अब जन सूझबूझ प्रकिर्या द्वारा परिवर्तन अनिवार्य है। अब अमीरी रेखा नहीं गरीबी रेखा बननी चाहिए।
भारत में नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में बल्कि यूँ कहें जबसे संसार बन है तभी से हर दौर कि नयी नस्लों में बदलो यानि परिवर्तन हुआ है और होता रहा है और होता रहेगा। लेकिन हमेशा जो भी बदलाव हुए हैं और हो रहे हैं सभी बदलाव उन लोगो द्वारा किये जाते हैं जिनको व्यवस्था से दुःख तथा नुक्सान होने लगता है। जबकि 90 % जनता में अधिकतर यानि लगभग 35 % लोग कम पढ़े लिखे और अधिक बुद्धि विवेक और बल वाले वैसे लोगों की तादाद अधिक है जो निर्धन हैं। इनमे से कुछ इनमे से कुछ भूमिहीन हैं लेकिन सरकारी नौकरी तथा अपना रोज़गार कर अपने परिवार का बलिभाती पालन पोषण कर रहे हैं। जबकि सत्ता की व्यवस्था 10 % लोगों के ही हांथों में होती है लेकिन यह 10 % लोग 90 % पर हावी रहते हैं। यह 10 % लोग ही देश और दुन्या की तक़दीर लिखते हैं। इन 10 % में उस समय बदलाव आता है जब 90 % लोग व्यवस्था से आहात होते हैं और अपने जन आक्रोश के तहत एक आंदोलन एक क्रांति का रूप जब तक न ले लें। फिर इन्हे शांत करने के लिए यह 10 % व्यस्थापक लोग धोका फरेब और झूठ का एक वायदा का पुलिंदा तैयार कर जन आक्रोश को दिखाते हैं - तो क्या सच मच व्यवस्था बदलदते हैं , नहीं तो क्या बदलते हैं की जनाक्रोश शांत होजाता है। झूठा प्रॉजेक्ट जिसे लागू करने में शायद बरसों लगजएं - झूठी इस्किमें जिसमे गरीबों को लाखों रुपया देने की बात कही गयी हो और बेरोजगारों को घर बैठे रोज़गार देने का वायदा , तसल्ली इसी में जनता खुशफहमी की शिकार होकर अपने दिनचर्या में लगजाति है कुछ तो भूल कर अपनी व्यवस्था में मग्न हो जाते हैं कुछ हाय हल्ला करते रहते हैं। लोग इस तरह से आदि हो चुके है इसलिए की गुलामी इनके खून में है।
व्यवस्था सरकार में बैठे लोग न किया है न करेंगे, नहीं कर सकते। कर सकती है तो जनता , अवाम , वहभी सहज और सरल तरीके से। दलालों और अपने छुटभइया नेताओं का साथ छोड़ कर थोड़ा सा अपने अंदर पहले बदलाव लाना होगा।जनता , अवाम यदि अपने अंदर थोड़ा सा बदलाव लाती है तो सिर्फ व्यवस्था नहीं बल्कि गॉव से लेकर देश भी बदल कर ख़ूबसूरत के साथ साथ मज़बूत भी हो जायेगा।
पहला क़दम - फार्मूला नंबर वन , चाहे छोटा गॉव हो या बड़ा गॉव हो हर गॉव में एक ग्राम विकास कमेटी बनायें तथा ग्रामवासी वैसे लोग को चुने चाहे अमिर हो या गरीब, हिन्दू या मुसलमान , छोटी जाती का बड़ी जाती का हो , जो ग्रामवासियों के साथ अपना अच्छा सुभाओं रखता हो , और सर्वो समाज का हितैषी हो गांव के विकास के लिए ग्रामवासियों से हमेशा चर्चा करता रहता हो , उसे अपना प्रतिनिधि चुन लें उसे ही आगे आने के लिए प्रोत्साहित करें, ज़रूरी नहीं है की इस विचारधारा के मात्र एक गांव में एक ही होंगे दो भी निकल सकते हैं चार भी निकल सकते है। ऐसी इस्थिति में ग्रामवासी मिल कर सारे गांव के सामने एक घड़ा लेकर उसमें चुने हुए नामों की पर्ची बन कर एक एक घड़े में दाल कर किसी छोटे बच्चे से एक पर्ची निकलवाएं, इस प्रकार का फॉर्मूला हर गॉव को अपनाना होगा , फिर पंचायत अस्तर पर मुख्या के लिए सर्व सहमति से एक आदमी को चुने यदि एक से ज़्यादा होता है तो उन सब के नामों को पर्ची बन कर एक एक घड़े में दाल कर किसी छोटे बच्चे से एक पर्ची निकलवाएं, जिसका नाम निकले तो सभी को उस पर ईमानदारी से सहमति देते हुए उसी को पहले उसे मुख्या बनायें , इसी तरह प्रखंड (ब्लॉक) अस्तर पर सभी मुखिया के नाम को मिला कर एक घड़े में दाल कर किसी छोटे बच्चे से एक पर्ची निकलवाएं और जिसका नाम निकले सर्व सहमति से उसी को प्रमुख का उम्मीदवार बना कर उसी को अपना मत देकर अपना प्रमुख बनायें। तथा इसी फार्मूले के तहत एक विधायक तैयार करें लेकिन ध्यान रहे आप का कोई भी प्रतिनिधि अनपढ़ न हो , कम् से काम 12 वीं को ही अपना प्रतिनिधि चुने। इसी प्रकार विधायक और मुख्या मिला कर जिला अस्तर पर एक सांसद का चुनाव करें। जो आपके लिए तथा गॉव के हित में विकास के लिए अच्छी नीतियां बांनाये और सरकार से उसे पास करा सके।
फार्मूला न० दो - यदि आप के द्वारा चुना हुआ प्रतिनिधि दो से अढ़ाई वर्षों तक काम नहीं करता है तो उसे जिस प्रकिर्या से आप अपना प्रतिनिधि चुना हैं उसी प्रकिर्या के तहत उन्हें आप को निकालने का भी अधिकार होगा। और फिर उन्ही कमेटी में से उसी प्रकिर्या के तहत दूसरे प्रतिनिधि को मौक़ा दें। इसमें न कोई सरकार का खर्च आएगा और न सरकार को चुनाव कराने का कोई बहाना।
फार्मूला न० दो - यदि आप के द्वारा चुना हुआ प्रतिनिधि दो से अढ़ाई वर्षों तक काम नहीं करता है तो उसे जिस प्रकिर्या से आप अपना प्रतिनिधि चुना हैं उसी प्रकिर्या के तहत उन्हें आप को निकालने का भी अधिकार होगा। और फिर उन्ही कमेटी में से उसी प्रकिर्या के तहत दूसरे प्रतिनिधि को मौक़ा दें। इसमें न कोई सरकार का खर्च आएगा और न सरकार को चुनाव कराने का कोई बहाना।
इसी प्रकार देश हर नागरिक को सरकारी ख़ज़ाने से 10000 रुपया प्रति माह दिया जाएगा चाहे वह अमीर हो या गरीब उसका फार्मूला रोशन लाल अग्रवाल द्वारा दिए गए कुछ प्रावधानों को अपनाए जैसे - यह प्रावधान आपके द्वारा चुने गए प्रतिनिधियो के द्वारा विधान सभ एवं सांसद में पूरी ताक़त से लागु करना होगा - यह दस हज़ार रुपया देश के सभी नागरिकों को कैसे मिलसकता है आएं इस पर एक गहन चिंतन करें - फिर फैसला कर्रें संभव है या नहीं - फार्मूला न० तीन - सारे प्राकृतिक संसाधन ही मूल धन है और हमारे जीवन का आधार है इनके उपभोग के बिना हमारा जीवन नहीँ चल सकता प्रकृति मेँ पाए जाने वाले उपभोग के सभी पदार्थ इंन्हीं प्राकृतिक संसाधन से बनाए जाते है ये प्राकृतिक संसाधन मूल रुप से प्रकृति का वरदान है और किसी व्यक्ति ने इन का निर्माण अपनी शक्ति बुद्धि या क्षमता से नहीँ किया है इसलिए न्याय के आधार पर एक व्यक्ति का मूलभूत जन्मसिद्ध अधिकार केवल औसत सीमा तक संपत्ति पर ही हो सकता है। इससे अधिक पर नहीँ क्योंकि इससे अधिक पर मूल अधिकार मान लेने से किसी अन्य व्यक्ति के मूल अधिकार का हनन होगा जो उसके साथ अंन्याय है। क्योंकि यदि हम व्यक्ति के अधिकारोँ का संबंध उसकी उपरोक्त विशेषताओं से जोड़ते है तो उसके आधार पर बनने वाली व्यवस्था न्यायपूर्ण न होकर जंगलराज या जिसकी लाठी उसकी भेंस वाली होगी और उससे समाज मेँ शांति की स्थापना नहीँ की जा सकती।
किंतु इस अधिकार को प्राप्त करने के लिए हर व्यक्ति को अपनी योग्यता क्षमता या पुरुषार्थ पर ही निर्भर रहना होता है। जो सबकी एक समान न होकर बहुत अलग अलग है। ये विशेषताएँ कुछ लोगो की औसत से कम व अन्य कुछ लोगोँ की बहुत ज्यादा भी हो सकती है और होती ही है। इसी कारण कुछ लोगोँ के पास अपनी उपभोग की आवश्यकताओं को पूरा कर लेने के बाद भी मूलभूत औसत अधिकार से बहुत अधिक संपत्ति एकत्रित हो सकती है। जबकि अन्य लोगोँ को अपने मूलभूत अधिकार से बहुत कम आय ही प्राप्त होती हैं, जिससे वे अपने उपभोग की जरुरतोँ को भी ठीक प्रकार से पूरा नहीँ कर पाते।
इस प्रकार औसत सीमा तक संपत्ति एक व्यक्ति का मालिकाना अधिकार की अधिकतम सीमा अर्थात् अमीरी रेखा है जो किसी भी समय निजी संपत्ति की कुल मात्रा को उस समय की जनसंख्या से भाग देकर आसानी से निकाली जा सकती है। जैसे -
इसलिए न्याय के आधार पर एक नागरिक को औसत सीमा से अधिक संपत्ति का स्वामी न मांन कर उसका प्रबंधक (समाज का कर्जदार) माना जाना चाहिए और मूल सीमा से अधिक संपत्ति पर ब्याज की दर से संपत्ति कर लगाया जाना चाहिए।
अंय सभी प्रकार के करों (आयकर सहित) समाप्त कर दिया जाना चाहिए जो किसी भी दृष्टि से समाज के लिए हितकारी नहीँ हे ओर सभी प्रकार को षड़यंत्रों को जन्म देते है।
क्योंकि सारे प्राकृतिक संसाधन ही मूल संपत्ति होते है और इन पर समाज का अर्थ सभी लोगोँ का समान रुप से स्वामित्व होता है। इसलिए संपत्तिकर से इस प्रकार होने वाली आय पूरे समाज की प्राकृतिक संसाधनो से प्राप्त होने वाली अतिरिक्त आय होती है जिस पर सब का समान अधिकार है।
इसलिए इस में से सरकार के बजट का खर्च (व्यवस्था के संचालन का खर्च) काटकर शेष राशि को सारे नगरिकों में बिना किसी भेदभाव के लाभांश के रुप मेँ बाँट दिया जाना चाहिए।
इस प्रकार न्याय के आधार पर हर नागरिक के दो अधिकार होते हैं, पहला मूलभूत स्वामित्व का अधिकार जिसका व्यक्ति की मेहनत से कोई संबंध नहीँ होता है और जो सबका सम्मान होता है।
दूसरा मेहनत या पुरुषार्थ से प्राप्त अधिकार जो मेहनत के आधार पर सबका कम या अधिक हो सकता है।
लाभांश स्वामित्व के अधिकार से मिलने वाला समान लाभ है जिसका व्यक्ति की मेहनत से कोई संबंध नहीँ होता।
भौतिक विज्ञान की उन्नति के कारण प्राकृतिक संसाधनो को उपभोग योग्य बनाने के लिए उन मेँ लगने वाली मेहनत की मात्रा लगातार घटती जा रही है और स्वामित्व के अधिकार का महत्व बरता जा रहा है। और उसके साथ ही लाभांश की मात्रा भी बढ़ती जा रही है।
आज भी एक व्यक्ति की आय का संबंध उसकी शारीरिक या बौद्धिक मेहनत से न होकर उसके साधनो से स्थापित हो गया है जिसके पास अधिक साधन है उसकी आय ज्यादा है जिसके पास कम साधन है उसकी आय भी उसी अनुपात मेँ बहुत कम है। जिस दिन भौतिक विज्ञान इतनी उन्नति कर लेंगे कि उसके सारे कार्य अनेक प्रकार के यंत्र और उपकरणो की सहायता से ही पूरे होने लगेंगे और मेहनत की कोई भूमिका ही नहीँ बचेगी तब समाज के शांतिपूर्ण संचालन का एकमात्र मार्ग लाभांश ही रह जाएगा मेहनत नहीँ।
हर व्यक्ति चाहता है उसे उसके उपभोग के पदार्थ कम से कम परिश्रम मेँ निरंतर प्राप्त होते रहे और उसे कभी भी अभाव का सामना न करना पड़े। भौतिक विज्ञान की उन्नति ने मनुष्य की इस चीर संचित अभिलाषा को अच्छी तरह से पूरा किया है।
अतः अब सब लोगोँ को अपना पेट भरने के लिए किसी प्रकार की मेहनत करने की बाध्यता से मुक्ति मिलनी चाहिए इसे हरामखोरी कहना या गलत मानना पूरी तरह अज्ञान्ता है।
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