Monday, June 29, 2020

व्यावस्था परिवर्तन की राह - क्या यह चुनावी एजेंडा नहीं होना चाहिए ?

व्यावस्था परिवर्तन की राह - क्या यह चुनावी एजेंडा नहीं होना चाहिए ?

एस. ज़ेड.मलिक(स्वतन्त्र पत्रकार)


आप इस बात को समझ सकते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था को न्याय पूर्ण बनाने का एकमात्र उपाय अमीरी रेखा बनाकर केवल औसत सीमा से अधिक संपत्ति पर ब्याज की दर से संपत्ति कर लगाना और बाकी सभी करों को पूरी तरह खत्म करना है।

जब दूसरे सभी करों को समाप्त कर दिया जाएगा तो सारी चीजें बहुत सस्ती हो जाएंगी और उद्योग व्यापार कृषि सेवा आदि का हर काम सबके लिए बहुत आसान हो जाएगा क्योंकि तब शासन और प्रशासन का उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।

शासन प्रशासन का सारा हस्तक्षेप खत्म हो जाने से समाज को भ्रष्टाचार से भी मुक्ति मिलेगी और इसका लाभ भी देश की आम जनता को ही मिलेगा।

ज्ञात हो कि देश की 80% संपत्ति केवल 1% से भी कम लोगों के हाथों में इकट्ठी कर दी गई है जिसके कारण पूरे देश की जनता गरीबी का सामना कर रही है और मुट्ठी भर बहुत संपन्न अमीर लोग जनता के साथ मनमानी कर रहे हैं।

वही मुट्ठी भर लोग देश की राजनीति भी मनमाने ढंग से चला रहे हैं और अपनी इच्छा के अनुसार शोषणकारी और अन्याय पूर्ण कानून बनवा लेते हैं।

शासन प्रशासन में बैठे हुए सभी शक्तिशाली लोग इन्हीं अमीरों के कहे अनुसार व्यवस्था भी चलाते हैं और उनके कामों को बहुत ही पक्षपातपूर्ण ढंग से और बेईमानी के साथ भी पूरा करते रहते हैं।

कोई भी विचारवान व्यक्ति इस कड़वी सच्चाई को हर जगह अपनी आंखों से देख सकता है इसी कारण समाज में किसी शक्तिशाली व्यक्ति के विरुद्ध मुंह खोलने का साहस भी समाज में नहीं रह गया है।

संविधान का संरक्षक और सभी कानून विशेषज्ञ पूरी तरह इन्हीं पूंजीपतियों के आगे बिके हुए हैं और पूरी व्यवस्था में गरीबों की कोई सुनवाई नहीं है। इसीलिए इस व्यवस्था को आम आदमी द्वारा जंगलराज ही कहा जा रहा है।

इस अन्याय पूर्ण व्यवस्था को बदलने का सबसे अच्छा और आसान उपाय केवल चुनावों के समय जनता के हाथ में आता है और उसे इसी का फायदा उठाना चाहिए। सरकार के खिलाफ आंदोलन करने से कभी भी उसके हाथ कुछ भी नहीं आ सकता।

जो लोग समाज में आर्थिक न्याय के समर्थक हैं और गरीबी बेरोजगारी अभाव अन्याय और असंतोष को खत्म करना चाहते हैं उनके लिए बिहार का विधानसभा चुनाव बहुत बड़ा स्वर्ण अवसर हो सकता है। चुनावों के समय अगर सारे गरीब न्याय में विश्वास करने वाले लोग मुट्ठी भर अमीरों पर संपत्ति कर लगाकर और देश के हर नागरिक को लाभांश दिलाने के लिए अमीरी रेखा बनाने के लिए ही अपना वोट दें तो उसी के मानने वाले लोगों की सरकार बनेगी और वह गरीबी को खत्म करने के लिए अवश्य अमीरी रेखा बनाएगी।

सारे नागरिकों को यह बात गहराई से समझनी चाहिए की अलग-अलग मांगे उठाकर जानबूझकर सरकार ही समाज को टुकड़े-टुकड़े करने का षड्यंत्र करती है और शक्तिहीन या कमजोर समाज को सरकार आसानी से कुचल देती है।

लेकिन केवल एक मुद्दा अमीरी रेखा बनाए जाने पर पूरा समाज एकजुट होकर अमीरों पर कर लगाने की बात करेगा तो वही लोग चुनाव में जीतेंगे जो लोग अमीरी रेखा बनाने के समर्थक होंगे। लेकिन यह सब तभी होगा जब सब लोग सारे भेदभाव भूलकर अमीरी रेखा बनाने की मांग के समर्थकों को ही अपना वोट देंगे और भेज डालने वाले किसी भी धोखे को अनदेखा कर देंगे।

मैं खासकर यह बात जरूर बताना चाहता हूं कि जाति संप्रदाय गरीब अमीर युवा शक्ति नारी शक्ति के झूठे नारों से समाज को कुछ नहीं मिलेगा और वही मुट्ठी भर शोषक जनता को मूर्ख बना कर सत्ता पर बैठ जाएंगे और समाज में गरीबी नंगा नाच करती रहेगी।

लेकिन यदि सारे लोग अमीरी रेखा बनाने के लिए वोट देंगे और उसके अनुसार सरकार अमीरी रेखा का कानून बनाकर केवल मुट्ठी भर अमीरों पर संपत्ति कर लगाने के लिए बाध्य हो जाएगी तो उससे इतना टैक्स आएगा कि सरकार के बजट का खर्च काटकर देश के हर नागरिक को ₹10000 प्रतिमाह जिंदगी भर अर्थात जन्म से मृत्यु तक मिलता रहेगा और समाज में कोई किसी का शत्रु भी नहीं रहेगा।

आप इस बात पर जरूर विचार कीजिए के जब सारा समाज सर्वसम्मति से हर निर्णय लेने लगेगा तो समाज में कोई ना तो अपराध बचेगा और ना ही कोई असंतोष।

इसलिए अमीरी रेखा बनाने के लिए सब न्याय प्रिय लोगों को खुलकर अपने घरों से निकलना चाहिए और हर आदमी तक इस विचार को पहुंचाना चाहिए ताकि सब लोग असली समस्या को समझ सके और खुद ही उसका इलाज कर सकें जो केवल उनके वोट के द्वारा आसानी से हो सकता है।

Thursday, June 11, 2020

वर्तमान सत्तारूढ़ संघ समर्थित केंद्र सरकार ने बेशर्मी की हद पार करदी

वर्तमान सत्तारूढ़ संघ समर्थित केंद्र सरकार ने बेशर्मी की हद पार करदी - गुलाम मानसिक तौर पर बीमार जनता अपाहिज बानी उसे मूकदर्शक बानी देखती रही।

एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)

वाह ! कमाल है , केंद्र की सत्तारूढ़ मनुवादी संघी सरकार बिहार चुनाव प्रचार में बिहार के ग्रामीणों को अपने मन की बात सुनाने के लिए ग्रामीण क्षत्रों में 144 करोड़ रूपये की "एलईडी"  लगवा कर गृहमंत्री बिहार वासिओं को अपने मन की बात सूना जाते हैं और गुलाम मानसिक तौर पर बीमार जनता अपाहिज बानी उसे मूकदर्शक बानी सुनती और देखती रही। शायद अब भारत में लोक तंत्र की शक्ति क्षिन्न - भिन्न हो गयी है इसलिए जनता शायद अपनी औक़ात समझ चुकी है की भारत में अब 2000 साल पीछे का सामंतिओं का साशन काल दुबारा लौट आया हैं इस लिए चुप रहना मुनासिब है इसलिए की सीएए, एनआरसी, एनआरपी का विरोध करने वालों का का अंजाम भारत की आम जनता देख लिया है इस लिए अब शायद केंद्र सरकार के हर अत्यचार को सहना जनता की मजबूरी बन गई है।
      इसी लिए कोवित 19 कोरोना के आपदा काल के दौरान जब केंद्र सरकार ने अपनी जनता से कोविट 19 कोरोना वाइरस के भारत आगवन पर अपनी जनता से पहलीबार थाली और ताली बाजवा कर स्वागत करवाया था और जनता ने ना चाहते हुए बह भी हँसते हँसते हुये तालिया और थालियां बजाती रही ,   लॉकडाउन में फंसे परीशान गरीब मज़दूरों के लिए राशन , व अन्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए केंद्र सरकार के पास कोई पैसा नहीं था ? पैदल चलने के लिए मजबूर हुए परीशान गरीब मज़दूरों के लिए उनके घर तक पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार के पास न बस की सुविधा न रेल की सुविधा दिया, 8 दिनों तक गरीब मज़दूर महाराष्ट्र , गुजरात, कर्नाटका , आन्ध्राप्रदेश, तेलंगाना, जब तक          

Monday, June 8, 2020

भारत की गिरती आर्थिक दशा और दिशा पर एक संगोष्ठी

भारत की गिरती आर्थिक दशा और दिशा पर एक संगोष्ठी। 

एस.ज़ेड. मलिक(पत्रकार)
   इस वर्तमान सरकार के नयी व्यावस्था ने 30 करोड़ नयें बेरोज़गार और पैदा किया है - यदि मज़दूर अपने घर पर ही रुक जाए और स्वयं रोज़गार वहीँ पैदा करें तो पूंजीवादी घुटनों पर आ जाएंगे - कुमार प्रशांत।


  
नयी दिल्ली - पूर्वी दिल्ली के शकूरपुर  के स्कूल ब्लॉक अखंड हिंदुस्तान भवन लक्ष्मी नगर में भारत में गिरती आर्थिक दशा और दिशा पर एक संगोष्टी का आयोजन किया गया।  
 इस बैठ के अयोजक रोशन लाल अग्रवाल (चिंतक विश्लेषक लेखक आर्थिक न्याय ) ने भारत की गिरती अर्थ व्यवस्था और समाज में फैलते दुराग्रह पर अपनी चिंतन स्पष्ट करते हुए चर्चा  आरम्भ किया। उन्होंने वर्तमान सरकार की नीतिओं पर सवाल खड़ा करते हुए वर्तमान में  कोरोना काल में सरकार द्वारा लगाया गया अचानक से लोकडाउन के कारण समाज में उत्पन्न हुये भयावह स्थिति और देश में सारे व्यापार बंद होने कारण देश की अर्थ व्यावस्था पे इतना बुरा असर पड़ा की भारत की बढ़ती जीडीपी इतना निचे आ गया जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है और सरकार अपनी नाकमिओं को छुपाने के लिए समाज में दुर्भावनापूर्ण दुराग्रह की स्थिति उत्पन्न कर देश के विकास की गति को रोक दया। इससे स्पष्ट है की सरकार पूर्ण रूप से मुट्ठी भर पूँजीपतिओं के दबाओ में काम कर रही है।  
  गरीब मज़दूर भुखमरी के कगार पर आ गए , मज़दूर 2000 किमी सड़कों पर पैदल चलने पर मजबूर हो गये की कोरोना वाइरस से जितनी मौतें नहीं हुयी उससे कहीं अधिक भूक के कारण और अपने गांव की और भूके पैदल प्रवास करने में  थकान से मौतें हुयी जिसके कारण आज समाज में इतनी भयावह दुर्दशा उत्पन्न हो गयी है कि जहाँ एक ओर कुछ लोगों द्वारा समाज में एक समुदाय के प्रति नफरत प्रयोजित किया जा रहा है वहीँ दूसरी और 3 महीने नियमित लोकडाउन के कारण बेरोज़गारी इतनी बढ़ी गयी जिससे गांव में भी कमज़ोर आदमी अपने आपको अपाहिज महसूस कर रहा है तथा अन्य युवा वर्ग अपराध की और अग्रसर हो रहे हैं। अब सवाल है ऐसे आर्थिक मंदी के कारण उत्पन्न हुयी बेरोज़गारी से जिस प्रकार आम आदमी का जीवन अस्त व्यस्त हो रहा उनका फिर से सामान्य स्थिति में कैसे लाया जाए ताकि फिर से जन-जीवन सुचारु रूप से स्थायी और स्थिर हो सके। समाज में बढ़ते दुर्भावनाओ और दुराग्रह के परिपेक्ष्य में अमीरी -गरीबी में सामन्यजस्य्ता कैसे बनायी जाये ? जिससे गरीबों की गरीबी दूर हो और अमीर गरीबों को अपने बराबरी में स्थान दें ? 

इस अवसर पर समाज के बड़े बुद्धिजीवी निष्ठावान चिंतक एवं विश्लेषक श्री कुमार प्रशांत जी(अध्यक्ष-गांधी प्रतिष्ठान नई दिल्ली) श्री किरण त्यागी(अध्यक्ष अखंड हिन्दुस्तान संस्थान), डॉ0 मित्तल(वरिष्ठ समाज सेवी), शिवा कांत गोरखपुरी(वोटर पार्टी ऑफ़ इंडिया के कोर्डिनेटर एवं वरिष्ठ समाज) श्री हरेंद्र सूर्यवंशी(चिंतक एवं विचारक आर्थिक न्याय संस्थान) , प्रो0 डॉ0 धर्मवीर सिंह(उर्दू विभाग-अंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली), सैयद हसन अकबर,(चेयरमैन जनमानस सोसाइटी),एस. ज़ेड. मलिक(पत्रकार) विजय पांडे(युवा क्रांतिकारी समाज सेवक), सौरभ त्यागी(आईटी सेल आर्थिक न्याय संस्थान कोर्डिनेटर), गोपाल सिंह परिहार(समाज सेवी गौरक्षक दल एवं आर्थिक न्याय के समन्वयक) उपस्थित दर्ज कराते हुए रोशन लाल अग्रवाल के विश्लेषण पर अपने अपने विचार प्रस्तुत किया   । 

इस अवसर पर सैयद हसन अकबर(अध्यक्ष-जनमानस सोसाइटी) ने अग्रवाल जी के विश्लेषण का समर्थन करते हुए कहा कि कोरोना से उत्पन्न स्थिति से जहां एक एक समाज त्रस्त है वही समाज में कुछ लोगों द्वारा नफ़रत का वातावरण प्रयोजीत कर समाज मे बहुत भयानक स्थिति बना कर आपसी सौहार्द भाई चार खराब करने की कोशिश की है जिसे समय रहते यदि नहीं रोका गया तो इसका आगामी बहुत गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं हमे आर्थिक विषमता को समाप्त करने के साथ साथ नफ़रत के दुर्गामी परिणाम को भी ध्यान में रखते हुए ठोस क़दम उठाने होंगे हम सरकार से अधिक अपेक्षा नहीं कर सकते, हमें स्वयं ही अपने स्तर से समाज में समन्वय बनाने की कोशिश करनी होगी। 

वहीं उपस्थित, प्रोफेसर धर्मवीर सिंह(उर्दू विभाग अंबेडकर विश्वविधालय-दिल्ली)  ने कहा, कोरोना महामारी के कारण हुए लॉक डाउन में जहां बेरोज़गारी की भयानक स्थिति पैदा की वहीं प्रयोजित मीडिया और सोशल मीडिया ने भी समाज में आपसी सौहार्द में बहुत ही व्यवस्थापित तरीक़े से विष घोलने का काम किया जिसके कारण आज की तिथि में समाज दलित पिछड़ी, हिन्दू, मुसलमान का भेद - भाव सब से अधिक देखने को मिल रहा है, जो बेरोज़गारी से अधिक भयानक है,जिससे समाज का हर व्यक्ति एक दूसरे से सशंकित है।  यदि हमारे आपसी सौहार्द भाईचारा स्थापित रहेगा तो हम आसानी से एक दूसरे के सहयोग से बेरोज़गारी समाप्त कर सकते चाहे सरकार हमारी मदद करे या न करे - हमारे अंदर ऐसी ऊर्जा है जो समाज को सुंदर और स्वस्थ्य बना सकते हैं। बशर्ते की आपसी भेद भाव मिटा दें। 

     शिवा कांत गोरखपुरी(वोटर पार्टी ऑफ़ इंडिया के कोर्डिनेटर एवं वरिष्ठ समाज सेवी)  ने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा हम व्यवस्था परिवर्तन को बात करते है? और यह ज़रूरी भी  है लेकिन सवाल  कैसे ? क्या इसके लिये सभी संगठनों को एक प्लेटफार्म पर संगठित करना अनभव है , जब तक सभी समाजिक संगठन एक प्लेटफार्म पर एक मत हो कर नहीं आते सामाजिक या आर्थिक परिवर्तन असंभव है, मेरा मत है की इसके लिए मतदाताओं को अधिकार जिस प्रकार वोट देना का अधिकार सैंवधानिक है उसी प्रकार अपने क्षेत्र मे काम न करने वाले प्रतिनिधिओं को भी मतदाताओं को हटाने का अधिकार मिलना चाहिए। तथा सरकार यदि एक क़ानून बना कर वोटर्स के लिए एक भारतीय नागरिक होने नाते उसे 6000 रुपया प्रतिमाह   को भी वोटरशीप के रूप में सरकार अदा करे। जब जनता द्वारा चने हुए प्रतिनिधिओं को सरकार साड़ी सुविधा प्रदान करती है तो मतदाताओं को वोटरशिप अमाउंट क्यूँ नहीं ? परिवर्तन के लिए हमे इस पर वह आवाज़ उठाने की आवश्यकता है।
  
 सौरभ त्यागी - (युवा विचारक एवं आईटी सेल आर्थिक न्याय संस्थान) ने अग्रवाल जी के विचारों का समर्थन करते हुए कहा की यदि हमारा समाज गरीबो को बराबरी से जीने का अधिकार दे दे तो सरे झगड़े ही समाप्त हो जाते हैं लेकिन ऐसा संभव नहीं है इसके लिए हमे गरीबों को समाज में सम्मान से जीने के लिए उन्हें समाजिक संस्थायें को ही मदद के लिए आना होगा हमें ग्रासरूट समन्यव्य का कार्य करना होगा। 
   
श्री हरेंद्र सूर्यवंशी(चिंतक एवं विचारक आर्थिक न्याय संस्थान) - ने सभी विचारकों के विचारों का समर्थन करते हुए कहा की सबसे  बड़ा झगड़ा धन का है। जबकि हमारे देश में धन की कमी नहीं है केवल विचारों, व्यवस्था तथा ईमानदारी की कमी है। हमारे देश में आपार धन है जिसका इस्तेमाल करने का आम जनता को अधिकार नहीं है जनता को केवल देने का सांवैधानिक अधिकार दिया गया है लेने का नहीं।  जनता को जागरूक करने की आवश्यकता है इसके लिए हमे ग्रामीण क्षत्रों से ज़मीनी स्तर पर नियमित लगनपूर्वक कार्य करने  आवश्यकता है। सरकार हमारे वोटरशिप का गलत इस्तेमाल कर रही है जब कि वोटर शिप संवैधानिक एक पिलर मान कर जनता को उसका अधिकार मिलना चाहिये। 

श्री किरण त्यागी(अध्यक्ष अखंड हिन्दुस्तान संस्थान) ने कहा की जहां धन की कमी है वही व्यवहार और विचार तथा सभ्यता, संस्कार भारत से लुप्त सी होते जा रही है  आज आवश्यकता है भारत के विशेष कर ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा को प्राथमिकता देना जो हम नहीं दे पा रहे है परिणामस्वरूप, आज स्थिति अभावग्रस्त होने के कारण अपराधीकरण एक विकराल रूप धारण कर लिया है जिसे  इतना आसान नहीं है हमे सर्व प्रथम रोज़गार शिक्षा को प्राथमिकता देना होगा, इसके लिए हमें कोई ठोस क़दम उठाना होगा। हर काम सरकार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता।     
डॉ0 मित्तल(वरिष्ठ समाज सेवी), ने कहा की आज समाज से आर्थिक विषमता दूर होना चाहिए , उन्होंने कहा की करोना  को ले कर देश बहुत संकट में है। भुखमरी जैसी स्थितियाँ पैदा हुई है ,सरकार द्वारा सकल उत्पाद 20 लाख रु0 मुहैया कराएँ तो शायद गरीब मज़दूरों को राहत मिल की उम्मीद बन पायेगी और गरीब अपने क्षेत्र में ही उसे रोज़गार उत्पन्न कर  सकता है दूसरी और मेरा अंदाज़ है कि लगभग 30 करोड़ मज़दूर जो अपने घर वापस हुए है उन्हें सरकार मनरेगा की तर्ज़ दिहाड़ी दे कर रोज़गार मुहैया करा सकती है, तथा शहरों में भी ग्रामीण मनरेगा के तर्ज़ पर ही शहरी मनरेगा में रोज़गार गारंटी देना चाहिए। ताकि ऐसे आपदा के दौरान दिहाड़ी मज़दूरों को परेशानी का सामना न करना पड़े। इस समय स्थिति के अनुसार सरकार को चाहिए की हर व्यक्ति को काम की गारंटी दे और कम से कम 500 रू दिहाड़ी दी जिये। सरकार द्वारा प्रति व्यक्ति 2 लाख आये का साधन उपलब्ध कराना चाहिए तभी आम जनता की स्थिति में सुधार आ सकती है और 30 हज़ार महीने कीआमदनी वाले लोगों से प्रोपर्टी टेक्स वसूल किया जा सकता।  सरकार को इसके मुनाफे से सकल घरेलु उत्पाद  को बढ़ावा दे कर आर्थिक दिशा और दशा दोनों ही बदला जा सकता है। 
विजय पांडे(युवा क्रांतिकारी समाज सेवक) - ने अपना अनुभव के आधार पर बताया की इस समय गाँव और शहरों की स्थितियाँ अलग अलग हैं कोरोना काल के कारण छोटे और मंझोले किसानों की फसल, पर इतना बुरा असर पड़ा है की किसानो को आने वाले समय में बिना मदद के वह खेत को दुबारा जीवित कर ही नहीं सकते इस समय ग्रामीण क्षत्रों में छोटे और मंझोले किसानों जीवित रखने के लिए बिना ब्याज के सरकार उन्हें मदद करेगी तो तो ही वह जीवित रहते हुए दुबारा से अपने आपको मार्केट के योग बना सकते हैं। 
  
श्री कुमार प्रशांत जी(अध्यक्ष-गांधी प्रतिष्ठान नई दिल्ली) - ने सभी उपस्थिति विश्लेषकों के विचारों को सुनने के बाद कहा कहा ग़रीबी बढ़ी है और बढ़ेगी इस लिए की व्यवस्था बहुत ही कमज़ोर है इस कोरोना काल के महामारी में लॉक डाउन के दरमियान जो सरकार ने जो नयी व्यवस्था बनायी वह बहुत ही दयनीय और चिन्ताजनक  है।  सरकार के नए क़ानून ने भारत  की सम्पूर्ण व्यवस्था ही अस्त-व्यस्त कर दी लेकिन इनके हर नयी क़ानून से केवल और केवल गरीबों को ही मार पड़ा है ना की अन्य किसी विशेष लोगों को पूँजीपतिओं को इस समय भारत के सारे धन इकट्ठा करने को क़ानून के साथ अवसर दिया जा रहा है। जबकि इस वर्तमान सरकार दूसरे कार्यकाल ने अपने नए व्यावस्था में  30 करोड़ नयें बेरोज़गार और पैदा किया है। उन्होंने कहा की इस समय भारत  में दो प्रकार की शक्तियां काम कर रहीं हैं एक राजनितिक जिसकी बहुमत है दुसरा बड़े उधोगिक पूंजीपति ब्रोकर यही दो मिल कर सरकार चला रही है और जनता का ध्यान भटकाने के लिए सराकर अपने तीसरे  शक्ति का प्रयोग  करती है जिस समाज में न चाहते हुए भी नफरत लोग एक दूसरे से नफरत केर रहे है । और सरकार अपने सरकारी एजेंसीओ द्वारा कोरोना के चादर के नीचे राजनीति व्यवस्था तय कर रही  है।
 उन्होंने सुझाव देते हुए कहा की यदि इस समय जो मज़दूर अपने गांव चले गए हैं अब उन्हें शहर वापस ना आने दिया जाए तो फिर से गांव खुशहाल हो सकता है, गाँव मे ही अपनी नई व्यवस्था स्थापित कर सकते है, इसलिए की यही मज़दूर जब अपनी दिहाड़ी के लिए दूसरे के लिए उनकी नयी योजना को विकसित कर उन्हें उद्योग पति  योग बना देते हैं तो वही मज़दूर अपने राज्यों में अपने जिला में डीएम और उधोगिक आयुक्त के साथ मिल कर अपनी योजना क्यों नहीं सफल  कर सकते।  उन्हें तो केवल मार्गदर्शक की आवश्यकता है जो आप और हम कर सकते है हमे इस पहलु गंभीरता से विचार  कर  के अमल में लाना चाहिए इससे पूंजीवाद घुटनो के बल आ जाएंगे।  जिससे  सरकारी व्यवस्था ने गांव वापसी पर मजबूर कर दिया था  वही सरकार उनके पास चल कर गाँव मे आएगी और बाज़ार उनके पास चल कर उनके पास कदमो पर आएगा ? इस कोरोना काल में सरकार ने अपना हाँथ खड़ा कर लिया है। जबकि क्रोना क्या है - अभी एक भ्रम बना हुआ है। 



Saturday, June 6, 2020

AINA INDIA:   95 पर 5 प्रतिशत हावी ! भारत सरकार पर पूंजीवाद क़ब...

AINA INDIA:   95 पर 5 प्रतिशत हावी ! भारत सरकार पर पूंजीवाद क़ब...:   95 पर 5 प्रतिशत हावी ! भारत सरकार पर पूंजीवाद क़ब्ज़ा ?    भारत सरकार अबतक सम्पत्ति टेक्स भारतीय भू-स्वामिओ, और भू-माफियाओं से क्यूँ ...
  95 पर 5 प्रतिशत हावी ! भारत सरकार पर पूंजीवाद क़ब्ज़ा ?
  
भारत सरकार अबतक सम्पत्ति टेक्स भारतीय भू-स्वामिओ, और भू-माफियाओं से क्यूँ नही वसूल रही है ?. 

  इससे सरकार को कम से कम सम्पूर्ण भारत से 75प्रतिशत राजस्व प्राप्त होगा और सरकार के खज़ाना में इतना पैसा आ जायेगा कि सरकार अपना सारे बजट की पूर्ति करके भारत के प्रत्येक नागरिकों को बिना भेद भाव के10 हज़ार रुपया प्रति माह नागरिकता भत्ता के दे सकती है।   

एस.ज़ेड.मलिक(पत्रकार) 


  भारत के स्वतंत्रता के बाद से अब तक सरकार और सरकार में बैठे बड़े अधिकारी तथा प्रतिनिधियों का भू-स्वामिओ और भू-माफियाओं के साथ बड़ा ही कटु और घनिष्ट सम्बन्ध रहा है। जिसके कारण आज भारत मे गरीबी, और दिन प्रतिदिन बेरोज़गारी बढ़ती रही है। गोपनीयता के मज़बूत क़ानून के कारण आज हर करदाता रिटर्न गलत भरकर 90 प्रतिशत भारत का राजस्व बचा कर वह ऐश मौज करता है। 

 214 से अब तक भारत की आर्थिक दशा और दिशा दोनो का ही सर्वर डाउन चल रहा है नतीजा देश का ग्रोथ रेट यानी बढ़ता मूल्य घटे में यानी -3% निचले पायदान पर आ गया है। और वर्तमान सरकार इस कोरोना काल में अपने देश की जनता से ताली बाजवा रही तो कभी थाली बाजवा रही तो कभी टॉर्च जलवा रही है। सरकार अपने 5 प्रतिशत लोगों से अपनी बड़ाई के लिए प्रचार प्रसार करवग रही है। और यह 5%जनता बड़ी ही मुस्तैदी से भाजपा सरकार की वाहवाही कर रही है। इसलिये की सरकार इन्हें इनके अनुकूल सुख साधन मुहैया करा रही है।
 
 देश की जनता लग-भग 33 प्रतिशत बुद्धिमान, बुद्धिजीवी है, 65 प्रतिशत में 35 प्रतिशत अंधभक्त हैं और 15 प्रतिशत स्वार्थी, धर्म जाती के सौदागर जो सरकारी धन को अपने टीए/डीए पर खर्च करते हैं जैसे पासवान, अठावले, और अन्य दलित पिछड़ी जाती के ठेकेदार,नेतागण , तथा 15 प्रतिशत में 10 प्रतिशत भारत का ग्रोथ और भारत की अर्थ व्यावस्था पर कंट्रोल रखते हैं और मात्र 5 प्रतिशत लोग ही सरकार चलाते हैं और जो 95 प्रतिशत पर हावी हैं। अब रहा सवाल इसका समाधान क्या है ? तो मेरे पास कुछ वैचारिक और व्यावहारिक समाधान है - 1)- 1977 के जैसा एक आंदोलन "जिसका स्लोगन " मानुवादी सरकार भगाओ - देश बचाओ " 2)- जनता को गोपनीयता का क़ानून समाप्त करो, और पारदर्शिता का क़ानून बनाने के लिये आवाज़ उठाने होंगे, 3)- अब अमीरी रेखा बनाने की मांग करना होगा। अमीरी रेखा बनने के बाद ही देश का आर्थीक वजन बढ़ेगा, और दशा मज़बूत होगा और विकास की दिशा बदलेगी, अमीरी रेखा बनाने के बाद वर्तमान मूल्यों के तहत ढाई प्रतिशत के हिसाब से सरकार सम्पत्ति टैक्स वसूल करे देश का जीडीपी इतना बढ़ जाएगा कि विश्व भारत को विश्व गुरु मानने पर माजबूर हो जाएगा। पारदर्शिता का क़ानून बनने से भू-माफियाओं पे लगाम लगेगा, तथा अन्य निम्नवर्गीय एवं मध्यवर्गीय आयस्त्रोत के लोगों को अपने आवश्यकता अनुसार पर्याप्त धन अर्जित करने का अवसर मिलेगा। आवश्यकता से अधिक धन अर्जित करने का डर लोगों में आ जायेगा।
ज्ञात हो कि भारत मे इस समय मात्र 2 प्रतिशत लोगों का भारत की भूमि का एक तिहाई भाग पर क़ब्ज़ा है  जिसका राजस्व सरकार जानबूझ कर माफियाओं से नहीं लेते है या सरकार के पास उसका कोई लेखा जोखा ही नहीं है। इस समय भू-माफियों के पास बेनामी सम्पत्ति काफी है। जिसपर सरका का कोई पकड़ नहीं है। पारदर्शिता का कानीं बनने के बाद यह सारी गोपनीय सम्पत्ति सामने आ जायेगी जिससे जनता भी देख सकेगी और समय समय पर जनता का सहयोग सरकार को मिलता रहेगा। दूसरे टेक्स जो भारत का हर व्यापारी हो या अधिकारी, राष्ट्रपति हो या सर्वोच्च्य न्ययालय का सरवोच्च्य न्यायाधीश, या एक गांव का मुखिया सभी टेक्स चोरी करते है अपनी सम्पत्ति को छपाते है अपने आये को छुपाते है और कम से कम टेक्स भरते है। पारदर्शिता का क़ानून आने के बाद उनका टेक्स भी जनता के समक्ष होगा और जब भी कोई अपनी सम्पत्ति या आये छुपाने की कोशिश करेगा जनता ही सरकार को सहयोग कर छुपाने वालों का बेयोरा देगी। उसे ना चाहते हुए भी अपना सही रिटर्न भरना पड़ेगा । इससे सरकार को कम से कम सम्पूर्ण भारत से 75प्रतिशत राजस्व प्राप्त होगा और सरकार के खज़ाना में इतना पैसा आ जायेगा कि सरकार अपना सारे बजट की पूर्ति करके भारत के प्रत्येक नागरिकों को बिना भेद भाव के10 हज़ार रुपया प्रति माह नागरिकता भत्ता के दे सकती है।  यदि सरकार चाहे तो भारत तमाम छोटे व्यापारिओं का राजस्व समाप्त कर सकती है सरकार को इससे किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचेगा। दूसरे भारत जो पैसा के अभाव के कारण अपराध होते रहते हैं उसमे कमी आएगी।    

Saturday, May 30, 2020

गरीबी झेलकर, फुटपाथ पर पढ़कर हरियाणा की बेटी झारखंड में बनी जज

गरीबी झेलकर, फुटपाथ पर पढ़कर हरियाणा की बेटी झारखंड में बनी जज

Lucknow में Constable Father का बेटा बना SP, हिचक नहीं अब गर्व से करेंगे...

पानीपत: रूबी ने पूरे हरियाणा का नाम किया रोशन... जज की परीक्षा में हासिल...

Aakash नाम के इस बच्चे ने Pm Modi के बारे में ऐसी बात कही जो मोदीभक्त नह...

संघर्षों को ताक़त बनाकर पाई मंज़िल | Struggle To Success | Rashmi Ruby V...

Saumya Sharma Age, Biography, Wiki, Education, Family & More

Thursday, May 28, 2020

Saturday, May 9, 2020

भारत में हर जगह मुसलमानो को ही टारगेट क्यूँ किया जाता है ?

पर्दे केपीछे का सच ! भारत में हर जगह मुसलमानो को ही टारगेट क्यूँ  किया जाता है ?


वर्चस्व + अपराध + भृष्टचार = डर - भय = दलित - पिछड़ा, और मुसलमान ।

खरबूजा छुरी पर गिरे या छुरी खरबूजे पर गिरे - हर हाल में खरबूजा को ही काटना पड़ता है ।
इसी तरह हर हाल में नुक्सान हिंदुओ का ही है। 

एस. ज़ेड.मलिक(पत्रकार)

में बात शुरू करूँगा दंगा से , दंगा चाहे वह किसी भी प्रकार का हो, दंगा चाहे किसी भी समुदायें का हो, दंगा चाहे किसी भी धर्म मे हो, दंगा चाहे किसी भी जाति में हो, दंगा चाहे कोई करे, नुक्सान गरीब, मज़दूर, दलित, पीछड़ी जाती, एवं मुसलमानों  यानी कमज़ोर गरीब मध्य एवं निम्न वर्गीय आयस्रोत परिवार समाज के व्यक्तिओं , मानव अर्थात मानवता का ही हुआ है और होता रहेगा।

परन्तु सवाल यह है की आखिर ऐसे दंगे करवा कौन रहा है और करता कौन है ? इस से किसको लाभ मिल रहा है ? जो मानवता के बीच केवल और केवल नफरत फैला रहा है? और सबसे अधिक नफ़रत अशिक्षित और मध्यवर्गीय तथा पिछड़ी ,अन्य पिछड़ी दलित में ही क्युँ देखा जा रहा है ? जो सबसे अधिक द्वेष, दुराग्रह और दुर्भावनापूर्ण अपना जीवन व्यतीत करते है? कौन हैं ऐसे लोग?  क्या  नफरत फैलाने वाले मानोवादी, उन्मादी ब्राह्मण समाज के लोग ही  हैं ? जो अपना वर्चस्व को किसी भी रूप स्थापित रखना चाहते हैं? ऐसा नहीं है इसमें केवल ब्रह्मण ही नहीं हैं। मात्र 5 % मनुवादी उन्मादी 95 % पर हावी है। यह केवल भारत में नहीं है ,  चूंकि हम भारत में हैं और भारत में ही सम्पर्दायिक उन्मांद अधिक देखने को मिलता है जबकि भारत में सारे ब्रह्मण उन्मादी नहीं हैं। अधिकतर उदारवादी हैं। 

 लेकिन विश्व में मुसलमानो के प्रति नफरत देखने को मिलता है। जबकि सीरिया , पलिस्तीन , म्यांमार हो या बोसिनिया या चेचिनिया हो , बोसिनिया और चेचिनिया का मामला तो गरीबी और भुकमरी का था लेकिन पिलिस्तीन , सीरिया मयंमार में जितना भी मुसलमानों का नरसंहार हुआ अब तक कोई ऐसी मिसाल अब देखने को नहीं मिलती है की कही भी मुसलमानो ने किसी से बदला लिया हो या लेकि कोशिश कर रहे हैं - रही आतंकवादी की बात तो आतंकवादी प्रयोजित हैं, उन्हें सुनोयोजित साजिसज के तहत जगह जगह अलग अलग रूप ने प्रायोजित किया गया है। उसे चाहे अमेरिका करे या इसराइल करे या चीन व रूस करे।  मुसलमानों के नाम को इस्तेमाल रहा है। जहाँ तक मेरा अपना शोध है भारत में आतंकवादी शब्द की उत्पत्ति अंग्रेज़ों द्वारा 1935 से टेरोरिस्ट से आरम्भ किया गया था और उसके बाद उग्रवादी यह शब्द 70 की दशक से आरम्भ किया गया था। बहरहाल हमारा विषय यह नहीं है इन शब्दों में उलझ के रह जाएंगे असल मुद्दा नफरत का, नफरत फैलाने में किसका फायदा है ?    
  
मैं मनोवादी शब्द के बारे में थोड़ा प्रकाश डालना चाहूँगा मनोवादी अर्थात अपने मन की सोंच को दूसरों पर जबरन थोपने वाला मेरा शोध यही कहता है वैसे ब्रह्मणो को इस शब्द से भारी आपत्ति है वह इसलिए की उनका मानना है की नमोवाद, मनुमहाराज के माननेवालों को कहा जाता है। अन्य दूसरे ब्रह्मणों जो मनुस्मृति को मानने वाले हैं उनका का मानना है की मनुस्मृति को मानने वालों को कहते हैं। जब की ऐसा नहीं है मनोवादी अर्थात अपने मन की सोंच को दूसरों पर जबरन थोपने वाला या अपने मनमानी करने वाला, अपना वर्चस्व स्थापित रखने के लिए साम, दाम, दण्ड, भेद , की निति अपना कर सत्ता पर क़ब्ज़ा रहने वाला मेरा शोध यही तो कहता है, और क्या समझते हैं वह जाने।

 यह मनोवादी केवल भारत में ही नहीं न केवल हिन्दुओं में है बल्कि यह मनोवादी, विश्व के हर देश के हर कस्बे में हर जाती हर समुदाय में हर रूप हर वेश में हैं। जब की इनकी संख्या बहुत कम है, लेकिन संगठित हैं और उदारवादी सबसे बड़ी संख्या में होने बावजूद असंगठित हैं। मनोवादी अतिस्वार्थी सत्ताभोगी होने के कारण यह जहां भी है वहां यह शांत नहीं हैं और न किसी को शांत रहने देना चाहते हैं, उन्हें सब से अधिक विश्व में मुसलामानों से ही खतरा महसूस होता है, उहने ऐसा लगता है कि यदि भारत या विश्व मे कही भी मुसलमानों को दबाने में कामयाब हो जाते हैं तो विश्व मे हर जगह हम साशक हो सकेंगे । यह लोग कैसे है और कौन लोग हैं? इनका धंधा क्या है। थोड़ा ध्यान से इसे पढ़ें और मंथन करें । यह कुछ कारपोरेट लोग है जो आमने मनमर्ज़ी सरकार बनवाते हैं और वही परदे के पीछे से सरकार चलाते हैं तथा  भूमाफिया हैं जो विश्व के प्रकृतिक के संसाधनों हवा और पानी तथा सूर्य चंदमा का प्रकाश छोड़ कर सभी अन्य सम्पदा पर हर देश में हावी है यह अल्पसंख्यक हैं। 

 पहला- भारत मे मन्दिर माफिया अर्थात मन्दिर के व्यावस्थापक, दरगाह संचालक दूसरा- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्याज, का कारोबार करने वाले , तीसरा शराब एवं विभिन्न प्रकार के नशा के कारोबारी , और जूआ के व्यापारी जुया का अड्डा चलाने वाले , चौथा- हत्यार माफिया व्यापारी , और पांचवां बड़े पैमाने पर वैश्यावृत का धंधा करवाने वाले माफिया व्यापारी यह कोई भी हो सकते हैं।  लेकिन भारत में अपने आपको ब्रह्मण कहने वाले मंदिर के पुजारी व मंदिरों पर अपना वर्चस्व स्थापित रखने वाले मंदिर माफिया जिनका कारोबार परिवार ऐशो आराम दान के पैसों से चलता है। 

 और इस्लाम अर्थात इंसानियत - जो इन सभी बुराइयों से दूर रहने का सख्ती से आदेश देता है - इंसानियत अर्थात इस्लाम में इन बुराइयों की कोई जगह नहीं, और जो इस्लाम के फॉलोवर हैं जिन्होंने इन आदेशों को अपने जीवन पूर्णरूप से शामिल कर लिया और तमाम अच्छाइयों को साथ ले कर आदेशों का पालन करने वालों को मुसलमान कहा जाता है।  मुसलमान को इस्लाम अर्थात इंसानियत में उदारवादी बनने का सर्वप्रथम सीख दी गई है जहाँ भेद-भाव नाम की कोई चीज़ नहीं है और दूसरे-अपनी और समाज तथा राष्ट्र की रक्षा एवं दूसरों का संम्मान करने का हुक्म दिया गया है, सद्भावनापूर्ण जीवन व्यतीत करने तथा अन्य गरीब लाचार लोगों का सहयोग करने का हुक्म दिया गया है। 

मुसलमानो को अतिधन संचाईत करने का आदेश नहीं है अपने आवश्यकता अनुसार ही धन सम्पदा का प्रयोग/उपयोग करने का हुक्म है। इस्लाम अर्थात इंसानियत में द्वेष, दुराग्रह व भेद - भाव , ऊंच - नीच , अमीर - गरीब, छुआ - छूत नाम की कोई चीज़ नहीं है जिससे अन्य समुदाय इन कर्मो और गुणों से प्रभावित होते हैं और आकर्षित होते हैं वह स्वय ही इस्लाम की और खींचते चले आते हैं। एडी पूर्व जिसे हम यदि भारतीय भाषा में त्रेता काल कहेंगे तो सही होगा उस समय सभी इंसान तो थे लेकिन दो समुदाय में बंटे हुए थे एक यहूदी और दुसरा नसारा, उस समय धरती चार प्रांतों में बंटी हुयी थी पूरब-पश्चम और उत्तर-दक्षिण उस समय मुसलमान या इस्लाम का कोई जानने व मानने वाला नहीं था। तब एडी पूर्व अब्राहम का दौर आया और अब्राहम ने अपने समाज में इस्लाम की पहचान कराना आरम्भ कर दिया और अल्लाह , खोदा की पहचान समाज को बताने लगे यह एक गहरा अध्यन की आवश्यकता है।
 जो बातें अपने समाज में अब्राहम ने इस्लाम के बार में प्रचार किया वह बाते ऊपर बताचुका हूँ , जबकि अब्राहम स्वयं नसारा समुदाय से आते थे। और उस समय से नसारा हो या यहूदी सभी जादू टोना को अधिक तरजीह देते थे और अपना अपना अलग अलग खुदा बना कर उसकी पूजा करते थे और उसपर वह शातिर लोग अपना ईमान रखे या न रखें लेकिन उस समय भी अपने समाज को गुमराह करके गरीब और कमज़ोर और लाचो लोगों को अपना शिकार बनाते और समाज पर हावी रहते उस दौर में क़बीला का था प्रचलन था तब उस दौर में इब्राहिम ने उन जादूगरों पाखंड को उजागर करते हुए अंध विश्वाश से निकलने की सला देते और वह सूरज ,चाँद , तारे की मिसाल दे कर लोगों से पूछते की जिसे तुम खुदा मान रहे हो वह हमारे और तुम्हारे जैसा इनसान ही है जब इब्राहिम ने लोगो को बताया की सूरज चांद तारे धरती और आकाश के बीच में हवा तैरते रहते हैं वह एक दूसरे से कभी टकराते तक नहीं , सूरज और छान का प्रकाश कोई इंसान न तो बंद क्र सकता है और न उसे कोई छू सकता है - जब वह जादूगरों को चैलेंज करने लगे की सूरज को धरती  क्र दिखाओ तो समझे की तुम ही सच्चे खुदा हो , बहती हवा को रोक कर दिखाओ इब्राहिं की बातो से लोगो में दिव्या शक्ति पट पर विश्वास होने होने लगा और लोग धीरे धीरे जब इब्राहिम के अनुयायी बनने लगे तो जादूगरों और सरमायादारों सरदारों में बौखलाहट होने लगी - जब इब्राहिम ने लोगों को एहसास दिलाना आरम्भ किया की प्रकृतिक के संसाधनों पर वरवो साधारण हर जीव का बराबर का अधिकार है और इसका प्रयोग व उपयोग अपने आवश्यकता अनुसार ही व्यय करें तो लालची सरमायादारों और सरदारों तथा जादूगरों को बुरा लगने लगा इब्राहिम का विरोध और फिर शुरू हुयी साजिश , आज वही हो  रहा है। यह छोटा सा मैंने उदाहरण दिया है।            
 
अब ऐसी स्थिति में थोड़ा मंथन करें - इनसभी को यही लगता है, की इस्लाम को मानने वाले केवल मुसलमान ही एक ऐसा समुदाये है जिसके कारण ब्याज, मन्दिर, शराब, फैशन, हत्यार,वैश्याविर्त के धंधे आने वाले समय मे बन्द हो जाएंगे। बड़ी तेजी से आज इंसान इस्लाम अर्थात इंसानियत को अपना रहा है । इसलिये की 70% व्यक्ति शांति सद्भवना सौहार्दपूर्ण वातावरण चाहत चाहता और इसी चाह में लोग धीरे धीरे जो इस्लाम और मुसलमानों को समझने लगे उन्होंने ने ईमान अर्थात मुस्लमानियत व इस्लाम को अपना रहे है और अपनाया ।

 ऐसी स्थिति में  इन कॉर्पोरेटरों को आभास होने लगा कि यदि लोगों ने इस्लाम अर्थात इंसानियत अपना कर मुसलमान बन गए तो बहुत जल्द ही यह ऐसे धंधे बन्द हो जाएंगे। और हम सड़कों पर आ जाएंगे मुसलमानो की हुकूमत हो जाएगी फिर हम गुलाम हो जाएंगे ऐसी धारणा इन मनोवादिओं अपने अंदर पाल राखी है और अपने नस्लों को यही सीख देते हैं और अन्य समुदायों को गुमराह करते रहते हैं। इसके लिये इन्होंने मुसलमानों को कहीं, गुसपैठिया , तो कहीं आतंकवादी, तो कहीं अन्य प्रकार से बदनाम करना आरम्भ कर दिया तथा उनके विकास एवं शिक्षा तथा आर्थिक दृष्टिकोण से कमज़ोर करने की कोशिश करते रहे और आज भी कर रहे हैं। मुसलमानों को बर्बाद करने का काम यह केवल भारत मे नहीं है बल्कि सम्पूर्ण विश्व मे बड़े उच्च स्तर पर किया जा रहा है। 

यदि भारत के स्थानीय अपराध का आंकड़ा देखेंगे तो भारत मे अन्य देशों की तुलना में अपराध तीन गुना अधिक केवल हिन्दू समुदाये में हो रहा है। बावजूद इसके मुसलमानों के विरुद्ध एक माहौल तैयार कर सरकार अपनी नाकामी और बदनामी छुपाने के लिए मुसलमानो को टारगेट कर के भारत में इनदिनों हिंदुत्व को बढ़ावा दिया जा रहा है और सरकार हिंदुत्व को प्रोत्साहित कर बढावा दे रही है कि यह लोग हिन्दू के नाम पर मुसलमानो पर हावी रहें और मनोवादी सत्ता पर क़ाबिज़ रहें तथा कॉरपोरेटों का धंधा चलता रहे। जबकि हमारे भारत में आम साधारण हिन्दुओ और मुसलामानों में कोई आपसी रंजिश है न कोई द्वेष , आपसी सौहार्द और सद्भावना आज भी स्थापित है और रहेगा , हाँ एक बात जो अब देखने को मिल रही है वह की पहले अच्छे लोग संगठित रहते थे परन्तु आज बुरे लोग संगठित हो चुके हैं। 

अब रही बात भारत में हिन्दुओं के नुक्सान की, तो भारत में बड़े व्यापारी कौन, हिन्दू , बड़े उद्योग धंदे वाले कौन , तो हिन्दू , बीफ के बड़े व्यापारी कौन तो हिन्दू , यदि सम्पूर्ण भारत में सम्पर्दायिक दंगा होता है तो इन बड़े उद्योग और व्यापारिओं का भारी नुक्सान होता है।  जिसका असर आम हिन्दू समुदाय पर सीधे सीधे असर पड़ता है। यदि स्थानीय छोटे मोटे शहर या बड़े नगरों में होता है तो बड़े उद्योग एवं व्यापारिओं को इतना नुक्सान नहीं होता है जितना के मंझोले और छोटे व्यापारिओं को।  इसलिए आज कल इन लोगों ने सम्पर्दायिक दंगा कराने का ट्रेंड बदल दिया है, वह यह की शहरों नगरों और अन्य कस्बों में छोटा मोटा दंगा एवं मोब्लिचिंचिंग करवा मुसलमानों डरा कर उन पर वर्चस्व स्थापित रखना जैसे अभी हाल फिलहाल सी ए ए , एनआरपी , एनआरसी का क़ानून बना कर भारतीय मुसलमानो में इतना खौफ भर दिया की महीनो तक मुसलमान सड़कों पर धरना दे कर बैठ गए और सरकार ने उनको बारी बारी से गिरफ्तार करती रही और अपने गुंडों से प्रदर्शनकारिओं पर गोलियां चलवा कर मुसलमानो में डर और हिंदुत्व पर कार्रवाई न करके उनको बढ़ावा देने का काम किया। दूसरी और भारत सरकार ने साबित कर दिया की अब भारत में हिंदुत्व की सरकार होगी और हिन्दुतवों का वर्चस्व रहेगा। लेकिन इससे आम मंझोले हिन्दू व्यापारिओं का काफी बड़ा नुक्सान हुआ जिसकी भरपाई न तो सरकार कर पाएगी और न स्वयं व्यापारी 20 वर्षों में कर पाएंगे।       

जबकी, इत्तिहास साक्षी है जब से सृष्टि बनी है और मुसलमान स्तित्व में आये मुसलमानों कभी भी हुकूमत पाने बनाने के लिए कहीं भी, कभी भी जंग नहीं किया।  वह हमेशा  संसार को अल्लाह की पहचान और उसकी शक्ति का एहसास ही दिलाते रहे। चाहे वह अब्राहम,इस्माइल, इस्हाक़ , याक़ूब , दाऊद, नूह,एवं और बहुत सेे खुदा ने अपने दूत को सांसर मेंं    में भेजा लेकिन किसी को भी तकरने वालों को उस समय जैसे फिरौन हो या शद्दाद हो नमरूद हो, या क़ारून या यज़ीद हो उस कार्यकाल में भी यही लोग मनोवादी थे और इन्ही साशकों को भी यही भये सताता था की मेरी क़ौम यानी मेरी प्रजा यदि मुसलमान हो जाएगी तो मेरी गुलामी कौन करेगा इसलिए की इस्लाम में बराबरी का दर्जा दिया गया है और बराबरी में कोई किसी का नौकर या मालिक नहीं होता यदि होता है तो केवल सभ्यता संस्कार और पेम-भाव , आपसी सद्भावना और एक दूसरे को सहयोग तो फिर कौन किसका गुलाम और कौन किसका मालिक।

 इस्लाम में सबसे पहले शिक्षा को तरजीह दी गयी है, और एक दूसरे को सहयोग तथा नि:स्वार्थ भाव सेवा की तरजीह दी गयी है। गरीबो कमज़ोरों असहाये अबलाओं के साथ प्यार से सद्भावनापूर्ण हर प्रकार से सहयोग करना ताकि उन्हें अपने को छोटा और असहाये होने का एहसास न हो, जबकि मनोवादि प्रसाशकों का इसके विपरीत प्रावधान है वह गरीबो ,असाहयों, तथा अबलाओं पर ही अत्यचार कर उन्हें डरा धमका कर उनसे अपना इच्छाअनुसार काम लेते हैं और अपना गुलाम बनाये रखना चाहते है।  इस्लाम में इन प्रावधानों का सख्ती से मनाही है। तो ऐसे लोगों को इस्लाम अर्थात इंसानियत व मुसलमानो से नफरत नहीं होगा तो और क्या होगा।  इसी लिए यह मनोवादी मानसिकता के लोग मुसलमानों को दबाने के लिए इस्लाम और मुसलमानो के विरुद्ध दृश्य प्रचार तथा अन्य समुदायों को उनके विरुद्ध भड़का कर मुसलमानो से लड़वाना मुसलमानो की हत्या करवाना मुसलामानों के साथ दंगा करवाना और फिर उन समुदाओं को मुक़दमा फंसाना और उनहे अपना और सरका का हितैषी तथा देश भक्त कह कर उन्हें मुक़दमा से बरी कर उनपर अपना एहसान थोप कर उन्हें अपना मानसिकरूप से गुलाम बना लेना, यही इनकी निति और प्रावधान है।  
यह भी इत्तिहास साक्षी है जहां कही भी दंगा हुया और मुसलामानों का चाहे जितना भी जानी माली नुक्सान हुआ हो मुसलामानों ने कभी भी बदला लेने की कोशिश नहीं की बल्कि मनुवादी सरकार से ही न्याय की उम्मीद रखे प्रतीक्षा करते अपनी उम्र निकाल देते हैं। यह एक कड़वा सच है।    

Friday, May 8, 2020

मुसलमानों से डर किसको और क्यों ?

सम्पूर्ण विश्व मुसलमानों से क्यूँ  डर  रहा है ? 


वर्चस्व + अपराध + भृष्टचार = डर - भय = दलित - पिछड़ा, और मुसलमान ।
खरबूजा छुरी पर गिरे या छुरी खरबूजे पर गिरे - हर हाल में खरबूजा को ही काटना पड़ता है ।
इसी तरह हर हाल में नुक्सान हिंदुओ का ही है। 

एस. ज़ेड.मलिक(पत्रकार)

मैं बात शुरू करूँगा भारत के हिन्दू मुसलमान के आपसी सौहार्द से तो भारत में आम साधारण हिन्दू और मुसलमान में आपसी ताल-मेल आज भी इतना अच्छा है की दोनों समुदाय एक दूसरे के बिना अधूरे से लगते हैं और आज भी हिन्दू मुसलमानो  के संरक्षक हैं।  लेकिन कुछ लोगों द्वारा अपने निजी स्वार्थ के कारण जो सुन्योजित दंगे कराये जा रहे हैं उसमे जहां गरीब पिछड़ी और दलित जाती एवं मुसलमानों का चाहे जानी माली नुक्सान जितना भी हुया हो लेकिन बड़ा नुक्सान हिन्दुओं का ही हुआ है।

दंगा चाहे वह किसी भी प्रकार का हो, दंगा चाहे किसी भी समुदायें का हो, दंगा चाहे किसी भी धर्म मे हो, दंगा चाहे किसी भी जाति में हो, दंगा चाहे कोई करे, नुक्सान गरीब, मज़दूर, दलित, पीछड़ी जाती, एवं मुसलमानों  यानी कमज़ोर गरीब मध्य एवं निम्न वर्गीय आयस्रोत परिवार समाज के व्यक्तिओं , मानव अर्थात मानवता का ही हुआ है और होता रहेगा।

परन्तु सवाल यह है की आखिर ऐसे दंगे करवा कौन रहा है और करता कौन है ? इस से किसको लाभ मिल रहा है ? जो मानवता के बीच केवल और केवल नफरत फैला रहा है? और सबसे अधिक नफ़रत अशिक्षित और मध्यवर्गीय तथा पिछड़ी , अन्य पिछड़ी दलित में ही क्युँ देखा जा  रहा है ? जिनके अंदर सबसे अधिक द्वेष, दुराग्रह और दुर्भावनापूर्ण अपना जीवन व्यतीत करते है, कौन हैं ऐसे लोग?  क्या  नफरत फैलाने वाले मानोवादी, उन्मादी ब्राह्मण समाज के लोग हैं ? जो अपना वर्चस्व किसी भी रूप स्थापित रखना चाहते हैं, ऐसा नहीं है इसमें केवल ब्रह्मण ही नहीं हैं चूंकि हम भारत में हैं और भारत में ही सम्पर्दायिक उन्मांद अधिक देखने को मिलता है भारत में सारे ब्रह्मण उन्मादी नहीं हैं।

मैं मनोवादी शब्द के बारे में थोड़ा प्रकाश डालना चाहूँगा मनोवादी अर्थात अपने मन की सोंच को दूसरों पर जबरन थोपने वाला मेरा शोध यही कहता है वैसे ब्रह्मणो को इस शब्द से भारी आपत्ति है वह इसलिए की उनका मानना है की नमोवाद, मनुमहाराज के माननेवालों को कहा जाता है। 

अन्य दूसरे ब्रह्मणों जो मनुस्मृति को मानने वाले हैं उनका का मानना है की मनुस्मृति को मानने वालों को कहते हैं। जब की ऐसा नहीं है मनोवादी अर्थात अपने मन की सोंच को दूसरों पर जबरन थोपने वाला या अपने मनमानी करने वाला, अपना वर्चस्व स्थापित रखने के लिए साम, दाम, दण्ड, भेद , की निति अपना कर सत्ता पर क़ब्ज़ा रहने वाला मेरा शोध यही तो कहता है, और क्या समझते हैं वह जाने।

 यह मनोवादी केवल भारत में ही नहीं न केवल हिन्दुओं में है बल्कि यह मनोवादी, विश्व के हर देश के हर कस्बे में हर जाती हर समुदाय में हैं। जब की इनकी संख्या बहुत कम है, परन्तु अतिस्वार्थी सत्ताभोगी होने के कारण यह जहां भी है वहां यह शांत नहीं हैं और न किसी को शांत रहने देना चाहते हैं, उन्हें सब से अधिक विश्व में मुसलामानों से ही खतरा महसूस होता है, उहने ऐसा लगता है कि यदि भारत या विश्व मे कही भी मुसलमानों को दबाने में कामयाब हो जाते हैं तो विश्व मे हर जगह हम साशक हो सकेंगे । यह लोग कैसे है और कौन लोग हैं? इनका धंधा क्या है। थोड़ा ध्यान से इसे पढ़ें और मंथन करें ।

 पहला- भारत मे मन्दिर माफिया अर्थात मन्दिर के व्यावस्थापक, दरगाह संचालक दूसरा- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्याज, का कारोबार करने वाले , तीसरा शराब एवं विभिन्न प्रकार के नशा के कारोबारी , और जूआ के व्यापारी जुया का अड्डा चलाने वाले , चौथा- हत्यार माफिया व्यापारी , और पांचवां बड़े पैमाने पर वैश्यावृत का धंधा करवाने वाले माफिया व्यापारी यह कोई भी हो सकते हैं।  लेकिन भारत में अपने आपको ब्रह्मण कहने वाले मंदिर के पुजारी व मंदिरों पर अपना वर्चस्व स्थापित रखने वाले मंदिर माफिया जिनका कारोबार परिवार ऐशो आराम दान के पैसों से चलता है। 

 और इस्लाम अर्थात इंसानियत - जो इन सभी बुराइयों से दूर रहने का सख्ती से आदेश देता है - इंसानियत अर्थात इस्लाम में इन बुराइयों की कोई जगह नहीं, और जो इस्लाम के फॉलोवर हैं जिन्होंने इन आदेशों को अपने जीवन पूर्णरूप से शामिल कर लिया और तमाम अच्छाइयों को साथ ले कर आदेशों का पालन करने वालों को मुसलमान कहा जाता है।  मुसलमान को इस्लाम अर्थात इंसानियत में उदारवादी बनने का सर्वप्रथम सीख दी गई है जहाँ भेद-भाव नाम की कोई चीज़ नहीं है और दूसरे-अपनी और समाज तथा राष्ट्र की रक्षा एवं दूसरों का संम्मान करने का हुक्म दिया गया है, सद्भावनापूर्ण जीवन व्यतीत करने तथा अन्य गरीब लाचार लोगों का सहयोग करने का हुक्म दिया गया है।

मुसलमानो को अतिधन संचाईत करने का आदेश नहीं है अपने आवश्यकता अनुसार ही धन सम्पदा का प्रयोग/उपयोग करने का हुक्म है। इस्लाम अर्थात इंसानियत में द्वेष, दुराग्रह व भेद - भाव , ऊंच - नीच , अमीर - गरीब, छुआ - छूत नाम की कोई चीज़ नहीं है जिससे अन्य समुदाय इन कर्मो और गुणों से प्रभावित होते हैं और आकर्षित होते हैं वह स्वय ही इस्लाम की और खींचते चले आते हैं।

 एडी पूर्व जिसे हम यदि भारतीय भाषा में त्रेता काल कहेंगे तो सही होगा उस समय सभी इंसान तो थे लेकिन दो समुदाय में बंटे हुए थे एक यहूदी और दुसरा नसारा, उस समय धरती चार प्रांतों में बंटी हुयी थी पूरब-पश्चम और उत्तर-दक्षिण उस समय मुसलमान या इस्लाम का कोई जानने व मानने वाला नहीं था। तब एडी पूर्व अब्राहम का दौर आया और अब्राहम ने अपने समाज में इस्लाम की पहचान कराना आरम्भ कर दिया और अल्लाह , खोदा की पहचान समाज को बताने लगे यह एक गहरा अध्यन की आवश्यकता है। जो बातें अपने समाज में अब्राहम ने इस्लाम के बार में प्रचार किया वह बाते ऊपर बताचुका हूँ , जबकि अब्राहम स्वयं नसारा समुदाय से आते थे।   
अब ऐसी स्थिति में थोड़ा मंथन करें - इनसभी को यही लगता है, की इस्लाम को मानने वाले केवल मुसलमान ही एक ऐसा समुदाये है जिसके कारण ब्याज, मन्दिर, शराब, फैशन, हत्यार,वैश्याविर्त के धंधे आने वाले समय मे बन्द हो जाएंगे। बड़ी तेजी से आज इंसान इस्लाम अर्थात इंसानियत को अपना रहा है । इसलिये की 70% व्यक्ति शांति सद्भवना सौहार्दपूर्ण वातावरण चाहत चाहता और इसी चाह में लोग धीरे धीरे जो इस्लाम और मुसलमानों को समझने लगे उन्होंने ने ईमान अर्थात मुस्लमानियत व इस्लाम को अपना रहे है और अपनाया । ऐसी स्थिति में  इन कॉर्पोरेटरों को आभास होने लगा कि यदि लोगों ने इस्लाम अर्थात इंसानियत अपना कर मुसलमान बन गए तो बहुत जल्द ही यह ऐसे धंधे बन्द हो जाएंगे। और हम सड़कों पर आ जाएंगे मुसलमानो की हुकूमत हो जाएगी फिर हम गुलाम हो जाएंगे ऐसी धारणा इन मनोवादिओं अपने अंदर पाल राखी है और अपने नस्लों को यही सीख देते हैं और अन्य समुदायों को गुमराह करते रहते हैं। इसके लिये इन्होंने मुसलमानों को कहीं, गुसपैठिया , तो कहीं आतंकवादी, तो कहीं अन्य प्रकार से बदनाम करना आरम्भ कर दिया तथा उनके विकास एवं शिक्षा तथा आर्थिक दृष्टिकोण से कमज़ोर करने की कोशिश करते रहे और आज भी कर रहे हैं। मुसलमानों को बर्बाद करने का काम यह केवल भारत मे नहीं है बल्कि सम्पूर्ण विश्व मे बड़े उच्च स्तर पर किया जा रहा है।

यदि स्थानीय अपराध का रेशिओं देखेंगे तो भारत मे अन्य देशों की तुलना में अपराध तीन गुना अधिक केवल हिन्दू समुदाये में हो रहा है। बावजूद इसके मुसलमानों के विरुद्ध एक माहौल तैयार कर सरकार अपनी नाकामी और बदनामी छुपाने के लिए मुसलमानो को टारगेट कर के भारत में इनदिनों हिंदुत्व को बढ़ावा दिया जा रहा है और सरकार हिंदुत्व को प्रोत्साहित कर बढावा दे रही है कि यह लोग हिन्दू के नाम पर मुसलमानो पर हावी रहें और मनोवादी सत्ता पर क़ाबिज़ रहें तथा कॉरपोरेटों का धंधा चलता रहे। जबकि हमारे भारत में आम साधारण हिन्दुओ और मुसलामानों में कोई आपसी रंजिश है न कोई द्वेष , आपसी सौहार्द और सद्भावना आज भी स्थापित है और रहेगा , हाँ एक बात जो अब देखने को मिल रही है वह की पहले अच्छे लोग संगठित रहते थे परन्तु आज बुरे लोग संगठित हो चुके हैं। 

अब रही बात भारत में हिन्दुओं के नुक्सान की, तो भारत में बड़े व्यापारी कौन, हिन्दू , बड़े उद्योग धंदे वाले कौन , तो हिन्दू , बीफ के बड़े व्यापारी कौन तो हिन्दू , यदि सम्पूर्ण भारत में सम्पर्दायिक दंगा होता है तो इन बड़े उद्योग और व्यापारिओं का भारी नुक्सान होता है।  जिसका असर आम हिन्दू समुदाय पर सीधे सीधे असर पड़ता है। यदि स्थानीय छोटे मोटे शहर या बड़े नगरों में होता है तो बड़े उद्योग एवं व्यापारिओं को इतना नुक्सान नहीं होता है जितना के मंझोले और छोटे व्यापारिओं को।  इसलिए आज कल इन लोगों ने सम्पर्दायिक दंगा कराने का ट्रेंड बदल दिया है, वह यह की शहरों नगरों और अन्य कस्बों में छोटा मोटा दंगा एवं मोब्लिचिंचिंग करवा मुसलमानों डरा कर उन पर वर्चस्व स्थापित रखना जैसे अभी हाल फिलहाल सी ए ए , एनआरपी , एनआरसी का क़ानून बना कर भारतीय मुसलमानो में इतना खौफ भर दिया की महीनो तक मुसलमान सड़कों पर धरना दे कर बैठ गए और सरकार ने उनको बारी बारी से गिरफ्तार करती रही और अपने गुंडों से प्रदर्शनकारिओं पर गोलियां चलवा कर मुसलमानो में डर और हिंदुत्व पर कार्रवाई न करके उनको बढ़ावा देने का काम किया। दूसरी और भारत सरकार ने साबित क्र दिया की अब भारत में हिंदुत्व की सरकार होगी और हिन्दुतवों का वर्चस्व रहेगा। लेकिन इससे आम मंझोले हिन्दू व्यापारिओं का काफी बड़ा नुक्सान हुआ जिसकी भरपाई न तो सरकार कर पाएगी और न स्वयं व्यापारी 20 वर्षों में कर पाएंगे।       

जबकी, इत्तिहास साक्षी है जब से सृष्टि बनी है और मुसलमान स्तित्व में आये मुसलमानों कभी भी हुकूमत पाने बनाने के लिए कहीं भी, कभी भी जंग नहीं किया।  वह हमेशा  संसार को अल्लाह की पहचान और उसकी शक्ति का एहसास ही दिलाते रहे। चाहे वह अब्राहम,इस्माइल, इस्हाक़ , याक़ूब , दाऊद, नूह, हाँ , हुकूमत करने वालों को उस समय जैसे फिरौन हो या शद्दाद हो नमरूद हो, या क़ारून या यज़ीद हो उस कार्यकाल में भी यही लोग मनोवादी थे और इन्ही साशकों को भी यही भये सताता था की मेरी क़ौम यानी मेरी प्रजा यदि मुसलमान हो जाएगी तो मेरी गुलामी कौन करेगा इसलिए की इस्लाम में बराबरी का दर्जा दिया गया है और बराबरी में कोई किसी का नौकर या मालिक नहीं होता यदि होता है तो केवल सभ्यता संस्कार और पेम-भाव , आपसी सद्भावना और एक दूसरे को सहयोग तो फिर कौन किसका गुलाम और कौन किसका मालिक।

 इस्लाम में सबसे पहले शिक्षा को तरजीह दी गयी है, और एक दूसरे को सहयोग तथा नि:स्वार्थ भाव सेवा की तरजीह दी गयी है। गरीबो कमज़ोरों असहाये अबलाओं के साथ प्यार से सद्भावनापूर्ण हर प्रकार से सहयोग करना ताकि उन्हें अपने को छोटा और असहाये होने का एहसास न हो, जबकि मनोवादि प्रसाशकों का इसके विपरीत प्रावधान है वह गरीबो ,असाहयों, तथा अबलाओं पर ही अत्यचार कर उन्हें डरा धमका कर उनसे अपना इच्छाअनुसार काम लेते हैं और अपना गुलाम बनाये रखना चाहते है।  इस्लाम में इन प्रावधानों का सख्ती से मनाही है। तो ऐसे लोगों को इस्लाम अर्थात इंसानियत व मुसलमानो से नफरत नहीं होगा तो और क्या होगा।  इसी लिए यह मनोवादी मानसिकता के लोग मुसलमानों को दबाने के लिए इस्लाम और मुसलमानो के विरुद्ध दृश्य प्रचार तथा अन्य समुदायों को उनके विरुद्ध भड़का कर मुसलमानो से लड़वाना मुसलमानो की हत्या करवाना मुसलामानों के साथ दंगा करवाना और फिर उन समुदाओं को मुक़दमा फंसाना और उनहे अपना और सरका का हितैषी तथा देश भक्त कह कर उन्हें मुक़दमा से बरी कर उनपर अपना एहसान थोप कर उन्हें अपना मानसिकरूप से गुलाम बना लेना, यही इनकी निति और प्रावधान है।  
यह भी इत्तिहास साक्षी है जहां कही भी दंगा हुया और मुसलामानों का चाहे जितना भी जानी माली नुक्सान हुआ हो मुसलामानों ने कभी भी बदला लेने की कोशिश नहीं की बल्कि मनुवादी सरकार से ही न्याय की उम्मीद रखे प्रतीक्षा करते अपनी उम्र निकाल देते हैं। यह एक कड़वा सच है।    

मुसलमानों से डर किसको और क्यों ?

मुसलमानों से डर किसको और क्यों ? 

वर्चस्व + अपराध + भृष्टचार = डर - भय = दलित - पिछड़ा, और मुसलमान ।
खरबूजा छुरी पर गिरे या छुरी खरबूजे पर गिरे - हर हाल में खरबूजा को ही काटना पड़ता है ।
इसी तरह हर हाल में नुक्सान हिंदुओ का ही है। 

एस. ज़ेड.मलिक(पत्रकार)

में बात शुरू करूँगा दंगा से , दंगा चाहे वह किसी भी प्रकार का हो, दंगा चाहे किसी भी समुदायें का हो, दंगा चाहे किसी भी धर्म मे हो, दंगा चाहे किसी भी जाति में हो, दंगा चाहे कोई करे, नुक्सान गरीब, मज़दूर, दलित, पीछड़ी जाती, एवं मुसलमानों  यानी कमज़ोर गरीब मध्य एवं निम्न वर्गीय आयस्रोत परिवार समाज के व्यक्तिओं , मानव अर्थात मानवता का ही हुआ है और होता रहेगा।
परन्तु सवाल यह है की आखिर ऐसे दंगे करवा कौन रहा है और करता कौन है ? इस से किसको लाभ मिल रहा है ? जो मानवता के बीच केवल और केवल नफरत फैला रहा है? और सबसे अधिक नफ़रत अशिक्षित और मध्यवर्गीय तथा पिछड़ी , अन्य पिछड़ी दलित में ही क्युँ देखा जा  रहा है ? जिनके अंदर सबसे अधिक द्वेष, दुराग्रह और दुर्भावनापूर्ण अपना जीवन व्यतीत करते है, कौन हैं ऐसे लोग?  क्या  नफरत फैलाने वाले मानोवादी, उन्मादी ब्राह्मण समाज के लोग हैं ? जो अपना वर्चस्व किसी भी रूप स्थापित रखना चाहते हैं, ऐसा नहीं है इसमें केवल ब्रह्मण ही नहीं हैं चूंकि हम भारत में हैं और भारत में ही सम्पर्दायिक उन्मांद अधिक देखने को मिलता है भारत में सारे ब्रह्मण उन्मादी नहीं हैं।  
मैं मनोवादी शब्द के बारे में थोड़ा प्रकाश डालना चाहूँगा मनोवादी अर्थात अपने मन की सोंच को दूसरों पर जबरन थोपने वाला मेरा शोध यही कहता है वैसे ब्रह्मणो को इस शब्द से भारी आपत्ति है वह इसलिए की उनका मानना है की नमोवाद, मनुमहाराज के माननेवालों को कहा जाता है। 
अन्य दूसरे ब्रह्मणों जो मनुस्मृति को मानने वाले हैं उनका का मानना है की मनुस्मृति को मानने वालों को कहते हैं। जब की ऐसा नहीं है मनोवादी अर्थात अपने मन की सोंच को दूसरों पर जबरन थोपने वाला या अपने मनमानी करने वाला, अपना वर्चस्व स्थापित रखने के लिए साम, दाम, दण्ड, भेद , की निति अपना कर सत्ता पर क़ब्ज़ा रहने वाला मेरा शोध यही तो कहता है। और क्या समझते हैं वह जाने। यह मनोवादी केवल भारत में ही नहीं न केवल हिन्दुओं में है बल्कि यह मनोवादी, विश्व के हर देश के हर कस्बे में हर जाती हर समुदाय में हैं। जब की इनकी संख्या बहुत कम है, परन्तु अतिस्वार्थी सत्ताभोगी होने के कारण यह जहां भी है वहां यह शांत नहीं हैं और न किसी को शांत रहने देना चाहते हैं, उन्हें सब से अधिक विश्व में मुसलामानों से ही खतरा महसूस होता है, उहने ऐसा लगता है कि यदि भारत या विश्व मे कही भी मुसलमानों को दबाने में कामयाब हो जाते हैं तो विश्व मे हर जगह हम साशक हो सकेंगे । यह लोग कैसे है और कौन लोग हैं? इनका धंधा क्या है। थोड़ा ध्यान से इसे पढ़ें और मंथन करें ।

 पहला- भारत मे मन्दिर माफिया अर्थात मन्दिर के व्यावस्थापक, दरगाह संचालक दूसरा- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्याज, का कारोबार करने वाले , तीसरा शराब एवं विभिन्न प्रकार के नशा के कारोबारी , और जूआ के व्यापारी जुया का अड्डा चलाने वाले , चौथा- हत्यार माफिया व्यापारी , और पांचवां बड़े पैमाने पर वैश्यावृत का धंधा करवाने वाले माफिया व्यापारी यह कोई भी हो सकते हैं।  लेकिन भारत में अपने आपको ब्रह्मण कहने वाले मंदिर के पुजारी व मंदिरों पर अपना वर्चस्व स्थापित रखने वाले मंदिर माफिया जिनका कारोबार परिवार ऐशो आराम दान के पैसों से चलता है। 
 और इस्लाम अर्थात इंसानियत - जो इन सभी बुराइयों से दूर रहने का सख्ती से आदेश देता है - इंसानियत अर्थात इस्लाम में इन बुराइयों की कोई जगह नहीं, और जो इस्लाम के फॉलोवर हैं जिन्होंने इन आदेशों को अपने जीवन पूर्णरूप से शामिल कर लिया और तमाम अच्छाइयों को साथ ले कर आदेशों का पालन करने वालों को मुसलमान कहा जाता है।  मुसलमान को इस्लाम अर्थात इंसानियत में उदारवादी बनने का सर्वप्रथम सीख दी गई है भेद-भाव नाम की कोई चीज़ नहीं है और दूसरे-अपनी और समाज तथा राष्ट्र की रक्षा एवं दूसरों का संम्मान करने का हुक्म दिया गया है, सद्भावनापूर्ण जीवन व्यतीत करने तथा अन्य गरीब लाचार लोगों का सहयोग करने का हुक्म दिया गया है। मुसलमानो को अतिधन संचाईत करने का आदेश नहीं है अपने आवश्यकता अनुसार ही धन सम्पदा का प्रयोग/उपयोग करने का हुक्म है। इस्लाम अर्थात इंसानियत में द्वेष, दुराग्रह व भेद - भाव , ऊंच - नीच , अमीर - गरीब, छुआ - छूत नाम की कोई चीज़ नहीं है जिससे अन्य समुदाय इन कर्मो और गुणों से प्रभावित होते हैं और आकर्षित होते हैं वह स्वय ही इस्लाम की और खींचते चले आते हैं। एडी पूर्व जिसे हम यदि भारतीय भाषा में त्रेता काल कहेंगे तो सही होगा उस समय सभी इंसान तो थे लेकिन दो समुदाय में बंटे हुए थे एक यहूदी और दुसरा नसारा, उस समय धरती चार प्रांतों में बंटी हुयी थी पूरब-पश्चम और उत्तर-दक्षिण उस समय मुसलमान या इस्लाम का कोई जानने व मानने वाला नहीं था। तब एडी पूर्व अब्राहम का दौर आया और अब्राहम ने अपने समाज में इस्लाम की पहचान कराना आरम्भ कर दिया और अल्लाह , खोदा की पहचान समाज को बताने लगे यह एक गहरा अध्यन की आवश्यकता है। जो बातें अपने समाज में अब्राहम ने इस्लाम के बार में प्रचार किया वह बाते ऊपर बताचुका हूँ , जबकि अब्राहम स्वयं नसारा समुदाय से आते थे।  
 
अब ऐसी स्थिति में थोड़ा मंथन करें - इनसभी को यही लगता है, की इस्लाम को मानने वाले केवल मुसलमान ही एक ऐसा समुदाये है जिसके कारण ब्याज, मन्दिर, शराब, फैशन, हत्यार,वैश्याविर्त के धंधे आने वाले समय मे बन्द हो जाएंगे। बड़ी तेजी से आज इंसान इस्लाम अर्थात इंसानियत को अपना रहा है । इसलिये की 70% व्यक्ति शांति सद्भवना सौहार्दपूर्ण वातावरण चाहत चाहता और इसी चाह में लोग धीरे धीरे जो इस्लाम और मुसलमानों को समझने लगे उन्होंने ने ईमान अर्थात मुस्लमानियत व इस्लाम को अपना रहे है और अपनाया । ऐसी स्थिति में  इन कॉर्पोरेटरों को आभास होने लगा कि यदि लोगों ने इस्लाम अर्थात इंसानियत अपना कर मुसलमान बन गए तो बहुत जल्द ही यह ऐसे धंधे बन्द हो जाएंगे। और हम सड़कों पर आ जाएंगे मुसलमानो की हुकूमत हो जाएगी फिर हम गुलाम हो जाएंगे ऐसी धारणा इन मनोवादिओं अपने अंदर पाल राखी है और अपने नस्लों को यही सीख देते हैं और अन्य समुदायों को गुमराह करते रहते हैं। इसके लिये इन्होंने मुसलमानों को कहीं, गुसपैठिया , तो कहीं आतंकवादी, तो कहीं अन्य प्रकार से बदनाम करना आरम्भ कर दिया तथा उनके विकास एवं शिक्षा तथा आर्थिक दृष्टिकोण से कमज़ोर करने की कोशिश करते रहे और आज भी कर रहे हैं। मुसलमानों को बर्बाद करने का काम यह केवल भारत मे नहीं है बल्कि सम्पूर्ण विश्व मे बड़े उच्च स्तर पर किया जा रहा है। 
यदि स्थानीय अपराध का रेशिओं देखेंगे तो भारत मे अन्य देशों की तुलना में अपराध तीन गुना अधिक केवल हिन्दू समुदाये में हो रहा है। बावजूद इसके मुसलमानों के विरुद्ध एक माहौल तैयार कर सरकार अपनी नाकामी और बदनामी छुपाने के लिए मुसलमानो को टारगेट कर के भारत में इनदिनों हिंदुत्व को बढ़ावा दिया जा रहा है और सरकार हिंदुत्व को प्रोत्साहित कर बढावा दे रही है कि यह लोग हिन्दू के नाम पर मुसलमानो पर हावी रहें और मनोवादी सत्ता पर क़ाबिज़ रहें तथा कॉरपोरेटों का धंधा चलता रहे। जबकि हमारे भारत में आम साधारण हिन्दुओ और मुसलामानों में कोई आपसी रंजिश है न कोई द्वेष , आपसी सौहार्द और सद्भावना आज भी स्थापित है और रहेगा , हाँ एक बात जो अब देखने को मिल रही है वह की पहले अच्छे लोग संगठित रहते थे परन्तु आज बुरे लोग संगठित हो चुके हैं। 

अब रही बात भारत में हिन्दुओं के नुक्सान की, तो भारत में बड़े व्यापारी कौन, हिन्दू , बड़े उद्योग धंदे वाले कौन , तो हिन्दू , बीफ के बड़े व्यापारी कौन तो हिन्दू , यदि सम्पूर्ण भारत में सम्पर्दायिक दंगा होता है तो इन बड़े उद्योग और व्यापारिओं का भारी नुक्सान होता है।  जिसका असर आम हिन्दू समुदाय पर सीधे सीधे असर पड़ता है। यदि स्थानीय छोटे मोटे शहर या बड़े नगरों में होता है तो बड़े उद्योग एवं व्यापारिओं को इतना नुक्सान नहीं होता है जितना के मंझोले और छोटे व्यापारिओं को।  इसलिए आज कल इन लोगों ने सम्पर्दायिक दंगा कराने का ट्रेंड बदल दिया है, वह यह की शहरों नगरों और अन्य कस्बों में छोटा मोटा दंगा एवं मोब्लिचिंचिंग करवा मुसलमानों डरा कर उन पर वर्चस्व स्थापित रखना जैसे अभी हाल फिलहाल सी ए ए , एनआरपी , एनआरसी का क़ानून बना कर भारतीय मुसलमानो में इतना खौफ भर दिया की महीनो तक मुसलमान सड़कों पर धरना दे कर बैठ गए और सरकार ने उनको बारी बारी से गिरफ्तार करती रही और अपने गुंडों से प्रदर्शनकारिओं पर गोलियां चलवा कर मुसलमानो में डर और हिंदुत्व पर कार्रवाई न करके उनको बढ़ावा देने का काम किया। दूसरी और भारत सरकार ने साबित क्र दिया की अब भारत में हिंदुत्व की सरकार होगी और हिन्दुतवों का वर्चस्व रहेगा। लेकिन इससे आम मंझोले हिन्दू व्यापारिओं का काफी बड़ा नुक्सान हुआ जिसकी भरपाई न तो सरकार कर पाएगी और न स्वयं व्यापारी 20 वर्षों में कर पाएंगे।       

जबकी, इत्तिहास साक्षी है जब से सृष्टि बनी है और मुसलमान स्तित्व में आये मुसलमानों कभी भी हुकूमत पाने बनाने के लिए कहीं भी, कभी भी जंग नहीं किया।  वह हमेशा  संसार को अल्लाह की पहचान और उसकी शक्ति का एहसास ही दिलाते रहे। चाहे वह अब्राहम,इस्माइल, इस्हाक़ , याक़ूब , दाऊद, नूह, हाँ , हुकूमत करने वालों को उस समय जैसे फिरौन हो या शद्दाद हो नमरूद हो, या क़ारून या यज़ीद हो उस कार्यकाल में भी यही लोग मनोवादी थे और इन्ही साशकों को भी यही भये सताता था की मेरी क़ौम यानी मेरी प्रजा यदि मुसलमान हो जाएगी तो मेरी गुलामी कौन करेगा इसलिए की इस्लाम में बराबरी का दर्जा दिया गया है और बराबरी में कोई किसी का नौकर या मालिक नहीं होता यदि होता है तो केवल सभ्यता संस्कार और पेम-भाव , आपसी सद्भावना और एक दूसरे को सहयोग तो फिर कौन किसका गुलाम और कौन किसका मालिक।

 इस्लाम में सबसे पहले शिक्षा को तरजीह दी गयी है, और एक दूसरे को सहयोग तथा नि:स्वार्थ भाव सेवा की तरजीह दी गयी है। गरीबो कमज़ोरों असहाये अबलाओं के साथ प्यार से सद्भावनापूर्ण हर प्रकार से सहयोग करना ताकि उन्हें अपने को छोटा और असहाये होने का एहसास न हो, जबकि मनोवादि प्रसाशकों का इसके विपरीत प्रावधान है वह गरीबो ,असाहयों, तथा अबलाओं पर ही अत्यचार कर उन्हें डरा धमका कर उनसे अपना इच्छाअनुसार काम लेते हैं और अपना गुलाम बनाये रखना चाहते है।  इस्लाम में इन प्रावधानों का सख्ती से मनाही है। तो ऐसे लोगों को इस्लाम अर्थात इंसानियत व मुसलमानो से नफरत नहीं होगा तो और क्या होगा।  इसी लिए यह मनोवादी मानसिकता के लोग मुसलमानों को दबाने के लिए इस्लाम और मुसलमानो के विरुद्ध दृश्य प्रचार तथा अन्य समुदायों को उनके विरुद्ध भड़का कर मुसलमानो से लड़वाना मुसलमानो की हत्या करवाना मुसलामानों के साथ दंगा करवाना और फिर उन समुदाओं को मुक़दमा फंसाना और उनहे अपना और सरका का हितैषी तथा देश भक्त कह कर उन्हें मुक़दमा से बरी कर उनपर अपना एहसान थोप कर उन्हें अपना मानसिकरूप से गुलाम बना लेना, यही इनकी निति और प्रावधान है।  
यह भी इत्तिहास साक्षी है जहां कही भी दंगा हुया और मुसलामानों का चाहे जितना भी जानी माली नुक्सान हुआ हो मुसलामानों ने कभी भी बदला लेने की कोशिश नहीं की बल्कि मनुवादी सरकार से ही न्याय की उम्मीद रखे प्रतीक्षा करते अपनी उम्र निकाल देते हैं। यह एक कड़वा सच है।    

Tuesday, May 5, 2020

Who is afraid of Muslims and why?


Who is afraid of Muslims and why?

Supremacy + crime + corruption + fear  = Dalit - backward, and Muslim. Melon falls on a knife or a knife falls on a melon - in any case the melon itself has to be cut. Similarly, the loss of Hindus in every situation is the same.


S. Z. Mallick(Journalist)

I will start talking about riots, riots irrespective of any kind of riots, irrespective of communities, riots irrespective of religion, riots irrespective of any caste, riots, anyone who does, losses, poor, laborers, Dalits, trailing, and Muslims have happened and will continue to happen. But the question is, who is going to commit such riots and who does it? Who is benefiting from this? Who is spreading only and only hate among humanity? And why is the most hatred seen among the uneducated and middle class and backward, other backward Dalits? Who are those people who spend their lives in the most malice, malice and maliciousness? Are the people of the Maoist, fanatical Brahmin society spreading hate? Those who want to establish their supremacy in any form, it is not only Brahmins in this, because we are in India and in India only communal cravings are seen more. All Brahmins in India are not insane.

I would like to throw a little light about the word psychotic, that is what my research says forcibly imposing the mind's mind on others. However, Brahmins have a lot of objection with this word because they believe that Namoism, said the followers of Manumaharaja goes. Other Brahmins who believe in Manusmriti believe that those who believe in Manusmriti are called. When this is not the case, that is my research, which is forcing the mind to impose its mind on others or its arbitrariness, to maintain its supremacy by occupying power, price, punishment, distinction, and policy. Says What else do they understand? This psychologist is not only in India, not only among Hindus, but this psychologist is in every community in every town in every country of the world. While their number is very small, but due to being overbearing in power, they are not calm wherever they are and do not want anyone to remain calm, they feel threatened by the Muslims all over the world. It is that if we are able to suppress Muslims anywhere in India or in the world, then everywhere in the world we will be able to fight. How is this people and who are the people? What is their business? Read it carefully and churn it.

First- temple mafia in India ie temple organizers, second- international interest, business, third liquor + others, various types of addicts, and yoke merchants, fourth- arms mafia merchants, and fifth large scale prostitution , trafficking business Mafia merchants can be any of them. But in India, the temple mafia, who call themselves Brahmins, have established their supremacy over the temples and the temple mafia, whose business is run by the money of family Aisho comfort donation.
And Islam means humanity - which strictly orders to stay away from all these evils - humanity means that these evils have no place in Islam, and those who are followers of Islam who have taken these orders in their lives fully involved and all the good Those who follow the orders are called Muslims. Muslims have been first taught to be liberal in Islam ie humanity. There is no such thing as discrimination and there is a command to protect others and society and nation and respect others, to live a good life and others. The poor helpless people have been ordered to cooperate. There is no order for the Muslims to accumulate excess wealth, there is a command to use the wealth according to their needs. Where there is no casteism, there is no such thing as misogyny, due to which other communities are influenced and attracted by these deeds and qualities, they themselves continue to draw towards Islam.

Now churn a bit in such a situation - all of them feel that only Muslims who believe in Islam are a community that will shut down the interests, temples, liquor, fashion, Arms manufacturer and mafiya, prostitutes in the coming time. Today, man is adopting Islam ie humanity. That is why 70% of the people wanted peace and harmony, and in this desire, people who started to understand Islam and Muslims, they have adopted the faith ie Muslimism and Islam. In such a situation, these corporates began to realize that if people converted to Islam, ie, humanity, they would soon become Muslims. And we will come on the streets, Muslims will rule, then we will become slaves, such a belief that these human beings are rooted in themselves and they teach their breeds and keep misleading the knowledge communities. For this, he started to discredit Muslims elsewhere, infiltrator, terrorists elsewhere, and in other ways, and tried to weaken them from the development and education and economic outlook which they are doing even today. The work of destroying Muslims is not only in India but is being done at a very high level all over the world. If we will see the ratio of local crime then crime is happening in the Hindu community only three times more than other countries in India. Despite this, by creating an atmosphere against the Muslims, the government is targeting Hindus in India to target Muslims in order to hide their failure and slander and the government is encouraging Hindutva to promote these people in the name of Hindus. Dominate and occupy more power and the business of corporates continues.

Now there is about the harm of Hindus in India, who are big businessmen in India, Hindus, then Hindus, big traders of beef, who are Hindus, if there is a communal riot in the whole of India then these big industries and traders Has a huge disadvantage. Which has a direct impact on the general Hindu community. But if the local is in small towns or big cities, then big industries and businessmen do not suffer so much, so nowadays these people have changed the trend of communal riots, that is, small riots in cities and other towns. And to keep the domination on the Muslims by mobilizing and terrorizing them, just like recently, the Indian Muslims by making the law of CAA, NRP, NRC He was so terrified that for months the Muslims sat on the streets to sit on the streets and the government kept arresting them in turn and by firing bullets on the protesters through their goons, they did not act on the fear and Hindutva among the Muslims and encouraged them. . Secondly, the Government of India proved that now there will be a government of Hindutva in India and Hindutva will dominate. But this caused a huge loss to the common middle Hindu traders, which neither the government nor the traders themselves will be able to compensate in 20 years.

Saturday, May 2, 2020

नवजवानों की गिरफ्तारियों से पुलिस की छवि ख़राब हो रही है : इंजीनियर सलीम

नवजवानों की गिरफ्तारियों से पुलिस की छवि
ख़राब हो रही है : इंजीनियर सलीम

नई दिल्ली , 2 मई 2020 । दिल्ली पुलिस द्वारा सामाजिक कार्यकर्ताओं, छात्रों एवं C A A विरोधी प्रदर्शनों में
भाग लेने वाले युवकों की लगातार हो रही गिरफ्तारियों की एवं उन पर लगाए जा रहे झूठे मुक़दमों और कुछ
लोगों पर U A P A जैसे कठोर दफा के लगाए जाने की हम कड़े शब्दों में निंदा करते हैं । विशेष रूप से पिछले दिनों
जामिया मिल्लिया इस्लामिया की शोध छात्रा सफूरा जरगर की गिरफ्तारी, फिर एक मामले में ज़मानत मिलने के
बाद दूसरे मामले में फौरन गिरफ्तारी और उनको जेल में एकांत में रखा जाना , जबकि वह छात्रा गर्भवती भी है ,
दिल्ली पुलिस की यह कार्यवाही न केवल अमानवीय है , बल्कि पक्षपातपूर्ण एवं बदले की भावना से प्रेरित महसूस
होता है। हम गृह मंत्रालय एवं दिल्ली पुलिस से मांग करते हैं कि वह अपनी इन कार्यवाहिओं में निष्पक्षता बरते
और दिल्ली पुलिस की छवि को ख़राब होने से बचाए । यह बात जमाअत इस्लामी हिन्द के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष
प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने मीडिया को जारी एक बयान में कही ।
प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने अफ़सोस प्रकट करते हुए कहा कि देश कोविड -19 की महामारी से एकजुट होकर जूझ रहा है
और अबतक इसी एकता और आपसी सहयोग और विश्वास की वजह से जनता और सरकार ने अब तक सफलता पाई है ।
ऐसे हालात में जबकि पूरा देश lockdown की स्थिति में है दिल्ली पुलिस द्वारा इस स्थिति का फायदा उठाते हुए C A A
विरोधी प्रदर्शनकारियों पर दमनकारी कार्यवाही करना और दिल्ली के हालिया दंगों में उनको लिप्त करने की कोशिश करना
दिल्ली पुलिस की निष्पक्षता पर बड़े सवाल खड़े करती है । दूसरी तरफ केंद्र में सत्ताधारी पार्टी से जुड़े लोगों , जिन्होंने
खुलेआम नफरत फैलाई , लोगों को भड़काया और वे लोग जिन्होंने फरवरी के अंत में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में बड़े पैमाने पर
योजनाबद्ध हमले किये उनका खुलेआम घूमना और उनपर उचित कार्यवाही अब तक नहीं होना ग़लत सन्देश दे रहा है ।
प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने कहा कि हम केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस से उम्मीद करते हैं कि वो इस विषय पर
गम्भीरतापूर्वक कोई ठोस क़दम उठाएगी ताकि लोगों में सरकार और पुलिस के प्रति विश्वास पैदा हो और लोगों के साथ
बिना किसी भेदभाव के न्याय हो सके । उन्होंने कहा की जमाअत जामिया की शोध छात्रा सफूरा जरगर व अन्य लोगों की
रिहाई की मांग करती है।
द्वारा जारी
मीडिया प्रभाग , जमाअत इस्लामी हिन्द

भारतीय मुसलमान करूणा से भरे हुए हैं, उनमे क्रोना की कोई गुंजाइश ही नहीं ।

भारतीय मुसलमान करूणा से भरे हुए हैं,  उनमे क्रोना की कोई गुंजाइश ही नहीं ।  


भारतीय पीएम की इस्लाम पर स्टडी अच्छी है । तो क्या प्रधानमंत्री सत्ता में आने के बाद भारतीय मुसलमानों के साथ अपने भक्तों को इस्लाम के बारे में गुमराह कर के उन्हें प्रोत्साहित कर आज़मा रहे हैं ? प्रधानमंत्री जी इस्लाम अर्थात इंसानियत यह हर व्यक्ति में है लेकिन अपने निजी स्वार्थ में सांसारिक सुख पाने के खातिर स्वार्थ को अपने आप पर हावी कर इंसानियत को दबा दिया । जबकि अल्लाह और अल्लाह के रसूल का सारी दुनियाँ के व्यक्ति के लिये है फरमान है कि प्रकृतिक के तमाम संसाधनों पर सभी जीवों का समानरूप से बराबर कर अधिकार है - प्रधानमंत्री जी थोड़ा समीक्षा और मंथन कर बताए कि भारत में प्रकृतिक सम्पदा पर कितने मुसलमानों का अधिकार है ? मुस्लमननों ने मुसलमान का मतलब ही कुर्बानी देने वाला, दानी। लेकिन मनुवादी ब्राह्मणों ने इस लोक डाउन में दान लेना बंद नहीं किया वह पुरे अभी तक के लोकडाउन में मंदिर और अंधविश्वासी अंधभक्तों ने न उनका दामन छोड़ा और न पंडित उनकेघर व मंदिर जाने से नहीं रुके बल्कि मनुवादी ब्रह्मण पंडितों को एक वीआईपी की तरह पुलिस अपने संरक्षण में मंदिर ले जाती और उनके घरों तक छोड़ आती और मुसलमानों ने मनुवादिओं के अंधभक्त दबंगों का गरोह और पुलिस का चूतड़ों पर डंडा बर्दाश्त करते हुए इस विपत्ति में भी दान व भूके पीड़ितों को मदद देना बंद नहीं किया । 
प्रधानमंत्री जी भारतीय मुसलमानों में वह जो सच्चा मुसलमान होगा उसमे क्रोना नही मिलेगा न उस तक क्रोना पहुंचेगा इसलिए की उसके अंदर दया और करूणा इतना भरा हुआ है की उसमे न तो क्रोना जैसे कोई घातक बिमारी हो सकती है और न उसमे किसी नफ़रत की कोई गुंजाइश है। चाहे आप जितना भी अत्याचार करा लो। मुसलमानों में क्रोना नहीं दया और करूणा ही मिलेगा ।
एस.ज़ेड.मलिक (पत्रकार)  ainaindiablogsport.com

AINA INDIA: सौहार्दपूर्ण भारत के विकास के लिए कुछ सरल और सहज उ...

AINA INDIA: सौहार्दपूर्ण भारत के विकास के लिए कुछ सरल और सहज उ...: सौहार्दपूर्ण भारत के विकास के लिए कुछ सरल और सहज उपाये ।  एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)    यदि भारत सरकार भारत के विकास के प्रति वका...
krona is not effected for general human life, Krona is not as deadly as the communal hatred spread by the Manuwadi Brahmans and the media. Krona will be eliminated from India today or tomorrow, but who hates the communal poison haters given to Muslims in the minds of a large number of illiterates, who will treat them? whenever Indian Government is internally fully corporating to sanghi Manuvadi Brahman and manuwaadi media.

Saturday, October 21, 2017

AINA INDIA: भारत की तक़दीर बदलने के लिए इससे बेहतर रास्ता और को...

AINA INDIA: भारत की तक़दीर बदलने के लिए इससे बेहतर रास्ता और को...: भारत की तक़दीर बदलने के लिए इससे बेहतर रास्ता और कोई हो ही नहीं सकता।  एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)    यदि मोदी जी चाहते हैं की वह ह...

Tuesday, October 17, 2017

AINA INDIA: इंडियन सोसाइटी फॉर कल्चर कॉर्पोरेशन एंड फ्रैंडशिप।...

AINA INDIA: इंडियन सोसाइटी फॉर कल्चर कॉर्पोरेशन एंड फ्रैंडशिप।...: इंडियन सोसाइटी फॉर कल्चर कॉर्पोरेशन एंड फ्रैंडशिप। (स्कॉफ)    की उत्तरी दिल्ली के जहांगीरपुरी में समन्यव्या बैठक।   एस. ज़ेड. मलिक (पत्र...
इंडियन सोसाइटी फॉर कल्चर कॉर्पोरेशन एंड फ्रैंडशिप। (स्कॉफ)   
की उत्तरी दिल्ली के जहांगीरपुरी में समन्यव्या बैठक। 
एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)

 
 


  




बाहरी दिल्ली - विश्व में मानवता त्राहि के भयावः उठने वाले तूफ़ान के मद्देनज़र "इंडियन सोसाइटी फॉर कल्चर कॉर्पोरेशन एंड फ्रैंडशिप" (स्कॉफ) ने पिछले दिनों 15 अक्टूबर 2017 को उत्तरी दिल्ली के जहांगीरपुरी में भारत की सांस्कृति तथा सभ्यता को बचाने के प्रति जागरूक करने के संदर्भ में एकता सुधार समिति की अध्यक्षा श्रीमती नर्गिस  खान तथा वंदना फाउण्डेशन की चेयरपर्सन वंदना खुराना ने समन्यव्या संगोष्ठी का आयोजन किया। 
इस अवसर पर "स्कॉफ" के राष्ट्रिय अध्यक्ष पूर्व सांसद श्री अज़ीज़ पाशा (हैदराबाद) ने इस बैठक की अध्यक्षता की , उन्होंने स्कॉफ की विस्तार से जानकारी देते हुए कहा की यह संस्था 1925 से अबतक अपने पडोसी देशों से साथ सौहार्दपूर्ण आपसी रिश्तों  का समन्यवया बनाने का कार्य रही है , उन्हों कहा की पकिस्तान , बंगला देश , नेपाल , चीन , क्यूबा , और रूस के साथ इस संस्था ने हमेशा आपसी सहयोग और बेहतर संबंधों के प्रति सजगपूर्ण अग्रसर रही है - इन देशों के बीच अपनी सभ्यता और सांस्कृति के मूल अधिकारों के तहत एक दूसरे का रिश्ते को मज़बूत और सुदुढ़ बनाने का काम किया है।  उन्होंने भारत के हर राज्यों में स्कॉफ के विस्तार की कामना करते हुए वहां उपस्थित श्रोताओं से स्कॉफ से जुड़ने का आग्रह करते हुए निवेदन किया की जहांगीरपुरी में भी आप लोग स्कॉफ की एक कमिटी गठित कर अपनी सभ्यता सांस्कृति तथा आपसी भाईचारे को बज़बूत बनायें।  वहीँ इस सभा में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित स्कॉफ सचिव कॉमरेड  श्री विजय कुमार जी , एवं राष्ट्रिय सचिव एवं आंध्रप्रदेश अध्यक्ष श्री टी. एस. सुमारन ने भी अपने वक्तव्य दिए तथा विशेष अतिथि श्री रोशन लाल अग्रवाल सामाजिक आर्थिक न्याय विचारक एवं विश्लेषक ने इस अवसर पर सभा को सम्बोधित करते हुए कहा की विश्व में इस समय भयावः  गरीबी और बेरोज़गारी फैली हुयी है जिस के कारण हर जगह महामारी फैली हुयी है यह आज की परिस्थिति का सबसे सबसे भयानक परिदृश्य है जो बहुत ही गंभीर समस्य है उन्हों ने इस समस्या का समाधान बताते हुए कहा की मुठी भर लोगों के हांथों में विश्व की सारी सम्पदा बंद है मुठ्ठी बार लोग ही विश्व की सारी  सम्पदा के मालिक हैं बाक़ी सभी व्यक्ति गुलाम हैं।  इस से छूतरा पाने के लिए एक ही रास्ता हैं - वह है आर्थिक क्रांति जो सभी को आर्थिक गुलामी से मुक्ति दिलायेगी तभी हम अपनी सभ्यता और सास्कृति को बचा पाएंगे , उन्होंने कहा की सर्कार ने भारत की जनता को मुर्ख समझते हुए गरीबी रेखा खींच कर गरीब और मध्य आये स्त्रोत को लोगों को एक सिमित दायरे में बाँध कर गुलामी करने पर मजबूर कर दिया है - इसका बस एक ही समाधान है " अब गरीबी नहीं अमीरी रेखा बनाना होगा , केवल संपत्ति पर सरकार टेक्स लगाए बाक़ी सभी टेक्सों को समाप्त कर दे।  केवल संपत्ति कर ही सरकार को इतना लाभ मिलेगा की सरकार प्रति व्यक्ति को 10 ,000 रु ० पार्टी मांह जीवन से मिर्तुयु तक देके के बावजूद सरकारी महकमे के सारे खर्चे आराम से निकाल कर इतना बचत होगा की सरकार दूर देशों को भरपूर क़र्ज़ भी दे सकती हैं।  
इस अवसर पर पत्रकार एस. जेड. मलिक में सभा का संचालन किया तथा स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता शाहिद उस्मानी , तथा अनीस मुहम्मद, हसन अकबर अध्यक्ष जनमानस सोसाइटी एवं अनीस फात्मा अध्यक्ष "राइटवे"  ने भी इस सभा को सम्बोधित किया।