Thursday, June 30, 2016

AINA INDIA: बिजली विभाग की हठधर्मी - Report by S.ZMallick(Jour...

AINA INDIA: बिजली विभाग की हठधर्मी - Report by S.ZMallick(Jour...:   बिजली विभाग का ज़बरदस्ती छापा।  लोक अदालत के आदेश पर  को 22180 रुपया जुरमाना भरा फिर  25 जुलाई 2016  और 22180 रुपया देना है।   - मज़दूरी क...

बिजली विभाग की हठधर्मी - Report by S.ZMallick(Journalist)

  बिजली विभाग का ज़बरदस्ती छापा। लोक अदालत के आदेश पर  को 22180 रुपया जुरमाना भरा फिर 25 जुलाई 2016 और 22180 रुपया देना है।   - मज़दूरी करनेवाले ज़ीशान के २५ गज़ के मकान में एसी तथा फ्रिज चालान का इलज़ाम।  घर में कोई मर्द की सूरत नहीं।  बिजली विभाग के लगभा 10-12 लोग जबरन मकान में घुस कर बंद मीटर का फोटो खिंच कर इलज़ाम लगा दिया की अमानुल्लाह बिजली चोरी कर रहा था। जबरन 74000 हज़ार रूपये का जुर्माना थोक दिया। 
उत्तर पशिम जिला के सुलतान पूरी के एक नंबर ऍफ़ ब्लॉक नूरी मस्जिद के सटे २५ गज़ के मकान में १३ मई को लग भाग १२ बजे अस्थानीय बिजली विभाग के लगभग १२-१५ लोग घर में घुस गए और बंद  मीटर की फोटो कहना शुरू कर दिया - मकान मालिक समाजसेवी  जीशअनुल्लाह के कथनानुसार उस समय वह दिल्ली में उपस्थित नहीं थे और घर में मर्द की सूरत में कोई नहीं था , घर में सिर्फ औरते ही थी। मकान मालिक जीशनुल्लाह के माकन में दो मीटर लगा हुआ है एक दूकान का और दूसरा मकान का, माकन के मीटर का सीए नो० ६०००४५२९२३० , है , इसका बिल हर महीने लग भाग १२-१३ सौ का आता है, जिस में एक सेलिंग फैन और एक कूलर तथा दो बल्ब और एक टिवलाईट का इस्तेमाल है - दूकान के मीटर का कोई खास इस्तेमाल नहीं है, कभी कभी दूकान जब खुलती है तो सिर्फ एक एलईडी बल्ब २-४-१० मिंट के लिए जलाया जाता है। बिजली की इतनी कम खपत, समय पर बिल भरा जा रहा है तो फिर सवाल उठता है आखिर इलज़ाम क्यों लगाया गया? बिजली विभाग ने क्या गुंडे पाल कर अपना बिल वसूल करने का ठेका ले रक्खा है, क्या ऐसा तो नहीं कि बिजली विभाग अपने आक़ा से बिजली बिल न लेकर गरीब और कमज़ोर उपभोगताओं से अपने आकाओं का बिल वसूलती है , इससे पहले भी बिजली विभाग के कर्मचारिओं की ऐसे ओछे हरकतों की कई शिकायतें मिलती रही है , जिसका निपटारा  अदालत में किया जाता है और लोक अदालत किसका  तो पता चला की वह भी बिजली विभाग का ही है, लोकअदालत का काम है बिजली विभाग द्वारा थोपा गया जुर्माना का सेटलमेंट करा कर उपभोगताओं से आधा जुरमाना बिजली विभाग को अदा करवाना, लोगों को सिर्फ इस बात से संतुष्टि मिलजाती है की लोक अदालत ने हमारा उद्धार कर दिया। 
 जनता इतनी भावुक बेवक़ूफ़ अशिक्षित है की स्वतंत्रता से अब तक उसे न तो लोकतंत्र का मतलब ही समझ में आया और न तो सरकार का मतलब ही आज तक समझ पायी। 75 प्रतिशत जनत आज भी अपने सांसद , विधायेक तथा निगमपार्षद और मुखिया को ही सरकार कह कर उसके आगे नमस्तक रहती है यही कारन है की यह जनप्रतिनिधि अपने आपको जनता देवता तथा कहीं कहीं भगवान् भी बनजाते हैं। और सरकारी कर्मचारी जो जनता की नौकरी करने के लिए, जनता के समस्याओं के समाधान के लिए बहाल किये गए हैं , ऐसे 75 प्रतिशत अशिक्षित भावुक बेवक़ूफ़ जनता के कारण वह भी अपने आप को कर्मचारी या पदाधिकारी से हट कर अपने आप को देवता या भगवान् से काम नहीं समझते हैं।  नतीजा सबके सामने है जो मैं लिख रहा हूँ , ऐसे कौन पढ़ेगा एक शिक्षित और समझदार आदमी , न कि कोई अनपढ़ या बेवक़ूफ़ आदमी , अनपढ़ और बेवक़ूफ़ लोग तो पढ़े लिखे लोगों पर ही यकीन , विश्वाश ,भरोसा, करते हैं , और दूसरे नेताओं पर चाहे वह अनपढ़ क्यों न हों साफ सुथरा कपडा पहनते हैं , खादी पहनते हैं , एसी दफ्तरों में बैठे हैं ऐसे ही लोग इन 75 प्रतिशत जनता को बेवक़ूफ़ बन कर अपना उल्लू सीधा करते हैं , और जनता इनपर तन मन धन निछावर करती है , और यह उनके सीधे पण का पुरा पूरा फायदा उठाते हैं। 
क्या इस देश का कभी भला हो सकता है ? कौन आयेगा इन 75 प्रतिशत अनपढ़ लोगों को शिक्षित करने ?  इन 75 प्रतिशत जनता ने तो मोदी को 5 वर्षों तक अपने आप को साक्षर बने के नाम पर लूटवाने का ठेका दे दिया है , अभी दो वर्ष गुज़र चुकें हैं - इन दो वर्षों तो सिर्फ अभी हा हा कार मचा है , कही महंगाई को ले कर तो कहीं साम्प्रदायिक दंगों को लेकर , तो कही सरकारी खजाने से एनएसडीसी, डिजिटल इंडिया के नाम की एस्कीमो के नाम पर बड़े उद्योगों तथा बड़ी बेनामी कंपनियों द्वारा लूटने के नाम पर।  हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम गुलिस्तां क्या होगा। चाहे केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार हो सभी इस समय लूटने का ही काम कर रहे हैं , जनता अपने आप को लूटवाने पर आमादा है।  फिर एक क्रांति आएगी ज़रूर आएगी  . . . . . . . .      
                              
  
    

Tuesday, June 14, 2016

AINA INDIA: आर्थिक न्याय -रोशन लाल अग्रवाल (लेखक एवं समीक्षक आ...

AINA INDIA: आर्थिक न्याय -रोशन लाल अग्रवाल (लेखक एवं समीक्षक आ...: आर्थिक न्याय - रोशन लाल अग्रवाल   (लेखक एवं समीक्षक आर्थिक न्याय)   सामाजिक व्यवस्था एक व्यापक समझोता है और उस का ही एक महत्वपूर्ण अंग...

आर्थिक न्याय -

रोशन लाल अग्रवाल (लेखक एवं समीक्षक आर्थिक न्याय) 
सामाजिक व्यवस्था एक व्यापक समझोता है और उस का ही एक महत्वपूर्ण अंग अर्थव्यवस्था है।  सामाजिक व्यवस्था का मूल आधार न्याय है। और अर्थव्यवस्था उसकी धुूरी है। 
सामाजिक व्यवस्था का मूल उद्देश्य लोगोँ के हितों मेँ होने वाले टकराव को न्याय के आधार पर सुलझाना व सब में सामंजस्य की स्थापना करना है ताकि उनके विवादों को शांतिपूर्वक समाप्त किया जा सके और समाज को विवाद टकराव और युद्ध जेसी विनाशकारी स्थितियों से बचाया जा सके। 
यह समझोता तभी न्यायपूर्ण माना जा सकता है जब यह बिना किसी अज्ञान भय दबाव या मजबूरी की स्थितियो मेँ पूर्ण सत्य पारदर्शिता सद्भाव विश्वास पवित्र मन से किया गया हो। 
ऐसा समझोता ही सब मेँ विश्वास सद्भाव पूरकता संतोष शांति और समृद्धि के उद्देश्योँ को पूरा कर सकता है। 
सारे प्राकृतिक संसाधन ही मूल धन है और हमारे जीवन का आधार है इनके उपभोग के बिना हमारा जीवन नहीँ चल सकता प्रकृति मेँ पाए जाने वाले उपभोग के सभी पदार्थ इंन्हीं प्राकृतिक संसाधन से बनाए जाते है ये प्राकृतिक संसाधन मूल रुप से प्रकृति का वरदान है और किसी व्यक्ति ने इन का निर्माण अपनी शक्ति बुद्धि या क्षमता से नहीँ किया है 
इसलिए इन सभी प्राकृतिक संसाधनो पर सब लोगोँ का मूलभूत समान जन्मसिद्ध अधिकार है और उसका व्यक्ति की योग्यता क्षमता अथवा परिश्रम से कोई संबंध नहीँ और अर्थात इनके कम या अधिक होने से किसी भी व्यक्ति का मूल अधिकार न तो बढता है और न हीँ घटता है। 
क्योंकि यदि हम व्यक्ति के अधिकारोँ का संबंध उसकी उपरोक्त विशेषताओं से जोड़ते है तो उसके आधार पर बनने वाली व्यवस्था न्यायपूर्ण न होकर जंगलराज या जिसकी लाठी उसकी भेंस वाली होगी और उससे समाज मेँ शांति की स्थापना नहीँ की जा सकती। 
इसलिए न्याय के आधार पर एक व्यक्ति का मूलभूत जन्मसिद्ध अधिकार केवल औसत सीमा तक संपत्ति पर ही हो सकता है। इससे अधिक पर नहीँ क्योंकि इससे अधिक पर मूल अधिकार मान लेने से किसी अन्य व्यक्ति के मूल अधिकार का हनन होगा जो उसके साथ अंन्याय है।  
किंतु इस अधिकार को प्राप्त करने के लिए हर व्यक्ति को अपनी योग्यता क्षमता या पुरुषार्थ पर ही निर्भर रहना होता है।  जो सबकी एक समान न होकर बहुत अलग अलग है। ये विशेषताएँ कुछ लोगो की औसत से कम व अन्य कुछ लोगोँ की बहुत ज्यादा भी हो सकती है और होती ही है। इसी कारण कुछ लोगोँ के पास अपनी उपभोग की आवश्यकताओं को पूरा कर लेने के बाद भी मूलभूत औसत अधिकार से बहुत अधिक संपत्ति एकत्रित हो सकती है।  जबकि अन्य लोगोँ को अपने मूलभूत अधिकार से बहुत कम आय ही प्राप्त होती हैं, जिससे वे अपने उपभोग की जरुरतोँ को भी ठीक प्रकार से पूरा नहीँ कर पाते। 

इस प्रकार औसत सीमा तक संपत्ति एक व्यक्ति की संग्रह अधिकार की अधिकतम सीमा अर्थात् अमीरी रेखा है जो किसी भी समय निजी संपत्ति की कुल मात्रा को उस समय की जनसंख्या से भाग देकर आसानी से निकाली जा सकती है।
इसलिए न्याय के आधार पर एक नागरिक को औसत सीमा से अधिक संपत्ति का स्वामी न मांन कर उसका प्रबंधक (समाज को कर्जदार) माना जाना चाहिए और मूल सीमा से अधिक संपत्ति पर ब्याज की दर से संपत्ति कर लगाया जाना चाहिए। 
अंय सभी प्रकार के करों (आयकर सहित) समाप्त कर दिया जाना चाहिए जो किसी भी दृष्टि से समाज के लिए हितकारी नहीँ हे ओर सभी प्रकार को षड़यंत्रों को जन्म देते है। 
क्योंकि सारे प्राकृतिक संसाधन ही मूल संपत्ति होते है और इन पर समाज का अर्थ सभी लोगोँ का समान रुप से स्वामित्व होता है।  इसलिए संपत्तिकर से इस प्रकार होने वाली आय पूरे समाज की प्राकृतिक संसाधनो से प्राप्त होने वाली अतिरिक्त आय होती है जिस पर सब का समान अधिकार है।  
इसलिए इस में से सरकार के बजट का खर्च (व्यवस्था के संचालन का खर्च) काटकर शेष राशि को सारे नगरिकों में बिना किसी भेदभाव के लाभांश के रुप मेँ बाँट दिया जाना चाहिए। 
इस प्रकार न्याय के आधार पर हर नागरिक के दो अधिकार होते हैं, पहला मूलभूत स्वामित्व का अधिकार जिसका व्यक्ति की मेहनत से कोई संबंध नहीँ होता है और जो सबका सम्मान होता है। 
दूसरा मेहनत या पुरुषार्थ से प्राप्त अधिकार जो मेहनत के आधार पर सबका कम या अधिक हो सकता है। 
लाभांश स्वामित्व के अधिकार से मिलने वाला समान लाभ है जिसका व्यक्ति की मेहनत से कोई संबंध नहीँ होता। 
भौतिक विज्ञान की उन्नति के कारण प्राकृतिक संसाधनो को उपभोग योग्य बनाने के लिए उन मेँ लगने वाली मेहनत की मात्रा लगातार घटती जा रही है और स्वामित्व के अधिकार का महत्व बरता जा रहा है। और उसके साथ ही लाभांश की मात्रा भी बढ़ती जा रही है। 
आज भी एक व्यक्ति की आय का संबंध उसकी शारीरिक या बौद्धिक मेहनत से न होकर उसके साधनो से स्थापित हो गया है जिसके पास अधिक साधन है उसकी आय ज्यादा है जिसके पास कम साधन है उसकी आय भी उसी अनुपात मेँ बहुत कम है। 
जिस दिन भौतिक विज्ञान इतनी उन्नति कर लेंगे कि उसके सारे कार्य अनेक प्रकार के यंत्र और उपकरणो की सहायता से ही पूरे होने लगेंगे और मेहनत की कोई भूमिका ही नहीँ बचेगी तब समाज के शांतिपूर्ण संचालन का एकमात्र मार्ग लाभांश ही रह जाएगा मेहनत नहीँ। 
हर व्यक्ति चाहता है उसे उसके उपभोग के पदार्थ कम से कम परिश्रम मेँ निरंतर प्राप्त होते रहे और उसे कभी भी अभाव का सामना न करना पड़े।  भौतिक विज्ञान की उन्नति ने मनुष्य की इस चीर संचित अभिलाषा को अच्छी तरह से पूरा किया है। 
अतः अब सब लोगोँ को अपना पेट भरने के लिए किसी प्रकार की मेहनत करने की बाध्यता से मुक्ति मिलनी चाहिए इसे हरामखोरी कहना या गलत मानना पूरी तरह अज्ञान्ता है। 




यह लंबी पोस्ट मुझे इसलिए लिखनी पड़ी है क्यूंकि आपके अनेक गूढ प्रश्नो के उत्तर इस पोस्ट के बिना नहीँ दिए जा सकते अतः आप पहले इस पोस्ट के सभी बिंदुओं पर पूरी गहराई से विचार करेँ और इस के बाद आपके जो प्रश्न बचेंगे उनका मेँ तर्क सहित उत्तर दूँगा। 

Monday, June 6, 2016

AINA INDIA: 'बेसिक इनकम गारंटी'

AINA INDIA: 'बेसिक इनकम गारंटी': 'बेसिक इनकम गारंटी' स्विस की जनता ने नाकारा।   एस.ज़ेड. मलिक (पत्रकार)    ज़ी मीडिया ब्‍यूरो के सौजन्य से  जिनेवा :  ...

'बेसिक इनकम गारंटी'



स्विटजरलैंड के लोगों ने सरकार की मुफ्त सेलरी की पेशकश ठुकराई

'बेसिक इनकम गारंटी' स्विस की जनता ने नाकारा।  

एस.ज़ेड. मलिक (पत्रकार)  ज़ी मीडिया ब्‍यूरो के सौजन्य से 
जिनेवा : अगर किसी को घर बैठे हर महीने सरकार की तरफ से बंधी-बंधाई सेलरी मिले तो कौन काम करना चाहेगा? लेकिन एक ऐसा देश है जिसके नागरिकों ने सरकार की इस शानदार पेशकश को ठुकरा दिया है। दुनिया के अमीर देशों में से एक स्विट्जरलैंड के नागरिकों ने सरकार की मुफ्त सेलरी की पेशकश ठुकरा दी है। स्विट्जरलैंड की सरकार ने मुफ्त सेलरी देने को लेकर एक जनमतसंग्रह कराया है जिसके पक्ष में 23 प्रतिशत जबकि प्रस्ताव के विरोध में 77 फीसदी लोगों ने मतदान किया।
'बेसिक इनकम गारंटी' के समर्थकों की मांग है कि सरकार करीब उन्हें डेढ़ लाख रुपए से अधिक हर महीने वेतन दे पिछले करीब डेढ़ साल से यहां कुछ लोगों की तरफ से मांग की जा रही थी कि सरकार सभी को न्‍यूनतम सैलरी दे वो भी बिना कोई काम किए। इस मांग के बाद सरकार ने एक जनमत संग्रह कराया, जिसमें देश के 78% लोगों ने इसे ठुकरा दिया। इसी के साथ यह प्रस्ताव खारिज हो गया। दरअसल, यहां ज्यादातर लोगों के पास काम नहीं है। फैक्ट्रियां में लोगों की जगह रोबोट ने ले ली है, जिससे देश में बेरोजगारी बढ़ रही है।
अगर ये पास हो जाता तो सरकार को हर महीने देश के सभी नागरिकों और 5 साल से वहां रह रहे उन विदेशियों को, जिन्होंने वहां की नागरिकता ले ली है, उन्हें बेसिक सैलरी देनी होती। दुनिया में पहली बार है जब ऐसे किसी प्रस्ताव को किसी देश में नागरिकों के बीच रखा गया था। इस प्रस्ताव में लोगों से पूछा गया था कि क्या वे देश के नागरिकों के लिए एक तय इनकम के प्रावधान का समर्थन करते हैं या नहीं?

Thursday, May 26, 2016

AINA INDIA: The real meaning of democracy- Blogger S.Z.Mallick...

AINA INDIA: The real meaning of democracy- Blogger S.Z.Mallick...:
असली लोकतंत्र का अर्थ।
 रोशन लाल अग्रवाल  economicjusticesrl.blogspot.in
 आज हमारे देश में जो तथाकथित लोक...

AINA INDIA: The real meaning of democracy- Blogger S.Z.Mallick...

AINA INDIA: The real meaning of democracy- Blogger S.Z.Mallick...: असली लोकतंत्र का अर्थ। असली लोकतंत्र का अर्थ रोशन लाल अग्रवाल  economicjusticesrl.blogspot.in आज हमारे देश में जो तथाकथित लोक...

AINA INDIA: "Art 4 Peace Award" soon. Report by S.Z.Mallick(Jo...

AINA INDIA: "Art 4 Peace Award" soon. Report by S.Z.Mallick(Jo...: विश्व की शशक्त महिलाओं के लिए आस्कर के तर्ज़ पर "आर्ट 4 पीस अवार्ड" जल्द। एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार) नई दिल्ली -   आर्ट 4 पी...

The real meaning of democracy- Blogger S.Z.Mallick(Journalist)

असली लोकतंत्र का अर्थ।

असली लोकतंत्र का अर्थ



रोशन लाल अग्रवाल economicjusticesrl.blogspot.in

आज हमारे देश में जो तथाकथित लोकतंत्र है वह नकली है हम राज्य के गुलाम बने हुए हैं हमारे जनप्रतिनिधि समाज का नहीं बल्कि बड़े-बड़े धन पतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं. वे उनके ही आदेशानुसार चलते हैं और सामान्य व्यक्ति की आवश्यकताओं एवं भावनाओं से उनका कोई लेना-देना नहीं है. तो फिर इस लोकतंत्र को असली कैसे माना जाए ?
देश के सारे कानून धन पतियों की इच्छा के अनुसार ही बन रहे हैं जिन से वास्तविक न्याय का कुछ भी लेना-देना नहीं है.
जब तक सत्ता पर समाज का नियंत्रण नहीं होगा तब तक वास्तविक आजादी नहीं मिल सकती और इसके लिए आर्थिक न्याय अनिवार्य है.
आर्थिक न्याय पाने के लिए अमीरी रेखा बनाई जानी चाहिए अर्थात एक व्यक्ति के मूलभूत या न्यूनतम संपत्ति अधिकार उसी प्रकार सुरक्षित होने चाहिए जिस प्रकार हर नागरिक वोट देने का अधिकार जो उसका न्यूनतम राजनीतिक अधिकार है उसी प्रकार हर नागरिक को न्यूनतम संपत्ति का स्वामित्व भी बिना किसी मेहनत के जन्म से लेकर मृत्यु तक मिलना चाहिए जिसे किसी भी प्रकार से घटाया या बढ़ाया या खरीदा बेचा नहीं जाना चाहिए.
अर्थ व्यवस्था की दृष्टि से किसी भी प्रकार की संपत्ति की खरीदी बिक्री का अर्थ उसका मालिकाना हक का विक्रय या क्रय नहीं बल्कि केवल प्रबंधन का अधिकार खरीदा और बेचा जाना चाहिए.
एक नागरिक का जन्मसिद्ध आर्थिक अधिकार ओसत सीमा तक स्वीकार किया जाना चाहिए और किसी भी प्रकार का परिश्रम न करने की स्थिति में भी हर नागरिक को इस पर मालिकाना हक के रूप में शुद्ध लाभ में उसका हिस्सा निरंतर मिलना चाहिए.

एक नागरिक को ओसत सीमा से अधिक संपत्ति संचय का सीमाहीन अधिकार देना अलोकतांत्रिक ही नहीं बल्कि नितांत उदंडता और अन्याय पूर्ण है जिससे समाज में कभी भी सामंजस्य और शांति स्थापित नहीं हो सकती यह तो जिसकी लाठी उसकी भैंस है. 
जब हर नागरिक को ओसत सीमा तक धन के स्वामी के रूप में न्यूनतम हिस्सेदारी मिलने लगेगी तो ही लोकतंत्र को असली माना जा सकेगा न्यूनतम आर्थिक अधिकार के बिना लोकतंत्र का कोई अर्थ नहीं यह किसी के लिए भी कल्याणकारी नहीं हो सकता.
लेकिन ओसत सीमा तक स्वामित्व के आधार पर प्रत्येक व्यक्ति को न्यूनतम आर्थिक लाभ में हिस्सेदारी देकर सबके लिए सुखदाई व्यवस्था का निर्माण किया जा सकता है जो सब लोगों को सर्वमान्य हो सकता है

AINA INDIA: "Art 4 Peace Award" soon. Report by S.Z.Mallick(Jo...

AINA INDIA: "Art 4 Peace Award" soon. Report by S.Z.Mallick(Jo...: विश्व की शशक्त महिलाओं के लिए आस्कर के तर्ज़ पर "आर्ट 4 पीस अवार्ड" जल्द। एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार) नई दिल्ली -   आर्ट 4 पी...

"Art 4 Peace Award" soon. Report by S.Z.Mallick(Journalist)

विश्व की शशक्त महिलाओं के लिए आस्कर के तर्ज़ पर "आर्ट 4 पीस अवार्ड" जल्द।


एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)
नई दिल्ली -   आर्ट 4 पीस अवार्ड 16 अक्टूबर 2016 को आठ श्रेणियों में दिए जायेंगे इसे वेवर्ली हिल्स परेड के नाम से भी जाना जाता है। उल्लेखनिये है की यह एवार्ड विश्व महिला षशक्तिकरण तथा कला को बढ़ावा देने के लिए शांति पुरस्कार के रूप में मुख्यालय ताइवान में दिया जायेगा। यह जानकारी ताइवान की प्रसिद्ध ब्यूटीशियन मुन्नी एयरोन ने बुधवार दिल्ली के प्रेस कलब में प्रेस को जानकारी दे रहीं थीं उन्हों ने अपने उद्देश्यों को उजागर करते हुए कहा की विश्व की महिलाओं की प्रतिभा को उबारने के लिए उनके अंदर छुपे कला को महत्त्व देने के लिए हम विश्व की तमाम संस्कृतियों, परम्पराओं, ज्ञान और कला को एक साथ मिलाकर कर सकारात्मक तरीके से प्रभावशाली बनने के लिए पुरूस्कार देंगे । हालाँकि परियोजना बड़ा है इसीलिए इसे ध्यान में रखते हुए हम सम्पूर्ण विश्व का भर्मण कर देश में हर वह सामाजिक संस्थान जो समाज था विशेष कर महिलाओं के शशक्तिकरण के लिए काम कर रही है वैसी संस्थाओं का हम चुनाव करेंगे और उन्हें  ही आर्ट 4 पीस अवार्ड दिया जाएगा। उन्हों कहा की इस एवार्ड को भी आस्कर के तर्ज़ पर आठ श्रेणियों में दिया जायेगा जिस प्रकार आस्कर में सिनेमा , संगीत , बाल डिज़ाइन मार्शल आर्ट इत्यादि को दिया जाता है। उसी प्रकार से हम केवल महिलाओं को ही इस प्रकार का एवार्ड देंगे।    
ज्ञात हो की मुन्नी आयरोन मनोविज्ञान से ओनर्स हैं और अपना ब्यूटी स्कूल चलातीं हैं तथा इस  आर्ट 4 पीस अवार्ड  की संस्थापक हैं।   
 

Wednesday, May 25, 2016

AINA INDIA: Friendly seminar of Bihar migrant Mallick cast. Re...

AINA INDIA: Friendly seminar of Bihar migrant Mallick cast. Re...: बिहार प्रवासी मालिक मित्रमंडल संगोष्ठी।   एस.ज़ेड. मलिक (पत्रकार)    नई दिल्ली :- बिहार के मुस्लिम अल्पसंख्यकों में ए...

Friendly seminar of Bihar migrant Mallick cast. Report by S.Z.Mallick(Journalist)



बिहार प्रवासी मालिक मित्रमंडल संगोष्ठी।  

एस.ज़ेड. मलिक (पत्रकार)   

नई दिल्ली :- बिहार के मुस्लिम अल्पसंख्यकों में एक जाती मलिक की है दरअसल यह सैयद जाती में आते हैं लेकिन अपने आप को सैयद कहलवाने वाली जाती इन्हें सैयद नहीं मानते जिसके कारन बिहार के मुस्लिम समुदाय में सैयद और मलिक ज़ाती में हमेशा आपसी टकराव तथा द्वेष चलता रहता है।  जबकि मलिक ज़ाती पहले बैत यानि बुज़ुर्गों को मानने वाले सुफिओं के भक्त चाहने वाले अनआयु को कहते हैं। लेकिन इस गुण के विपरीत इनकी कार्यशैली देखने को मिलती है यह जाटों की तरह ठाट बाट ज़मींदारी के तहत हुकूमत करने वाले विशेष लोगों में गिने जाते हैं।  परन्तु आज इस्थिति विपरित है।
 1947 में भारत के बंटवारे में सबसे अधिक मुसलामानों के जो उच्च जाती का शिक्षित तब्क़ा लगभग 75 % लोग पाकिस्तान और कुछ इंग्लॅण्ड और अमेरिका अस्थान्तरित हो गए।  जो कुछ रह गए उनमें  अधिकतर अशिक्षित परन्तु भूस्वामी बने ज़मींदार का रुतबा निभाते रहे। लेकिन जैसे जैसे समय बीतता रहा उनकी नस्लें ऐश और दबंगई में अपना धन बल दोनों ही बर्बाद करते रहे तथा गिरती इस्थिति के मद्देनजर रोज़गार के नाम पर ट्रक  निकाल कर अपनी जीविका अर्जित करने लगे तो कुछ कोलकाता  डक पर  काम कर के अपने बच्चों का लालन पालन  लगे जो बुद्धिजीवी थे वह अपना पेट काट काट अपनी नस्लों को शिक्षित कर भारत के विभिन्न महानगरों में कही सरकारी नौकरी में तो कहीं प्राइवेट नौकरी तथा कुछ अपने स्वंरोज़गार में व्यस्त हो कर अपनी अपनी नस्लों को शिक्षित बनाने के लिए प्रयासरत हैं। जो इस प्रयास में कामयाब हुए वह अब शिक्षित हो कर अपने अपने व्यवसाय खड़ा कर दूसरों को सहारा देने योग बन गए उन्ही से कुछ मलिक बिरादरी के लोगों ने अपने सामाज के उत्थान के लिए बीड़ा उठाया है।  इसी सन्दर्भ में ओखला के पुरानी जसोला में मलिक बेया वेलफेयर ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया के तत्वाधान में  " बिहार प्रवासी मालिक समाज संगोष्ठी " का आयोजन गया।  इस अवसर पर दिल्ली तथा एनसीआर में रह रहे मलिक समाज के सभी लोगों को आमंत्रित किया गया। तथा दिल्ली बिहार प्रवासी मलिक समिति के अध्यक्ष एवं कार्यक्रम के संयोजक अब्दुल सत्तार ने सभा की अध्यक्षता करते हुए सभा को मलिकों का संक्षिप्त विवरण देते हुए कहा की बिहार के मलिकों की स्थिति इस समय इतनी दैनिये है की लोग अपनी बेटियों की शादी अब दूसरे बिरादरी में करने पर मजबूर हैं।  हमें इस पर गहन विचार करना चाहिये इस सभा को बुलाने का हमारा इरादा यही है की लोग अपनी बिरादरी को पहचाने और एक दूसरे के सहयोगी बने। वहां उपस्थित समिति के सचिव मुहम्मद दाउद मालिक ने सभा को सम्बोधित करते हुए समिति के संचालन का ब्योरा देते हुए कहा की समय आगया है की हमें एक जुट हो कर एक दूसरे के सहयोग के लिए संकल्पबद्ध होना चाहिए। कार्यक्रम के संयोजक एवं मंच का संचालन कर रहे अज़िज़ अहमद ने कहा की हमारे कमिटी में सारे बिरादरी से अधिक बिखरवापन है इसे एक जुट की आवश्यकता है। कार्यक्रम के व्यवस्थापक एवं सभा संयोजक अधिवक्ता एजाज़ अहमद ने अपने सम्बोधन में बिरादरी की कमियों को दूर करने आपसी सहयोग से दूर करने पर बल दिया। सभा में उपस्थित डॉ. इक़बाल अहमद ने समिति को विकसित करने के लिए इक्यावन हज़ार की अनुदान राशि भेंट करते हुए कहा की हमारे समाज को और भी शिक्षित होने की आवश्यकता है जो हम सब को मिल कर करना होगा।  वहां उपस्थित समाज सेवक एवं पत्रकार एस. जेड. मालिक ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा की दिल्ली में रह रहे लगभग 6000 मलिकों का आंकड़ा देते हुए कहा की दिल्ली में कमिटी एवं मालिक समाज को मज़बूत तथा  जुट करने के लिए हमें अपने अंदर से घमण्ड को दूर कर अपनी नयी नस्लों को मलिक जाती के प्रति जागरूक करना होगा ताकि भविष्य में हमारी नई नस्लें आपस में एकता कायम रखते हुए एकजुट हो कर समाज को और भी सुदृढ़ तथा मज़बूत बनाने का काम करते रहें।  इसके लिए हमें नियमित रूप से संपर्क बनाये रखना होगा तभी हम समाज को नई राह दिखाने तथा मज़बूत बनाने बनाने में कामयाब हो सकेंगे अनाथा हम इतना बिखर जायेंगे की हमारी पहचान भी लुप्त हो जाएगी।  इस सभा में लगभग दिल्ली एनसीआर से लगभग 500 मलिक बिरादरी के लोग सभा में उपस्थित थे।                           

Monday, April 25, 2016

गरीबी नहीं अमीरी रेखा चाहिए।

देश और दुनिया की पूरी अर्थव्यवस्था संक्रमण (बदलाव)

रोशन लाल अग्रवाल  

देश और दुनिया की पूरी अर्थव्यवस्था बहुत अधिक तेजी के साथ संक्रमण (बदलाव) के दौर से गुजर रही है और उसी के साथ लोगों में बेचैनी असंतोष और टकराव भी बढ़ रहा है। इसका कारण यह है कि पुरानी अर्थ व्यवस्था का आधार मानवीय श्रम था जबकि वर्तमान बदलती हुई अर्थव्यवस्था का आधार केवल पूंजी अर्थात साधन और संपत्ति ही है। 
मानवीय श्रम की भूमिका इतनी अधिकखत्म हो गई है अब कोई भी व्यक्ति श्रम से होने वाली आय के बल पर अपना जीवन नहीं चला सकता लेकिन साधन और संपत्ति के बल पर होने वाली आय लगातार बढ़ती जा रही है। मुठी भर लोगों के पास संपत्ति के अतः सागर बन गए हैं और वर्तमान अर्थव्यवस्था में उनमें निरंतर वृद्धि ही होनी है और किसी भी कारन से और कभी भी उसमें कमी नहीं सकती। इसलिए अब हम यदि समाज को शांतिपूर्वक चलाना चाहते हैं तो एक व्यक्ति के संपत्ति संग्रह की मूलभूत अधिकतम सीमा का निर्धारण करना आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य है दूसरा कोई भी उपाय समाज को भारी विनाश से नहीं बचा पाएगा.

कोई भी ऐसी व्यवस्था जिस से उत्पन्न होने वाले हानि और लाभ होगा समाज में न्याय पूर्ण वितरण नहीं होता हो वह समाज में शांति सद्भाव सहयोग विश्वास प्रेम आत्मीयता और संतुष्टि एवं समृद्धि का निर्माण बिल्कुल नहीं कर सकती और ऐसी अर्थव्यवस्था समाज के लिए वरदान नहीं बल्कि अभिशाप ही सिद्ध होगी इसमें किसी भी प्रकार का संदेह नहीं है।  
सरकार द्वारा उठाए जा रहे अर्थव्यवस्था संबंधी बदलाव के सारे कदम समाज से बिल्कुल छिपाकर झूठ का मायाजाल फैलाकर अर्थात संपूर्ण समाज को धोखा देकर किए जा रहे है और सत्ता और संपत्ति का यह भयानक बदसूरत और खतरनाक खेल समाज में व्यवस्था के प्रति भीषण असंतोष पैदा करने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं कर रहा है। 


इस खेल को केवल निजी संपत्ति की गोपनीयता को खत्म करके बाजार मूल्यों के आधार पर संपत्ति का वास्तविक मूल्य निर्धारण करके साधनों से होने वाली षुद्ध आय को देश के सारे नागरिकों में समानता के आधार पर वितरित आसानी से किया जा सकता है। 
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