Friday, July 29, 2016

इंसानियत बनाम इस्लाम।



यदि मस्जिदों में आतंकवादी गतिविधियां चलनी शुरू हो जाये तो पूरा विश्व धधक उठेगा। फ्रांस की मस्जिदों में ताला लगाने की धमकी द्वेषवद्ध,अशोभनीय और इंसानियत से हट कर है। समय रहते यूएनओ और सऊदी अरब को सोंचना होगा।   


एस.जेड.मलिक(पत्रकार)  

 सम्पूर्ण विश्व में आखिर मुस्लिम को ही टारगेट क्यों बनाया जा रहा है क्या कारण है ? विश्व में क्रिश्चयन की आबादी के बाद मुसलमानों की सबसे बड़ी आबादी है और देश की भी संख्या अधिक है, फिर भी सऊदी अरबिया छोड़ कर मिडिलईस्ट, यूरोप, ब्रिटिश, जापान, चाइना, एशिया,हर जगह पर मुसलमानों को दबाने की कोशिश की जारही है और ताजुब है की सऊदी अरब भी जो खुद मुस्लिम देश है और मुस्लिम देशों में सबसे धनि है बावजूद इसके वह इस समय खामोश है ?       
एक तरफ जहाँ आरएसएस समर्थित संघ परिवार संपूर्ण भारत को साम्प्रदायिकता के आग में झोंक देना चाहता है वहीं फ्रांस संपूर्ण विश्व में गृह युद्ध की स्थिति पैदा करने की पुरजोर कोशिश कर रहा है।  क्या यूएनओ को अभी तक आभास नहीं हो रहा है की विश्व में दुबारा शांति व्यवस्था की विशेष ज़रुरत है। आखिर यूएनओ खामोश क्यों है ? इससे तो अस्पष्ट है की यूएनओ भी फ़्रांस के नीतियों में शामिल है।  नहीं तो विष में शांति बहाल करने वाली संस्थान आज विश्व में हो रहे आतंकवादी घटनाओं तथा फ्रांस और इज़राइल द्वारा की जारही द्वेषबद्ध करवायी जिसमे अधिकतर बेगुनाह और मासूमों की निर्मम हत्याएं की जा रही हैं और सिर्फ और सिर्फ मुसलामानों को टारगेट बया जारहा है , उनके प्रति यूएनओ की कोई संवेदना नहीं, कोई प्रतिकिर्या नहीं यूएनओ मुखदर्शक न होती - यूएनओ ने अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है या जान बुझ कर खामोश है। 
दरअसल मुसलमानों ने अपना जो इन्हें धर्म के नाम पर अध्याय सिखाया गया था आज मुसलमान उससे विपरीत दिशा में चल रहे हैं - इस्लाम एक ऐसा शब्द है जिसका मतलब है इंसानियत और इसकी उत्पत्ति अरब में हुयी और सबसे पहले जिस भाषा ने जन्म लिया वह है अरबी जिसे अरब से शुरू किया गया था इसे राज़ बना कर आज भी परदे में रखा गया है। या यूँ कहिये की संसार में जब पहला इंसान यानी आदम ने क़दम रखा था तभी इस्लाम आ गया था यानी इनसान के साथ इस्लाम का आना मतलब इंसानियत का आना। यदि इस्लाम का मतलब इंससानियत है तो जब मानव ने संसार में अपना पहला क़दम रखा उसी समय उसके साथ इंसानियत अर्थात मानवता भी आ गयी थी। यह शोध का विषय है। 
 इस समय सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों पर ही शोध करना उचित होगा।  इसलिए की मुसलमान ही आज दुनियां के नुमाईंदों और सरपरस्तों के निशाने पर हैं। मुसलमानों की बढ़ती आबादी , संसार के नुमाईंदों और सरपरस्तों के ऊपर खौफ एक ऐसा खौफ जिन्हें लगरहा है की मुसलमानो की यदि आबादी बढ़ी तो हमारी हुकूमत छीन सकती है जिनके कारण अईयाशी और नग्नता फैशन समाप्त हो जायेंगे जो इंसानियत से हट कर जीवन बिताना चाहते हैं या व्यतित कर रहे हैं। और आज विकास शील देशों जैसे तुर्की,फलीस्तीन, फ्रांस चीन के मुसलमानो ने इंसानियत का रास्ता छोड़ कर ऐसे विकास के रस्ते को पकड़ लिया जहाँ सिर्फ और सिर्फ कीचड़ ही कीचड़ है उन जगहों पर मुसलमान सफ़ेद कपडे पहन कर अपना जीवन व्यतित करने पर आमद है की किसी भी सूरत में उसे बचना मुश्किल है दागदार तो वह खुद तो हुआ ही साथ साथ अपने सम्पूर्ण परिवार को भी उस विकसित गन्दगी में लपेट लिया जिसके कारण जो पहले से गंदगी में लिप्त अपनी हुकूमत क़ायम कर रखा था उनको मुसलमानों को अपने रस्ते पर देख कर उनका हौसला और बढ़ गया। जबकि यदि उनको सबसे अधिक डर था तो सिर्फ इंसानियत से जो मुसलमानो में ही सभ्यता और संस्कारों के रूप में आज भी देखा जाता है। मुसलमानो के सभ्यता और संस्कारों को बर्बाद करने और उनकी बढ़ती आबादी को रोकने के लिए जो जाल बिछाया गया आज वह बेहद क्रूर खतरनाक साबित हो रहा है। जो पाकिस्तान का आतंकवादी संगठन लश्करे तयबा, अफगानिस्तान का तालिबान, इज़राइल का आईएसआई और सीरिया का आईएसआईएस का रूप धारण कर विश्व के सारे मुस्लिम समुदायेव को बदनाम कर रहा है जिसके कारन विश्व के मुसलमानों को असमंजस में दाल दिया है।   
        
       

Sunday, July 24, 2016

बिहार प्रवासी मलिक बया वेलफेयर आर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया के कोर कमेटी की बैठक।

बिहार प्रवासी मलिक बया वेलफेयर आर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया के कोर कमेटी की बैठक।




एस. ज़ेड. मलिक(पत्रकार) 
नई दिल्ली - ओखला के अबुल फज़ल ठोकर न० 4 के मुख्यालय "मलिक बया वेलफेयर आर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया" के अध्यक्ष अब्दुल सत्तर मलिक  के निवास पर 24 जुलाई 2016 कोर कमेटी की एक बैठक का आयोजन किया गया।  जिसमे बिहार प्रवासी मलिक क़ाबिले के लोग जो इस समय दिल्ली के एन सी आर में अपनी जीविका के लिए व्यस्त अपने परिवार के साथ अपना जीवन व्यतित कर रहे हैं। जिनकी इस्थिति दैनिये है उन्हें कमेटी से जोड़ कर संभवतः हर प्रकार से मदद 

कैसे कीजिये तथा किस प्रकार से मदद के लिए धन अर्जित किया जाये और भविष्य में आपसी सहयोग के साथ साथ कैसे संगठित रखा जाये। ऐसे बिंदुओं पर गहन विचार विमर्श किया गया।  निष्कर्ष यह निकला कि दिल्ली के एन सी आर में जहाँ जहाँ भी मलिक क़बीला के लोग आबादी में यानी जहाँ जहाँ भी पांच दस घर बेस हुए हैं वहां वहां  कोर कमेटी के सदस्य जा कर उनके साथ बैठक करेंगे और उन्हें अपने आर्गेनाइजेशन कि जानकारी देंगे और उन्हें अपने आर्गेनाइजेशन के साथ जोड़ कर उनकी समस्याओं का समाधान निकालने का हर संभव प्रयास करेंगे। 
ज्ञात हो की बिहार के मलिक बिरादरी बिहार शरीफ के नालंदा ज़िला से आरम्भ हो कर संसार के कुछ देशों फैले हुए हैं यह बिरादरी अहलेबैत सूफ़ियत के एक सिमित दायरे में आते हैं जिनकी नस्ले हज़रात सैय्यद इब्राहिम मलिक ब्या(रह०) से निकलती है - वर्तमान में इस बिरादरी की इस्थिति पिछड़ी जातियों से भी बदतर है जबकि तुगलक से लेकर बहादुर शाह ज़फर के राजकाल तथा भारत के स्वतंत्रता तक इनकी ज़मींदारी बरक़रार थी स्वतंत्रता के बाद पकिस्तान बटवारे से इनकी इस्थिति दिन पार्टी दिन बिगड़ती चली गयी आज इस्थिति ऐसी होचुकी है की की बहुत से खानदान ऐसे हैं जो अपनी जातियां छुपाने पर मजबूर हैं। बहरहाल इन परिस्थितियों के मद्देनज़र इस बिरादरी के कुछ लोग मालिकों के उत्थान के लिए एक सांगठनात्मक रूप में आगे आये हैं अब देखना है की यह संगठन अपनी बिरादरी का कितना ध्यान रखती है और कितना उत्थान करती हैं। बाहर हाल इस अवसर पर कोर कमेटी के मुख्य सदस्य राई के अज़ीज़ अहमद (इंजीनियर), एरकी के  महबूब फज़ल अर्शी, नबी नगर ककराड़ के इफ्तिखार ताबिश, पिंजरांवा के सालेहीन मुहम्मद अकबर, काको के मुहम्मद वसीम, आडसर के मुहम्मद एजाज़ (इंजिनियर) और काको के एस.ज़ेड.मलिक (पत्रकार) उपस्थित थे। 
       

   

बिहार प्रवासी मलिक बया वेलफेयर आर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया के कोर कमेटी की बैठक।

बिहार प्रवासी मलिक बया वेलफेयर आर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया के कोर कमेटी की बैठक।




एस. ज़ेड. मलिक(पत्रकार) 
नई दिल्ली - ओखला के अबुल फज़ल ठोकर न० 4 के मुख्यालय "मलिक बया वेलफेयर आर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया" के अध्यक्ष अब्दुल सत्तर मलिक  के निवास पर 24 जुलाई 2016 कोर कमेटी की एक बैठक का आयोजन किया गया।  जिसमे बिहार प्रवासी मलिक क़ाबिले के लोग जो इस समय दिल्ली के एन सी आर में अपनी जीविका के लिए व्यस्त अपने परिवार के साथ अपना जीवन व्यतित कर रहे हैं। जिनकी इस्थिति दैनिये है उन्हें कमेटी से जोड़ कर संभवतः हर प्रकार से मदद 

कैसे कीजिये तथा किस प्रकार से मदद के लिए धन अर्जित किया जाये और भविष्य में आपसी सहयोग के साथ साथ कैसे संगठित रखा जाये। ऐसे बिंदुओं पर गहन विचार विमर्श किया गया।  निष्कर्ष यह निकला कि दिल्ली के एन सी आर में जहाँ जहाँ भी मलिक क़बीला के लोग आबादी में यानी जहाँ जहाँ भी पांच दस घर बेस हुए हैं वहां वहां  कोर कमेटी के सदस्य जा कर उनके साथ बैठक करेंगे और उन्हें अपने आर्गेनाइजेशन कि जानकारी देंगे और उन्हें अपने आर्गेनाइजेशन के साथ जोड़ कर उनकी समस्याओं का समाधान निकालने का हर संभव प्रयास करेंगे। 
ज्ञात हो की बिहार के मलिक बिरादरी बिहार शरीफ के नालंदा ज़िला से आरम्भ हो कर संसार के कुछ देशों फैले हुए हैं यह बिरादरी अहलेबैत सूफ़ियत के एक सिमित दायरे में आते हैं जिनकी नस्ले हज़रात सैय्यद इब्राहिम मलिक ब्या(रह०) से निकलती है - वर्तमान में इस बिरादरी की इस्थिति पिछड़ी जातियों से भी बदतर है जबकि तुगलक से लेकर बहादुर शाह ज़फर के राजकाल तथा भारत के स्वतंत्रता तक इनकी ज़मींदारी बरक़रार थी स्वतंत्रता के बाद पकिस्तान बटवारे से इनकी इस्थिति दिन पार्टी दिन बिगड़ती चली गयी आज इस्थिति ऐसी होचुकी है की की बहुत से खानदान ऐसे हैं जो अपनी जातियां छुपाने पर मजबूर हैं। बहरहाल इन परिस्थितियों के मद्देनज़र इस बिरादरी के कुछ लोग मालिकों के उत्थान के लिए एक सांगठनात्मक रूप में आगे आये हैं अब देखना है की यह संगठन अपनी बिरादरी का कितना ध्यान रखती है और कितना उत्थान करती हैं। बाहर हाल इस अवसर पर कोर कमेटी के मुख्य सदस्य राई के अज़ीज़ अहमद (इंजीनियर), एरकी के  महबूब फज़ल अर्शी, नबी नगर ककराड़ के इफ्तिखार ताबिश, पिंजरांवा के सालेहीन मुहम्मद अकबर, काको के मुहम्मद वसीम, आडसर के मुहम्मद एजाज़ (इंजिनियर) और काको के एस.ज़ेड.मलिक (पत्रकार) उपस्थित थे। 
       

   

Thursday, July 21, 2016


मूल रूप से अमीरी रेखा का निर्माण किए बिना समाज में कभी भी शांतिपूर्ण सामंजस्य की स्थापना नहीं की जा सकती क्योंकि यदि हम सब लोगों में शांति पूर्ण सामंजस्य स्थापित करना चाहते हैं तो एक व्यक्ति के मूलभूत संपत्ति अधिकार को परिभाषित करना सबसे पहली आवश्यकता होगी ताकि हर व्यक्ति को अपनी स्वतंत्रता मर्यादा या अधिकार की स्पष्ट जानकारी हो और वह दूसरे व्यक्ति के अधिकारों का हनन या अतिक्रमण ना करें.
वास्तव में लोगों के बीच होने वाली सारी लड़ाईयों का मूल कारण संपत्ति की अधिक से अधिक मात्रा पर अपना अधिकार कायम करना है सब लोग इसी प्रयास में लगे हैं जिसमें जितनी क्षमता योग्यता शक्ति या बुद्धि होती है वह उसका पूरा उपयोग अपनी संपत्ति को बढ़ाने के लिए करता है ताकि उसे वर्तमान और भविष्य में भी पूरी सुरक्षा मिलती रहे और कभी भी उसे अभाव का कष्ट पूर्ण जीवन ना जीना पड़े.
सभी इस सत्य को समझते हैं कि पर्याप्त संसाधनों पर अपना अधिकार स्थापित किए बिना केवल मेहनत के बल पर जीवन को सुरक्षित नहीं किया जा सकता. लेकिन इसके लिए सीमित मात्रा में संसाधन होना ही पर्याप्त है असीमित संसाधन व्यक्ति की आवश्यकता नहीं बल्कि उसकी लोभ लालच स्वार्थ और दूसरों का शोषण करने की प्रवृत्ति का परिणाम है और इस पर अंकुश लगाए बिना समाज में सब लोगों के बीच होने वाले टकराव पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता.
भौतिक विज्ञान की भारी उन्नति के कारण तो अब समाज में सामंजस्य की स्थापना करने के लिए केवल अमीरी रेखा का निर्माण ही एकमात्र रास्ता बच गया है इसका कारण यह है कि इसके के कारण अनेक प्रकार की मशीने और उपकरण उपलब्ध हैं जिन्होंने सारी आर्थिक क्रियाओं पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है इससे उत्पादन विनिमय या किसी भी अन्य कार्य में आदमी की मेहनत की भूमिका लगातार कम होते होते समाप्त सी हो गई है. आने वाले समय में श्रम की भूमिका का और भी कम होना निश्चित है.
इसलिए आज मेहनत से होने वाली आय व्यक्ति के जीवन का आधार नहीं हो सकती और आय न होने पर किसी भी व्यक्ति का जीवन नहीं चल सकता और लोगों में शांति की स्थापना भी नहीं की जा सकती.
भोतिक विज्ञान की उन्नति ने साधनों और संपत्ति के महत्व को अनंत गुना बढ़ा दिया है साधन और संपत्तियां ही अब व्यक्ति को होने वाली आय का मुख्य आधार बन चुकी है इसलिए हर व्यक्ति अपने साधनों और संपत्ति के अनुपात में ही आय प्राप्त कर रहा है जो लोग साधन और संपत्ति के मालिक नहीं है उनके सामने संपन्न लोगों की गुलामी करने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं रह गया है श्रमजीवी या गरीब लोग साधन संपन्न लोगों की हर शर्त को मानने के लिए मजबूर है और इसके कारण उनका भयानक शोषण उपेक्षा अपमान और उत्पीड़न होता है. जिसे केवल अमीरी रेखा बनाकर ही रोका जा सकता है.
इसलिए यदि हम शांतिपूर्ण और शोषण मुक्त समाज बनाना चाहते हैं तो अमीरी रेखा का निर्माण करना ही होगा.
यदि हम इन परिस्थितियों से अलग हटकर अपने विवेक का उपयोग करते हुए भी विचार करें तो यह साफ तौर पर समझा जा सकता है कि समाज में न्याय की स्थापना के लिए हर व्यक्ति के संपत्ति अधिकार की एक अधिकतम सीमा तो होनी ही चाहिए कोई व्यक्ति चाहे कितना ही योग्य क्यों न हो जब तक एक व्यक्ति के संपत्ति अधिकार की कोई सीमा ही नहीं होगी तो दूसरे व्यक्ति के जीवन जीने के अधिकार की रक्षा नहीं की जा सकती मूल रूप से संपत्ति सुखी और स्वतंत्र जीवन का आधार है मेहनत नहीं .
मुझे तो यह बात स्पष्ट रुप से समझ में आ रही है कि वास्तव में सामाजिक व्यवस्था की रचना करने के लिए सबसे पहले प्राकृतिक संसाधनों पर न्याय पूर्ण स्वामित्व के सवाल को हल किया जाना चाहिए था. यदि इस मूल सवाल को पहले ही हल कर लिया गया होता तो एक शांतिपूर्ण समृद्ध और हर प्रकार से सुरक्षित समाज की स्थापना का उद्देश्य पूरा हो चुका होता और मानवता को अनेक युद्ध और विनाश से नहीं गुजरना पड़ता.
यह बात पूरी गंभीरता से समझ लेने की है कि जब सारे प्राकृतिक संसाधनों पर ही सबका जीवन निर्भर है और ये हमेशा सीमित मात्रा में ही उपलब्ध होते हैं तो एक व्यक्ति को सीमाहीन संपत्ति का मालिक कैसे माना जा सकता है? सामंजस्य की दृष्टि से यह मूल अधिकार बराबर अर्थात ओसत सीमा तक ही प्रदान किया जा सकता है और यही होना भी चाहिए.
संपत्ति का यह मूल अधिकार ही हर व्यक्ति के जीवन का आधार है इसलिए इसे न तो कम या ज्यादा किया जा सकता है और ना ही किसी भी आधार पर समाप्त किया जा सकता है.
इससे यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि आज इस अधिकार को खरीदने और बेचने की परिपाटी पूरी तरह गलत है.
अब सवाल उठता है कि ओसत सीमा तक प्रत्येक व्यक्ति के मूल संपत्ति अधिकार को सुरक्षित रखते हुए अर्थव्यवस्था का निर्माण किस प्रकार किया जा सकता है यह काम बहुत ही आसान है
अर्थव्यवस्था केवल प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंध मात्र है. इसका उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों से व्यक्ति के उपभोग की उत्तम स्तर की सभी वस्तुएं पर्याप्त मात्रा में कम-से-कम श्रम और समय में निरंतरता के साथ सबको उपलब्ध कराते रहना है इसमें व्यक्ति की रुचि योग्यता क्षमता स्वभाव शिक्षण प्रशिक्षण आवश्यकता और अनुभव आदि का महत्वपूर्ण स्थान है.
इस समस्या का समाधान करने के लिए ही मनुष्य ने विनिमय की खोज की है हर व्यक्ति हर काम को सही ढंग से बिल्कुल नहीं कर सकता और विभिन्न कामों में रुचि और योग्यता आदि के आधार पर सब लोगों को अपना अपना कार्य चुनने की स्वतंत्रता देकर इसे आसानी से हल किया जा सकता है.
इसलिए ओसत सीमा तक स्वामित्व के अधिकार को मान लेने से अपनी समझ में केवल यह बदलाव लाना होगा की साधनों का स्वामित्व नहीं बदला जा सकता केवल प्रथम प्रबंध करने का अधिकार बदला जा सकता है और किसी भी व्यक्ति को उत्पादन के लिए ओसत सीमा से अधिक साधनों की आवश्यकता होगी तो वह उसे अवश्य ही प्राप्त कर सकेगा लेकिन वह समाज का कर्जदार माना जाएगा. और अब उसकी अधिक संपत्ति पर ब्याज की दर से संपत्ति कर लगाकर समाज का हिस्सा अलग से निकाल दिया जाएगा और उसे सारे नागरिकों के बीच लाभांश के रुप में समान रुप से बांट दिया जाएगा.
इसलिए ऐसी व्यवस्था बहुत ही सरल सहज मितव्ययी और पारदर्शी होगी जिसमें बेईमानी करना असंभव नहीं तो बहुत कठिन अवश्य होगा.
इससे व्यक्ति की लोभ लालच दूसरों का शोषण करने की स्वार्थी प्रवृत्ति पर भी न्याय का अंकुश लगेगा जिससे प्रकृति में हो रहा भारी विनाश असंतुलन और खतरनाक बदलावों को भी रोका जा सकेगा.
इस प्रकार व्यावहारिक दृष्टि से भी यह पूरी तरह सर्वश्रेष्ठ और आदर्श वैकल्पिक व्यवस्था होगी.

Monday, July 18, 2016

AINA INDIA: परिवर्तन होना ज़रूरी है। अब अमीरी रेखा नहीं गरीबी ...

AINA INDIA: परिवर्तन होना ज़रूरी है। अब अमीरी रेखा नहीं गरीबी ...: अब जन सूझबूझ प्रकिर्या द्वारा परिवर्तन अनिवार्य है। अब अमीरी रेखा नहीं गरीबी रेखा बननी चाहिए।   भारत में नहीं अपितु संपूर्ण विश्व म...

AINA INDIA: परिवर्तन होना ज़रूरी है। अब अमीरी रेखा नहीं गरीबी ...

AINA INDIA: परिवर्तन होना ज़रूरी है। अब अमीरी रेखा नहीं गरीबी ...: अब जन सूझबूझ प्रकिर्या द्वारा परिवर्तन अनिवार्य है। अब अमीरी रेखा नहीं गरीबी रेखा बननी चाहिए।   भारत में नहीं अपितु संपूर्ण विश्व म...

परिवर्तन होना ज़रूरी है। अब अमीरी रेखा नहीं गरीबी रेखा बननी चाहिए। - Blogger by S.Z.Mallick(Journalist)

अब जन सूझबूझ प्रकिर्या द्वारा परिवर्तन अनिवार्य है। अब अमीरी रेखा नहीं गरीबी रेखा बननी चाहिए।  

भारत में नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में बल्कि यूँ कहें जबसे संसार बन है तभी से हर दौर कि नयी नस्लों में बदलो यानि परिवर्तन हुआ है और होता रहा है और होता रहेगा। लेकिन हमेशा जो भी बदलाव हुए हैं और हो रहे हैं सभी बदलाव उन लोगो द्वारा किये जाते हैं जिनको व्यवस्था से दुःख तथा नुक्सान होने लगता है।  जबकि  90 % जनता में अधिकतर यानि लगभग 35 % लोग कम पढ़े लिखे और अधिक बुद्धि विवेक और बल वाले वैसे लोगों की तादाद अधिक है जो निर्धन हैं।  इनमे से कुछ इनमे से कुछ भूमिहीन हैं लेकिन सरकारी नौकरी तथा अपना रोज़गार कर अपने परिवार का बलिभाती पालन पोषण कर रहे हैं।  जबकि सत्ता की व्यवस्था 10 % लोगों के ही हांथों में होती है लेकिन यह 10 % लोग 90 % पर हावी रहते हैं।  यह 10 % लोग ही देश और दुन्या की तक़दीर लिखते हैं। इन 10 % में उस समय बदलाव आता है जब 90 % लोग व्यवस्था से आहात होते हैं और अपने जन आक्रोश के तहत एक आंदोलन एक क्रांति का रूप जब तक न ले लें।  फिर इन्हे शांत करने के लिए यह 10 % व्यस्थापक लोग धोका फरेब और झूठ का एक वायदा का पुलिंदा तैयार कर जन आक्रोश को दिखाते हैं - तो क्या सच मच व्यवस्था बदलदते हैं , नहीं तो क्या बदलते हैं की जनाक्रोश शांत होजाता है। झूठा प्रॉजेक्ट जिसे लागू करने में शायद बरसों लगजएं - झूठी इस्किमें जिसमे गरीबों को लाखों रुपया देने की बात कही गयी हो और बेरोजगारों को घर बैठे रोज़गार देने का वायदा , तसल्ली इसी में जनता खुशफहमी की शिकार होकर अपने दिनचर्या में लगजाति है कुछ तो भूल कर अपनी व्यवस्था में मग्न हो जाते हैं कुछ हाय हल्ला करते रहते हैं।  लोग इस तरह से आदि हो चुके है इसलिए की गुलामी इनके खून में है।  
व्यवस्था सरकार में बैठे लोग न किया है न करेंगे,  नहीं कर सकते। कर सकती है तो  जनता , अवाम , वहभी सहज और सरल तरीके से।  दलालों और अपने छुटभइया नेताओं का साथ छोड़ कर थोड़ा सा अपने अंदर पहले बदलाव लाना होगा।जनता , अवाम यदि अपने अंदर थोड़ा सा बदलाव लाती है तो सिर्फ व्यवस्था नहीं बल्कि गॉव से लेकर देश भी बदल कर ख़ूबसूरत के साथ साथ मज़बूत भी हो जायेगा। 
पहला क़दम - फार्मूला नंबर वन , चाहे छोटा गॉव हो या बड़ा गॉव हो हर गॉव में एक ग्राम विकास कमेटी  बनायें तथा ग्रामवासी वैसे लोग को चुने चाहे अमिर हो या गरीब, हिन्दू या मुसलमान , छोटी जाती का  बड़ी जाती का हो , जो ग्रामवासियों के साथ अपना अच्छा सुभाओं रखता हो , और सर्वो समाज का हितैषी हो गांव के विकास के लिए ग्रामवासियों से हमेशा चर्चा करता रहता हो , उसे अपना प्रतिनिधि चुन लें उसे ही आगे आने के लिए प्रोत्साहित करें, ज़रूरी नहीं है की इस विचारधारा के मात्र एक गांव में एक ही होंगे दो भी निकल सकते हैं चार भी निकल सकते है। ऐसी इस्थिति में ग्रामवासी मिल कर सारे गांव के सामने एक घड़ा लेकर उसमें चुने हुए नामों की पर्ची बन कर एक एक घड़े में दाल कर किसी छोटे बच्चे से एक पर्ची निकलवाएं, इस प्रकार का फॉर्मूला हर गॉव को अपनाना होगा , फिर पंचायत अस्तर पर मुख्या के लिए सर्व सहमति से एक आदमी को चुने यदि एक से ज़्यादा होता है तो उन सब के नामों को पर्ची बन कर एक एक घड़े में दाल कर किसी छोटे बच्चे से एक पर्ची निकलवाएं, जिसका नाम निकले तो सभी को उस पर ईमानदारी से सहमति देते हुए उसी को पहले उसे मुख्या बनायें , इसी तरह प्रखंड (ब्लॉक) अस्तर पर सभी मुखिया के नाम को मिला कर एक घड़े में दाल कर किसी छोटे बच्चे से एक पर्ची निकलवाएं और जिसका नाम निकले सर्व सहमति से उसी को प्रमुख का उम्मीदवार बना कर उसी को अपना मत देकर अपना प्रमुख बनायें। तथा इसी फार्मूले के तहत एक विधायक तैयार करें लेकिन ध्यान रहे आप का कोई भी प्रतिनिधि अनपढ़ न हो , कम् से काम 12 वीं को ही अपना प्रतिनिधि चुने।  इसी प्रकार विधायक और मुख्या मिला कर जिला अस्तर पर एक सांसद का चुनाव करें।  जो आपके लिए तथा गॉव के हित में विकास के लिए अच्छी नीतियां बांनाये और सरकार से उसे पास करा सके। 
  फार्मूला न० दो - यदि आप के द्वारा चुना हुआ प्रतिनिधि दो से अढ़ाई वर्षों तक काम नहीं करता है तो उसे जिस प्रकिर्या से आप अपना प्रतिनिधि चुना हैं उसी प्रकिर्या के तहत उन्हें आप को निकालने का भी अधिकार होगा। और फिर उन्ही कमेटी में से उसी प्रकिर्या के तहत दूसरे प्रतिनिधि को मौक़ा दें। इसमें न कोई सरकार का खर्च आएगा और न सरकार को चुनाव कराने का कोई बहाना। 
इसी प्रकार देश हर नागरिक को सरकारी ख़ज़ाने से 10000 रुपया प्रति माह दिया जाएगा चाहे वह अमीर हो या गरीब उसका फार्मूला रोशन लाल अग्रवाल द्वारा दिए गए कुछ प्रावधानों को अपनाए जैसे - यह प्रावधान आपके द्वारा चुने गए प्रतिनिधियो के द्वारा विधान सभ एवं सांसद में पूरी ताक़त से लागु करना होगा - यह दस हज़ार रुपया देश के सभी नागरिकों को कैसे मिलसकता है आएं इस पर एक गहन चिंतन करें - फिर फैसला कर्रें संभव है या नहीं - फार्मूला न० तीन - सारे प्राकृतिक संसाधन ही मूल धन है और हमारे जीवन का आधार है इनके उपभोग के बिना हमारा जीवन नहीँ चल सकता प्रकृति मेँ पाए जाने वाले उपभोग के सभी पदार्थ इंन्हीं प्राकृतिक संसाधन से बनाए जाते है ये प्राकृतिक संसाधन मूल रुप से प्रकृति का वरदान है और किसी व्यक्ति ने इन का निर्माण अपनी शक्ति बुद्धि या क्षमता से नहीँ किया है  इसलिए न्याय के आधार पर एक व्यक्ति का मूलभूत जन्मसिद्ध अधिकार केवल औसत सीमा तक संपत्ति पर ही हो सकता है। इससे अधिक पर नहीँ क्योंकि इससे अधिक पर मूल अधिकार मान लेने से किसी अन्य व्यक्ति के मूल अधिकार का हनन होगा जो उसके साथ अंन्याय है। क्योंकि यदि हम व्यक्ति के अधिकारोँ का संबंध उसकी उपरोक्त विशेषताओं से जोड़ते है तो उसके आधार पर बनने वाली व्यवस्था न्यायपूर्ण न होकर जंगलराज या जिसकी लाठी उसकी भेंस वाली होगी और उससे समाज मेँ शांति की स्थापना नहीँ की जा सकती। 
किंतु इस अधिकार को प्राप्त करने के लिए हर व्यक्ति को अपनी योग्यता क्षमता या पुरुषार्थ पर ही निर्भर रहना होता है।  जो सबकी एक समान न होकर बहुत अलग अलग है। ये विशेषताएँ कुछ लोगो की औसत से कम व अन्य कुछ लोगोँ की बहुत ज्यादा भी हो सकती है और होती ही है। इसी कारण कुछ लोगोँ के पास अपनी उपभोग की आवश्यकताओं को पूरा कर लेने के बाद भी मूलभूत औसत अधिकार से बहुत अधिक संपत्ति एकत्रित हो सकती है।  जबकि अन्य लोगोँ को अपने मूलभूत अधिकार से बहुत कम आय ही प्राप्त होती हैं, जिससे वे अपने उपभोग की जरुरतोँ को भी ठीक प्रकार से पूरा नहीँ कर पाते। 
इस प्रकार औसत सीमा तक संपत्ति एक व्यक्ति का मालिकाना अधिकार की अधिकतम सीमा अर्थात् अमीरी रेखा है जो किसी भी समय निजी संपत्ति की कुल मात्रा को उस समय की जनसंख्या से भाग देकर आसानी से निकाली जा सकती है।  जैसे - 
इसलिए न्याय के आधार पर एक नागरिक को औसत सीमा से अधिक संपत्ति का स्वामी न मांन कर उसका प्रबंधक (समाज का कर्जदार) माना जाना चाहिए और मूल सीमा से अधिक संपत्ति पर ब्याज की दर से संपत्ति कर लगाया जाना चाहिए। 
अंय सभी प्रकार के करों (आयकर सहित) समाप्त कर दिया जाना चाहिए जो किसी भी दृष्टि से समाज के लिए हितकारी नहीँ हे ओर सभी प्रकार को षड़यंत्रों को जन्म देते है। 
क्योंकि सारे प्राकृतिक संसाधन ही मूल संपत्ति होते है और इन पर समाज का अर्थ सभी लोगोँ का समान रुप से स्वामित्व होता है।  इसलिए संपत्तिकर से इस प्रकार होने वाली आय पूरे समाज की प्राकृतिक संसाधनो से प्राप्त होने वाली अतिरिक्त आय होती है जिस पर सब का समान अधिकार है।  
इसलिए इस में से सरकार के बजट का खर्च (व्यवस्था के संचालन का खर्च) काटकर शेष राशि को सारे नगरिकों में बिना किसी भेदभाव के लाभांश के रुप मेँ बाँट दिया जाना चाहिए। 
इस प्रकार न्याय के आधार पर हर नागरिक के दो अधिकार होते हैं, पहला मूलभूत स्वामित्व का अधिकार जिसका व्यक्ति की मेहनत से कोई संबंध नहीँ होता है और जो सबका सम्मान होता है। 
दूसरा मेहनत या पुरुषार्थ से प्राप्त अधिकार जो मेहनत के आधार पर सबका कम या अधिक हो सकता है। 
लाभांश स्वामित्व के अधिकार से मिलने वाला समान लाभ है जिसका व्यक्ति की मेहनत से कोई संबंध नहीँ होता। 
भौतिक विज्ञान की उन्नति के कारण प्राकृतिक संसाधनो को उपभोग योग्य बनाने के लिए उन मेँ लगने वाली मेहनत की मात्रा लगातार घटती जा रही है और स्वामित्व के अधिकार का महत्व बरता जा रहा है। और उसके साथ ही लाभांश की मात्रा भी बढ़ती जा रही है। 
आज भी एक व्यक्ति की आय का संबंध उसकी शारीरिक या बौद्धिक मेहनत से न होकर उसके साधनो से स्थापित हो गया है जिसके पास अधिक साधन है उसकी आय ज्यादा है जिसके पास कम साधन है उसकी आय भी उसी अनुपात मेँ बहुत कम है। जिस दिन भौतिक विज्ञान इतनी उन्नति कर लेंगे कि उसके सारे कार्य अनेक प्रकार के यंत्र और उपकरणो की सहायता से ही पूरे होने लगेंगे और मेहनत की कोई भूमिका ही नहीँ बचेगी तब समाज के शांतिपूर्ण संचालन का एकमात्र मार्ग लाभांश ही रह जाएगा मेहनत नहीँ। 
हर व्यक्ति चाहता है उसे उसके उपभोग के पदार्थ कम से कम परिश्रम मेँ निरंतर प्राप्त होते रहे और उसे कभी भी अभाव का सामना न करना पड़े।  भौतिक विज्ञान की उन्नति ने मनुष्य की इस चीर संचित अभिलाषा को अच्छी तरह से पूरा किया है। 
अतः अब सब लोगोँ को अपना पेट भरने के लिए किसी प्रकार की मेहनत करने की बाध्यता से मुक्ति मिलनी चाहिए इसे हरामखोरी कहना या गलत मानना पूरी तरह अज्ञान्ता है। 
      

                         

Sunday, July 17, 2016

EHSAS- Blogger by S.Z.Mallick(Journalist)

एहसास


 












16 सालों में आज पहली बार मुझे अपने बच्चों के बिछड़ने एहसास हुआ , आज 16 जुलाई 2016 को मेरे बच्चों को मुज़फ्फरपुर जाना हो रहा है जबकि मेरे कुछ बच्चों के लिए बिहार के सफर का पहला तजुर्बा होगा।  मेरा बड़ा बेटा और दो बेटिओं का यह दूसरा सफर है जबकि एक बेटी और एक छोटे बेटे अल ज़ैद और उससे बड़ी बेटी आलिया का यह पहला सफर है।  अल्लाह सभों का सफर कामयाब करे और जिस मक़सद से हमारे बड़े ममेरे साला नौशाद भाई इन सभी बच्चों को अपने खर्चे से अपने गाँव ले जा रहे अल्लाह इनके मक़सद में इन्हे कामयाबी दे आमीन - सुम्मा आमीन। मैं आज अपने बच्चों को स्टेशन छोड़ने नहीं गया। जबकि ट्रैन जलपाईगुड़ी एक्सप्रेस 3:20 में है।  उनके रुखसत होने पहले मैं घर से मीटिंग के बहाने निकल गया - बच्चों को अपने से दूर जते हुए नहीं देखा जता मेरी अाँखे  छलक रही थी बड़ी  आपने आंसू रोक पाया था मेरा छोटा बेटा मेरी शकल पढ़ रहा था , वह किनारे जा कर छुप कर रोने लगा मैं जब ऑफिस के लिए ब्र्हमशक्ति बस पकड़ लिया तो  फोन आया - ज़ैद रो रहा है - लीजिए उसे समझाएं - मैंने उससे फिर झूट बोला बेटा मैं चार दिनों के बाद आऊंगा अभी माँ के साथ जाओ - तब वह चुप हुआ - खुद बेहतर जनता है की उसे मेरे लिए कितनी मुहब्बत है -अभी तो बचपना है , कहा जाता है बच्चा और कुत्ता एक सा होता है, बहार हाल अल्लाह इनकी हिफाज़त फरमाए खैरो आफ़ियत के साथ इन्हे इनके मंज़िल तक पहुंचाए  - आमीन -सुम्मा आमीन।  - एस. जेड. मलिक(पत्रकार)            

Thursday, July 14, 2016

अरविन्द केजरीवाल के नाम खुल पत्र - arvind ji , attention plz, leave the BJP and duel politics, pls care the public beneficial policy, so people started thinking of you and is doing something for us.



अरविन्द जी , 
आप अन्ना हजारे का साथ छोड़ कर अपनी राजनीती पार्टी बना कर अभी तक के राजनीती में आप ने क्या खोया और क्या पाया।  इस पर एक बार मंथन ज़रूर करें। जनता से जितने भी वादे कर के  आप ने दिल्ली की गद्दी हासिल कि उन में से कितने वादे  आप की सरकार ने पूरा किया जनता के विशवास पर कितने खरे उतरे। क्या आप बड़े बड़े बैनर पर अपने झूठे कार्यों का प्रचार कर क्या दिल्ली की  मानसिकता को बदल देंगे।  जनता ने आप को बड़े विश्वास के साथ अपना मत दे कर दिल्ली की गद्दी पर बिठाया था , बिजली का बिल काम होगा , लेकिन काम होने के बजाये लोगों को दुगुना बिल भरना पड़ रहा है।  गलत तरीके से बिजली विभाग उपभोगताओं से बिल वसूल कर रही है।  दूसरे पानी 20000 हज़ार लीटर तो छोडिए , आज भी बाहरी दिल्ली के बहुत से गाओं में सपलई का पानी देखने के लिए लोग किसी कसी गाओं में कम से कम तीन दिन से लेकर सात दिनों तक इंतज़ार करना पड़ता है। बहुत से कालोनियों में अभी तक सप्लाई का पानी पहुंचा ही नहीं है , आबादी घनी होने के बावजूद जल बोर्ड को पैसजमा करने के बावजूद वहां अबतक पाईप लाईन बिछाया ही नहीं गया। पुठ कलां में आधे गाओं में पानी आता है  आधे गाओं में आता हि नहीं, पूठ कलां के मांगे राम पार्क में , सुल्तानपुरी के पशिम अमन विहार तथा किरारी , और मीर विहार, प्रेम नगर, उतसव बिहार, रमा बिहार, का इलाक़ा छोटी पूठ के आस पास के कालोनियों, बेगम पर के आस पास कालोनियों में अबतक पाईप लाइन नहीं बिछी है , आखिर क्यों ? यह काम तो आप के सरकार के हाथ का है। ज़मीनों का मसला तो आप के बस की है नहीं इसलिए की रेवन्यू आप के पास है नहीं , आप इसमें अपना समय नष्ट न करें बीजेपी और कांग्रेस इस काम को होने नहीं देगी, पुलिस आप को मिल  सकती , यह केंद्र शासित प्रदेश है , यहां लोक सभा , राज्य सभा , तथा सभी केंद्रीय मंत्रालय एवं केंद्रीय सचिवालय उसके अलावा  एडवोकेसी , ब्यूरोक्रेसी , और सारी पॉलिसी यही बनती है - सारे मंतरी सनतरी , उनके बंगले तथा उनके किराए इस समय केंद्र के झोली में जा रहा है और सांसद , ब्यूरोक्रेट संत्रियों के बड़े बड़े पदाधिकारीगण , राष्ट्रपति , और उसके भवन यह तमाम लोग राज्य सरकार को मनमानी क्यों करने देंगे? अपनी मल्कान अधिकार क्यों लोग छीनने देंगे। इस लिए आप को एक बार फिर से दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा के लिए आंदोलन खड़ा करना पड़ेगा।  
यदि आप को इन सब पर हावी होना है तो आपको आर्थिक न्याय की पालिसी अपनानी पड़ेगी-इस पालिसी को लागु करने से आप केवल दिल्ली में ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व की जनता के हीरो हो जायेंगे। आप चाहें तो हम आपको वह कांसेप्ट दे सकते हैं।  
किरपा कर आप जनता को धोका न दे। सच का सामना करें , और सच यह है की इस समय आप यानि दिल्ली का मुख्य मंत्री मात्र केंद्र का दरबान जैसा है।  और कुछ नहीं। आप से निवेदन है की आप एक बार पुनः विचार करें। 

भवदीय 
रोशन लाल अग्रवाल 
लेखक एवं समीक्षक आर्थिक न्याय 
09302224440 ,  

              

Tuesday, July 12, 2016

Blogger S.Z.Mallick(Jornalist)

गोडसे के नाम से पूल का नामांकरण -


राजस्थान के अलवर में राष्ट्रपति महात्मा गांधी की हत्या करने वाले व्यक्ति को जब यह सरकार राष्ट्रवादी की उपाधि दे कर हत्यारे गोडसे के नाम से पूल का नामांकरण करसकती है तो कुछ भी सम्भव है।   हमारे देश की जनता को फैसला करना होगा की अपने देश को नर्क बना चाते हैं या स्वर्ग , यह आप जनता पर मुनहसर करता है। भाजपा और आर एस एस दोनों ही सिर्फ पांच साल का टारगेट लेकर सत्ता हासिल किया है , अब तक इन दो सालों में इन्हें ने इतना गबन और घोटाला कर रहे हैं। इसको कैसे छुपाएँ तो हम भारतियों का ध्यान हटाने के लिए आतंकवाद, अशहिष्णुता, साम्प्रदायिकता का हंगामा कर के कुछ दलाल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को रुपया दे कर इतना शोर मचाते हैं की हम इनके दुर्द्यंत कारनामें को भूल कर हाय आतंकवाद हाय पकिस्तान कहकर हाहाकार मचाने वालों के पीछे पीछे हो लेते हैं।  फिर हम सिर्फ तमाशाई बने उन्हें और उनके द्वारा रचे गए ड्रामे को ही देखते रहते हैं। इन बातों को हम तमाम भारतियों को गम्भीरता से सोंचना होगा। एस.जेड. मलिक (पत्रकार)

गोडसे के नाम से पूल का नामांकरण -





Blogger - S.Z.MALLICK(Journalist)

राजस्थान के अलवर में राष्ट्रपति महात्मा गांधी की हत्या करने वाले व्यक्ति को जब यह सरकार राष्ट्रवादी की उपाधि दे कर हत्यारे गोडसे के नाम से पूल का नामांकरण करसकती है तो कुछ भी सम्भव है।   हमारे देश की जनता को फैसला करना होगा की अपने देश को नर्क बना चाते हैं या स्वर्ग , यह आप जनता पर मुनहसर करता है। भाजपा और आर एस एस दोनों ही सिर्फ पांच साल का टारगेट लेकर सत्ता हासिल किया है , अब तक इन दो सालों में इन्हें ने इतना गबन और घोटाला कर रहे हैं। इसको कैसे छुपाएँ तो हम भारतियों का ध्यान हटाने के लिए आतंकवाद, अशहिष्णुता, साम्प्रदायिकता का हंगामा कर के कुछ दलाल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को रुपया दे कर इतना शोर मचाते हैं की हम इनके दुर्द्यंत कारनामें को भूल कर हाय आतंकवाद हाय पकिस्तान कहकर हाहाकार मचाने वालों के पीछे पीछे हो लेते हैं।  फिर हम सिर्फ तमाशाई बने उन्हें और उनके द्वारा रचे गए ड्रामे को ही देखते रहते हैं। इन बातों को हम तमाम भारतियों को गम्भीरता से सोंचना होगा। एस.जेड. मलिक (पत्रकार)

गोडसे के नाम से पूल का नामांकरण -





Blogger - S.Z.MALLICK(Journalist)

राजस्थान के अलवर में राष्ट्रपति महात्मा गांधी की हत्या करने वाले व्यक्ति को जब यह सरकार राष्ट्रवादी की उपाधि दे कर हत्यारे गोडसे के नाम से पूल का नामांकरण करसकती है तो कुछ भी सम्भव है।   हमारे देश की जनता को फैसला करना होगा की अपने देश को नर्क बना चाते हैं या स्वर्ग , यह आप जनता पर मुनहसर करता है। भाजपा और आर एस एस दोनों ही सिर्फ पांच साल का टारगेट लेकर सत्ता हासिल किया है , अब तक इन दो सालों में इन्हें ने इतना गबन और घोटाला कर रहे हैं। इसको कैसे छुपाएँ तो हम भारतियों का ध्यान हटाने के लिए आतंकवाद, अशहिष्णुता, साम्प्रदायिकता का हंगामा कर के कुछ दलाल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को रुपया दे कर इतना शोर मचाते हैं की हम इनके दुर्द्यंत कारनामें को भूल कर हाय आतंकवाद हाय पकिस्तान कहकर हाहाकार मचाने वालों के पीछे पीछे हो लेते हैं।  फिर हम सिर्फ तमाशाई बने उन्हें और उनके द्वारा रचे गए ड्रामे को ही देखते रहते हैं। इन बातों को हम तमाम भारतियों को गम्भीरता से सोंचना होगा। एस.जेड. मलिक (पत्रकार)

AINA INDIA: (ॐ जीएसबीएसडीटी ) की स्थापना दिवस के अवसर पर कलश य...

AINA INDIA: (ॐ जीएसबीएसडीटी ) की स्थापना दिवस के अवसर पर कलश य...: Blogger by S.Z.Mallick(Journalist) बहरी दिल्ली - दिल्ली जिला उत्तरी पश्मि के पूठ कलां गांव में आज ॐ गणपति शिव बाला जी सामाजिक उत्थान ...

Blogger by S.Z.Mallick(Journalist)

(ॐ जीएसबीएसडीटी ) की स्थापना दिवस के अवसर पर कलश यात्रा।  


बहरी दिल्ली - दिल्ली जिला उत्तरी पश्मि के पूठ कलां गांव में आज ॐ गणपति शिव बाला जी सामाजिक उत्थान ट्रस्ट द्वारा स्थापित मंदिर का आज 5वां स्थापना दिवस कलश यात्रा निकाल कर मनाया गया।  इस कलश यात्रा में लगभग दो सौ स्थानियें महिलाओं ने भाग ले कर गाओं का भर्मण कर यात्रा की शोभा बढ़ाई। तथा गाओं के गणमान्य लोगों भागीदारी निभाई।  
मुख्य ट्रस्टी एवं चेयरमैन ए. के. सोलंकी ने एक प्रेस  कर बताया की हर साल की तरह इस साल भी भण्डारा तथा रात्रि जागरण का आयोजन किया गया है जिस में हरयाणा के विख्यात रंगनी गाईक एवम भजन गायक जागरण का शोभा बढ़ाएंगे।      

Blogger by S.Z.Mallick(Journalist)

(ॐ जीएसबीएसडीटी ) की स्थापना दिवस के अवसर पर कलश यात्रा।  


बहरी दिल्ली - दिल्ली जिला उत्तरी पश्मि के पूठ कलां गांव में आज ॐ गणपति शिव बाला जी सामाजिक उत्थान ट्रस्ट द्वारा स्थापित मंदिर का आज 5वां स्थापना दिवस कलश यात्रा निकाल कर मनाया गया।  इस कलश यात्रा में लगभग दो सौ स्थानियें महिलाओं ने भाग ले कर गाओं का भर्मण कर यात्रा की शोभा बढ़ाई। तथा गाओं के गणमान्य लोगों भागीदारी निभाई।  
मुख्य ट्रस्टी एवं चेयरमैन ए. के. सोलंकी ने एक प्रेस  कर बताया की हर साल की तरह इस साल भी भण्डारा तथा रात्रि जागरण का आयोजन किया गया है जिस में हरयाणा के विख्यात रंगनी गाईक एवम भजन गायक जागरण का शोभा बढ़ाएंगे।      

Wednesday, July 6, 2016

पूठ कलां दिल्ली के सर्वोदय स्कूल में आम आदमी के अद्भुत कारनामे।



 


पूठ कलां दिल्ली के स्कूल में दो महीने की छुट्टीओं में दिल्ली सरकार के स्कूल प्रसाशन को स्कूल रिपेयर का ख्याल नहीं आया।  अब जब छुट्टीया बीत  गयी तो रिपेयर का ख्याल आया। बच्चे तथा अभिभावको के परशानियों से सरकार को कुछ लेना देना नहीं - स्कूल प्रसाशन ने 6-7-8, क्लास के बच्चों को अपने स्कूल से 3 की० मी० दूर हस्थानांत्रित किया।     

एस.ज़ेड.मलिक (पत्रकार) 

बाहरी दिल्ली उत्तर पश्मि  जिला के पूठ कलां गांव सर्वोदय विद्यालय जहाँ 12 वीं तक छात्र छात्राएं दो पालियों शिक्षा ग्रहण करते हैं पहली पाली में छात्राओं की होती है जो प्रातः 7 :30 से 12 :45, बजे तक और दूसरी पाली छात्रों की जो 1:00 बजे दोपहर से 6 :30, बजे संध्या तक चलता है। आज स्कूल की जब छुट्टियां समाप्त हो गयी तो स्कूल प्रसाशन को स्कूल रिपेयर करने का अचानक से विचार कैसे आया ? स्कूल प्रसाशन आखिर दो महीनें तक क्यों सोया रहा ? अब यह 6,7,8 वीं के बच्चों को विशेष का लड़कियों को सेक्टर 21 जो बेगमपुर से लगे हुए है यह जगह पूठ कलां से लग भग 3 कि० मी० दूर है और एक स्कूल से दूसरे स्कूल ताक पैदल चलना दूभर है , जिसके पास अपनी विकल है उनके लिए तो कोई परिशानी नहीं है लेकिन जिनके पास अपनी विकल नहीं है उसके लिए 3 कि० मी० पैदल आधा घंटा चलना दूभर सा है तथा अधिकतर मज़दूरी करने वाले लोग ५० रुपया रोज़ रिक्शा वाले को कैसे अदा कर पाएंगे।  फिर तो गरीब के बच्चों के लिए एक ही रास्ता बचता है वह स्कूल छोड़ कर घर बैठ जाएँ। सरकार द्वारा बच्चों को दियेजाने वाला एक बच्चे पर लगभग सालाना 2000  रुपया भी बच जायेगा।  


इनकी परिशानियों को देखते हुए स्कूल मैनेजमेंट कमेटी के भगवन सोलंकी जो उत्तरी पश्मि ज़िला आम आदमी पार्टी के उपाध्यक्ष भी हैं उनसे बात करना चाहा परन्तु उन्हों ने हमसे बात नहीं की मेरा फोन काट दिया , फिर मैंने इसी कमेटी के सक्रिय कार्यकर्ता दिल्ली युवा आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष हैं, उनसे जब इस मामले में बात की तो उन्हों ने कहा की सिर्फ 20 , 25 , दिन लगेंगे, फिर हम उन्हें वापस बुललेंगे।  पत्रकार ने जब इनके इस जवाब पर जब जानना चाहां की कमेटी चाहती तो बच्चों तथा अभिभावकों को परेशानी से बचा सकती थी - उसी स्कूल में इतने बड़े बड़े रूम हैं की उसी में एडजेस्ट कर सकती थी। जिससे अभिभावक और बच्चे परेशानीओं से बचाया  जा सकता था और इन कक्षाओं के कमरे मरम्मति का काम करा सकते थे , दूसरी बात दो महीने तक छुट्ट्यां रही तब आप लोगों को उस दरमियान मरम्मति का ध्यान क्यों नहीं आया - फिर सवाल उठता है की बच्चों की बढ़ती तादाद देखते हुए दो कमरा या तीन कमरा उस स्कूल में  बनना है - तो उस स्कूल में अभी हाल फिलहाल लगभग तीन साल हुए होंगे नई इमारत बने हुए आज उसके भी खिड़की दरवाज़े क्यों उजाड़ दिये ? क्या इसमें गबन होने का संकेत नहीं है - क्या यह गबन करने की साजिश नहीं है ?. आखिर आम आदमी पार्टी ईमानदारी का चोला पहन कर कब तक दिल्ली की जनता को बेकुफ बनाती रहेगी ?                         

Thursday, June 30, 2016

AINA INDIA: बिजली विभाग की हठधर्मी - Report by S.ZMallick(Jour...

AINA INDIA: बिजली विभाग की हठधर्मी - Report by S.ZMallick(Jour...:   बिजली विभाग का ज़बरदस्ती छापा।  लोक अदालत के आदेश पर  को 22180 रुपया जुरमाना भरा फिर  25 जुलाई 2016  और 22180 रुपया देना है।   - मज़दूरी क...

बिजली विभाग की हठधर्मी - Report by S.ZMallick(Journalist)

  बिजली विभाग का ज़बरदस्ती छापा। लोक अदालत के आदेश पर  को 22180 रुपया जुरमाना भरा फिर 25 जुलाई 2016 और 22180 रुपया देना है।   - मज़दूरी करनेवाले ज़ीशान के २५ गज़ के मकान में एसी तथा फ्रिज चालान का इलज़ाम।  घर में कोई मर्द की सूरत नहीं।  बिजली विभाग के लगभा 10-12 लोग जबरन मकान में घुस कर बंद मीटर का फोटो खिंच कर इलज़ाम लगा दिया की अमानुल्लाह बिजली चोरी कर रहा था। जबरन 74000 हज़ार रूपये का जुर्माना थोक दिया। 
उत्तर पशिम जिला के सुलतान पूरी के एक नंबर ऍफ़ ब्लॉक नूरी मस्जिद के सटे २५ गज़ के मकान में १३ मई को लग भाग १२ बजे अस्थानीय बिजली विभाग के लगभग १२-१५ लोग घर में घुस गए और बंद  मीटर की फोटो कहना शुरू कर दिया - मकान मालिक समाजसेवी  जीशअनुल्लाह के कथनानुसार उस समय वह दिल्ली में उपस्थित नहीं थे और घर में मर्द की सूरत में कोई नहीं था , घर में सिर्फ औरते ही थी। मकान मालिक जीशनुल्लाह के माकन में दो मीटर लगा हुआ है एक दूकान का और दूसरा मकान का, माकन के मीटर का सीए नो० ६०००४५२९२३० , है , इसका बिल हर महीने लग भाग १२-१३ सौ का आता है, जिस में एक सेलिंग फैन और एक कूलर तथा दो बल्ब और एक टिवलाईट का इस्तेमाल है - दूकान के मीटर का कोई खास इस्तेमाल नहीं है, कभी कभी दूकान जब खुलती है तो सिर्फ एक एलईडी बल्ब २-४-१० मिंट के लिए जलाया जाता है। बिजली की इतनी कम खपत, समय पर बिल भरा जा रहा है तो फिर सवाल उठता है आखिर इलज़ाम क्यों लगाया गया? बिजली विभाग ने क्या गुंडे पाल कर अपना बिल वसूल करने का ठेका ले रक्खा है, क्या ऐसा तो नहीं कि बिजली विभाग अपने आक़ा से बिजली बिल न लेकर गरीब और कमज़ोर उपभोगताओं से अपने आकाओं का बिल वसूलती है , इससे पहले भी बिजली विभाग के कर्मचारिओं की ऐसे ओछे हरकतों की कई शिकायतें मिलती रही है , जिसका निपटारा  अदालत में किया जाता है और लोक अदालत किसका  तो पता चला की वह भी बिजली विभाग का ही है, लोकअदालत का काम है बिजली विभाग द्वारा थोपा गया जुर्माना का सेटलमेंट करा कर उपभोगताओं से आधा जुरमाना बिजली विभाग को अदा करवाना, लोगों को सिर्फ इस बात से संतुष्टि मिलजाती है की लोक अदालत ने हमारा उद्धार कर दिया। 
 जनता इतनी भावुक बेवक़ूफ़ अशिक्षित है की स्वतंत्रता से अब तक उसे न तो लोकतंत्र का मतलब ही समझ में आया और न तो सरकार का मतलब ही आज तक समझ पायी। 75 प्रतिशत जनत आज भी अपने सांसद , विधायेक तथा निगमपार्षद और मुखिया को ही सरकार कह कर उसके आगे नमस्तक रहती है यही कारन है की यह जनप्रतिनिधि अपने आपको जनता देवता तथा कहीं कहीं भगवान् भी बनजाते हैं। और सरकारी कर्मचारी जो जनता की नौकरी करने के लिए, जनता के समस्याओं के समाधान के लिए बहाल किये गए हैं , ऐसे 75 प्रतिशत अशिक्षित भावुक बेवक़ूफ़ जनता के कारण वह भी अपने आप को कर्मचारी या पदाधिकारी से हट कर अपने आप को देवता या भगवान् से काम नहीं समझते हैं।  नतीजा सबके सामने है जो मैं लिख रहा हूँ , ऐसे कौन पढ़ेगा एक शिक्षित और समझदार आदमी , न कि कोई अनपढ़ या बेवक़ूफ़ आदमी , अनपढ़ और बेवक़ूफ़ लोग तो पढ़े लिखे लोगों पर ही यकीन , विश्वाश ,भरोसा, करते हैं , और दूसरे नेताओं पर चाहे वह अनपढ़ क्यों न हों साफ सुथरा कपडा पहनते हैं , खादी पहनते हैं , एसी दफ्तरों में बैठे हैं ऐसे ही लोग इन 75 प्रतिशत जनता को बेवक़ूफ़ बन कर अपना उल्लू सीधा करते हैं , और जनता इनपर तन मन धन निछावर करती है , और यह उनके सीधे पण का पुरा पूरा फायदा उठाते हैं। 
क्या इस देश का कभी भला हो सकता है ? कौन आयेगा इन 75 प्रतिशत अनपढ़ लोगों को शिक्षित करने ?  इन 75 प्रतिशत जनता ने तो मोदी को 5 वर्षों तक अपने आप को साक्षर बने के नाम पर लूटवाने का ठेका दे दिया है , अभी दो वर्ष गुज़र चुकें हैं - इन दो वर्षों तो सिर्फ अभी हा हा कार मचा है , कही महंगाई को ले कर तो कहीं साम्प्रदायिक दंगों को लेकर , तो कही सरकारी खजाने से एनएसडीसी, डिजिटल इंडिया के नाम की एस्कीमो के नाम पर बड़े उद्योगों तथा बड़ी बेनामी कंपनियों द्वारा लूटने के नाम पर।  हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम गुलिस्तां क्या होगा। चाहे केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार हो सभी इस समय लूटने का ही काम कर रहे हैं , जनता अपने आप को लूटवाने पर आमादा है।  फिर एक क्रांति आएगी ज़रूर आएगी  . . . . . . . .      
                              
  
    

Tuesday, June 14, 2016

AINA INDIA: आर्थिक न्याय -रोशन लाल अग्रवाल (लेखक एवं समीक्षक आ...

AINA INDIA: आर्थिक न्याय -रोशन लाल अग्रवाल (लेखक एवं समीक्षक आ...: आर्थिक न्याय - रोशन लाल अग्रवाल   (लेखक एवं समीक्षक आर्थिक न्याय)   सामाजिक व्यवस्था एक व्यापक समझोता है और उस का ही एक महत्वपूर्ण अंग...

आर्थिक न्याय -

रोशन लाल अग्रवाल (लेखक एवं समीक्षक आर्थिक न्याय) 
सामाजिक व्यवस्था एक व्यापक समझोता है और उस का ही एक महत्वपूर्ण अंग अर्थव्यवस्था है।  सामाजिक व्यवस्था का मूल आधार न्याय है। और अर्थव्यवस्था उसकी धुूरी है। 
सामाजिक व्यवस्था का मूल उद्देश्य लोगोँ के हितों मेँ होने वाले टकराव को न्याय के आधार पर सुलझाना व सब में सामंजस्य की स्थापना करना है ताकि उनके विवादों को शांतिपूर्वक समाप्त किया जा सके और समाज को विवाद टकराव और युद्ध जेसी विनाशकारी स्थितियों से बचाया जा सके। 
यह समझोता तभी न्यायपूर्ण माना जा सकता है जब यह बिना किसी अज्ञान भय दबाव या मजबूरी की स्थितियो मेँ पूर्ण सत्य पारदर्शिता सद्भाव विश्वास पवित्र मन से किया गया हो। 
ऐसा समझोता ही सब मेँ विश्वास सद्भाव पूरकता संतोष शांति और समृद्धि के उद्देश्योँ को पूरा कर सकता है। 
सारे प्राकृतिक संसाधन ही मूल धन है और हमारे जीवन का आधार है इनके उपभोग के बिना हमारा जीवन नहीँ चल सकता प्रकृति मेँ पाए जाने वाले उपभोग के सभी पदार्थ इंन्हीं प्राकृतिक संसाधन से बनाए जाते है ये प्राकृतिक संसाधन मूल रुप से प्रकृति का वरदान है और किसी व्यक्ति ने इन का निर्माण अपनी शक्ति बुद्धि या क्षमता से नहीँ किया है 
इसलिए इन सभी प्राकृतिक संसाधनो पर सब लोगोँ का मूलभूत समान जन्मसिद्ध अधिकार है और उसका व्यक्ति की योग्यता क्षमता अथवा परिश्रम से कोई संबंध नहीँ और अर्थात इनके कम या अधिक होने से किसी भी व्यक्ति का मूल अधिकार न तो बढता है और न हीँ घटता है। 
क्योंकि यदि हम व्यक्ति के अधिकारोँ का संबंध उसकी उपरोक्त विशेषताओं से जोड़ते है तो उसके आधार पर बनने वाली व्यवस्था न्यायपूर्ण न होकर जंगलराज या जिसकी लाठी उसकी भेंस वाली होगी और उससे समाज मेँ शांति की स्थापना नहीँ की जा सकती। 
इसलिए न्याय के आधार पर एक व्यक्ति का मूलभूत जन्मसिद्ध अधिकार केवल औसत सीमा तक संपत्ति पर ही हो सकता है। इससे अधिक पर नहीँ क्योंकि इससे अधिक पर मूल अधिकार मान लेने से किसी अन्य व्यक्ति के मूल अधिकार का हनन होगा जो उसके साथ अंन्याय है।  
किंतु इस अधिकार को प्राप्त करने के लिए हर व्यक्ति को अपनी योग्यता क्षमता या पुरुषार्थ पर ही निर्भर रहना होता है।  जो सबकी एक समान न होकर बहुत अलग अलग है। ये विशेषताएँ कुछ लोगो की औसत से कम व अन्य कुछ लोगोँ की बहुत ज्यादा भी हो सकती है और होती ही है। इसी कारण कुछ लोगोँ के पास अपनी उपभोग की आवश्यकताओं को पूरा कर लेने के बाद भी मूलभूत औसत अधिकार से बहुत अधिक संपत्ति एकत्रित हो सकती है।  जबकि अन्य लोगोँ को अपने मूलभूत अधिकार से बहुत कम आय ही प्राप्त होती हैं, जिससे वे अपने उपभोग की जरुरतोँ को भी ठीक प्रकार से पूरा नहीँ कर पाते। 

इस प्रकार औसत सीमा तक संपत्ति एक व्यक्ति की संग्रह अधिकार की अधिकतम सीमा अर्थात् अमीरी रेखा है जो किसी भी समय निजी संपत्ति की कुल मात्रा को उस समय की जनसंख्या से भाग देकर आसानी से निकाली जा सकती है।
इसलिए न्याय के आधार पर एक नागरिक को औसत सीमा से अधिक संपत्ति का स्वामी न मांन कर उसका प्रबंधक (समाज को कर्जदार) माना जाना चाहिए और मूल सीमा से अधिक संपत्ति पर ब्याज की दर से संपत्ति कर लगाया जाना चाहिए। 
अंय सभी प्रकार के करों (आयकर सहित) समाप्त कर दिया जाना चाहिए जो किसी भी दृष्टि से समाज के लिए हितकारी नहीँ हे ओर सभी प्रकार को षड़यंत्रों को जन्म देते है। 
क्योंकि सारे प्राकृतिक संसाधन ही मूल संपत्ति होते है और इन पर समाज का अर्थ सभी लोगोँ का समान रुप से स्वामित्व होता है।  इसलिए संपत्तिकर से इस प्रकार होने वाली आय पूरे समाज की प्राकृतिक संसाधनो से प्राप्त होने वाली अतिरिक्त आय होती है जिस पर सब का समान अधिकार है।  
इसलिए इस में से सरकार के बजट का खर्च (व्यवस्था के संचालन का खर्च) काटकर शेष राशि को सारे नगरिकों में बिना किसी भेदभाव के लाभांश के रुप मेँ बाँट दिया जाना चाहिए। 
इस प्रकार न्याय के आधार पर हर नागरिक के दो अधिकार होते हैं, पहला मूलभूत स्वामित्व का अधिकार जिसका व्यक्ति की मेहनत से कोई संबंध नहीँ होता है और जो सबका सम्मान होता है। 
दूसरा मेहनत या पुरुषार्थ से प्राप्त अधिकार जो मेहनत के आधार पर सबका कम या अधिक हो सकता है। 
लाभांश स्वामित्व के अधिकार से मिलने वाला समान लाभ है जिसका व्यक्ति की मेहनत से कोई संबंध नहीँ होता। 
भौतिक विज्ञान की उन्नति के कारण प्राकृतिक संसाधनो को उपभोग योग्य बनाने के लिए उन मेँ लगने वाली मेहनत की मात्रा लगातार घटती जा रही है और स्वामित्व के अधिकार का महत्व बरता जा रहा है। और उसके साथ ही लाभांश की मात्रा भी बढ़ती जा रही है। 
आज भी एक व्यक्ति की आय का संबंध उसकी शारीरिक या बौद्धिक मेहनत से न होकर उसके साधनो से स्थापित हो गया है जिसके पास अधिक साधन है उसकी आय ज्यादा है जिसके पास कम साधन है उसकी आय भी उसी अनुपात मेँ बहुत कम है। 
जिस दिन भौतिक विज्ञान इतनी उन्नति कर लेंगे कि उसके सारे कार्य अनेक प्रकार के यंत्र और उपकरणो की सहायता से ही पूरे होने लगेंगे और मेहनत की कोई भूमिका ही नहीँ बचेगी तब समाज के शांतिपूर्ण संचालन का एकमात्र मार्ग लाभांश ही रह जाएगा मेहनत नहीँ। 
हर व्यक्ति चाहता है उसे उसके उपभोग के पदार्थ कम से कम परिश्रम मेँ निरंतर प्राप्त होते रहे और उसे कभी भी अभाव का सामना न करना पड़े।  भौतिक विज्ञान की उन्नति ने मनुष्य की इस चीर संचित अभिलाषा को अच्छी तरह से पूरा किया है। 
अतः अब सब लोगोँ को अपना पेट भरने के लिए किसी प्रकार की मेहनत करने की बाध्यता से मुक्ति मिलनी चाहिए इसे हरामखोरी कहना या गलत मानना पूरी तरह अज्ञान्ता है। 




यह लंबी पोस्ट मुझे इसलिए लिखनी पड़ी है क्यूंकि आपके अनेक गूढ प्रश्नो के उत्तर इस पोस्ट के बिना नहीँ दिए जा सकते अतः आप पहले इस पोस्ट के सभी बिंदुओं पर पूरी गहराई से विचार करेँ और इस के बाद आपके जो प्रश्न बचेंगे उनका मेँ तर्क सहित उत्तर दूँगा। 

Monday, June 6, 2016

AINA INDIA: 'बेसिक इनकम गारंटी'

AINA INDIA: 'बेसिक इनकम गारंटी': 'बेसिक इनकम गारंटी' स्विस की जनता ने नाकारा।   एस.ज़ेड. मलिक (पत्रकार)    ज़ी मीडिया ब्‍यूरो के सौजन्य से  जिनेवा :  ...

'बेसिक इनकम गारंटी'



स्विटजरलैंड के लोगों ने सरकार की मुफ्त सेलरी की पेशकश ठुकराई

'बेसिक इनकम गारंटी' स्विस की जनता ने नाकारा।  

एस.ज़ेड. मलिक (पत्रकार)  ज़ी मीडिया ब्‍यूरो के सौजन्य से 
जिनेवा : अगर किसी को घर बैठे हर महीने सरकार की तरफ से बंधी-बंधाई सेलरी मिले तो कौन काम करना चाहेगा? लेकिन एक ऐसा देश है जिसके नागरिकों ने सरकार की इस शानदार पेशकश को ठुकरा दिया है। दुनिया के अमीर देशों में से एक स्विट्जरलैंड के नागरिकों ने सरकार की मुफ्त सेलरी की पेशकश ठुकरा दी है। स्विट्जरलैंड की सरकार ने मुफ्त सेलरी देने को लेकर एक जनमतसंग्रह कराया है जिसके पक्ष में 23 प्रतिशत जबकि प्रस्ताव के विरोध में 77 फीसदी लोगों ने मतदान किया।
'बेसिक इनकम गारंटी' के समर्थकों की मांग है कि सरकार करीब उन्हें डेढ़ लाख रुपए से अधिक हर महीने वेतन दे पिछले करीब डेढ़ साल से यहां कुछ लोगों की तरफ से मांग की जा रही थी कि सरकार सभी को न्‍यूनतम सैलरी दे वो भी बिना कोई काम किए। इस मांग के बाद सरकार ने एक जनमत संग्रह कराया, जिसमें देश के 78% लोगों ने इसे ठुकरा दिया। इसी के साथ यह प्रस्ताव खारिज हो गया। दरअसल, यहां ज्यादातर लोगों के पास काम नहीं है। फैक्ट्रियां में लोगों की जगह रोबोट ने ले ली है, जिससे देश में बेरोजगारी बढ़ रही है।
अगर ये पास हो जाता तो सरकार को हर महीने देश के सभी नागरिकों और 5 साल से वहां रह रहे उन विदेशियों को, जिन्होंने वहां की नागरिकता ले ली है, उन्हें बेसिक सैलरी देनी होती। दुनिया में पहली बार है जब ऐसे किसी प्रस्ताव को किसी देश में नागरिकों के बीच रखा गया था। इस प्रस्ताव में लोगों से पूछा गया था कि क्या वे देश के नागरिकों के लिए एक तय इनकम के प्रावधान का समर्थन करते हैं या नहीं?

Thursday, May 26, 2016

AINA INDIA: The real meaning of democracy- Blogger S.Z.Mallick...

AINA INDIA: The real meaning of democracy- Blogger S.Z.Mallick...:
असली लोकतंत्र का अर्थ।
 रोशन लाल अग्रवाल  economicjusticesrl.blogspot.in
 आज हमारे देश में जो तथाकथित लोक...

AINA INDIA: The real meaning of democracy- Blogger S.Z.Mallick...

AINA INDIA: The real meaning of democracy- Blogger S.Z.Mallick...: असली लोकतंत्र का अर्थ। असली लोकतंत्र का अर्थ रोशन लाल अग्रवाल  economicjusticesrl.blogspot.in आज हमारे देश में जो तथाकथित लोक...

AINA INDIA: "Art 4 Peace Award" soon. Report by S.Z.Mallick(Jo...

AINA INDIA: "Art 4 Peace Award" soon. Report by S.Z.Mallick(Jo...: विश्व की शशक्त महिलाओं के लिए आस्कर के तर्ज़ पर "आर्ट 4 पीस अवार्ड" जल्द। एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार) नई दिल्ली -   आर्ट 4 पी...

The real meaning of democracy- Blogger S.Z.Mallick(Journalist)

असली लोकतंत्र का अर्थ।

असली लोकतंत्र का अर्थ



रोशन लाल अग्रवाल economicjusticesrl.blogspot.in

आज हमारे देश में जो तथाकथित लोकतंत्र है वह नकली है हम राज्य के गुलाम बने हुए हैं हमारे जनप्रतिनिधि समाज का नहीं बल्कि बड़े-बड़े धन पतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं. वे उनके ही आदेशानुसार चलते हैं और सामान्य व्यक्ति की आवश्यकताओं एवं भावनाओं से उनका कोई लेना-देना नहीं है. तो फिर इस लोकतंत्र को असली कैसे माना जाए ?
देश के सारे कानून धन पतियों की इच्छा के अनुसार ही बन रहे हैं जिन से वास्तविक न्याय का कुछ भी लेना-देना नहीं है.
जब तक सत्ता पर समाज का नियंत्रण नहीं होगा तब तक वास्तविक आजादी नहीं मिल सकती और इसके लिए आर्थिक न्याय अनिवार्य है.
आर्थिक न्याय पाने के लिए अमीरी रेखा बनाई जानी चाहिए अर्थात एक व्यक्ति के मूलभूत या न्यूनतम संपत्ति अधिकार उसी प्रकार सुरक्षित होने चाहिए जिस प्रकार हर नागरिक वोट देने का अधिकार जो उसका न्यूनतम राजनीतिक अधिकार है उसी प्रकार हर नागरिक को न्यूनतम संपत्ति का स्वामित्व भी बिना किसी मेहनत के जन्म से लेकर मृत्यु तक मिलना चाहिए जिसे किसी भी प्रकार से घटाया या बढ़ाया या खरीदा बेचा नहीं जाना चाहिए.
अर्थ व्यवस्था की दृष्टि से किसी भी प्रकार की संपत्ति की खरीदी बिक्री का अर्थ उसका मालिकाना हक का विक्रय या क्रय नहीं बल्कि केवल प्रबंधन का अधिकार खरीदा और बेचा जाना चाहिए.
एक नागरिक का जन्मसिद्ध आर्थिक अधिकार ओसत सीमा तक स्वीकार किया जाना चाहिए और किसी भी प्रकार का परिश्रम न करने की स्थिति में भी हर नागरिक को इस पर मालिकाना हक के रूप में शुद्ध लाभ में उसका हिस्सा निरंतर मिलना चाहिए.

एक नागरिक को ओसत सीमा से अधिक संपत्ति संचय का सीमाहीन अधिकार देना अलोकतांत्रिक ही नहीं बल्कि नितांत उदंडता और अन्याय पूर्ण है जिससे समाज में कभी भी सामंजस्य और शांति स्थापित नहीं हो सकती यह तो जिसकी लाठी उसकी भैंस है. 
जब हर नागरिक को ओसत सीमा तक धन के स्वामी के रूप में न्यूनतम हिस्सेदारी मिलने लगेगी तो ही लोकतंत्र को असली माना जा सकेगा न्यूनतम आर्थिक अधिकार के बिना लोकतंत्र का कोई अर्थ नहीं यह किसी के लिए भी कल्याणकारी नहीं हो सकता.
लेकिन ओसत सीमा तक स्वामित्व के आधार पर प्रत्येक व्यक्ति को न्यूनतम आर्थिक लाभ में हिस्सेदारी देकर सबके लिए सुखदाई व्यवस्था का निर्माण किया जा सकता है जो सब लोगों को सर्वमान्य हो सकता है

AINA INDIA: "Art 4 Peace Award" soon. Report by S.Z.Mallick(Jo...

AINA INDIA: "Art 4 Peace Award" soon. Report by S.Z.Mallick(Jo...: विश्व की शशक्त महिलाओं के लिए आस्कर के तर्ज़ पर "आर्ट 4 पीस अवार्ड" जल्द। एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार) नई दिल्ली -   आर्ट 4 पी...

"Art 4 Peace Award" soon. Report by S.Z.Mallick(Journalist)

विश्व की शशक्त महिलाओं के लिए आस्कर के तर्ज़ पर "आर्ट 4 पीस अवार्ड" जल्द।


एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)
नई दिल्ली -   आर्ट 4 पीस अवार्ड 16 अक्टूबर 2016 को आठ श्रेणियों में दिए जायेंगे इसे वेवर्ली हिल्स परेड के नाम से भी जाना जाता है। उल्लेखनिये है की यह एवार्ड विश्व महिला षशक्तिकरण तथा कला को बढ़ावा देने के लिए शांति पुरस्कार के रूप में मुख्यालय ताइवान में दिया जायेगा। यह जानकारी ताइवान की प्रसिद्ध ब्यूटीशियन मुन्नी एयरोन ने बुधवार दिल्ली के प्रेस कलब में प्रेस को जानकारी दे रहीं थीं उन्हों ने अपने उद्देश्यों को उजागर करते हुए कहा की विश्व की महिलाओं की प्रतिभा को उबारने के लिए उनके अंदर छुपे कला को महत्त्व देने के लिए हम विश्व की तमाम संस्कृतियों, परम्पराओं, ज्ञान और कला को एक साथ मिलाकर कर सकारात्मक तरीके से प्रभावशाली बनने के लिए पुरूस्कार देंगे । हालाँकि परियोजना बड़ा है इसीलिए इसे ध्यान में रखते हुए हम सम्पूर्ण विश्व का भर्मण कर देश में हर वह सामाजिक संस्थान जो समाज था विशेष कर महिलाओं के शशक्तिकरण के लिए काम कर रही है वैसी संस्थाओं का हम चुनाव करेंगे और उन्हें  ही आर्ट 4 पीस अवार्ड दिया जाएगा। उन्हों कहा की इस एवार्ड को भी आस्कर के तर्ज़ पर आठ श्रेणियों में दिया जायेगा जिस प्रकार आस्कर में सिनेमा , संगीत , बाल डिज़ाइन मार्शल आर्ट इत्यादि को दिया जाता है। उसी प्रकार से हम केवल महिलाओं को ही इस प्रकार का एवार्ड देंगे।    
ज्ञात हो की मुन्नी आयरोन मनोविज्ञान से ओनर्स हैं और अपना ब्यूटी स्कूल चलातीं हैं तथा इस  आर्ट 4 पीस अवार्ड  की संस्थापक हैं।