करवा दिया जाता या उसका रातों रात ट्रांसवर या जेल , अभी पिछले दिनों इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक जज को जेल इस लिये डाल दिया गया कि उसने योगी जी व्यावस्था पर सवाल खड़ा कर दिया? पिछले दिनों एक स्थानीय पत्रकार ने योगी जी की व्यावस्था पर सवाल उठाया तो उसे दिल्ली उसके आवास यूपी पुलिस आ कर उसे गिरफ्तार कर लेती है। परसों फिर नोएडा के गुरुकुल में 14 साल की एक नाबालिग बच्ची के साथ दुष्कर्म कर के उसकी हत्या कर दी जाती है, उसे पंखे से लटका कर उस पर आरोप लगा दिया जाता है कि वह डिप्रेशन थी और उसने फांसी लगा ली और न तो प्रसाशन को सूचित किया जाता है और न उसका पोस्टमार्टम कराया जाता और उसकी मां को बुलवा कर उसके सामने ही ज़बरदस्ती दाह संस्कार करा दिया जाता । और आज तक उस पर न तो कोई कारवाई और न किसी मीडिया ने अभी तक कोई डिवेट किया है और कही पर इसकी अभी तक किसी मीडिया ने अब तक कोई खबर चलाई । यह कैसा भारत बनांना चाहते है। और जनता भी खामोश है ? यह सरकार आखिर क्या चाहती है ? आखिर देश की जनता कब जागेगी ? कब तक इस सरकार का अत्यचार सहती रहेगी ? कौन देगा इन सवालों का जवाब ?
 

कोरोना के नाम पर आने वाली वैक्सीन का उपयोग करने में कोई जल्दबाजी नहीं की जाए ।

 कोरोना के नाम पर आने वाली वैक्सीन का उपयोग करने में कोई जल्दबाजी नहीं की जाए और सरकारी बहकावे में आने से बचा जाए - रोशन लाल अग्रवाल (समीक्षक, विश्लेषक, लेखक आर्थिक न्याय)


इस बात की पूरी संभावना है कि कोरोना की दवा के रूप में बाजार में आने वाली वैक्सीन दुनिया में जनसंख्या को कम करने के लिए एक सोचा समझा वैश्विक षड्यंत्र हो और इसकी पूरी संभावना भी है।

क्योंकि अब अमीर लोग नहीं चाहते कि धरती पर ज्यादा जनसंख्या बची रहे और जनसंख्या कम होगी तो बचे हुए लोग अधिक मौज मस्ती के साथ रह सकेंगे।

स्वाभाविक है कि ऐसी स्थिति में सारे गरीब लोग येन केन प्रकारेण मौत के घाट उतार दिए जाएंगे और यह लक्ष्य अनेक प्रकार के हथकंडे द्वारा पूरा किया जाएगा।

निकट भविष्य में कोरोना की दवा के रूप में जो वैक्सीन बनाई गई है वह अगले दो 3 वर्षों में लोगों को हृदय और गुर्दे और अन्य खतरनाक बीमारियों से ग्रसित कर देगी और उसका परिणाम हर व्यक्ति आसानी से समझ सकता है।
यह भी हो सकता है कि यदि लोग शासन के समझाने से नहीं माने तो सरकार कानून बनाकर नागरिकों को इस के टीके लगवाने के लिए बाध्य कर दे और और कई प्रकार से डराए धमकाऐ

हम जानते हैं कि अब दुनिया के सभी शासक विश्व स्वास्थ्य संगठन के नाम पर पूंजी पतियों द्वारा रचे गए षड्यंत्र का हिस्सा बन गई है और अपने को सत्ता में बनाए रखने के लिए उसके हर आदेश का चुपचाप पालन कर रहे हैं।

ऐसी स्थिति में हर जागरूक और समझदार नागरिक को अपनी भूमिका निर्धारित कर लेनी चाहिए और शासन के षड्यंत्रों का मुकाबला बहुत ही सोच समझकर शांतिपूर्वक करना होगा।

वैसे इसका सबसे सरल और विवेकपूर्ण उपाय यह है कि इसकी सभी एलोपैथिक दवाओं का पूरी तरह बहिष्कार किया जाए और आयुर्वेदिक एवं होम्योपैथिक दवाओं का खुलकर उपयोग किया जाए जो पूरी तरह वैज्ञानिक विश्वास योग्य और प्रभावशाली है।
ऐसी स्थिति में सरकारें बल प्रयोग के खतरे भास्कर खुद ही पीछे हट जाएंगी और एलोपैथी के माध्यम से विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रचार जाने वाला हर षड्यंत्र भी आसानी से ध्वस्त किया जा सकेगा।

मैं यह भी कहना चाहता हूं कि एलोपैथी को बहुत ही सोचे समझे ढंग से समाज में स्थापित करने के लिए सरकार बहुत ही पक्षपात पूर्वक काम करती आ रही है और इसकी सबसे बड़ी विशेषता यही है कि यह चिकित्सा प्रणाली लूट और धोखाधड़ी का सबसे आसान हथियार बनाई जा सकती है।

इस संबंध में मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि होम्योपैथी दुनिया की अत्यंत सशक्त सबसे सस्ती और सबसे निरापद चिकित्सा प्रणाली है जिसका मुकाबला दुनिया की कोई भी चिकित्सा प्रणाली नहीं कर सकती लेकिन इसकी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि यह किसी भी प्रकार से षडयंत्र पूर्वक लूट का हथियार नहीं बनाई जा सकती।

इसी प्रकार भारत की परंपरागत चिकित्सा प्रणाली तो इतनी सरल सहज चिकित्सा प्रणाली है कि यह हमारे घरों में रसोई में प्रयोग होने वाले कई प्रकार के मसालों में सम्मिलित है जो भोजन को स्वादिष्ट तो बनाती ही है साथ ही साथ व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी सहज रूप से बढ़ाकर हर प्रकार की बीमारियों से लोगों की रक्षा करती है।

यह चिकित्सा प्रणाली ही नहीं एक स्वस्थ जीवन की शैली ही बन गई है और इसे अपनाने में किसी को बहुत सामान्य करते ही करना पड़ता है और भोजन भी बहुत श्रेष्ठ मिलता है।

आप भी यह जानते हैं कि कई आयुर्वेदिक कंपनियां अब बहुत शुद्ध और शक्ति दवाइयां और अन्य उपभोग सामग्री उपलब्ध भी करा रही हैं और उन्हें अपने देश में भी निरंतर मिलने में बहुत सरलता हो गई है।

इसलिए अच्छा होगा कि कोरोना के नाम पर आने वाली वैक्सीन का उपयोग करने में कोई जल्दबाजी नहीं की जाए और सरकारी बहकावे में आने से बचा जाए।

इससे विश्व को लूटने की वैश्विक योजना धरी की धरी रह जाएगी और सरकार को भी समाज की संगठित शक्ति का एहसास हो जाएगा जिससे समाज के साथ मनमानी करने का अंतिम परिणाम भी उसकी समझ में आ जाएगा।

रोशन लाल अग्रवाल (समीक्षक, विश्लेषक, लेखक आर्थिक न्याय) के अपने विचार है ।

Friday, August 14, 2020

लोकतंत्र में वर्चस्व की सत्ता।

 लोकतंत्र में वर्चस्व की सत्ता।  

मोदी जी की दूसरी पारी का एक साल का मूल्यांकन। 

मोदी जी के एक साल का मूल्यांकन किया जाए तो ऐसा कुछ नहीं लगता जिसका उल्लेख किया जाए हां, इस दौरान उन्होंने अपने विरोधी स्वर को दबाने का काम पूरे जोर शोर से किया है और यह दिखाने की कोशिश की गयी है कि अब देश में वही व्यक्ति या समूह चैन से रह पाएगा जो उनकी हाँ में हाँ मिलाएगए । 

भाजपा में मोदी जी के बाद वैसे भी अमित शाह सबसे मज़बूत और ताक़तवर नेता हैं।  उन्हें गृहमंत्री बनाने के पीछे भी यही उद्देश्य है कि पूरे देश पर राजी, गैर राजी राज किया जाए।  इसी वजह से उन्होंने सबसे पहले उन कानूनों को पास कराया जिससे उनकी ताक़त में इजाफा हो।  इसके लिए जम्मू कश्मीर में धारा 370 , नागरिकता संशोधन अधिनियम यूएपीए ( Unlawful Activities Prevention Act ) को संसद से पास कराया। 

धारा 370  क्या है ?

इससे पहले तो यह समझने की बात है कि धारा 370 है क्या। यह एक ऐसी धारा है जो जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष दर्ज़ा प्रदान करती है i धारा 370 के प्रावधानों के अनुसार संसद को जम्मू कश्मीर राज्य के बारे में रक्षा, विदेशी मामले और संचार के विषय में क़ानून बनाने का अधिकार है लेकिन किसी अन्य विषय से सम्बंधित क़ानून को लागू करने के लिए केंद्र को राज्य सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है या राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिए।  हालांकि आजादी के बाद इस धारा में अनेक संशोधन किए गए बल्कि एक तरह से यह कहना अधिक उचित होगा कि इस धारा को बहुत हद तक कमज़ोर किया गया।  पर यह भाजपा का यह मूल एजेंडा रहा है तो यह स्वाभाविक है कि वह इसको हटाने का श्रेय खुद लेना चाहेगी।  यह दोषपूर्ण धारा हटाई गयी, बहुत अच्छी बात है।  पर जिस तरह से हटाई गयी उससे यही प्रतीत हुआ कि राज्य की जनता के हितों से ऊपर केंद्र सरकार का हित दिखाई दिया।  अब जम्मू कश्मीर में केंद्र की सत्ता रहेगी और वह जैसे चाहेगी, वैसा होगा i यदि राज्य की जनता को विश्वास में लिया जाता तो बहुत अच्छा होता।  आज जबकि सारा कामकाज इंटरनेट पर आश्रित है, वहाँ की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।  इस धारा 370 को हटाने से लगभग 40 हज़ार करोड़ का नुकसान और लगभग 5 लाख लोगों की नौकरी चली गयी।  धारा 370 हटे, इसमें किसी को क्यों कोई परेशानी होगी ? पर जिस तरह से यह धारा हटाई गयी उसे बचा जा सकता था।  सारा कुछ चौपट करके कुछ किया जाए तो वह किस काम का ?  यह आश्चर्य की बात है कि देश की किसी भी विपक्ष की पार्टी को कश्मीर में नहीं घुसने दिया i क़ानून बनाया, अच्छा है i पर यदि राज्य की जनता को विश्वास में ले लिया जाता तो रास्ता और भी सुलभ हो जाता।  एक तरह से डंडे के बल पर 370  हटाई गयी।  इसके बाद दूसरा बिल नागरिकता के ऊपर लाया गया।  

नागरिकता संशोधन क़ानून

इस क़ानून की कुल 6 धाराओं में से धारा 2 के अनुसार अवैध प्रवासी या घुसपेंठिया की परिभाषा को स्पष्ट किया गया है कि 31 दिसंबर 2014 से पूर्व भारत में प्रवेश पाने वाले अफगानिस्तान,बांग्ला देश पाकिस्तान के हिन्दू,सिख, बौद्ध,जैन,पारसी और ईसाई समुदाय के व्यक्तियों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगए। 

असल में इस नागरिकता संशोधन क़ानून की जरूरत क्यों पड़ी पहले इसको समझना जरूरी है।  असम में एनआरसी की प्रक्रिया अपनाई गयी अर्थात, राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के अनुसार यह जांच करनी थी कि असम में कितने अवैध प्रवासी हैं।  सरकार का ऐसा अनुमान था कि अवैध प्रवासियों में मुसलमानों की संख्या अधिक होगी।  पर जांच में पाया गया कि कुल 19 लाख प्रवासियों में 4 लाख के करीब विदेशी मुस्लिम हैं बाकी 14 लाख हिन्दू हैं।  बाद में इस कसरत को बंद कर दिया गया।  अब हिन्दू वोटों का ध्यान रखते हुए एक रणनीति के तहत यह बिल लाया गया।  यह स्वाभाविक है जिन गैर मुस्लिमों को नागरिकता दी जाएगी वे भाजपा का ही समर्थन करेंग। 

इस बिल का देशव्यापी विरोध हुआ और पूरे देश में इसका असर दिखाई दिया। देश के लगभग 100 शहरों में आन्दोलन हुआ।  जे.एन.यू. जामिया अलीगढ मुस्लिम यूनीवर्सिटी के अलावा देश विदेश के अनेक छात्र संगठनों ने भी इस क़ानून का विरोध किया। 

केंद्र सरकार उत्तर प्रदेश की सरकार ने इसके बहाने लोगों पर घोर अत्याचार किया।  मुस्लिम पढी लिखी महिलाओं को यहाँ तक कि गर्भवती महिलाओं तक को जेल में ठूंस दिया गया।  नागरिकता क़ानून का विरोध करने वालों को देशद्रोही बताया गया। 

नागरिकता संशोशन क़ानून  2019 , धर्म के आधार पर अवैध घुसपेंठियों को उनकी भारत में घुसपेंठ की तिथि से नागरिकता के लिए प्रावधान करने वाला क़ानून वर्तमान परिपेक्ष्य में गैर जरूरी तो है ही लेकिन इसकी संवैधानिकता पर भी गंभीर सवाल उठाना स्वाभाविक है।  इस क़ानून के कारण देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी यह सन्देश जा रहा है कि यह क़ानून मौलिक अधिकारों का हनन करने वाला और भारत के सर्वधर्म समभाव की विश्व छवि को खराब करने वाला है। 

अर्थात यह क़ानून भी डंडे के बल पर लागू किया गया।

यू..पी.. क़ानून ( Unlawful Activities Prevention Act )

      ( गैर कानूनी गतिविधियाँ रोकथाम क़ानून )

देश में आतंकवाद की समस्या को देखते हुए आतंकी संगठनों और आतंकवादियों की नकेल कसने के लिए यह क़ानून बनाया गया।  इस क़ानून को बनने के बाद सरकार किसी भी व्यक्ति को आतंकी घोषित किया जा सकता है।  आतंकी होने के नाम पर उसकी संपत्ति जब्त की जा सकती है।  इसके अलावा इस क़ानून ने NIA (राष्ट्रीय जांच एजेंसी ) को असीमित अधिकार दे दिए हैं।  इस क़ानून का मकसद आतंकवाद की घटनाओं में कमी लाना, आतंकी घटनाओं की तीव्र गति से जांच करना और आतंकवादियों को जल्दी सज़ा दिलवाना है।  दरअसल,देश की एकता और अखंडता पर चोट करने वाले के खिलाफ सरकार को असीमित अधिकार दे दिए हैं।  विपक्ष का आरोप है कि सरकार उसकी मशीनरी इसका गलत इस्तेमाल कर सकती है।  इसके अनुसार सरकार किसी भी तरह से आतंकी गतिविधियों में शामिल संगठन या व्यक्ति को आतंकी घोषित कर सकती है। 

सरकार सबूत होने की स्थिति में भी सिर्फ शक के आधार पर भी किसी को आतंकी घोषित कर सकती है। 

राष्ट्रीय जांच एजेंसी को इस क़ानून में यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी राज्य में जाकर कहीं भी छापा डाल सकती है।   इसके लिए उसे सम्बंधित राज्य की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है।  

विपक्ष की यह आशंका रही कि जिस तरह की राजनीति भाजपा नेता करते हैं उसमे यह बहुत गुंजाइश है कि ये लोग इस क़ानून का दुरूपयोग करेंगे।  योगी जी तो शायद इस तरह के काण्ड करके अपना नामगिनीज बुकमें लिखवाने के लिए आतुर हैं।  एक साल में सबसे ज्यादाFIR दर्ज कराने वाले मुख्यमंत्रीबन जाएंगे।  तालाबंदी के दौरान भी अनेक छात्र छात्राओं सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ इस क़ानून का दुरूपयोग किया गया।  यानी जिसने भी विरोध करने की कोशिश की उन्हें परेशान किया गया, उसके जीवन को बर्बाद करने के षड्यंत्र रचे।  अर्थात, यह क़ानून भी डंडे के बल पर पास हुआ। 

इसी बीच दिल्ली विधानसभा चुनाव का समय गया। 

    दिल्ली में भाजपा को यह आभास था कि आम आदमी पार्टी ने आम जनता के लिए इतना काम कर दिया है कि उसे हराना नामुमकिन है।  अमित शाह ने दिल्ली के चुनाव की बागडोर अपने हाथ में ले ली।  उन्होंने चुनाव को एक रंग में रंगना शुरू कर दिया।  चुनाव में खुलकर यानी डंके की चोट पर ध्रुवीकरण का प्रयोग किया। 

     भाजपा के उन सभी नेताओं को चुनाव में लगाया गया जो समाज को बांटने में ज्यादा भरोसा करते हैं जिनकी भाषा हमेशा साम्प्रदायिक आपत्तिजनक रही है।  उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री इस मामले में अव्वल रहे हैं।  वे तो जैसे मौके की तलाश में रहते हैं कि कब विघटन की राजनीति करने का अवसर मिले और कब खुलकर हिन्दू मुसलमान किया जाए।  चुनाव में भाजपा को मुंह की खानी पडा। 

अब तक भी दिल्ली के अनेक हिस्सों में नागरिकता क़ानून का विरोध हो रहा था और सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी धरना चल रहा था।  इसी बीच आम आदमी पार्टी से भाजपा में आए कपिल मिश्रा को इस काम पर लगाया गया कि किसी भी तरह दिल्ली का धरना ख़त्म करवाना है और कुछ नया करना है।  कपिल मिश्रा को भाजपा में अपनी वफादारी प्रकट करनी थी कपिल मिश्रा ने दिल्ली पुलिस की मौजूदगी में ऐसे बयान दिए जिससे माहौ बिगड़ना स्वाभाविक था।  दंगा भड़क गया।  इन दंगों में करीब 60-70 लोग मारे गए। 

अब दंगा हुआ तो इसकी शल्यचिकित्सा तो करनी थी, जनता की आँखों में धुल भी झौकनी थी तो एक औपचारिक जांच कराई गयी।  पुलिस ने जो आरोप पत्र दाखिल किया उसमे आम आदमी पार्टी के निष्काषित पार्षद ताहिर हुसैन को मुख्य आरोपी बनाया गया जिसे एक इंस्पेक्टर की हत्या के लिए जिम्मेदार बताया गया।  उस पर गैर कानूनी गतिविधियाँ क़ानून के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया गया।  समाजसेवी योगेन्द्र यादव जैसे स्कोलर को इसमें घसीटने की कोशिश की गयी।  कपिल मिश्रा जिसने खुलेआम दंगा भड़काया।  जिसने पुलिस की मौजूदगी में एक जाति विशेष के लोगों को धमकी दी, उनके जुलुस निकाला पर उसका नाम आरोप पत्र में नहीं आया।  

हाई कोर्ट के जज ने कपिल मिश्रा जैसे लोगों के खिलाफ कार्यवाही की बात की तो उस जज को रातों रात ट्रांसफर करवा दिया गया।  एक तरह से सीधा सन्देश था कि जो भी इस कानून का विरोध करेगा उसका सही ढंग से इलाज़ किया जाएगा। 

कोरोना का प्रकोप

दिल्ली दंगों की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि कोरोना का प्रकोप शुरू हो गया।  30 जनवरी को देश में, केरल में कोरोना का पहला मामला प्रकाश में आया।  उस समय मोदी जी की सरकार अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप से स्वागत की तैयारी में लगी थी i नमस्ते ट्रंप की तैयारी चल रही थी।  राहुल गाधी केरल का प्रतिनिधित्व करते हैं, केरल से वे सासंद हैं।  उस समय राहुल गांधी ने सरकार को चेताया था कि यह एक भयानक बीमारी है और यदि समय रहते इसके इलाज़ पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह बहुत ही भयावह रूप ले सकती है i राहुल गाधी कोई बात कहें तो उसे तो गंभीरता से लेना ही नहीं है।  राहुल गांधी भाजपा की नज़र में बेवकूफ हैं,पप्पू हैं,जोकर हैं आदि,आदि हैं।  यहाँ तक कि देश के स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन तक ने राहुल गांधी को गलत बताया और कहा कि राहुल गांधी तो अफवाह फैलाने का काम करते हैं।  इसका नतीज़ा सामने है।  आज देश में 22 लाख से ऊपर मामले हैं।  यदि 30 जनवरी के आसपास ढंग से गौर कर लिया जाता तो हालत इतनी खराब नहीं होती।  बाहर यानी विदेश से आने वाले यात्रियों की निगरानी और सघन जांच की जाती तो शायद यह हाल नहीं होता।  महामारी की सूचना के बावजूद 23 मार्च तक हवाई अड्डों पर जांच की कोई व्यवस्था नहीं थी।  24 मार्च तक देश के सभी बड़े मंदिर खुले हुए थे।  संसद चल रही थी।  मध्य प्रदेश के विधायकों की अदला बदली हो रही थी।  24मार्च से मामलों की संख्या बढ़ने लगी।  उस वक़्त तक सरकार के पास बीमारी से लड़ने का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं था।  बल्कि उस समय तक केंद्र सरकार मास्क अन्य चिकित्सीय उपकरणों का निर्यात कर रही थी।  डॉक्टरों से लेकर अस्पतालों में उपकरण नहीं थे।  जब सरकार को लगा कि अब हाथ से मामला निकल सकता है और विपक्ष मुद्दे को उठा सकता है तो बिना सोचे समझे तुरंत तालाबंदी का एलान किया गया।  बस,रेल और हवाई सब सेवाएं बंद कर दी गईं।  इसी बीच तबलीगी जमात का मामला प्रकाश में आया।  भाजपा को तो जैसे डूबते को सहारा मिल गया।  भाजपा का हर छोटा बड़ा नेता तबलीगी जमात पर प्रवचन दे रहा था।  पूरी भाजपा और उसका पिट्ठू मीडिया देश में आए कोरोना के लिए तबलीगी जमात को जिम्मेदार ठहराया जाने लगा।  पूरे देश में एक हवा बनाई गयी कि हमारे यहाँ तो सब ठीक था जो कुछ भी हमारे यहाँ बीमारी आई है वह तबलीगी जमात द्वारा लाई गयी है।  चलिए,एक बार को यह मान भी लिया जाए कि जमात ने ही महामारी को फैलाया है तो इसके लिए दोषी कौन है ? यदि हवाई अड्डे पर समय रहते जांच का सही प्रावधान होता तो ये तबलीगी भी नहीं पाते।  यदि फरवरी के महीने में बाहर से आने वाले यात्रियों पर रोक लगा दी जाती तो यह स्थिति इतनी खराब नहीं होती।  इसके अलावा तालाबंदी करते वक़्त यह नहीं सोचा कि जो लोग अपने घरों से अलग हैं, उनको कैसे घर भेजा जाए ? देश में करोड़ों मजदूर अपने घर से बाहर काम कर रहे हैं उन्हें उनके घर तक पहुंचाने की व्यवस्था कैसे की जाएगी ? बसों और परिवहन व्यवस्था के अभाव में वे अपने घर कैसे पहुंचेंगे ? ऐसी स्थिति में भी मजदूरों के पास पैदल जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं था।  नतीजा यह हुआ कि मजदूर चलते चलते मरते रहे।  कई महिलाओं ने रास्ते में ही बच्चों को जन्म दिया।  बीच बीच में प्रधानमंत्री टीवी पर मजदूरों से त्याग करने की अपील कर रहे थे और अपनी चिरपरिचित शैली में प्रवचन दे रहे थे। 

कोरोना को लेकर शुरू शुरू में रोजाना स्वास्थ्य मंत्रालय भारतीय चिकत्सा शोध परिषद् की ओर से प्रेस वार्ता का आयोजन किया जाता रहा फिर जैसे जैसे कोरोना के मामलों की संख्या बढ़ने लगी यह व्यवस्था बंद कर दी गई  आज देश में कोरोना के मरीजों की संख्या लगभग 22 लाख है जिसमे करीब चालीस हज़ार की मौत भी हो चुकी है।  अप्रैल के महीने में एक बार दीए जलवाकर मोदी जी अंतर्ध्यान हो गए फिर आत्मनिर्भर के नारे के साथ प्रकट हुए।  तीसरी तालाबंदी के बाद मोदी जी ने भी अपने हाथ खड़े कर दिए।  उसके बाद महामारी के लड़ने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों को सौंप दी गयी।  अब राज्य सरकारों के पास जैसे जो इंतजाम हैं उसके हिसाब से वे अपना काम कर रही हैं।  यानी अब यदि लोग मरते हैं तो केंद्र सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी।  

यानी एक साल में मोदी जी ने अपनी ताक़त बढाने विरोधी स्वर को दबाने के अलावा जनता के लिए कुछ नहीं किया गया।    

आज भाजपा में वे सारी बुराइयां गयी हैं जिनकी वजह से कांग्रेस हारी थी। 

यह लेख वरिष्ठ  सेवी यतेंद्र चौधरी  के अपने विचार हैं।