Tuesday, November 22, 2016

चुनाव के मद्देनज़र रूपये बदले गए हैं ? बैंक कर्मियों की चांदी है - Blogger by S.Z.Mallick(Journalist)



बैंक कर्मियों की चांदी है। 
एस.ज़ेड.मलिक (पत्रकार)  
 नोट बंदी का यह एक भ्रमित शब्द की उत्पत्ति जान बूझ कर समाज को गुमराह करने के लिए बनाया गया है जबकि नोट बंद किया ही नहीं गया बल्कि बाजार में एक और नए नोट का उत्पादन किया गया। जिससे जमाखोर लोग अधिक से अधिक रुपया कम से कम जगहों में रख सकें । केंद्र सरकार ने जमाखोरों और काला बाज़ारी करनेवालों को अधिक धन इकट्ठा करने का एक सुनहरा अवसर दे दिया है।  जबकि पहले से दस, बीस, पचास, सौ,पाँचसौ, हज़ार, और अब दो हज़ार यह तो नोटों में बढ़ोतरी हो रही है बंदी कहाँ हुयी दरअसल सरकार को नक़ली नोटों या काला धन को रोकना नहीं बल्कि काला धन को एकत्रित करने में आरही रूकावटें को दूर करने के लिए एक शतरंज की चाल चली गयी है , इसलिए की आरएसएस तथा हिन्दू संगठनों को काला धन एकत्रित करने में विपक्षियों द्वारा आरही रूकावटो के कारण भारत की जनता को भर्मित करने के लिए मोदी जी ने पकिस्तान, बंगाल देश और चीन से आ रहे नक़ली मुद्राओं को रोकने नाम पर यह आनन् फानन में ऐसे क़दम उठाये हैं , यह मैं नहीं कह रहा हूँ , मोदी जी यह बात जनता को अब बता रहे हैं जो उनकी ही चहेती मीडिया दिखा रही हैं।
दरअसल अभी तीन प्रदेशों में तीन, चार, पाँच, महीने के अन्तर्गत चुनाव होने हैं। जहाँ भाजपा को विभिन्न प्रत्याशियों का सामना पडेगा तथा सभी भाजपा प्रत्याशियों को भरी ख़र्च का भी सामना करना पड़ेगा, शायद इज़राइल ने आरएसएस को इस चुनाव में पैसे देने से इनकार कर दिया इसलिए इन्हें इस तरह की प्रस्थितियां को पैदा करना पड़ा। इससे सबसे बड़ा असर गैरभाजपाई और विपक्षी पार्टियों को पड़ेगा, ऐसा मना जा रहा है की नए रूपये पूर्ण रूप से भाजपा के थैलियों में पहुँच चुके हैं।     
प्रधान मंत्री नरेंद्र भाई मोदी पिछले दो दिनों से मीडिया पर यह बयान दे रहे हैं की बहुत बड़ी मात्रा में नक़ली नोटों का खेप भारत के बाज़ारों में उतरने वाला था जिस में से कुछ पकड़ा गया इसलिए इसे रोकने के लिए मुझे आनन् फानन में ऐसा क़दम उठाना पड़ा, बहनो भाइयों मुझे 50 दिन और दो मैं सब ठीक कर दूंगा। ऐसा सुनने को मिल रहा है और देखने को भी मिल रहा है। सवाल यह है की अभी भारत की करंसी पूर्णरूप से छपी भी नहीं और और छः महीना पहले ही भारत के मार्किट में नक़ली मुद्रा कैसे उतर गयी और फिर पकड़ा भी जाता है। कमाल की बात है , इन्ही की मीडिया के अनुसार पिछले दिनों कश्मीर के पूंछ सेक्टर में दो आतंकवादियों को मार दिया गया और उनके पास से दो हज़ार रूपये दो नोट मेलें हैं ताज्जुब है - या तो वह आतंकवादी नहीं होंगे या तो उन आतंकवादियों के पास हमारे किसी भारतीय भक्तों द्वारा भारत की करंसी थोड़े मात्रा में ही सही लेकिन पहुँच गयीं हैं।     
भ्रष्टाचार न समाप्त हुआ है न होगा , इसकी मिसाल मैं बहरी दिल्ली के पूठ गांव से दूंगा, एस्टेट बैंक ऑफ़ पटियाला , और ओरिएंटल बैंक और कॉमर्स तथा मंगोलपूरीखर्द गांव के मेन कंझावला रोड पर इस्थित है यहां आज भी भीड़ काम नहीं हुयी है कारन इन क्षेत्रों में अवैध गृह उद्योग काफी है इन उद्धोगों से अस्थानीय पुलिस प्रसाशन और नगर निगम तथा एसडीएम डीसी का ऊपरी खर्च चलता रहता है।  आमदनी नहीं थी तो बेचारे बैंक कर्मियों की इसलिए यह केंद्र सरकार ने विशेष कर ऐसे बैंक कर्मियों पर मेहरबानी करते हुए ऊपरी आमदनी के रस्ते खोल दिए इसलिए आज यह बैंक कर्मी केंद्र सरकार का लाख लाख शुक्रिया अदा कर रहे हैं।  
   बहरहाल, आज से बीस दिनों पहले जब ऐसी दुरप्रविर्तियाँ आरंभ हुयी थी तो भारत के हर जगहों पर हाहाकार मचा हुआ था तब बैंको में रूपये बड़े बैगों और अटैचियों में भर भर कर आ रहे थे और उसी तरह से भरके जा रहे थे तब लोगों की भीड़ को यह लग रहा था की सरकार जनता को नोट पूर्ति करने की पुज़ोर कोशिश कर रही है इस तरह से दस दिनों तक नियमित रूप से चलता रहा , लेकिन जब हज़ारों की लाइन में खड़े मात्र डेढ़ सौ से 200 लोगों को ही 4000,रुपया बदलवाने में कामयाब हो पते थे , फिर पुलिस द्वारा यह लाइन लगाए लोगों को सूचित करवा दिया जाता था की रुपया समाप्त हो गया - उन बैंकों के आस पास मैं तीन दिनों तक चक्कर लगाते रहा , बार बार सोंचता था की सारे दिन लोग लाइनों में खड़े रहते हैं और सिर्फ डेढ़ सौ से मात्र दो सौ लोगों को ही रुपये मिल पते हैं सरकार बैंकों को कितना काम रुपया भेजती है की तुरंत दोपहर होते होते रुपया समाप्त हो जाता है , बड़ा ताजुब होरहा था आखिर कार एक संध्या लगभग साढ़े छे बजे बैंक ऑफ़ पटियाला का एक कर्मचारी एक इसी पूठ गांव के भाजपा के अस्थानीय नेता जिन्हें मैं अक्सर निगम पार्षद दिवेंद्र सोलंकी के साथ देखा करता था उनके ही साथ बातें करते हुए सूना , अजी महाराज आप चिंता न करें जितना भी होगा आप ले आएं या मुझे बता दें मैं आपके यहां आ जाऊंगा, शाम को बैंक बंद होते ही आपको भेजवा दूंगा , जब वह नेता उनसे अलग हुआ तो मैंने उन महाशय को नमस्कार करके उनसे संपर्क में आया, जब मैंने उन से कहा की भाईसाब आप हमारी भी थोड़ी मदद करदो जो भी आपको लेना हो बता दो मिल जाएगा - पहले तो वह मुझ से बड़ा ही टेढ़े शब्दों में बात किया जब मैंने उस को बताया की आपकी सारी बातें सुन लिया है और मैं भी सामाजिक कार्यकर्ता हूँ , और मेरे भी काफी बड़े दायरे हैं तब वह थोड़ा हिचकते हुए कहा की कहाँ रहता है भाई, मैं कहा इसी पूठ में फिर वह बोला कितना है - मैंने जवाब दिया भतेरे हैं यानी बहुत हैं - उसने कहा 25 लगेंगे मैं बोला ठीक लेकिन बदकिस्मती से न मेरे पास इतना था और न कोई ऐसा आदमी था जिसे कहें की भाई इतने पर तू बदलवा ले , और न किसी ने बदलवाने के लिए दिया, वैसे कुछ विशेष लोग मिझे पत्रकार से जानते हैं , दूसरे दिन वह आदमी दुबारा नहीं मिला और वहां इसी तरह नोट बदलवाने की प्रतिक्रिया चलता रहा और आज भी चल रहा है।  इतना तो पता चल गया की इन दिनों बैंको में बैंक कर्मियों की चांदी है , और पुलिस कर्मियों को मिल रहा है सिलवर, आम जनता बेचारी थी बेचारी है और बेचारी रहेगी। इतना तो पता चल गया की यह एक सोंची समझी चाल थी और अब इस चाल में मोदी जी स्वमं ही फंसते जा रहे हैं अब केंद्र सरकार को न उगलते बन रहा है न निगलते बन रहा है। हिदू राज की कल्पना करने वाले बेशक आज अपने आपको असहाय मान रहे हैं लेकिन हार नहीं मान रहे हैं।  कुतर्क करके अपने आप को और मोदी जी बचाने की जी जान तोड़ कोशिश कर रहे हैं।
बहरहाल! यदि सरकार सचमुच इमानदार होती और भ्रष्टाचार समाप्त करने पर सचमुच गम्भीर होती एवं काला धन निकालना चाहती तो अमीरी रेखा कि सीमा तय कर सम्पत्ती कर (टेक्स) छोङ कर सारे कर(टेक्स) समाप्त कर के हर साल करंसी बदलने का तीन महीना पहले से एलान करती और ऐलान से पहले प्रयाप्त मात्रा में नये नोट देश के बैंकों भर देती । इस से किसी को दिक्कत नहीं आती , नोट बदलने का प्रावधान आधार कार्ड से जोड़ा जाता और धीरे धीरे तीन महीने तक पुराने नोटों को हटाते चली जाती। तीन महीने के बाद सरकार टेक्स का नाम लिए बिना यह एलान कर देती की की जिन जिन के पास पुराने नोट जमा हैं वह निर्धारित समय तक अपना पुराना नोट जमा करा दें नहीं तो वह नोट रद्दी में जाएगा। फिर देखते की नोट कैसे बाहार आने लगता है लेकिन सरकार ने ऐसा न कर , गरीबों को दौड़ा दौड़ा कर रुला दिया , और अपने यानी अमीरों को भर भर कर सुला दिया। कोई नहीं !  अंग्रेज भारत को सोने की चिड़िया यूँही नहीं कहते थे। अंग्रजों ने भारत को जितना लूटना था लूटा और फिर यहां से जाने लगे तो आपना दलाल यहि छोड़ गए की बाद में भी किसी न किसी रूप में भारत से लेते सूद के तौर पर लेते रहेंगे। और वह ले रहे हैं। और जनता ख़ुशी ख़ुशी इन सरकारों के माध्यम से दे रही है। जो डॉलर की तुलना में भारत के रूपये का महत्व् कम है। और काम रहेगा।    
सब से चौकाने वाली बात यह है की सबसे पहले 2000 हज़ार का नोट सितंबर महीने में ही मार्किट में कैसे आ गया ? और वह भी किसी वयापारी के पास नहीं बल्कि भाजपा विधायक और सांसद के पास कैसे आया ? इससे स्पष्ट हो जाता है की भारतीय करंसी नोट की शक्ल में सत्ता धारी लोगों के पास सरकार ने पहले पहुंचा दिया था और और ध्यान भटकाने के लिए कभी काश्मीर का मुद्दा उठा दिया तो कभी जेएनयू का मुद्दा उठाती रहे , लोग आपस में उलझते रहें और नये नोट आसानी से भाजपा नेताओं तक पहुँचता रहे।                 
500 , 1000 का नोट को अचानक बन्द करने का फैसला से सारे छोटे वयापारीयों तथा अढ़तीयों की साँसे फूल गयी उन्हें न उगलते बन रहा है न निगलते बन रहा है । सच तो यह है की कला धन विदेशों में हो या न हो, लेकिन भारत में बड़े अढ़तियों जमाखोरों और उद्दोगपतियों और भाजपा के नेताओं के पास अवश्य है। 

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