असली लोकतंत्र का अर्थ।
असली लोकतंत्र का अर्थ
रोशन लाल अग्रवाल economicjusticesrl.blogspot.in
आज हमारे देश में जो तथाकथित लोकतंत्र है वह नकली है हम राज्य के गुलाम बने हुए हैं हमारे जनप्रतिनिधि समाज का नहीं बल्कि बड़े-बड़े धन पतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं. वे उनके ही आदेशानुसार चलते हैं और सामान्य व्यक्ति की आवश्यकताओं एवं भावनाओं से उनका कोई लेना-देना नहीं है. तो फिर इस लोकतंत्र को असली कैसे माना जाए ?
देश के सारे कानून धन पतियों की इच्छा के अनुसार ही बन रहे हैं जिन से वास्तविक न्याय का कुछ भी लेना-देना नहीं है.
जब तक सत्ता पर समाज का नियंत्रण नहीं होगा तब तक वास्तविक आजादी नहीं मिल सकती और इसके लिए आर्थिक न्याय अनिवार्य है.
आर्थिक न्याय पाने के लिए अमीरी रेखा बनाई जानी चाहिए अर्थात एक व्यक्ति के मूलभूत या न्यूनतम संपत्ति अधिकार उसी प्रकार सुरक्षित होने चाहिए जिस प्रकार हर नागरिक वोट देने का अधिकार जो उसका न्यूनतम राजनीतिक अधिकार है उसी प्रकार हर नागरिक को न्यूनतम संपत्ति का स्वामित्व भी बिना किसी मेहनत के जन्म से लेकर मृत्यु तक मिलना चाहिए जिसे किसी भी प्रकार से घटाया या बढ़ाया या खरीदा बेचा नहीं जाना चाहिए.
अर्थ व्यवस्था की दृष्टि से किसी भी प्रकार की संपत्ति की खरीदी बिक्री का अर्थ उसका मालिकाना हक का विक्रय या क्रय नहीं बल्कि केवल प्रबंधन का अधिकार खरीदा और बेचा जाना चाहिए.
एक नागरिक का जन्मसिद्ध आर्थिक अधिकार ओसत सीमा तक स्वीकार किया जाना चाहिए और किसी भी प्रकार का परिश्रम न करने की स्थिति में भी हर नागरिक को इस पर मालिकाना हक के रूप में शुद्ध लाभ में उसका हिस्सा निरंतर मिलना चाहिए.
एक नागरिक को ओसत सीमा से अधिक संपत्ति संचय का सीमाहीन अधिकार देना अलोकतांत्रिक ही नहीं बल्कि नितांत उदंडता और अन्याय पूर्ण है जिससे समाज में कभी भी सामंजस्य और शांति स्थापित नहीं हो सकती यह तो जिसकी लाठी उसकी भैंस है.
जब हर नागरिक को ओसत सीमा तक धन के स्वामी के रूप में न्यूनतम हिस्सेदारी मिलने लगेगी तो ही लोकतंत्र को असली माना जा सकेगा न्यूनतम आर्थिक अधिकार के बिना लोकतंत्र का कोई अर्थ नहीं यह किसी के लिए भी कल्याणकारी नहीं हो सकता.
लेकिन ओसत सीमा तक स्वामित्व के आधार पर प्रत्येक व्यक्ति को न्यूनतम आर्थिक लाभ में हिस्सेदारी देकर सबके लिए सुखदाई व्यवस्था का निर्माण किया जा सकता है जो सब लोगों को सर्वमान्य हो सकता है
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