बिहार प्रवासी मलिक बिरादरी की मलिक बया वेलफेयर आर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया के ओर से कोर कमेटी की दूसरी बैठक।
एस. ज़ेड. मलिक(पत्रकार)
नई दिल्ली - ओखला के अबुल फज़ल ठोकर न० 4 के मुख्यालय "मलिक बया वेलफेयर आर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया" के अध्यक्ष अब्दुल सत्तर मलिक की अध्यक्षता में उनके निवास पर 21 अगस्त 2016 को कोर कमेटी की दूसरी बैठक का आयोजन किया गया। जिसमे बिहार प्रवासी मलिक क़ाबिले के लोग जो इस समय दिल्ली के एन सी आर में अपनी जीविका तथ अपने सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिए संघर्षशील अपने परिवार के साथ अपना जीवन व्यतित कर रहे हैं। जिनकी स्थिति दैनिये है उन्हें कमेटी से जोड़ कर संभवतः हर प्रकार से मदद करने का प्रयास किया जाये तथा किस प्रकार से मदद के लिए धन अर्जित किया जाये और भविष्य में आपसी सहयोग के साथ साथ कैसे संगठित रखा जाये। ऐसे बिंदुओं पर गहन विचार विमर्श किया गया।
दिल्ली के एन सी आर में जहाँ जहाँ भी मलिक क़बीला के लोग आबादी में यानी जहाँ जहाँ भी पांच दस घर बसे हुए हैं वहां वहां कोर कमेटी के सदस्य जा कर उनके साथ बैठक करेंगे और उन्हें अपने आर्गेनाइजेशन कि जानकारी देंगे और उन्हें अपने आर्गेनाइजेशन के साथ जोड़ कर उनकी समस्याओं का समाधान निकालने का हर संभव प्रयास करेंगे।
ज्ञात हो की यह बिरादरी एक सिमित दायरे में आते हैं बिहार के मलिक बिरादरी बिहार शरीफ के नालंदा ज़िला से आरम्भ हो कर संसार के कुछ अलग अलग प्रान्तों में फैले हुए हैं यह बिरादरी अहलेबैत सूफ़ियत से सम्बन्ध रखते हैं। जिन का शिजरा (यानी गोत्र मूल) नस्ले हज़रात सैय्यद इब्राहिम मलिक ब्या(रह०) से है - सैय्यद इब्राहिम मलिक ब्या(रह०) ई सन 500 में बादशाह तुग़लक़ के सिपाह सालार थे। एक ऐसे सिपाह सालार तःउज़्ड़ गुज़ार के साथ साथ तौहीद(यानी)अल्लाह के बताये रस्ते पर पूरी ईमानदारी के साथ अपना जीवन व्यतित करना। और वह इन्साफ पसंद थे। उनके अंदर इसी गुण को देख कर बादशाह तुग़लक़ ने बिहार फतह के लिए उन्हें ही चुना और बिहार पर क़ब्ज़ा के लिए फरमान जारी कर उन्हें मात्र 300 सिपाहियों के साथ बिहार पर चढ़ायी के लिए रवाना कर दिया। उस समय बिहार में ब्राह्मण राजा विष्णु गौड़ का राज था। लेकिन हज़रात सैय्यद इब्राहिम मलिक ब्या(रह०) की तरफ से कभी लड़ाई की पहल नहीं की गयी, जबकि हज़रात के साथ राजा ने कईएक बार अपने लोगों के द्वारा उलटी सीधी हरकतें करता रहा हज़रात उन्हें बारहाँ उन्हें समझाते रहे और अल्लाह और अल्लाह के रसूल की बातें तमाम फरमान सुनाते रहे। उनके इन बातो से राजा की छोटी बहन काफी प्रभावित हुयी और हज़रात की अनुयायी बन गयी। बाद में उनकी शादी हज़रात सैय्यद इब्राहिम मलिक ब्या(रह०) के साथ कर दी गयी। उन्ही की नस्लें बिहार में मालिक के नाम से जानी जाती है।
वर्तमान में इस बिरादरी की स्थिति पिछड़ी जातियों से भी बदतर है जबकि तुगलक से लेकर बहादुर शाह ज़फर के राजकाल तथा भारत के स्वतंत्रता तक इनकी ज़मींदारी बरक़रार थी स्वतंत्रता के बाद पकिस्तान बटवारे से इनकी स्थिति दिन प्रति दिन बिगड़ती चली गयी आज इस्थिति ऐसी होचुकी है की, की बहुत से खानदान ऐसे हैं जो अपनी जातियां छुपाने पर मजबूर हैं। बहरहाल इन परिस्थितियों के मद्देनज़र इस बिरादरी के कुछ लोग मालिकों के उत्थान के लिए एक सांगठनात्मक रूप में आगे आये हैं अब देखना है की यह संगठन अपनी बिरादरी का कितना ध्यान रखती है और कितना उत्थान करती हैं। बाहर हाल इस अवसर पर कोर कमेटी के मुख्य सदस्य राई के अज़ीज़ अहमद (इंजीनियर), मुहम्मद दाऊद , एरकी के महबूब फज़ल अर्शी, नबी नगर ककराड़ के इफ्तिखार ताबिश, अँडव्हस के जनाब सोहैल अनवर , काको के मुहम्मद वसीम, आडसर के मुहम्मद एजाज़ (इंजिनियर) और काको के एस.ज़ेड.मलिक (पत्रकार) आडसर के मुहम्मद शमशाद उपस्थित थे।
सभी की सहमति से अगली बैठक बहरी दिल्ली के नागलोई में तय किया गया।
दिल्ली के एन सी आर में जहाँ जहाँ भी मलिक क़बीला के लोग आबादी में यानी जहाँ जहाँ भी पांच दस घर बसे हुए हैं वहां वहां कोर कमेटी के सदस्य जा कर उनके साथ बैठक करेंगे और उन्हें अपने आर्गेनाइजेशन कि जानकारी देंगे और उन्हें अपने आर्गेनाइजेशन के साथ जोड़ कर उनकी समस्याओं का समाधान निकालने का हर संभव प्रयास करेंगे।
ज्ञात हो की यह बिरादरी एक सिमित दायरे में आते हैं बिहार के मलिक बिरादरी बिहार शरीफ के नालंदा ज़िला से आरम्भ हो कर संसार के कुछ अलग अलग प्रान्तों में फैले हुए हैं यह बिरादरी अहलेबैत सूफ़ियत से सम्बन्ध रखते हैं। जिन का शिजरा (यानी गोत्र मूल) नस्ले हज़रात सैय्यद इब्राहिम मलिक ब्या(रह०) से है - सैय्यद इब्राहिम मलिक ब्या(रह०) ई सन 500 में बादशाह तुग़लक़ के सिपाह सालार थे। एक ऐसे सिपाह सालार तःउज़्ड़ गुज़ार के साथ साथ तौहीद(यानी)अल्लाह के बताये रस्ते पर पूरी ईमानदारी के साथ अपना जीवन व्यतित करना। और वह इन्साफ पसंद थे। उनके अंदर इसी गुण को देख कर बादशाह तुग़लक़ ने बिहार फतह के लिए उन्हें ही चुना और बिहार पर क़ब्ज़ा के लिए फरमान जारी कर उन्हें मात्र 300 सिपाहियों के साथ बिहार पर चढ़ायी के लिए रवाना कर दिया। उस समय बिहार में ब्राह्मण राजा विष्णु गौड़ का राज था। लेकिन हज़रात सैय्यद इब्राहिम मलिक ब्या(रह०) की तरफ से कभी लड़ाई की पहल नहीं की गयी, जबकि हज़रात के साथ राजा ने कईएक बार अपने लोगों के द्वारा उलटी सीधी हरकतें करता रहा हज़रात उन्हें बारहाँ उन्हें समझाते रहे और अल्लाह और अल्लाह के रसूल की बातें तमाम फरमान सुनाते रहे। उनके इन बातो से राजा की छोटी बहन काफी प्रभावित हुयी और हज़रात की अनुयायी बन गयी। बाद में उनकी शादी हज़रात सैय्यद इब्राहिम मलिक ब्या(रह०) के साथ कर दी गयी। उन्ही की नस्लें बिहार में मालिक के नाम से जानी जाती है।
वर्तमान में इस बिरादरी की स्थिति पिछड़ी जातियों से भी बदतर है जबकि तुगलक से लेकर बहादुर शाह ज़फर के राजकाल तथा भारत के स्वतंत्रता तक इनकी ज़मींदारी बरक़रार थी स्वतंत्रता के बाद पकिस्तान बटवारे से इनकी स्थिति दिन प्रति दिन बिगड़ती चली गयी आज इस्थिति ऐसी होचुकी है की, की बहुत से खानदान ऐसे हैं जो अपनी जातियां छुपाने पर मजबूर हैं। बहरहाल इन परिस्थितियों के मद्देनज़र इस बिरादरी के कुछ लोग मालिकों के उत्थान के लिए एक सांगठनात्मक रूप में आगे आये हैं अब देखना है की यह संगठन अपनी बिरादरी का कितना ध्यान रखती है और कितना उत्थान करती हैं। बाहर हाल इस अवसर पर कोर कमेटी के मुख्य सदस्य राई के अज़ीज़ अहमद (इंजीनियर), मुहम्मद दाऊद , एरकी के महबूब फज़ल अर्शी, नबी नगर ककराड़ के इफ्तिखार ताबिश, अँडव्हस के जनाब सोहैल अनवर , काको के मुहम्मद वसीम, आडसर के मुहम्मद एजाज़ (इंजिनियर) और काको के एस.ज़ेड.मलिक (पत्रकार) आडसर के मुहम्मद शमशाद उपस्थित थे।
सभी की सहमति से अगली बैठक बहरी दिल्ली के नागलोई में तय किया गया।
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