जमाअत इस्लामी हिन्द की भोपाल इन्काउंटर मामले की सुप्रीम कोर्ट से जांच की मांग।
नई दिल्ली । जमाअत इस्लामी हिन्द के प्रधान महासचिव मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने मध्यप्रदेश पुलिस के द्वारा भोपाल के निकट 8 विचाराधीन मुस्लिम कैदियों के मारे जाने की खबर पर गंभीर चिंता प्रकट की । जमाअत इस्लामी हिन्द के मुख्यालय में आयोजित नियमित मासिक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि मीडिया के द्वारा दिखाई जाने वाली इन्काउंटर की रिपोर्ट और विडियो से इसकी संदिग्घता का पता चलता है और कई गंभीर प्रश्न खड़े करते हैं जिसका जवाब सरकार और पुलिस को देना आवश्यक है । इन्काउंटर को लेकर सवाल करने वालों पर ही संदेह किया जा रहा है, यह कैसा लोकतंत्र है ? यह घटना पिछले घटनाओं की कड़ी नजर आ रही है। इससे पहले खलिद मुजाहिद, कतील सिद्दीकी और मोहम्मद वकास की भी हिरासत हत्या कर दि गई थी। जो लोग इस तरह की घटनाओं पर प्रश्न खड़ा करते हैं उन्हें यह कह कर चुप कराने का प्रयास किया जाता है कि इससे पुलिस का मनोबल कम होता है, जमाअत इस्लामी हिन्द इस बात को ठीक नहीं समझती है और इसे लोकतंत्र के विपरित मानती है। उन्हों ने कहा सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने पिछले फैसले में कहा है कि ‘‘ पुलिस इन्काउंटर के नाम पर की गई हत्या का स्वंत्रतापूर्वक और निष्पक्ष जांच की जानी चाहिए। इसमें कोई अंतर नहीं कि मृतक आम नागरिक था, या आतंकवादी तथा कट्टरपंथी विचार धारा वाला था। बहरहाल कार्रवाई किसी एजेंसी के द्वारा की गई हो या सरकार के द्वारा इसकी जांच की जानी चाहिए। कानून सबके लिए समान है और यह लोकतंत्र की आत्मा है।’’ इसलिए जमाअते इस्लमी इस इन्काउंटर की उच्च स्तरीय जांच की मांग करती है कि जेल ब्रेक से लेकर इन्काउंटर तक का सारा मामला सामने आ सके और सच्चाई से पर्दा उठाया जा सके। जमाअत इस्लामी हिन्द ने इन्काउंटर की जांच सुप्रीम कोर्ट से कराये जाने और इन्काउंटर करने वाले दोषियों को कठोर दंड देने की मांग की।
झारखंड के जामताड़ा में पुलिस हिरासत में हिंसा के कारण मुस्लिम नौजवान मिनहाज अंसारी की निर्मम हत्या की जमाअत इस्लामी ने सीबीआई जांच की मांग की है। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में कहा गया है कि उसके शरीर पर चोट के निशान पाये गये हैं। तथा गुन्तांग में भी गहरे चोट के निशान पाये गए हैं। पुलिस की बर्बरता का शिकार होने वाले नौजवान के शरीर से इतना अधिक खून का रिस गया कि वह मौत हो गई। जमाअत मांग करती है कि इस तरह की निर्ममता का प्रदर्शन करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए और मृतक के परिजन को न्याय दिलाया जाए।
सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता को देश पर जबारन थोपने के प्रयासों का जमाअत इस्लामी हिन्द पुरजोर विरोध करती है। जमाअत महसूस करती है की देश के अल्पसंख्यकों को पर्सनल लॉ के मामले में संविधान द्वारा प्रदत्त अपने धर्म पर अमल करने के अधिकार से वंचित करने की साजिश है। जमात का मानना है कि देश की बहुलता, विविधता और हर किसी को अपनी संस्कृति अपनाने का पूरा अधिकार है और साथ ही समान नागरिक संहिता को अपने रस्मो रिवाज पर चलने के संविधानिक अधिकार के लिए खतरा समझती है। शादी-विवाह, तलाक और विरासत के अलग अलग नियम उनके यहां प्रचलित हैं और वे सदियों से इसको अपनाये हुए हैं। सरकार उनकी पहचान उनसे नहीं छीन सकती और उन पर जबर्दस्ती किसी भी तरह का कानून लागू नहीं कर सकती। सरकार उन तमाम समुदायों पर एक तरह का कानून कैसे लागू कर सकती है ? इस देश में समान नागरिक संहिता को लागू करके देश को तबाही की तरफ ले जाएगी जिसका जमाअत विरोध करती रहेगी। विधि आयोग की प्रश्नावली देश को गुमराह करने के लिए तैयार किया गया है ताकि बहुसंख्यक की राये का बहाना बना कर दूसरे समुदायों की पारिवारिक व्यवस्था में हस्तक्षेप किया जा सके। जमाअत इस्लामी हिन्द पूरी तरह से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ के साथ है और वह उसके हर फैसले का समर्थन करती है जिसमें विधि आयोग की प्रश्नावली का बहिष्कार भी शामिल है। संविधान के अनुच्छेद 44 में राष्ट्र को बाध्य किया गया है कि वे समान नागरिक संहिता को लागू करने के सिलसिले में विभिन्न समुदायों की सहमति को ध्यान में रखेगी। वह उन पर इसे बलात् लागू नहीं कर सकती और वर्तमान सरकार संविधान की आत्मा के विरुद्ध काम करने पर तुली है जिसकी स्वीकृति किसी भी स्थिति में नहीं दी जा सकती।जमाअत सवाल उठाती है कि सरकार अन्य निर्देशक सिद्धांतों जैसे मुक्त एवं अनिवार्य शिक्षा कि अनदेखी क्यों कर रही है । सामान नागरिक संहिता साम्प्रदायिकता के आधार पर देश के धुरवीकरण का प्रयास है जो राष्ट्र कि विविधता और सम्प्रभूता को नष्ट कर देगी ।
जमाअत इस्लामी हिन्द जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय एमएससी (बायोटेक्नॉलोजी) के प्रथम वर्ष के छात्र नजीब अहमद की एक लम्बे समय से गुमशुदगी पर भी गहरी चिंता प्रकट करते हुये उन्हों ने कहा कि एक दिन पहले नजीब का एबीवीपी से संबंधित छात्रों के साथ विवाद हुआ था। उन लड़कों ने सामुहिक तौर पर उसकी पिटाई भी की थी। परन्तु जेएनयू की चुप्पी और उदासीनता से पता चलता है कि जेएनयू प्रशासन निर्दोष छात्र की हिमायत के विपरीत सम्प्रदायिक्ता का समर्थन कर रहा है। प्रशासन की चुप्पी साधने के कारण ही यह मामला रहस्यमयी बना हुआ है और नजीब का सुराग अब तक नहीं मिल सका है। जमाअत इस्लामी हिंद के विचार में अगर उन लड़कों से पूछगछ की जाती तो संभवतः अब तक कोई सुराग सामने आ जाता और उसकी खोज आसान हो जाती । इस पूरे मामले में जेएनयू कुलपति के न केवल पक्षपात का पता चलता है बल्कि अब यह कहा जा सकता है कि एबीवीपी के उन लड़कों को बचाने का पूरा प्रयास किया जा रहा है जो आम छात्रों के हित एवं लोकतंत्र के खिलाफ है। जमाअत दिल्ली पुलिस के कार्रवाई की भी निंदा करती है कि उसने जांच के नाम पर केवल कागजी खानापूर्ति की और उन छात्रों से अबतक किसी प्रकार कि पूछताछ नहीं कि गई जिन्होंने भीड़ के सामने नजीब को मारा-पीटा था।
समान नागरिक संहिता
,एनडीटीवी प्रसारण पर एक दिन के प्रतिबन्ध कि निंदा
अंतर-मंत्रालय पैनल द्वारा एनडीटीवी के प्रसारण पर एक दिन के प्रतिबंध के फैसले की जमाअत इस्लामी हिन्द ने निंदा की है। यह फैसला प्रेस को मिलने वाली आजादी का खुला उल्लंघन है और आपातकाल के बुरे दिनों की याद ताजा करने वाला है। जमाअत सरकार से मांग करती है कि इस फैसले को तुरंत वापस लिया जाए इससे अभिव्यक्ति की आजादी और न्याय की प्रक्रिया प्रभावित होती है । जमाअत इस्लामी हिन्द सरकार से मांग करती है कि वह इस फैसले को अविलंब वापस ले।
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