पर्दे केपीछे का सच ! भारत में हर जगह मुसलमानो को ही टारगेट क्यूँ किया जाता है ?
वर्चस्व + अपराध + भृष्टचार = डर - भय = दलित - पिछड़ा, और मुसलमान ।
खरबूजा छुरी पर गिरे या छुरी खरबूजे पर गिरे - हर हाल में खरबूजा को ही काटना पड़ता है ।
इसी तरह हर हाल में नुक्सान हिंदुओ का ही है।
एस. ज़ेड.मलिक(पत्रकार)
में बात शुरू करूँगा दंगा से , दंगा चाहे वह किसी भी प्रकार का हो, दंगा चाहे किसी भी समुदायें का हो, दंगा चाहे किसी भी धर्म मे हो, दंगा चाहे किसी भी जाति में हो, दंगा चाहे कोई करे, नुक्सान गरीब, मज़दूर, दलित, पीछड़ी जाती, एवं मुसलमानों यानी कमज़ोर गरीब मध्य एवं निम्न वर्गीय आयस्रोत परिवार समाज के व्यक्तिओं , मानव अर्थात मानवता का ही हुआ है और होता रहेगा।
परन्तु सवाल यह है की आखिर ऐसे दंगे करवा कौन रहा है और करता कौन है ? इस से किसको लाभ मिल रहा है ? जो मानवता के बीच केवल और केवल नफरत फैला रहा है? और सबसे अधिक नफ़रत अशिक्षित और मध्यवर्गीय तथा पिछड़ी ,अन्य पिछड़ी दलित में ही क्युँ देखा जा रहा है ? जो सबसे अधिक द्वेष, दुराग्रह और दुर्भावनापूर्ण अपना जीवन व्यतीत करते है? कौन हैं ऐसे लोग? क्या नफरत फैलाने वाले मानोवादी, उन्मादी ब्राह्मण समाज के लोग ही हैं ? जो अपना वर्चस्व को किसी भी रूप स्थापित रखना चाहते हैं? ऐसा नहीं है इसमें केवल ब्रह्मण ही नहीं हैं। मात्र 5 % मनुवादी उन्मादी 95 % पर हावी है। यह केवल भारत में नहीं है , चूंकि हम भारत में हैं और भारत में ही सम्पर्दायिक उन्मांद अधिक देखने को मिलता है जबकि भारत में सारे ब्रह्मण उन्मादी नहीं हैं। अधिकतर उदारवादी हैं।
लेकिन विश्व में मुसलमानो के प्रति नफरत देखने को मिलता है। जबकि सीरिया , पलिस्तीन , म्यांमार हो या बोसिनिया या चेचिनिया हो , बोसिनिया और चेचिनिया का मामला तो गरीबी और भुकमरी का था लेकिन पिलिस्तीन , सीरिया मयंमार में जितना भी मुसलमानों का नरसंहार हुआ अब तक कोई ऐसी मिसाल अब देखने को नहीं मिलती है की कही भी मुसलमानो ने किसी से बदला लिया हो या लेकि कोशिश कर रहे हैं - रही आतंकवादी की बात तो आतंकवादी प्रयोजित हैं, उन्हें सुनोयोजित साजिसज के तहत जगह जगह अलग अलग रूप ने प्रायोजित किया गया है। उसे चाहे अमेरिका करे या इसराइल करे या चीन व रूस करे। मुसलमानों के नाम को इस्तेमाल रहा है। जहाँ तक मेरा अपना शोध है भारत में आतंकवादी शब्द की उत्पत्ति अंग्रेज़ों द्वारा 1935 से टेरोरिस्ट से आरम्भ किया गया था और उसके बाद उग्रवादी यह शब्द 70 की दशक से आरम्भ किया गया था। बहरहाल हमारा विषय यह नहीं है इन शब्दों में उलझ के रह जाएंगे असल मुद्दा नफरत का, नफरत फैलाने में किसका फायदा है ?
मैं मनोवादी शब्द के बारे में थोड़ा प्रकाश डालना चाहूँगा मनोवादी अर्थात अपने मन की सोंच को दूसरों पर जबरन थोपने वाला मेरा शोध यही कहता है वैसे ब्रह्मणो को इस शब्द से भारी आपत्ति है वह इसलिए की उनका मानना है की नमोवाद, मनुमहाराज के माननेवालों को कहा जाता है। अन्य दूसरे ब्रह्मणों जो मनुस्मृति को मानने वाले हैं उनका का मानना है की मनुस्मृति को मानने वालों को कहते हैं। जब की ऐसा नहीं है मनोवादी अर्थात अपने मन की सोंच को दूसरों पर जबरन थोपने वाला या अपने मनमानी करने वाला, अपना वर्चस्व स्थापित रखने के लिए साम, दाम, दण्ड, भेद , की निति अपना कर सत्ता पर क़ब्ज़ा रहने वाला मेरा शोध यही तो कहता है, और क्या समझते हैं वह जाने।
यह मनोवादी केवल भारत में ही नहीं न केवल हिन्दुओं में है बल्कि यह मनोवादी, विश्व के हर देश के हर कस्बे में हर जाती हर समुदाय में हर रूप हर वेश में हैं। जब की इनकी संख्या बहुत कम है, लेकिन संगठित हैं और उदारवादी सबसे बड़ी संख्या में होने बावजूद असंगठित हैं। मनोवादी अतिस्वार्थी सत्ताभोगी होने के कारण यह जहां भी है वहां यह शांत नहीं हैं और न किसी को शांत रहने देना चाहते हैं, उन्हें सब से अधिक विश्व में मुसलामानों से ही खतरा महसूस होता है, उहने ऐसा लगता है कि यदि भारत या विश्व मे कही भी मुसलमानों को दबाने में कामयाब हो जाते हैं तो विश्व मे हर जगह हम साशक हो सकेंगे । यह लोग कैसे है और कौन लोग हैं? इनका धंधा क्या है। थोड़ा ध्यान से इसे पढ़ें और मंथन करें । यह कुछ कारपोरेट लोग है जो आमने मनमर्ज़ी सरकार बनवाते हैं और वही परदे के पीछे से सरकार चलाते हैं तथा भूमाफिया हैं जो विश्व के प्रकृतिक के संसाधनों हवा और पानी तथा सूर्य चंदमा का प्रकाश छोड़ कर सभी अन्य सम्पदा पर हर देश में हावी है यह अल्पसंख्यक हैं।
पहला- भारत मे मन्दिर माफिया अर्थात मन्दिर के व्यावस्थापक, दरगाह संचालक दूसरा- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्याज, का कारोबार करने वाले , तीसरा शराब एवं विभिन्न प्रकार के नशा के कारोबारी , और जूआ के व्यापारी जुया का अड्डा चलाने वाले , चौथा- हत्यार माफिया व्यापारी , और पांचवां बड़े पैमाने पर वैश्यावृत का धंधा करवाने वाले माफिया व्यापारी यह कोई भी हो सकते हैं। लेकिन भारत में अपने आपको ब्रह्मण कहने वाले मंदिर के पुजारी व मंदिरों पर अपना वर्चस्व स्थापित रखने वाले मंदिर माफिया जिनका कारोबार परिवार ऐशो आराम दान के पैसों से चलता है।
और इस्लाम अर्थात इंसानियत - जो इन सभी बुराइयों से दूर रहने का सख्ती से आदेश देता है - इंसानियत अर्थात इस्लाम में इन बुराइयों की कोई जगह नहीं, और जो इस्लाम के फॉलोवर हैं जिन्होंने इन आदेशों को अपने जीवन पूर्णरूप से शामिल कर लिया और तमाम अच्छाइयों को साथ ले कर आदेशों का पालन करने वालों को मुसलमान कहा जाता है। मुसलमान को इस्लाम अर्थात इंसानियत में उदारवादी बनने का सर्वप्रथम सीख दी गई है जहाँ भेद-भाव नाम की कोई चीज़ नहीं है और दूसरे-अपनी और समाज तथा राष्ट्र की रक्षा एवं दूसरों का संम्मान करने का हुक्म दिया गया है, सद्भावनापूर्ण जीवन व्यतीत करने तथा अन्य गरीब लाचार लोगों का सहयोग करने का हुक्म दिया गया है।
मुसलमानो को अतिधन संचाईत करने का आदेश नहीं है अपने आवश्यकता अनुसार ही धन सम्पदा का प्रयोग/उपयोग करने का हुक्म है। इस्लाम अर्थात इंसानियत में द्वेष, दुराग्रह व भेद - भाव , ऊंच - नीच , अमीर - गरीब, छुआ - छूत नाम की कोई चीज़ नहीं है जिससे अन्य समुदाय इन कर्मो और गुणों से प्रभावित होते हैं और आकर्षित होते हैं वह स्वय ही इस्लाम की और खींचते चले आते हैं। एडी पूर्व जिसे हम यदि भारतीय भाषा में त्रेता काल कहेंगे तो सही होगा उस समय सभी इंसान तो थे लेकिन दो समुदाय में बंटे हुए थे एक यहूदी और दुसरा नसारा, उस समय धरती चार प्रांतों में बंटी हुयी थी पूरब-पश्चम और उत्तर-दक्षिण उस समय मुसलमान या इस्लाम का कोई जानने व मानने वाला नहीं था। तब एडी पूर्व अब्राहम का दौर आया और अब्राहम ने अपने समाज में इस्लाम की पहचान कराना आरम्भ कर दिया और अल्लाह , खोदा की पहचान समाज को बताने लगे यह एक गहरा अध्यन की आवश्यकता है।
जो बातें अपने समाज में अब्राहम ने इस्लाम के बार में प्रचार किया वह बाते ऊपर बताचुका हूँ , जबकि अब्राहम स्वयं नसारा समुदाय से आते थे। और उस समय से नसारा हो या यहूदी सभी जादू टोना को अधिक तरजीह देते थे और अपना अपना अलग अलग खुदा बना कर उसकी पूजा करते थे और उसपर वह शातिर लोग अपना ईमान रखे या न रखें लेकिन उस समय भी अपने समाज को गुमराह करके गरीब और कमज़ोर और लाचो लोगों को अपना शिकार बनाते और समाज पर हावी रहते उस दौर में क़बीला का था प्रचलन था तब उस दौर में इब्राहिम ने उन जादूगरों पाखंड को उजागर करते हुए अंध विश्वाश से निकलने की सला देते और वह सूरज ,चाँद , तारे की मिसाल दे कर लोगों से पूछते की जिसे तुम खुदा मान रहे हो वह हमारे और तुम्हारे जैसा इनसान ही है जब इब्राहिम ने लोगो को बताया की सूरज चांद तारे धरती और आकाश के बीच में हवा तैरते रहते हैं वह एक दूसरे से कभी टकराते तक नहीं , सूरज और छान का प्रकाश कोई इंसान न तो बंद क्र सकता है और न उसे कोई छू सकता है - जब वह जादूगरों को चैलेंज करने लगे की सूरज को धरती क्र दिखाओ तो समझे की तुम ही सच्चे खुदा हो , बहती हवा को रोक कर दिखाओ इब्राहिं की बातो से लोगो में दिव्या शक्ति पट पर विश्वास होने होने लगा और लोग धीरे धीरे जब इब्राहिम के अनुयायी बनने लगे तो जादूगरों और सरमायादारों सरदारों में बौखलाहट होने लगी - जब इब्राहिम ने लोगों को एहसास दिलाना आरम्भ किया की प्रकृतिक के संसाधनों पर वरवो साधारण हर जीव का बराबर का अधिकार है और इसका प्रयोग व उपयोग अपने आवश्यकता अनुसार ही व्यय करें तो लालची सरमायादारों और सरदारों तथा जादूगरों को बुरा लगने लगा इब्राहिम का विरोध और फिर शुरू हुयी साजिश , आज वही हो रहा है। यह छोटा सा मैंने उदाहरण दिया है।
अब ऐसी स्थिति में थोड़ा मंथन करें - इनसभी को यही लगता है, की इस्लाम को मानने वाले केवल मुसलमान ही एक ऐसा समुदाये है जिसके कारण ब्याज, मन्दिर, शराब, फैशन, हत्यार,वैश्याविर्त के धंधे आने वाले समय मे बन्द हो जाएंगे। बड़ी तेजी से आज इंसान इस्लाम अर्थात इंसानियत को अपना रहा है । इसलिये की 70% व्यक्ति शांति सद्भवना सौहार्दपूर्ण वातावरण चाहत चाहता और इसी चाह में लोग धीरे धीरे जो इस्लाम और मुसलमानों को समझने लगे उन्होंने ने ईमान अर्थात मुस्लमानियत व इस्लाम को अपना रहे है और अपनाया ।
ऐसी स्थिति में इन कॉर्पोरेटरों को आभास होने लगा कि यदि लोगों ने इस्लाम अर्थात इंसानियत अपना कर मुसलमान बन गए तो बहुत जल्द ही यह ऐसे धंधे बन्द हो जाएंगे। और हम सड़कों पर आ जाएंगे मुसलमानो की हुकूमत हो जाएगी फिर हम गुलाम हो जाएंगे ऐसी धारणा इन मनोवादिओं अपने अंदर पाल राखी है और अपने नस्लों को यही सीख देते हैं और अन्य समुदायों को गुमराह करते रहते हैं। इसके लिये इन्होंने मुसलमानों को कहीं, गुसपैठिया , तो कहीं आतंकवादी, तो कहीं अन्य प्रकार से बदनाम करना आरम्भ कर दिया तथा उनके विकास एवं शिक्षा तथा आर्थिक दृष्टिकोण से कमज़ोर करने की कोशिश करते रहे और आज भी कर रहे हैं। मुसलमानों को बर्बाद करने का काम यह केवल भारत मे नहीं है बल्कि सम्पूर्ण विश्व मे बड़े उच्च स्तर पर किया जा रहा है।
यदि भारत के स्थानीय अपराध का आंकड़ा देखेंगे तो भारत मे अन्य देशों की तुलना में अपराध तीन गुना अधिक केवल हिन्दू समुदाये में हो रहा है। बावजूद इसके मुसलमानों के विरुद्ध एक माहौल तैयार कर सरकार अपनी नाकामी और बदनामी छुपाने के लिए मुसलमानो को टारगेट कर के भारत में इनदिनों हिंदुत्व को बढ़ावा दिया जा रहा है और सरकार हिंदुत्व को प्रोत्साहित कर बढावा दे रही है कि यह लोग हिन्दू के नाम पर मुसलमानो पर हावी रहें और मनोवादी सत्ता पर क़ाबिज़ रहें तथा कॉरपोरेटों का धंधा चलता रहे। जबकि हमारे भारत में आम साधारण हिन्दुओ और मुसलामानों में कोई आपसी रंजिश है न कोई द्वेष , आपसी सौहार्द और सद्भावना आज भी स्थापित है और रहेगा , हाँ एक बात जो अब देखने को मिल रही है वह की पहले अच्छे लोग संगठित रहते थे परन्तु आज बुरे लोग संगठित हो चुके हैं।
अब रही बात भारत में हिन्दुओं के नुक्सान की, तो भारत में बड़े व्यापारी कौन, हिन्दू , बड़े उद्योग धंदे वाले कौन , तो हिन्दू , बीफ के बड़े व्यापारी कौन तो हिन्दू , यदि सम्पूर्ण भारत में सम्पर्दायिक दंगा होता है तो इन बड़े उद्योग और व्यापारिओं का भारी नुक्सान होता है। जिसका असर आम हिन्दू समुदाय पर सीधे सीधे असर पड़ता है। यदि स्थानीय छोटे मोटे शहर या बड़े नगरों में होता है तो बड़े उद्योग एवं व्यापारिओं को इतना नुक्सान नहीं होता है जितना के मंझोले और छोटे व्यापारिओं को। इसलिए आज कल इन लोगों ने सम्पर्दायिक दंगा कराने का ट्रेंड बदल दिया है, वह यह की शहरों नगरों और अन्य कस्बों में छोटा मोटा दंगा एवं मोब्लिचिंचिंग करवा मुसलमानों डरा कर उन पर वर्चस्व स्थापित रखना जैसे अभी हाल फिलहाल सी ए ए , एनआरपी , एनआरसी का क़ानून बना कर भारतीय मुसलमानो में इतना खौफ भर दिया की महीनो तक मुसलमान सड़कों पर धरना दे कर बैठ गए और सरकार ने उनको बारी बारी से गिरफ्तार करती रही और अपने गुंडों से प्रदर्शनकारिओं पर गोलियां चलवा कर मुसलमानो में डर और हिंदुत्व पर कार्रवाई न करके उनको बढ़ावा देने का काम किया। दूसरी और भारत सरकार ने साबित कर दिया की अब भारत में हिंदुत्व की सरकार होगी और हिन्दुतवों का वर्चस्व रहेगा। लेकिन इससे आम मंझोले हिन्दू व्यापारिओं का काफी बड़ा नुक्सान हुआ जिसकी भरपाई न तो सरकार कर पाएगी और न स्वयं व्यापारी 20 वर्षों में कर पाएंगे।
जबकी, इत्तिहास साक्षी है जब से सृष्टि बनी है और मुसलमान स्तित्व में आये मुसलमानों कभी भी हुकूमत पाने बनाने के लिए कहीं भी, कभी भी जंग नहीं किया। वह हमेशा संसार को अल्लाह की पहचान और उसकी शक्ति का एहसास ही दिलाते रहे। चाहे वह अब्राहम,इस्माइल, इस्हाक़ , याक़ूब , दाऊद, नूह,एवं और बहुत सेे खुदा ने अपने दूत को सांसर मेंं में भेजा लेकिन किसी को भी तकरने वालों को उस समय जैसे फिरौन हो या शद्दाद हो नमरूद हो, या क़ारून या यज़ीद हो उस कार्यकाल में भी यही लोग मनोवादी थे और इन्ही साशकों को भी यही भये सताता था की मेरी क़ौम यानी मेरी प्रजा यदि मुसलमान हो जाएगी तो मेरी गुलामी कौन करेगा इसलिए की इस्लाम में बराबरी का दर्जा दिया गया है और बराबरी में कोई किसी का नौकर या मालिक नहीं होता यदि होता है तो केवल सभ्यता संस्कार और पेम-भाव , आपसी सद्भावना और एक दूसरे को सहयोग तो फिर कौन किसका गुलाम और कौन किसका मालिक।
इस्लाम में सबसे पहले शिक्षा को तरजीह दी गयी है, और एक दूसरे को सहयोग तथा नि:स्वार्थ भाव सेवा की तरजीह दी गयी है। गरीबो कमज़ोरों असहाये अबलाओं के साथ प्यार से सद्भावनापूर्ण हर प्रकार से सहयोग करना ताकि उन्हें अपने को छोटा और असहाये होने का एहसास न हो, जबकि मनोवादि प्रसाशकों का इसके विपरीत प्रावधान है वह गरीबो ,असाहयों, तथा अबलाओं पर ही अत्यचार कर उन्हें डरा धमका कर उनसे अपना इच्छाअनुसार काम लेते हैं और अपना गुलाम बनाये रखना चाहते है। इस्लाम में इन प्रावधानों का सख्ती से मनाही है। तो ऐसे लोगों को इस्लाम अर्थात इंसानियत व मुसलमानो से नफरत नहीं होगा तो और क्या होगा। इसी लिए यह मनोवादी मानसिकता के लोग मुसलमानों को दबाने के लिए इस्लाम और मुसलमानो के विरुद्ध दृश्य प्रचार तथा अन्य समुदायों को उनके विरुद्ध भड़का कर मुसलमानो से लड़वाना मुसलमानो की हत्या करवाना मुसलामानों के साथ दंगा करवाना और फिर उन समुदाओं को मुक़दमा फंसाना और उनहे अपना और सरका का हितैषी तथा देश भक्त कह कर उन्हें मुक़दमा से बरी कर उनपर अपना एहसान थोप कर उन्हें अपना मानसिकरूप से गुलाम बना लेना, यही इनकी निति और प्रावधान है।
यह भी इत्तिहास साक्षी है जहां कही भी दंगा हुया और मुसलामानों का चाहे जितना भी जानी माली नुक्सान हुआ हो मुसलामानों ने कभी भी बदला लेने की कोशिश नहीं की बल्कि मनुवादी सरकार से ही न्याय की उम्मीद रखे प्रतीक्षा करते अपनी उम्र निकाल देते हैं। यह एक कड़वा सच है।