Sunday, July 17, 2022

सिंगापुर में दिल्ली मॉडल प्रस्तूत करने केजरीवाल को बुलाया – केंद्र ने बैन लगाया ? ,🤔

सिंगापुर में दिल्ली मॉडल प्रस्तूत करने केजरीवाल को बुलाया – केंद्र ने बैन लगाया ? ,🤔: दिल्ली सीएम ने प्रधानमंत्री से, सिंगापु में आयोजित होने वाले वर्ल्ड सिटी सम्मेलन में जाने की मांगी अनुमति। दिल्ली सीएम असमंजस में ।

Monday, May 23, 2022

 दिल्ली के सुल्तानपुरी में बीरादरी के तआवुन से एक गरीब बिना माँ बाप के बच्ची की शादी संपन्न हुई। 

Saturday, November 13, 2021

एक हिंदुस्तानी पत्नी की दिलकश रूदाद!!

एक हिंदुस्तानी पत्नी की दिलकश रूदाद!!: 🔊 Listen This News मुझे राजीव लौटा दीजिए मैं लौट जाऊंगी, नहीं लौटा सकते तो उनके पास यहीं मिट्टी में मिल जाने दीजिए। (सोनिया गांधीजी के पत्र का एक अंश!) एक हिंदुस्तानी पत्नी की दिलकश रूदाद !! आपने देखा है न उन्हें। चौड़ा माथा, गहरी आंखे, लम्बा कद और वो मुस्कान। जब मैंने भी उन्हें […]

Friday, September 24, 2021

मौलाना कलीम सिद्दीकी को तुरंत रिहा किया जाए – जमाअत इस्लामी हिन्द

मौलाना कलीम सिद्दीकी को तुरंत रिहा किया जाए – जमाअत इस्लामी हिन्द

मोदी राज में पूंजीपति मालामाल, किसान मजदूर हो गए कंगाल।

मोदी राज में पूंजीपति मालामाल, किसान मजदूर हो गए कंगाल।: 🔊 Listen This News मोदी राज में पूंजीपति मालामाल, किसान मजदूर हो गए कंगाल। मजदूर और किसान संगठनों के आवाहन पर भारत बचाओ दिवस के तहत बनी प्रभावी मानव श्रृंखला संभाग आयुक्त कार्यालय पर प्रदर्शन कर मजदूर संहिता और काले कृषि कानून वापस लेने की मांग इंदौर – अखिल भारतीय संयुक्त अभियान समिति के आवाहन […]

10-16 Aug. 2020

10-16 Aug. 2020

Sunday, May 30, 2021

प्रेरणा - खुद्दार एक भारतीय नारी की कहानी

प्रेरणा - खुद्दार एक भारतीय नारी की कहानी - कटनी की एक गरीब महिला कुली ? 


 एस.ज़ेड.मलिक (पत्रकार)
  
मध्य्प्रदेश  के कटनी जंक्शन पर 45 कुलियों के बीच अकेली महिला कुली न० 36 हैं, वह इज्जत से कमाती हैं, मेहनत की खाती है  बच्चों को अधिकारी  बनाना चाहती हैं।

एक संघर्षील महिला का जीवन " न नहिरे सुख न सौहरे सुख " वाली कहावत पर चिर्तार्थ होती विशेष कर एक गरीब परिवार की महिला के जीवन में वैसे ही कम संघर्ष नहीं होता है, उस पर अगर उसके पति की मृत्यु हो जाए, तब तो परिवार और बच्चों की जिम्मेदारी भी उसी पर आ जाती है। फिर भी वह घर की और बाहर की दोनों जिम्मेदारियाँ बखूबी निभाती है ।

  मध्यप्रदेश के कटनी जंक्शन में कुली का काम करने वाली अकेली 31वर्षीय महिला "संध्या" को देख कर यात्री अचम्भित रहते हैं, लेकिन यह महिला लोगों की   अपना काम पूरी ईमानदारी और मेहनत से करती हैं। वह कहती हैं कि “भले ही मेरे सपने टूट गए हैं, पर हौसले अभी अभी बुलंद है। ज़िन्दगी ने मुझसे मेरा हमसफर छीन लिया है, लेकिन अब बच्चों को पढ़ा लिखाकर फ़ौज में अफसर बनाना चाहती हूँ। इसके लिए मैं किसी के आगे हाथ नहीं फैलाऊंगी। कुली नंबर 36 हूँ और मेहनत से कमाती हूँ और इज़्ज़त से खाती हूँ।”   स्वाभिमानी महिला हैं, किसी से मदद की याचना करने की बजाय वे महंत करके अपने परिवार के लिए रोज़ी रोटी कमाने में विश्वास रखती हैं ।

हर रोज़ मध्य प्रदेश के कटनी रेलवे स्टेशन पर कुली का काम करती हैं। उनके ऊपर एक बूढ़ी सास और तीन बच्चों के पालन पोषण की जिम्मेदारी है, इसलिए वे यह जिम्मेदारी उठाने के लिए, यात्रियों का बोझ उठती हैं। उन्होंने अपने नाम का रेल्वे कुली का लाइसेंस भी बनवा लिया है और अब वे इस काम को पूरे परिश्रम और हिम्मत के साथ करती हैं। रेल्वे प्लेटफॉर्म जब वे यात्रियों का वज़न उठाकर चल रहे होते हैं तो सभी लोग उन्हें देखकर आश्चर्य में पड़ जाते हैं और उनकी हिम्मत की तारीफ किए बिना नहीं रह पाते हैं ।

कुली नम्बर 36 कटनी जंक्शन पर कुली का काम करती हैं, इनका पूरा नाम संध्या मारावी है। वे जनवरी 2017 से लेकर यह काम कर रहीं हैं। उन्होंने बताया कि वे यह काम मजबूरी में करती हैं क्योंकि उन्हें अपनी बूढ़ी सास और तीन बच्चों को पालना है। वे कहती हैं कि वह अपने पति के साथ कटनी में ही रहती थीं। उनके तीन बच्चे हैं ।
30 वर्ष की उम्र में पहले संध्या अन्य महिलाओं की तरह ही घर और बच्चों को संभाला करती थी। इसी बीच उनके पति भोलाराम बीमार हो गए। उनकी बीमारी काफ़ी समय तक चली और फिर 22 अक्टूबर 2016 को उनकी मृत्यु हो गई। जब उनके पति बीमार थे, तब भी वे मजदूरी करके अपने घर का ख़र्च उठाते थे। पति के गुजर जाने के बाद सारी जिम्मेदारी संध्या पर आ गई। उनको अपने परिवार के लिए रोजी-रोटी की चिंता होने लगी इसलिए उन्हें जल्द से जल्द किसी नौकरी की आवश्यकता थी, अतः जब कोई अन्य नौकरी ना मिल पाई तो उन्होंने कुली की नौकरी ही कर ली ।

संध्या कहती हैं कि जिस समय हमें नौकरी खोज रही थी तब किसी व्यक्ति ने उन्हें बताया कि कटनी रेलवे स्टेशन पर कुली की आवश्यकता है तो उन्होंने जल्दी से इस नौकरी के लिए आवेदन कर दिया। वह बताती है कि इस रेलवे स्टेशन पर 45 पुरुष कुली हैं और उनके बीच में अकेली संध्या महिला कुली के तौर पर काम करते हैं पिछले वर्ष ही उन्हें बिल्ला नंबर 36 मिला ।

सन्ध्या जबलपुर में रहती हैं और नौकरी के लिए कुंडम से प्रतिदिन 90 किमी ट्रैवल (45 किमी आना-जाना) करके कटनी रेलवे स्टेशन पहुँचती हैं। फिर काम करके जबलपुर और फिर घर लौट पाती हैं। इस दौरान जब वे नौकरी के लिए जाती हैं तो उनकी सास बच्चों की देखभाल करती हैं ।

संध्या के तीन बच्चे हैं, साहिल उम्र 8 वर्ष, हर्षित 6 साल व बेटी पायल 4 वर्ष की है। इन तीनों बच्चों के पालन और अच्छी शिक्षा के लिए वह लोगों का बोझ उठाकर अपने बच्चों को पढ़ाती हैं। वे चाहती हैं कि उनके बच्चे बड़े होकर देश की सेवा के लिए फ़ौज में अफसर बनें। बच्चों के लिए स्वाभिमान के साथ संघर्ष करती हुई इस माँ के जज्बे को सलाम है ।

Saturday, May 29, 2021

मोदी ने बनाया अपने रिश्तेदारों को करोड़पति।

 बहुत महत्वपूर्ण जानकारी: -

मोदी ने बनाया अपने रिश्तेदारों को करोड़पति।


*बीजेपी नेता और बीजेपी आईटी सेल के लोग लगातार यह कहते नहीं थकते हैं कि .... मोदी अपने रिश्तेदारों के सामने घास भी नहीं डालते। लेकिन ये सभी पिछले कुछ वर्षों में करोड़पति और कुछ अरबपति कैसे बन गए हैं।*

1. *सोमाभाई मोदी (75 वर्ष)* सेवानिवृत्त स्वास्थ्य अधिकारी - वर्तमान में गुजरात में भर्ती बोर्ड के अध्यक्ष हैं।

2. *अमृतभाई मोदी (72 वर्ष)*
पूर्व में एक निजी कारखाने में कार्यरत, वह आज अहमदाबाद और गांधीनगर में सबसे बड़े रियल एस्टेट टाइकून हैं।

3. *प्रह्लाद मोदी (64 वर्ष)* की राशन की दुकान हुआ करती थी, वर्तमान में हुंडई, मारुति और होंडा के अहमदाबाद, वडोदरा में चार पहिया वाहन शोरूम हैं।

4.  *पंकज मोदी (58 वर्ष)* पूर्व में सूचना विभाग में एक सामान्य कर्मचारी थे, आज सोमा भाई भर्ती बोर्ड के उपाध्यक्ष के रूप में उनके साथ हैं।

5. *भोगीलाल मोदी (67 वर्ष)* स्वामित्व वाले किराना स्टोर, आज अहमदाबाद, सूरत और वडोदरा में रिलायंस मॉल के मालिक हैं।

6.  *अरविंद मोदी (64 वर्ष)* वे एक स्क्रैप डीलर थे, आज वह रियल एस्टेट और बड़ी निर्माण कंपनियों के लिए स्टील ठेकेदार हैं।

7.  *भारत मोदी (55 वर्ष)* एक पेट्रोल पंप पर काम कर रहे थे। आज, वह अहमदाबाद में अगियारस पेट्रोल पंप के मालिक हैं।

8.  *अशोक मोदी (51 वर्ष)* की पतंग और किराने की दुकान थी। आज, वह भोगीलाल मोदी के साथ रिलायंस में भागीदार हैं।

9.  *चंद्रकांत मोदी (48 वर्ष)* एक गौशाला में काम कर रहे थे। आज, अहमदाबाद, गांधीनगर में इसके नौ दुग्ध उत्पादन केंद्र हैं।

10.  *रमेश मोदी (57 वर्ष)* शिक्षक के रूप में कार्यरत थे। आज उनके पास पांच स्कूल, 3 इंजीनियरिंग कॉलेज, आयुर्वेद, होम्योपैथी, फिजियोथेरेपी कॉलेज और मेडिकल कॉलेज हैं।

11. *भार्गव मोदी (44 वर्ष)* अध्यापन केंद्र में काम करते हुए रमेश मोदी की संस्थाओं में भागीदार हैं

12. *बिपिन मोदी (42 वर्ष)* अहमदाबाद लाइब्रेरी में काम करते थे। आज केजी से  12 वीं तक पुस्तक वितरण करने वाले एक प्रकाशन कंपनी में भागीदार है जो केजी से 12 वीं तक की स्कूली पुस्तकों की आपूर्ति करती है।

*1 से 4 - प्रधानमंत्री मोदी के भाई*

*5 से 9 - मोदी के चचेरे भाई*

*10 - जगजीवन दास मोदी, चचेरे भाई*

 *11 - भार्गव कांतिलाल*,
 *12 - बिपिन जयंतीलाल मोदी* (प्रधानमंत्री के सबसे छोटे चाचा) के पुत्र हैं।
सभी से अनुरोध है कि यह संदेश हर भारतीय तक पहुंचे ... *जिस अंधभक्त को विश्वास न हो कृपया वो "मुख्य सचिव गुजरात सरकार" से RTI मांग कर संतुष्ट हो सकता है🙏 जय हिन्द*

Friday, May 28, 2021

वैक्सीन एक साजिश है ?-

वैक्सीन एक साजिश है ? 

वैक्सीन मानव अंग पे जिस जगह पर इंजेक्ट किया गया है उस जगह पर मैग्नेट का एक छोटा सा टुकड़ा सटाएं वह मैग्नेट उस जगह पर चिपक जाएगा जहां वैक्सीन दिया गया है। इसका मतलब है कि उस वैक्सीन इंजेक्शन में लिकवीड माइक्रो चिप्स मानव शरीर मे इंजेक्ट किया जा रहा है । या तो मानव शरीर को कोई न कोई अपने नियंत्रण में रखना चाहते है- या मानव शरीर को चलती फिरती लाश बनाना चाहता है ? कुछ तो है जो उस जगह पर मैग्नेट  चिपक रहा है- मैग्नेट ऐसे मानव के किसी अंग पर तो चिपकता नहीं है।

 एस. जेड.मलिक(पत्रकार)

मिल्लत के नाम एक पैगाम .

 मिल्लत के नाम एक पैगाम 


इत्तिलाये बिरादराने मिल्लत दुनियां में मुसलमानो की गिरती हालात के मद्देनजर आपका तवज्जो चाहता हूं, लेहाज़ा मुझे अल्लाह की ज़ात से उम्मीद है की मेरे इस इरादे पर अमल करें या करें लेकिन एक बार अपने आप मे मंथन ज़रूर करेंगे। 
1 - हम सब कहने के लिए ईमान वाले अलमुस्लेमीन वलमुसलमात उम्मते मोहम्मदिया हैं, जैसा की हम अपने बुज़ुर्गों से सुनते आ रहा हैं की हम विशेष कर मलिक जो सैयद बिरादरी में आते हैं और हम अहले बैत भी हैं , यह हम बदकिस्मती कहें या स्वार्थ या मौजूदा हालात के तहत अपने आपको निचले तबके यानी ओबीसी (अन्य पिछड़ी जातिओं के पायदान पर अपने आपको खड़ा कर के बाज़ाप्ते सरकार के यहां पंजीकृत यानी रजिस्ट्रेशन भी करा लिया - इसलिए मेरा मानना है कि क़ौम ए मोहम्मदिया विशेष कर मेरी बिरादरी मेरे मिल्लत के लोग - आज आपस मे न इत्तिफ़ाक़ रखते हैं ना इत्ततिहाद में हैं, रहें भी कैसे,, हमारे  अंदर जो दुनियावी लालच आ गई , अल्लाह का फरमान है हर मोमिन मर्द व औरत को एक दूसरे को फायदे पहुंचाने के लिए पैदा यानी दुनियां पर भेजा है दुनियां में धन जमा करने के लिए नहीं बल्कि आपसे कम अक़ल रखने वालों और बेसहारा गरीब लाचार मजबूर लोगों को मदद करने के लिए लेकिन हम खुदा के एहकाम को भूल कर दुनियाँ कमाने में  अपना क़ीमती वक़्त को लगा रहे हैं , दुनियां में रहना है तो ऐसा तो करना पडेगा ही - इसलिए की हम दुनियाँ की प्रयोगिता में पिछड़ न जायें और इसी सोंच के कारण हमारे अंदर ईर्ष्या , द्वेष ने जन्म ले कर हमें दीनी आइतबार से मुआशरे में हमारे मुजाहादियत को समाप्त कर इतना गिरा दिया की हम मुंसिफ न हो कर मुजरिम हो गये। और हाँथ फैलाने वाले हो गये। जिसकी वजह कर आज हम माशियत के नुख्ते नज़रिया , आर्थिक दृष्टिकोण economically कंडीशन से कमज़ोर हो गये हैं । बावजूद इसके हमारे बिरादरी के अंदर अपने आप में घमंड , जलन , हसद 95 प्रतिशत यानी फीसद में देखने  को मिलता है।  और तो और , इनसब बुराइयों के अलावा खास कर गांव देहातों में खानदान के लोग अपना वक़्त अधिकतर एक दूसरों को नीचा दिखाने और एक दूसरे को गिराने और एक दूसरे को एक दूसरे का रास्ता रोकने में लगाते हैं।  क्या यह आदत सही है ?- जबकि अल्लाह ने मलिक बिरादरी को एक ख़ास रुतबे से नवाज़ा है, जबकि मलिक बिरादरी 80 के दशक से पहले अशिक्षित होने के बावजूद खानदानी विरासती तजुर्बा, ज़मींदाराना हाव-भाव और रईसाना ठाट के साथ साथ एक दूसरे से हमदर्दी और एक दीसरे की मदद करने के लिए सभी के अंदर वह जज़्बा देखने मिलता था - लेकिन ऐसा नहीं है की आज यह जज़्बा लोगों के अंदर से खत्म हो गया गया है - वह जज़्बा आज भी है लेकिन कमी आयी है इसे तस्लीम करना पड़ेगा। कल के बनिस्बत आज बिरादरी के कुछ लोगों के अंदर नयी सोंच के साथ समाज में कुछ नया करने का मन बना है , और लोग कर रहे हैं।  बहुत ख़ुशी और फ़क़्र की बात है।  लेकिन इसी काम को अगर एक इत्तिहाद और इत्तिफ़ाक़ के साथ निज़ाम यानी बेहतर व्यवस्था management के साथ अगर समाज में ज़रूरतनंदों की मदद की जाए तो बेहतर होगा जैसे अभी मेरी नज़र में बिहार अंजुमन और रियाद मलिक वेफेयर सोसायटी रहबर कोचिंग सेंटर जो समाज के उन्नति के लिए काम कर रहे हैं वह सराहनीय है ,, बिहार अंजुमन और रहबर कोचिंग गरीब के टैलेंटेड बच्चों को सेलेक्ट करता है और सरमायादारों से सम्पर्क कर उन्हें उन बच्चों का लिस्ट सौंप देते हैं जो बच्चे इंजिनियर, डॉक्टर, टीचर,आईएएस, आईपीएस के लायक है उन्हें उन सरमायादारों से उन बच्चों के कोर्स के अवधी यानी मेयारी वक़्त तक उनके सलाहियत के मुताबिक़ उनका खर्च उठाने की ज़िम्मेदारी लेने की आजज़ी यानी आग्रह करते है और सरमायादार ऐसा करते है की अपने हस्बे औक़ात एक दो बच्चों की ज़िम्मेदारी उठाते हैं, जैसे कनाडा के केयरलीक फाउंडेशन, और आतिना केयर फाउंडेशन बिहार शरीफ में गरीब ज़रूररतमन्द लोगों को एक महीने का राशन और दो बच्चों को स्कॉलरशिप दे रही है। इसी तरह हमारी बिरादरी भी चाहे तो हमारे क़ौम में कोई भी इंसान न भिखारी रहेगा और न कोई मोहताज रहेगा, न बेरोज़गार रहेगा अगर हमारे बिरादरी के लोग सवा करोड़ सरदारों के जैसे देने वाले बन जायें तो - भारत में 20 करोड़ हमारी क़ौम अलमुस्लीमीन -वलमुसलमात एक मन बना लें मात्र 1 रुपया एक आदमी पर हर घर में निकालें औसतन हर घर में 3 आदमी मान के चलें - 3 रुपया , 20 करोड़ की आबादी के हिसाब से तीन रुपिया एक घर से निकलता तो 20 गुना 3 रुपया = 60 करोड़ यानी एक दिन में 60 करोड़ इसे 30 दिन से गुणा करें तो 180 करोड़ आपके बैतुमाल में आ जाता है, और 180 करोड़ को 12 महीना से मल्टीपलाई करें तो 2.160 करोड़ रुपया जमा होता है। यानी 2160 करोड़ एक साल में बैतुलमाल में जमा हो जाता है। इसके अलावा जो आपके धर्म के मुताबिक़ फितरा ज़कात, सदक़ा, का पैसा भी उसी बैतूल माल में जमा करें, तो आपके बैतुलमाल में हर साल औसतन 200 करोड़ जमा होता है यानी हर साल आपके बैतूल मॉल में लगभग 25 से 3000 करोड़ जमा होता है. इसमें से आप 1-1 करोड़ रुपया भारत के प्रत्येक नागरिकों को वितरित कर दें - भारत का हर व्यक्ति रोज़गारयुक्त हो जाएगा सबकी बेरोज़गारी दूर हो जायेगी। फिर मुस्लिम क़ौम मुंसिफ हो जाएगी। भारत की जनता का विश्वास मुसलमानो पर होगा। मुसलमान भारत सरकार का पैटर्न यानी सहयोगी होगा आरएसएस और जमात इस्लामी हिन्द , जमात उलमा हिन्द , ज़कात फाउंडेशन जैसी संस्था समाप्त हो जाएगी। 

व्यवस्था कैसे करें ?  

निज़ाम अर्थात व्यवस्था यानी management कैसे करेंगे - जैसे हज़रत उम्र बिन ख़त्ताब रज़ि० ने अपने ख़िलाफ़त के  ज़माने में किया था - जहाँ जहां भी मुसलमानो की बस्ती थी , वहाँ वहां उस बस्ती की आबादी के हिसाब से हर बस्ती में बैतुलमाल की व्यवस्था की और बैतूल माल अर्थात बैंक आपके हर एक ब्लॉक में हो और इसका रीज़नल ऑफिस जिला में होना चाहिए। और इस बैतुलमाल का हेड ऑफिस हर राज्य के राजधानी में होना चाहिए और इसका हेड ऑफिस देशकी राजधानी में होनी चाहिए और इस इस बैतूल माल को भारतीय रिजर्ब बैंक से जोड़ना चाहिए ताकि कम्युनिटी का सरकार के हिस्सेदार हो - भारत में होने के नाते और रिज़ेब बैंक से लाभ भारतीय अन्य समाज के हित की खातिर आप इंट्रेस्ट यानी लाभ का कारोबार कर सकते हैं परन्तु अपने समाज के लिए बिना ब्याज के लोन दे कर समय अवधि पर वसूल कर सकते हैं - लेकिन किसी गैर मुस्लिम समाज या व्यापारी समाज से बे झिझक इंट्रेस्ट के साथ कारोबार कर सकते हैं। ऐसे कर्यों से आप सरकार के सहयोगी बन कर पैरलर गोवेर्मेंट चला सकते हैं। इसका अन्य लाभ व ब्याज आप सरकार को देश के विकास में दे सकते हैं जिससे आकार आपकी एक प्रकार से क़र्ज़दार रहेगी। व्यवस्था पर हम मंथन कर उसकी कार्यपालिका तय कर सकते हैं। 

एस. ज़ेड. मलिक(पत्रकार)
9891954102

Thursday, April 8, 2021

 मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी - वर्तमान अस्थाई कार्यकारणी महासचिव आल इंडिया मुस्लिम प्रसनल्ला बोर्ड दिल्ली के नियुक्त। 


एस. ज़ेड. मलिक(पत्रकार)

*मौलाना खालिद सैफ उल्ला साहब रहमानी को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड का अस्थाई जनरल सेकेट्री नियुक्त किया गया ।*

एस. जेड.मलिक(पत्रकार)

  नई दिल्ली - ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड  के
जनरल सेकेट्री का पद रिक्त हो गया था जिसके कारण बोर्ड के आवश्यक कार्यो में समस्यायें उत्पन्न होने लगी थी उसके मद्देनज़र ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड के महासचिव पद पर प्रख्यात इस्लामी विद्वान मौलाना खालिद सैफ उल्ला रहमानी साहब को बोर्ड का अस्थायी जनरल सेकेट्री नियुक्त किया गया है। ज्ञात हो कि यह नियुक्ति ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड के अध्यक्ष हज़रत मौलाना मोहम्मद रावे हसनी नदवी साहब ने मौलाना की बोर्ड प्रति ईमानदारी व उनकी क़ाबलियत एवं उनकी समुदाय के प्रति समर्पण तथा सक्रियता को देखते हुए उनका नाम इस ज़िम्मेदार पद के लिए चुना है।

दिल्ली में बढ़ता कोरोना का प्रकोप

दिल्ली में बढ़ता कोरोना का प्रकोप एवं उससे बढ़ती मृत्य दर और उस पर से सरकार द्वारा रात का कर्फ्यू चिंतनीय एवं विचारणीय - दिल्ली एआईएमआईएम  


एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)   


दोनों सरकारें मुसलमानो  के साथ लूका छिपी का खेल - खेल रही है।  ऐसा लगता है रमज़ान के मद्दे नज़र दिल्ली सरकार व केंद्र सरकार द्वारा क़दम उठाया गया है। दिल्ली सरकार के सारे दावे खोखले साबित हो रहे हैं  - कलीमुल हफ़ीज़

 

नई दिल्ली - दिल्ली में कोरोना के मामले दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं जिसके कारण रात में कर्फ्यू भी लगाया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि रमज़ान में तरावीह और सेहरी में मुसलमानों के लिए मुश्किलें पैदा करने के लिए रात का कर्फ्यू लगाया गया है। रात के कर्फ्यू की कोई आवश्यकता नहीं थी क्योंकि लोग रात में अपने घरों में रहते हैं और जरूरत पड़ने पर ही घर से बाहर निकलते हैं यह उन्हें परेशान करेगा जो इमेरजेंसी में घर से निकलना चाहेंगे और पुलिस भी उनको आतंकित करेगी। जहां तक ई-पास की बात है, उसका मिलना भी बहुत सरल नही है अशिक्षित वर्ग उसको प्राप्त नही कर सकता। गलियों में मास्क के नाम पर चालान काटकर पैसा कमाने वाली पुलिस को भी अधिक पैसा कमाने के अवसर मिलेंगे। इसके बजाय, बाजार बंद करने का समय तय किया जा सकता है परन्तु मेडिकल स्टोर को छूट मिलनी चाहिए, कोरोना को नियंत्रित करने और दिल्ली को मॉडल के रूप में प्रस्तुत करने के दिल्ली सरकार के सभी दावे खोखले साबित हुए है। 

 दिल्ली के एआईएमआईएम के अध्यक्ष श्री कलीमुल हफ़ीज़ ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी उन्होंने दोनों सरकारों पर आरोप लगाते हुए कहा है की दिल्ली में बढ़ते कोरोना के प्रकोप से मृत्यु दर में बढ़ोतरी यह चिन्तनीय एवं विचारणीय है। इस इस भयावर स्थिति के मद्देनज़र दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष ने मजलिस के कार्यकर्ताओं से अनुरोध भी किया कि वे इस महामारी से निपटने के लिए चिकित्सा टीम और लोगों के बीच बेहतर उपचार के लिए काम करें, ताकि लोगों में जागरूकता पैदा हो सके, टीकाकरण को लेकर पैदा होने वाली भ्रांतियों को समझाया जा सके। अपनी गली- मोहल्लों में सफाई व्यवस्था सुचारित रूप से सुनिश्चित कराएं। अगर सरकारी मशीनरी किसी भी वार्ड में विफल हो रही है, तो कानूनी कार्रवाई करें और मजलिस के दिल्ली कार्यालय को भी सूचित करें। उन्होंने कर्फ्यू को एक अनावश्यक कदम करार दिया क्योंकि इससे जनता को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा और पुलिस बिना वजह जनता को सताएगी। कर्फ्यू के नाम से मजदूर वर्ग में दहशत पैदा होगी और बाहर से आने वाले मजदूर रुक जाएंगे। उन्होंने चिंता जताई कि मजदूर वर्ग रात के कर्फ्यू के कारण दिल्ली से लौटने का इरादा कर सकता है। ऐसा होने पर बेरोजगारी बढ़ेगी। कलीमुल हफ़ीज़ ने सुझाव दिया कि रात के कर्फ्यू के बजाय, रात में बाजार को बंद करने के लिए एक समय निर्धारित किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि आवश्यक वस्तुओं की दुकानों को खुला रखने के लिए ध्यान देना चाहिए। उन्होंने मांग की, कि तरावीह और सेहरी के दौरान लोगों को परेशान न किया जाए और टीकाकरण कर्मचारियों को बढ़ाया जाये ताकि प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा किया जा सके। कलीमुल  हफ़ीज़ ने दिल्ली होमगार्ड्स द्वारा मास्क के नाम पर लोगों के उत्पीड़न पर भी आपत्ति जताई। उन्होंने सवाल किया कि अगर एक मोटरसाइकिल सवार हेलमेट पहनकर अकेले यात्रा कर रहा हैं तो मोटरसाइकिल चालक को मास्क पहनने की आवश्यकता क्यों है लेकिन दिल्ली पुलिस उसका फोटो खींचकर चलान काट देती है। यह दिल्ली सरकार के लिए गर्व की बात नहीं है कि चालान के माध्यम से लोगों से बड़ी मात्रा में धन इकट्ठा करे। गौरवशाली बात ये है कि दिल्ली सरकार ये ध्यान दे कि महामारी से कैसे निजात पाया जाए जिससे जनता में विश्वास बना रहे और गरीब आदमी आसानी से दो रोटी खा सके।

Friday, March 26, 2021

शिक्षा एन्क्लेव कोआपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी प्रबंधकीय कमेटी द्वारा लगभ 2 करोड़ रूपये का गबन

 शिक्षा एन्क्लेव कोआपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी के प्रबंधकीय कमेटी  द्वारा लगभ 1.5 से 2 करोड़ रूपये का गबन। 

 पिछले 21 वर्ष से फ़्लैट के मालिक अपने वैध मालिकाना हक़ से वंचित। 
उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री व प्रसाशन से न्याय की  गुहार। 


जी. एस. परिहार (स्वतंत्र पत्रकार )
  
गाज़ियाबाद  - 1992, से शिक्षा एन्क्लेव कोआपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी, वसुंधरा,  सेक्टर-6 गाज़ियाबाद  स्तित्व में आयी।  तब से अब तक सोसाइटी के आला अधिकारी अपने सदस्यों को बेवक़ूफ़ बना कर अपना हित साधते आ रहे हैं। जानकार सूत्रों से शिक्षा एन्क्लेव कोआपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी, वसुंधरा, सेक्टर-6, गाज़ियाबाद में लगभग 1.5 से 2 करोड़ रूपये का गबन का मामला प्रकाश में आया है। 
 दरअसल उक्त सोसाइटी के कुछ  मानना है की वर्तमान में सोसायटी भ्रष्टाचार का भण्डार बना हुआ हैं, जिसमें लगभग एक करोड़ चालीस लाख बारह हजार रुपये रकम का घपला पहले ही हो चुका है, जिसके सन्दर्भ में उच्चस्तरीय जांच के लिए उत्तर प्रदेश प्रसाशन से गुहार लगाईं जा चुकी है। और प्रसाशन मानो घोर निंद्रा में तल्लीन है और रहे भी क्यों नहीं , शायद सोसाइटी उत्तर प्रदेश प्रसाशन के लिए दुदहर गाये जो साबित हो रही है इसलिए प्रसाशन भी मौन है।
 बहरहाल  मामल उत्तर प्रदेश प्रसाशन में बैठे चंद स्वार्थी लोगों के कारण सरकार के राजस्व का नुक्सान हो रहा है।  जानकार सूत्रों द्वारा 1998 में इस समिति को दो एकड़ भूमी आवंटित किया गया तथा समिति ने दिनांक 17/02/2000 तक "आवास विकास परिषद्" को उक्त आवंटित भूमी की पूरी कीमत चुका दी और दिनांक 19/02/2000 को ‘नो-ड्यू’ सर्टिफिकेट भी हासिल कर लिया था। इसके साथ ही समिति ने (HIG, MIG & LIG तीन श्रेणी के) 120 फ्लैटों का निर्माण करके इच्छुक खरीदारों को फ्लैटों का आवंटन भी कर दिया। जिन लोगों ने फ्लैफ खरीदा उन सभी को बीते लगभग 23 वर्षों में अलग-अलग तारीखों पर क़ब्ज़ा भी मिल गया , परन्तु क़ब्ज़ा लेने वाले सदस्यों का दुर्भाग्य कहें या उनकी गलती कि न तो उक्त भूमि की आज तक सोसाइटी के जमीन की रजिस्ट्री हो पाई है और न ही इसमें बने फ्लैटों की किसी को रजिस्ट्री ही दी गई । तो फिर रजिस्ट्री न होने का कारण क्या है ? दरअसल सोसाइटी की जमीन और फ्लैटों की रजिस्ट्री न होना सोसाइटी के गवर्निंग बॉडी के कुछ विशेष सदस्यों द्वारा किया गया भ्रष्टाचार एक प्रमुख कारण है।                

 ज्ञात हो कि फरवरी सन-2000 में सोसाइटी द्वारा खरीदी गई ज़मीन के रजिस्ट्री की पूरी कीमत चुकाने के बावजूद "आवास विकास परिषद् गाज़ियाबाद" ने दिनांक 27/03/2002 को 8190151/- रुपये का बकाया डिमांड नोटिस समिति को भेज दिया, जिसमें बकाया न चुकाने पर समिति की आवंटित भूमि को रद्द करने की बात कही गई थी। इस बाबत में आवास विकास परिषद को सोसाइटी के सदस्यों ने अपना किल्यरेंस की सफाई देते रहे पत्राचार करते रहे।  इस विषय में पत्राचार और बात-चीत से कोई हल नहीं निकला तो "आवास विकास परिषद् गाज़ियाबाद" द्वारा भेजा गया डिमांड नोटिस के विरुद्ध फिर एक रिट पिटीशन इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी गयी, उसके बाद इस विवाद पर लगभग 14 वर्ष बाद 16-अक्टूबर सन 2015 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपना फैसला सोसाइटी के पक्ष में सुनाया, और आवास विकास परिषद् गाज़ियाबाद द्वारा जारी दिनांक 27/03/2002 के उक्त डिमांड नोटिस को नाजायज करार देते हुए रद्द कर दिया | बावजूद उसके इसी क्रम में आवास विकास परिषद् द्वारा तीन बार रिव्यू पिटीशन डाला और हाई कोर्ट ने तीनो बार ही, 2016 को 13/01/2017 में रद्द कर दिया। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी आवास विकास परिषद् द्वारा दाखिल स्पेशल लीव पिटीशन (SLP-Civil) डायरी नं.-9177/2018 को भी दिनांक 26/03/2018 को रद्द कर दिया।  
 लेकिन, सवाल यह है की इतना सब होने के बाद भी, समिति द्वारा फरवरी सन-2000 में  जमीन का पूरा मूल्य चुकाने के लगभग 21 साल बाद भी समिति के जमीन की रजिस्ट्री आज तक नहीं हो पाई है, आखिर रजिस्ट्री न होने का कारण क्या है ?   

 जानकार सूत्रों द्वारा सोसाइटी की पुरानी प्रबंधकीय गवनिंग बॉडी में अध्यक्ष और महा सचिव व ट्रेजरार इनकी मनमाना यह लोगों आज तक न सोसाइटी में कभी चुनाव कराया और ना कभी कोई समान्य बैठक ही बलाई जो भी करना होता है जो भी निर्णय लेना होता है यही तीन लोग अपने आप में चुनाव भी करा लेते हैं और अध्ह्यक्ष महासचिव और कोषाध्यक्ष भी बन जाते हैं जिससे अधिकतर आवासीय सोसाइटियों (समितियों) का प्रबंधन चाहता ही नहीं कि सोसाइटी के जमीन की रजिस्ट्री हो, जिसके परिणाम स्वरूप, सोसाइटी के प्रबंधन के सामने समिति में बने मकानों की रजिस्ट्री उन मकानों के खरीदारों के नाम कराने की बाध्यता खड़ी हो जाए। यह एक कड़वा सच है कि मकानों की रजिस्ट्री न होने की स्थिति में, मकानों के क्रय-विक्रय होने पर, एक व्यक्ति का मकान दूसरे के नाम ट्रांसफर करने के नाम पर समिति के कार्यकर्ताओं का क्रेता-विक्रेता दोनों से अवैध रूप से मोटा पैसा वसूलने का धंधा चलता है। 
 19-फरवरी-2000 को आवास विकास परिषद् से No Due Certificate लेने के दो वर्ष बाद तक भी न तो सोसाइटी की तत्कालीन प्रबंधन कमेटी ने सोसाइटी की जमीन की रजिस्ट्री के लिए के लिए न प्रभावी तरीके से सही कदम उठाये और न ही 26-मार्च-2018 को आवास विकास परिषद् की  SLP खारिज होने के बाद, पिछले तीन वर्ष के बीच सोसाइटी के वर्तमान प्रबंधन ने ऐसा कुछ सही निर्णय ही लिया  जिससे कि सोसाइटी की जमीन की रजिस्ट्री फरवरी-सन-2000 में लागू स्टाम्प ड्यूटी रेट से हो। निश्चित ही सोसाइटी के प्रबंधन की इन्हीं जानबूझ कर की गईं लापरवाही या यूँ कहें ड्रामा और अवैध गतिविधियों के परिणाम स्वरूप बहुत बड़े भरताचार को उजागर करता है। उक्त सोसइटी की जमीन और सोसाइटी में बने फ्लैटों की रजिस्ट्री भी आज तक नहीं हो पाई है।  यही कारण है की सोसाइटी में बने फ्लैटों (मकानों) के खरीदार मानसिक और आर्थिक दोनों प्रकार से परीशान हो रहे हैं, क्योंकि सोसाइटी की जमीन की जो रजिस्ट्री सन-2000 और सन 2008 के बीच मात्र 22,33,250/- रुपये के स्टाम्प ड्यूटी के खर्चे पर होनी थी, आज उसका खर्चा बढ़ कर लगभग चार से पांच करोड़ रुपये के बीच पहुँच चुका है। और इसी प्रकार जिस एक एचआईजी फ्लैट की रजिस्ट्री उस दौर में मात्र 50 से 60 रूपए के खर्चे में होनी था आज की तारीख में उसका खर्चा बढ़ कर लगभग साढ़े छह लाख रूपए पहुँच चुका है और इस सबके लिए आवास विकास परिषद् और शिक्षा एन्क्लेव कोआपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी का पिछला और वर्तमान प्रबंधन बराबर के जिम्मेदार हैं। यह तो उच्चस्तरीय जांच का विषय है। अब जहां एक ओर फ्लैटों के खरीदार पिछले लगभग 23 वर्षों से अपने क़ब्ज़े में होने के बावजूद अपने फ्लैटों के वैध मालिकाना हक़ से वंचित हैं वहीं दुसरी ओर उक्त सोसायटी से उत्तर प्रदेश सरकार भी करोड़ों रुपये के राजस्व के लाभ से वंचित है। 

Friday, December 25, 2020

किसानों का प्रदर्शित आंदोलन कितना सार्थक ?

 किसानों का प्रदर्शित आंदोलन कितना सार्थक ? ,, देशहित में या किसान स्वयं अपने हित में कर रहे हैं प्रदर्शन?

सरकार द्वारा बनाया गया क़ानून किसानो के हित में है - नये क़ानून के तहत एसडीएम बाउंड है, अनुबंध तोड़ने पर  एसडीएम को कोई पॉवर  कम्पनी विरुद्ध फैसला देने का अधिकार है न की किसान के विरुद्ध कोई अधिकार दिया गया है - श्री अशोक ठाकुर (निर्देशक - नफेड)   

इन सवालों का जवाब कुछ समाजिक संगठनो के संचालक और विभिन्न राजनितिक दलों के नेताओं से लेने की कोशिश करेंगे।  

एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)


नई  दिल्ली - दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर हजारों की संख्या में किसान बीते करीब चार हफ्ते से प्रदर्शन कर नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। लेकिन सरकार अपनी जगह पर अड़ंगीत है और किसान अपनी जगह पर। अब सवाल है की किसानो की मांग कितना सार्थक है ? जबकि एनआरसी और सीएए जैसे शाहीनबाग के आंदोलन जैसा आज यह दिल्ली एनसीआर से लगी दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन दिल्ली और एनसीआर के लोगों के लिए परेशानी का कारण बनता जा रहा है। भविष्य में भारत पर इसका क्या असर पड़ेगा  इस मुद्दे पर आईना इंडिया ने विभिन्न समाजिक संगठनों के संचालक एवं कुछ राजनितिक दलों के नेताओं से बात चित कर के स्थिति जानने की कोशीश की प्रस्तुत है सब से पहले नफेड के निर्देशक और भाजपा के सक्रिय एवं 

कर्मठ नेता श्री अशोक ठाकुर - से सार्थक बात चीत के कुछ अंश - किसानो का आंदोलन सही है।  हमारा देश लोकतांत्रिक देश है इसमें देश के सभी नागरिकों को अपनी बात रखने का पूर्ण अधिकार है। सरकार ने किसानों के हित में जो क़ानून बनाएं है वह पूर्णतः किसानों के हित में है।  यह अलग बात है की किसान उसे समझ नहीं पा रहे हैं या जानबूझ कर सरकार द्वारा बनाये गए क़ानून की अनदेखी करके सरकार को अपने आगे झुकाये रखना चाहते हैं, किसान और सरकार के बीच पांच बार बैठक हुयी और उसमे सकारात्मक और सार्थक चर्चायें  हुई और सरकार ने किसानो की बात सुनी और माना भी, किसान संगठन ने अनुबंधन के मुद्दे पर न्यालय जाने की अनुमति माँगी जो मेरी समझ से  किसानो के हित में नहीं है,यदि किसान न्यायलय जाते हैं तो व्यापारिओं को भी न्यायलय जाने का अधिकार मिल जाएगा , व्यापारी तो उनसे अधिक मज़बूत हैं वह उसी संविधान के तहत किसान को न्यायलय द्वारा उनके आवाज़ को दबा देंगे। अनुबंध तोड़ने की स्थिति में एसडीएम को कोई अधिकार नहीं दिया गया है किसान के विरुद्ध कोई कार्रवाई करें। एसडीएम के पास कंपनी के विरुद्ध ही कार्रवाई करने का अधिकार दिया गया है, एसडीएम को कंपनी पर 150 प्रतिशत प्लाण्टी लगाने का अधिकार दिया गया है। इस क़ानून के तहत एसडीएम बॉन्ड है। किसानों को भर्मित किया जा रहा है। छोटे किसानो का कहीं से कोई नुक्सान नहीं हो सकता है बड़े किसानो बिचौलिये को ही इस क़ानून से नुक्सान हो रहा है । इस क़ानून से अन्य किसानों को भर्मित नहीं होना चाहिए बल्कि किसान संगठनों को चाहिए की इस क़ानून पर गहराई से समीक्षा एवं मंथन कर देश हित में फैसला लें।  
सन 2015 से अबतक नफेड ने किसानो के हित  में बहुत ही सार्थक कार्य किये हैं जिससे किसानों को काफी लाभ  मिला है।  नफेड की वर्किंग में सुधार किये  किसानों के खाते में सीधे भुक्तान किये जा रहे हैं , ऑन लाइन रजिस्ट्रेशन आसान किये , उत्पादन को बेचने की लिमिट लगाई है बड़े बड़े प्रभाव शाली किसानो को थोड़ा नुक्सान ज़रूर हुआ है  छोटे किसानों की पहुँच सरकार तक पहुँच बढ़ी है मुझे लगता है की जिस प्रकार सरकार अपनी  प्रतिब्धता के साथ देश हित कर रही है वैसे ही किसानों को भी प्रतिबद्ध हो कर देश हित में सरकार का साथ देना चाहिए।   

 सरकार कृषि सुधार मुद्दे पर पिछले 5 वर्षों से लगातार काम कर रही है। 1991 से स्वामीनाथन आयोग एवं 2004 से 2006 में भी अन्य आयोग बनाये गए वह सभी तो कृषि संबंधित समस्या के समाधान के लिए ही तो बनाया गया लेकिन उसका क्या हुआ। 1965 में 58 से 60 से अब तक जीडीपी गिरते ही गई जो अब 15 प्रतिशत रह गया। मेरी समझ से अभी देश में और भी बड़ी मंडिया  बढ़ाने की आवश्यकता है जो सरकार इसी योजना तहत काम कर रही है।   कुलमिला कर विरोध ज़रूरी है लेकिन विरोध ऐसा न हो की किसान अपना ही नुक्सान कर लें। 



 लेकिन श्री अशोक ठाकुर के विचारों के बिलकुल विपरीत गांधी विचार-धारा  विभागाध्यक्ष तिलका मांझी विश्वविधालय भागलपुर बिहार के प्रो० डॉ०  विजय कुमार के अनुसार किसान अपने अस्तित्व की अंतिम लड़ाई लड़ रहा है , संविधान के अनुच्छेद 9 में लगभग 274 क़ानून हैं जिसमे खेती से संबंधित 250 से अधिक कानून हैं उसी में से 3 क़ानून ऐसे भी है , इसकी शुरुआत 1793 ई० में लावकांवालीस द्वारा बनाया गया है। आज जो दिख रहा है वह हरीत  क्रान्ति के कारण ही दिख रहा उसी में से एमएसपी  भी निकला अब एमएसपी  उनकी मजबूरी बन गई है। तो हरीत  क्रान्ति का जो गलत  प्रयोग किया है हुकुमरानों ने उसका अब रिज़ल्ट आ रहा है। किसानो की बात सरकार नहीं मानेगी इसलिए की वर्ल्डबैंक की नीतिओं में शामिल है विश्व बैंक सरकार को कहरहा की शहरीकरण तेज़ करो, खेती को फ्री करो निजी हांथों में जाने दो। इसका असर देश पर बुरा असर पड़ेगा। खेती कंपनी में बदल जाएगी बड़े किसान कंपनी के मालिक बन जाएंगे और उनके बच्चे बेरोज़गार नौजवान बन कर अपने ही कंपनी में नौकरी करने पर मजबूर हो जाएंगे। बिहार , बंगाल , उड़ीसा , उत्तरप्रदेश के किसानो को हरित क्रान्ति का लाभ नहीं मिला, यह पंजाब , हरियाणा , दिल्ली , राजस्थान और कुछ पश्चमी  उत्तरप्रदेश को इसका लाभ थोड़ा मिला, इन्ही क्षेत्रों के किसानो को थोड़ा लाभ मिला लेकिन जिन्हे लाभ नहीं मिला उन्ही क्षेत्रों के किसान सड़कों पर अधिक हैं  वह एनएसपी  की मांग कर रहे हैं, एमएसपी  पैदा ही हुआ था की हरीत  क्रान्ति मची , इस चीज़ को आज खरीदना था भुकमरी मिटाने के लिए तो उस समय एम एसपी का प्रवधान आया , तो वह चाह रहे की ेनेस्टी हमे दे दें , बाकी किसानो के लिए  हम क्यूँ सोंचे , 1793 ईस्वी में लोकांवालीस ने खेती को लेकर पहला कानून बनाया जो आज भी संविधान के अनुच्छेद 9 में शामिल है इस अनुच्छेद  का मतलब है की इस अनुच्छेद के अनुसार आप न्यालय में चैलेंज नहीं कर सकते , तीन सिस्टम लागू किया गया दक्षिण के क्षेत्र में निजी सम्पत्ति में बदला ज़मीन , निजी माक़ियत कायम हुयी , मध्य के क्षेत्र में माहल्दारी प्रथा शुरू हुयी जिसमे यहां जोत के आकार बढे हैं। बाकी हिस्से जैसे भारत के पूर्वी क्षेत्र बिहार बंगाल उड़ीसा झारखंड इन हिस्सों में ज़मींदारी प्रथा शुरू करवादी, बाद में राज्य सरकारों ने उसे समाप्त किया , तो यह कोशिश 1793 में आरम्भ हुई  और हमारे संविधान में वर्णित कर  दिया गया , यही कारण है की पक्ष और विपक्ष संविधान की दुहाई  दे रहे हैं। यदि पक्ष किसानो के साथ बेमानी कर रहा है तो विपक्ष भी किसानो के साथ हमदर्दी नहीं कर रहे हैं , दोनों ही किसानो को अपने अपने अस्त्र से बेवकूफ कर लूट रहे है ।   

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता श्री शिव भाटिया द्वारा - सरकार किसानो के मुद्दे पर गंभीर नहीं है किसानो के साथ मज़ाक़ कर रही है - सरकार को यह खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा।  किसानों का यह आंदोलन अपने आप में सार्थक के साथ

साथ दमनकारी सरकारों के लिए एक चेतावनी है। यह किसानो का आंदोलन वर्तमान सरकार को उखाड़ फेकेगा , एमएसपी किसानो का अधिकार है , यह सरकार हर जगह अपनी मनमानी करके अपनी नीति थोप रही है देश जनता और संविधान को खिलौना बना रखा है - किसानो के लिए जो सरकार ने जबरिया क़ानून बना कर किसानों पर थोपने की कोशिश की है यह क़ानून इस सरकार पर भारी पड़ने जा रहा है। यह आंदोलन सम्पूर्ण भारत का है।  न की केवल यह पंजाब या हरियाणा  का है , यह भरम मीडिया द्वारा भरम फैलाया जा रहा है। किसानो के नेता टिकैत जैसे लोग और उत्तर भारत और दक्षिण भारत के किसानों का संगठन इस समय इस आंदोलन में शामिल हो चुके हैं, किसान माईनस डिग्री ठंढ में सड़कों पर अपना झंडा डंडा गाड़ चुका है। कांग्रेस हर हाल में किसानों के साथ उनके अधिकार की लड़ाई लड़ रही है और लड़ेगी, आंदोलन में एक संत की मृत्यु हो जाती है और प्रधानमंत्री गुरुद्वारा में  पहुँच जाते हैं ,  सरकार आंदोलन समाप्त करना ही नहीं चाहती है सरकार में संवेदनशील लोग हैं और इनकी इतनी छोटी और तुच्छसोंच है की तोमर जैसे एक एक छोटे अस्तित्त्वविहीन मंत्री जो न तो किसान हैं और उन्हें किसानों की समस्याओं की जानकारी है उनको किसानो के साथ समझौते के लिए बैठाते, क्या तोमर जैसे लोगों को किसानो के मुद्दे पर कोई फैसला लेने की अपनी क्षमता है ? वह तो राजनीति का "रा" नहीं जानते हैं , उन्हें तो फिर से राजनीति शास्त्र की पढ़ाई करनी होगी ?  केंद्र की सरकार में बैठे कुछ मनुवादी लोग यह तो देश और देश की जनता तथा किसानों के साथ एक खेलवाड़ , मज़ाक़ कर रहे रहे है ,  इस आंदोलन का कोई किसी के साथ तुलना ही नहीं किया जा सकता है , यह अपने आप में यह मज़बूत आंदोलन है , यही किसानो ने 1942 और 1947 में जब अंग्रेज़ों के छक्के छुड़ा दिए , 9 महीने में अंग्रेज़ों को अपने क़ानून को वापस लेने पड़े तो इस सरकार की क्या औक़ात है - भारत देखेगा यह सरकार को भी अपने यह सभी काले क़ानून को वापस लेना पड़ेगा। कांग्रेस को किसी से  कोई डर नहीं है कांग्रेस किसानो के साथ तनमनधन से खड़ी है। जहां भी यह अत्याचारी सरकार किसानों के साथ जहां यह अत्याचार करेंगे वहां कॉंग्रेसिओं के  खून बहेगे ।  कांग्रेस किसानो के साथ समर्पित है।   

विजय भारतीय - समाजिक कार्यकर्ता - गुजरात - किसानो का आंदोलन बिलकुल  सार्थक और देश हित में है -

किसानो के मुद्दे को लेकर केंद्र या राज्य सरकारें या कहें दोनों सरकार कभी भी न सक्रिय रही न कभी उस पर गंभीर रही। तीन बिल्स को लेकर किसानो में असमंजसता इसलिए बढ़ी की सरकार ने यह बिल अपने मर्ज़ी से मनमाने ढंग से संसद में पास करवा दिया और न तो किसी भी किसान संगठनों को विश्वास में लिया और न विपक्ष को ही विश्वास में लिया पर क़ानून बना दिया तो सरकार को एहसास दिलाने के लिए यह आंदोलन ज़रूरी था और इस आंदोलन में आज न केवल पंजाब और हरियाणा  के किसान हैं बल्कि आज पुरे हिन्दुस्तान के किसानो के अतिरिक्त आम जनता किसानो के साथ है। और यह आंदोलन अभी अहिंसात्मक तरीके से लम्बा चलेगा। हिंसा सरकार फैला रही है न की किसान या जनता।  इसलिए सरकार को चाहिए की यह आंदोलन वापस ले कर किसानो को अपने हिसाब से बाज़ार और दाम तय करने की आज़ादी देना चाहिए। 

कर्मठ एवं सक्रिय समाज सेविका श्रीमती पल्लवी सिंह - छत्तीसगढ़ - किसान आंदोलन सार्थक है और होना

चाहिए। एमएसपी - मिनिमम समर्थन मूल्य जो किसानो का अधिकार है जो उसे मिलना चाहिए, जैसे हमारे छत्तीसगढ़ एक मोडल है छत्तीसगढ़ सरकार किसानों को दे रही है।  सरकार द्वारा किसानो को सहयोग समर्थन मूल्य जो छत्तीसगढ़ सरकार इस समय किसानों को दे रही है वह सम्पूर्ण भारत के लिए एक मिसाल है।  केंद्र सरकार को अपने तीन क़ानून बनाने से बेहतर था की कांग्रेस द्वारा बनाये गए एमएसपी को ही प्राथमिकता से लागू कर किसानो की मदद करती बढ़ावा देती तो आज केंद्र की ऐसी फ़ज़ीहत नहीं होती। किसानो के सारे समस्याओं का समाधान हो जाता। न हमारे देश के किसान परेशान  होते न  तो नौजवान बेरोज़गार होते ।  सरकार की क्या मंशा है पता नहीं, लेकिन सरकार अपने मन की बात तो करती है लेकिन अपने दश की जनता के मन की बात नहीं सुनती। 

डॉ 0  अनुपमा पाटिल - वरिष्ठ समाजिक कार्यकर्ता - किसानो का आंदोलन देश हित में सार्थक है इसलिए की हमारा हिन्दुस्तान कृषिप्रधान देश होने के नाते उनकी स्थिति में सुधार ज़रूरी है -  हमेशा किसानो के हित की बात तो की जाती रही है लेकिन उनके हित  में कोई सार्थक क़दम नहीं उठाया गया इसलिए यह आंदोलन सरकार के लिए चेतावनी के साथ साथ भविष्य में आने वाली सरकार के लिए मार्गदर्षक भी है। 

उनकी मांग जाइज़ है सरकार को वह तीनो क़ानून वापस ले लेना चाहिए , किसान को अपने हिसाब से अपने माल को बाज़ार में अपने दाम में बेचने की पूरी छूट होनी चाहिए। सरकार द्वारा बनाये गई क़ानून किसानों को एक दायरे में सीमित कर देता है जो की गलत है। उनका अपना अधिकार है।  


Saturday, October 31, 2020

लोकसभा से कंपनी हित में एक और बिल पारित-15 दिनों के नोटिस पर कंपनीयां बिना मंजूरी के अपने कर्मचारियों की कर सकेंगी छंटनी,

एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)  

नई दिल्ली. लीजिए साहब ! लोक डाउन में कंपनियों के हिट में एक और नया क़ानून पारित हुआ। लोकसभा में पिछले महीने तीन लेबर कोड्स का रास्ता साफ होने के बाद रोजगार मंत्रालय ने इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड के लिए ड्राफ्ट रूल्स का पहला सेट जारी कर दिया है. जिसमें 300 से ज्यादा कर्मचारियों वाली कंपनी सरकार से मंजूरी लिए बिना कर्मियों की जब चाहे छंटनी कर सकेगी. यही नहीं, 15 दिन का नोटिस भी काफी माना जाएगा. मसौदे में संशोधन के तहत कर्मचारियों के लिए हड़ताल करने से जुड़ी परिस्थितियों में बदलाव कर दिया गया है। 

ड्राफ्ट रूल्स में हैं ये प्रस्ताव- इन ड्राफ्ट रूल्स में अधिकतर संपर्क/कम्युनिकेशन के लिए इलेक्ट्रॉनिक मेथड्स का प्रस्ताव है, जिसमें सभी औद्योगिक इकाइयों के लिए ई रजिस्टर मेंटेन करना अनिवार्य है. साथ ही छंटनी के संबंध में कंपनियों को 15 पहले नोटिस, हटाए जाने पर 60 दिन पहले नोटिस और कंपनी बंद करने पर 90 दिन पहले नोटिस देना होगा।  हालांकि, नियमों में मॉडल स्टैंडिंग ऑर्डर को छोड़ दिया गया है और ट्रेड यूनियनों के लिए रूल्स का निर्माण राज्य सरकारों पर छोड़ दिया है।  
इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन सिस्टम होना जरूरी- XLRI में प्रोफेसर और लेबर इकनॉमिस्ट के आर श्याम सुंदर ने बताया, मॉडल स्टैंडिंग ऑर्डर सबसे अहम है इसके लिए सरकार अधिसूचना का इस्तेमाल कर सकती है।  सुंदर के मुताबिक, ज्यादातर चीजें इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रिया पर छोड़ दी गई हैं, जिसका मतलब है कि कंपनियां या नियोक्ता, छोटे या बड़े या फिर ट्रेड यूनियन या श्रम विभाग/ट्रिब्यूनल इन सभी के पास इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन सिस्टम होना जरूरी है। 
अभी तक थे ये नियम- 100 से कम कर्मचारी वाले औद्योगिक प्रतिष्ठान या संस्थान ही पूर्व सरकारी मंजूरी के बिना कर्मचारियों को रख और हटा सकते थे।  इस साल की शुरुआत में संसदीय समिति ने 300 से कम स्टाफ वाली कंपनियों को सरकार की अनुमति के बिना कर्मचारियों की संख्या में कटौती करने या कंपनी बंद करने का अधिकार देने की बात कही थी।   कमेटी का कहना था कि राजस्थान में पहले ही इस तरह का प्रावधान है।  इससे वहां रोज़गार बढ़ा और छटनी के मामले कम हुए। 
 इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड 2020 में धारा 77(1) जोड़ने का प्रस्ताव- छटनी के प्रावधान के लिए सरकार ने इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड 2020 में धारा 77(1) जोड़ने का प्रस्ताव रखा है।  इस सेक्शन के मुताबिक छंटनी और प्रतिष्ठान बंद करने की अनुमति उन्हीं प्रतिष्ठानों को दी जाएगी, जिनके कर्मचारियों की संख्या पिछले 12 महीने में हर रोज औसतन 300 से कम हो।  सरकार अधिसूचना जारी कर इस न्यूनतम संख्या को बढ़ा सकती है। 

Thursday, October 22, 2020

देश की हर लड़कियों के लिए प्रेरणा हैं (3 फुट, 2 इंच) महिला IAS आरती डोगरा।

 देश की हर लड़कियों के लिए प्रेरणा हैं (3 फुट, 2 इंच) महिला IAS आरती डोगरा। 


आईएएस आरती डोगरा ने अपनी कामयाबियों के सफर में कभी अपने कद (3 फुट, 2 इंच) को आड़े नहीं आने दिया। राजस्थान में अपने स्वच्छता मॉडल ‘बंको बिकाणो’ से पीएमओ तक मुग्ध कर देने वाली उत्तराखंड के कर्नल पिता की बिटिया आरती डोगरा राजस्थान ही नहीं पूरे देश के प्रशासनिक वर्ग में एक नई मिसाल बन चुकी हैं।


एस ज़ेड. मलिक (पत्रकार)

 18 जुलाई 1979 को उत्तराखंड के देहरादून की विजय कॉलोनी निवासी कर्नल राजेंद्र डोगरा और निजी स्कूल में प्रधानाध्यापक के पद पर विराजमान कुमकुम डोगरा के घर बेटी ही नहीं बल्कि एक साक्षात्कार लक्ष्मी ने जन्म लिया। जिसका नाम आरती रखा गया। कर्नल साहब की यही पहली संतान थी। इसकी शारीरिक बनावट अन्य बच्चों से जुदा थी पर चेहरे पर एक रौनक भी झलक रही थी जिससे कर्नल साहब और उनकी पत्नी को उस मासूम के पर बेहद स्नेह और प्यार भी उमड़ रहा था। धीरे-धीरे उम्र बढ़ती तो गई, लेकिन तीन क़द काठी 3 ​फीट 6 इंच पर ठहर गई।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार डॉक्टर्स ने आरती डोगरा के जन्म पर कहा था कि यह बच्ची सामान्य जिंदगी नहीं जी पाएगी। वहीं, लोगों ने भी ताने कसे थे। इसे परिवार के लिए बोझ बताया। यहां तक की आरती डोगरा के माता-पिता की दूसरी संतान पैदा करने की नसीहत दे डाली थी, मगर उन्होंने इसी इकलौती बेटी को कामयाब बनाने की ठानी और नतीजा यह है कि आज आरती डोगरा आईएएस अफसर हैं।

राजस्थान के बीकानेर और बूंदी जिलों में कलक्टर रह चुकीं आरती डोगरा अब अजमेर की नई कलेक्टर नियुक्त की गई हैं। वह कद में तो मात्र तीन फुट छह इंच की हैं लेकिन खुले में शौच से मुक्ति के लिए शुरू हुए उनके स्वच्छता मॉडल ‘बंको बिकाणो’ पर पीएमओ भी मुग्ध हो चुका है। वर्ष 2006 बैच की आईएएस आरती डोगरा दून के विजय कॉलोनी की रहने वाली हैं। उनके पिता कर्नल राजेन्द्र डोरा सेना में अधिकारी और मां कुमकुम स्कूल में प्रिसिंपल रही हैं। आरती के जन्म के समय डॉक्टरों ने साफ कह दिया कि उनकी बच्ची सामान्य स्कूल में नहीं पढ़ पाएगी।

माता-पिता के जुनून ने उनको हौसला प्रदान किया। उसी वक्त उनके माता-पिता ने तय कर लिया कि उनकी बिटिया सामान्य स्कूल में अन्य बच्चों के साथ पढ़ने जाएगी। फिर उन्होंने ऐसा ही किया। उनको शुरू से इस बात के लिए प्रेरित किया कि वह पढ़ाई के अलावा खेलकूद और अन्य गतिविधियों में सामान्य बच्चों की तरह ही भाग लेती रहें। कर्नल पिता में ऐसा जुनून था कि बिटिया को उन्होंने न केवल खेलकूद में प्रोत्साहित किया बल्कि घुड़सवारी तक सिखाई। इसके लिए उन्होंने अलग से जीन तक बनवाकर उन्हें घोड़े पर बैठना सिखाया। आरती डोगरा बताती हैं कि सिंगल चाइल्ड के रूप में माता-पिता ने मेरी परवरिश की। उन्होंने इतना हौसला प्रदान किया कि कभी किसी प्रकार की कमी नहीं महसूस हुई।

स्कूल से निकल कर दिल्ली के श्रीराम लेडी कॉलेज से अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन करने के दौरान उन्होंने जमकर छात्र राजनीति में भी भाग लिया और छात्र संघ चुनाव भी जीतीं। वह कॉलेज की सांस्कृतिक गतिविधयों से लेकर डिबेट तक में खुद भाग लेकर अपने व्यक्तित्व को निखारती रहीं। ग्रेजुएशन के बाद पीजी उन्होंने देहरादून से की। इसके बाद अपने पसन्द के काम यानी बच्चों को पढ़ाने में जुट गईं। इस दौरान देहरादून की तत्कालीन कलेक्टर मनीषा के साथ उनकी मुलाकात ने पूरी सोच ही बदल कर रख दी।

मनीषा ने उनको प्रेरित किया कि यदि वे लगन के साथ तैयारी करें तो आसानी से आईएएस अधिकारी बन सकती हैं। इसके बाद उन्होंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि अब उन्हे वही मंजिल प्राप्त करनी है। मन लगाकर तैयारियों में जुट गईं। कर्नल पिता को पता चला तो उन्होंने एक ही बात कही कि चाहे जो काम करो, नतीजों की चिन्ता छोड़ उसमें अपना पूरा सौ फीसदी श्रम और विवेक झोक दो। उन्होंने जमकर मेहनत की और उम्मीद के विपरीत लिखित परीक्षा पास कर ली। अब साक्षात्कार में जाना था। साक्षात्कार के लिए कमरे में प्रवेश करने से पूर्व बुरी तरह से नर्वस हो चुकी थीं। अंदर पहुंचीं तो इंटरव्यू बोर्ड के सदस्यों ने माहौल को कुछ हल्का बनाया तो हिम्मत आई। इसके बाद 45 मिनट तक सवाल-जवाब की दौर चला। आर्मी व अर्थशास्त्र का बैकग्राउंड होने के कारण अधिकांश सवाल इसी से जुड़े रहे। इस तरह वह अपने पहले ही प्रयास में आईएएस सेलेक्ट हो गईं।

वह अपने गृह प्रदेश उत्तराखंड के मसूरी स्थित लाल बहादुर प्रशासनिक अकादमी में ट्रेनी आईएएस अफसरों से भी ‘बंको बिकाणो’ अभियान के अनुभव कई बार साझा कर चुकी हैं। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय की ओर से दिल्ली में आयोजित कार्यशाला में भी वह केंद्र सरकार और मध्य प्रदेश के अफसरों को ‘बंको बिकाणो’ अभियान के बारे में बता चुकी हैं। जयपुर में विश्व बैंक की ओर से दुनियाभर के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में भी उन्होंने इस अभियान पर प्रजेंटेशन दिया था। वह बताती हैं कि जब वह बीकानेर की डीएम थीं, दुनिया के18 देशों के प्रतिनिधि अभियान को धरातल पर देखने समय-समय पर उनके पास पहुंचे थे।

उनकी ओर से मिशन अगेंस्ट एनीमिया ‘मां’ कार्यक्रम और डॉक्टर्स फॉर डॉटर्स कार्यक्रम को भी पहचान मिली है। उन्होंने बीकानेर के कार्यकाल के दौरन जिले के सभी डॉक्टरों के लिए वाट्सएप अनिवार्य कर दिया था, जिससे ऐसे अस्पतालों में पहुंचने वाले मरीजों का भी इलाज वाट्सएप से किया जाने लगा, जहां डॉक्टर तैनात नहीं थे। आज भी वहां तैनात स्वास्थ्य कर्मचारी डॉक्टरों को मरीजों की जांच रिपोर्ट भेजते हैं और इन रिपोर्ट पर डॉक्टर इलाज की सलाह देते हैं। वर्ष 2013 में बीकानेर (राजस्थान) की डीएम रहते हुए उन्होंने ‘बंको बिकाणो’ अभियान शुरू किया। इसमें लोगों को खुले में शौच नहीं करने के लिए प्रेरित किया गया।

धीरे-धीरे यह आंदोलन राजस्थान के बाकी जिलों में फैला और दो साल के भीतर ही राजस्थान के बाहर अन्य राज्यों ने भी इस मॉडल को अपना लिया। आरती डोगरा बताती हैं कि कुछ ही महीनों में बीकानेर की 195 ग्राम पंचायतों में सफलता पूर्वक यह अभियान चला। इसमें प्रशासन के लोग सुबह गांव में पहुंचकर खुले में शौच करने वालों को रोकते थे। ऐसे गांवों में घर-घर पक्के शौचालय बनवाए गए, जिनकी मॉनिटरिंग मोबाइल के जरिए ‘आउट कम ट्रैकर साफ्टवेयर’ से की जाती थी। आरती डोगरा राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कई बार सम्मानित हो चुकी हैं। उन्होंने अपनी सफलता की राह में कभी अपने कद को बाधक नहीं बनने दिया। वह जोधपुर डिस्कॉम का प्रबंध निदेशक भी रह चुकी हैं। इस पद पर नियुक्त होने वाली वे पहली महिला आईएएस अधिकारी रही हैं। वह अपना सबसे बेहतर कार्यकाल बीकानेर कलेक्टर रहने के दौरान मानती हैं, जहां उन्होंने कुछ अनाथ लड़कियों की मदद की। आज भी वे लगातार उनके संपर्क में हैं।

आरती डोगरा अपने जीवन के अनुभव साझा करती हुई बताती हैं कि आईएएस अधिकारी का पद कभी महिला और पुरुष में भेद नहीं करता है। ऐसे में उनको तो कभी इस बात का अहसास ही नहीं हुआ कि वे एक महिला हैं। इस पद पर रहते हुए किसी अधिकारी से जिस काम की अपेक्षा की जाए, वह एक महिला भी आसानी से निभा सकती है। कलेक्टर रहने के दौरान कई बार उन्होंने रात को दो बजे पुरुष अधिकारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपनी ड्यूटी निभाई। उन्हें अपने अब तक के जीवन को लेकर किसी प्रकार का अफसोस नहीं है।

वह मानती हैं कि यह नकारात्मक सोच है और वह कभी ऐसा नहीं सोच सकती हैं। अब तक के कैरियर में उन्हें सबसे अधिक सन्तुष्टि बीकानेर कलेक्टर रहने के दौरान मिली है। वो अनाथ लड़कियां आज बीकानेर के बड़े स्कूलों में शिक्षा हासिल कर रही हैं। वे स्वयं लगातार उनके संपर्क में रहती हैं। वर्ष 2013 में निर्मल भारत अभियान के तहत जब उन्होंने बंको बीकाणा अभियान की लांचिंग की थी, मोबाइल एप, अलसुबह मॉनीटरिंग और जनप्रतिनिधियों के जुड़ाव के चलते उनका प्रयास कैंपेन कम्युनिटी कैम्पेन में तब्दील हो गया। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी उनके अभियान की प्रशंसा करते हुए उसकी और अधिक बेहतर तरीके से मानीटरिंग के निर्देश दिए थे।

डोगरा के तबादले के बाद जिला कलेक्टर पूनम ने भी इस कैंपेन को उसी गंभीरता के साथ आगे जारी रखा। यही कारण रहा कि जब 26 जनवरी को बीकानेर जिला राजस्थान का प्रथम ओडीएफ जिला घोषित हुआ, तो जिला कलेक्टर पूनम को भी राज्यपाल के हाथों सम्मानित किया गया। इस अभियान के लिए राजस्थान में बीकानेर, अजमेर, चूरु, झुंझुनूं और जयपुर जिले नामांकित किए गए थे। बंको बीकाणा अभियान की इस सफलता से न केवल प्रशासनिक अधिकारी रोमांचित रहते हैं, बल्कि बाद में आरती डोगरा को केन्द्रीय मंत्री ने बेहतर काम के लिए अन्य नौकरशाहों के साथ दिल्ली में आमंत्रित किया था।

यह कहानी एक न्यूज़ पोर्टल - यंगस्टोरी हिंदी डॉट कॉम के रिपोटर जयप्रकाश  लिखित कहानी जनहित में हमने अपने प्रेरणा बुक के लिए लिया गया है। 


Monday, October 19, 2020

एक ग्रामीण की नई सोंच - जिसने ग्रामवासियों को दी नई ऊर्जा ।

 एक ग्रामीण की नई सोंच - जिसने ग्रामवासियों को दी नई ऊर्जा ।


एस. ज़ेड.मलिक(पत्रकार)

नई सोंच - ग्राम विकास की ओर - जिसमे सामाजिकता होती है - ज़रूरी नही की वह शिक्षित हो । समाज के लिये बेहतर सोंच रखने वाले लोग बिना भेद भाव के अपने गाँव को उन्नति की ओर लेजाने के लिये अग्रसर रहते है, उन्ही में से एक मोहम्मद इरफान है जो ज़िला मुजफ्फरपुर, प्रखंड औराई ग्राम सिसौली के निवासी ने अपनी सोंच को अमली जावां पहनाया और अपनी कोशिश से एक नई पहल की है - 

वह कहते हैं - उनके गांव व आसपास लगभग 50,60 किलोमीटर के क्षेत्र में कोई बड़ा अस्पताल नहीं है जिसका यहसास उन्हें बचपन से होता रहा और यह कमी उन्हें खलती रही , उन्होंने अपने गाँव मे एक ट्रस्ट के माध्यम से अच्छे एमबीबीएस डॉक्टर को अपनी जगह दे कर निशुल्क जांच और दवाइयां वितरण कराने का ज़िम्मा उठाया जो सराहनीय है। आजकल इरफ़ान साहब अपने घर को ही ओपीडी में तब्दील कर ग्रामीणों की सेवा कर रहे हैं। 

कहा जाता है जहां चाह वहीं राह होती है - इंसान कुछ करने की ठान ले तो क्या नहीं कर सकता है । यही नहीं - इन्हों ने अपनी निजी ज़मीन दे कर ग्रामवासियों के बच्चों के उच्च शिक्षा के लिये एक मोडरेन मदरसा की भी शुरुआत की है। जिसमे अरबी, उर्दू, फारसी ही नहीं बल्कि अंग्रेज़ी हिंदी और संस्कृत की भी पढ़ाई कराई जाएगी । ताकि आने वाली नसलों को धर्म और जाती से हट कर इंसानियत का बोध हो सके। 

उनका मानना है हमारे ग्रामीण बच्चों में एक नई सोंच पैदा होगी और उनके अंदर उन्नति की एक नई ऊर्जा पैदा होगी। स्पष्ट है कि बच्चे के अंदर जब नई सोंच आएगी तो जहां वह अपने आपको विकसित करेंगे वहीं अपने आप उनका समाज विकसित होगा और समाज वोकसित होगा तो देश विकसित होगा। बशर्ते दुराहग्रहिओ और द्वेषित कि बुरी दृष्टि से बचना चाहिए।

Thursday, October 15, 2020

 झुग्गी झोपड़ी में जीवन व्यतीत करने वाले भी बन जाते हैं आईपीएस अफसर !

एस.ज़ेड. मलिक (पत्रकार)

  

झुग्गी झोपड़ी में बचपन बीता, पिता चपरासी थे, अपने अथक प्रयास से बेटा बन गया आईपीएस अफसर: नूरुल हसन की दास्ताँ। 

“मेहनत बंद दरवाजे की वह चाबी है, जो तकदीर के किसी भी उलझे ताले को खोल देती है।”

इस कहावत को सच किया है, हमारे देश के यूपीएससी टॉपर लड़के ने। जिसके पिता चपरासी का काम करते थे और इनके परिवार का जीवन झुग्गी झोपड़ियों में व्यतीत हुआ है। इन्होंने अपने मेहनत से यह साबित कर दिया कि अगर हम किसी कार्य को करने के लिए एक बार ठान ले तो यह मायने नहीं रखता कि हम किस जगह से हैं और हमारे माता पिता क्या करते हैं। सिर्फ और सिर्फ अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने से हम अपने मुकाम को हासिल कर सकते हैं। तो चलिए पढ़ते हैं उनकी कहानी

नुरुल हसन को अगर हीरा कहा जाए तो यह गलत नहीं है। ऐसा तो हम जानते ही है कि कोयले की खदानों में ही हीरा मिलते हैं। नूरूल हसन के लिए यह “हीरा” का संबोधन बहुत ही अच्छी तरह मैच करता है। यह साल 2015 की यूपीएससी परीक्षा को पास कर सबके लिए मिसाल बने हैं। यह अपने गांव में रहकर ही वहां के सरकारी स्कूल से अपने पढ़ाई पूरी कियें है और वहीं रहकर इन्होंने अपने जीवन के लिए एक सुंदर सा सपना संजोया था। इनके पिता बरेली के एक गवर्नमेंट ऑफिस में चपरासी का कार्य करते थें। नुरुल को यूपीएससी पास कर आईएएस बनने की तमन्ना तो थी, लेकिन सबसे बड़ी बाधा पैसे की थी। अपनी पढ़ाई तो इन्होंने किसी भी तरह पूरा कर लिया। लेकिन जब यह यूपीएससी की कोचिंग करना चाह रहे थे तो इनके पास कोचिंग के पैसे नहीं थे। पैसों के कमी की वजह से किसी कोचिंग संस्थान में दाखिला नहीं ले पाए। इन्होंने बिना कोचिंग किए ही यूपीएससी को पास कर अपने परिवार और खुद की तकदीर पूरी तरह बदल कर रख दी। वर्तमान में नूरुल महाराष्ट्र कैडर के आईपीएस अधिकारी है।

नूरुल हसन उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) से ताल्लुक रखते हैं। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि यह यहां पर निवास करते हैं। क्योंकि इनके पिता की नौकरी जब चपरासी के तौर पर हुई तब उन्हें बरेली सरकारी कार्यालय में जाना पड़ा और फिर अपने परिवार के साथ आकर यहां रहने लगे। हालांकि नूरुल ने अपनी शुरुआती शिक्षा उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से ही संपन्न की। इनकी स्कूली शिक्षा कुछ इस प्रकार हुई है कि यह जिस गांव के स्कूल में पढ़ते थे, वहां बरसात के दिनों में बच्चों को बहुत ही परेशानियों का सामना करना पड़ता था। अगर बच्चे पढ़ाई के दौरान क्लास में बैठे हैं तो क्लास की छत से पानी टपकता था, जिससे बच्चों को दिक्कत होती थी।

वैसे तो नूरूल के पिता ग्रेजुएशन पूरा कर लिए थे लेकिन पढ़े-लिखे होने के बावजूद भी इन्हें इनके पढ़ाई अनुसार नौकरी नहीं मिल पा रही थी। कुछ दिनों बाद जब इन्हें बरेली में ग्रुप-डी के तहत चपरासी की नौकरी लगी तो इन्होंने सोचा कि मैं अब यही नौकरी कर और अपने परिवार की देखभाल करुं। परिवार की आर्थिक स्थिति बेहाल थी इस कारण इन्हें चपरासी की ही नौकरी करनी पड़ी। जब यह नौकरी करने लगे तो इनकी तनख्वाह मात्र 4 हज़ार रुपये ही थी। इस 4 हज़ार से बहुत ही मुश्किलों से इनका जीवन बसर हो रहा था।
हलांकि की बीटेक संपन्न होने के बाद इनकी नौकरी लगी और इस नौकरी के दौरान यह बीएआरसी में Grade- 1 ऑफिसर के रूप में कार्यरत हुयें। इस कार्य से इन्हें अपनी पढ़ाई में बहुत सहायता मिली और उन्होंने अपने यूपीएससी की तैयारी को जमकर किया और आखिरकार सफलता हासिल कर ही लियें। यह वर्ष 2015 में यूपीएससी पास कर आईएएस ऑफिसर बनें।

ज्योति के कष्ट भरे जीवन और संघर्ष की दास्तां .

ज्योति के कष्ट भरे जीवन और संघर्ष की दास्तां 


एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)  


ज्योति के कष्ट भरे जीवन और संघर्ष की दास्तां वाकई हतप्रभ करने वाली है। 1970 में वारंगल में जन्मी ज्योति का बचपन भयंकर गरीबी में गुजरा। पांच बहनों में सबसे बड़ी ज्योति को उसकी मां ने इसलिए अनाथाश्रम भेज दिया ताकि खाने वाले मुंह कम हो सकें। अनाथाश्रम में ज्योति को अनाथ बताकर भर्ती करा दिया। अनाथाश्रम में ढेरों बच्चों के बीच पलती ज्योति अपने घरवालों से दूर कष्ट और बेचारगी की जीवन जीने को मजबूर हुई। इसी दौरान ज्योति ने अपनी मेहनत से अनाथाश्रम की सुपरिटेंडेंट का दिल जीता और सुपरिटेंडेंट उसे अपने घर बर्तन साफ करने और सफाई करने के काम पर लगा लिया। सुपरिटेंडेंट के घर पर रहकर ज्योति अनाथाश्रम में मिले कष्ट भूल जाया करती थी। वो दिल लगाकर काम करती और सुपरिटेंडेंट की तरह बड़ा बनने का सपना देखती। यहां रहकर ज्योति ने सरकारी स्कूल से दसवीं पास की और टाइपराइटिंग भी सीखी। ज्योति दसवीं पास करके एक नौकरी के सपने देखने लगी थी ताकि अपने घर लौटकर घरवालों की मदद कर सके।
यह कहानी वहां से शुरू होती है जब उनके teacher पिता अपनी नौकरी छुट जाने पर अपनी दो बेटियों को अनाथ आश्रम मे एवं अपने बेटे को अपने साथ रखने का निश्च्य किया | ज्योति की बहन भाग कर वापस अपने घर आ गयी जबकि ज्योति 9 साल की उम्र मे वही रुक कर आगे बढ़ने का मन बना चुकी थी | अनाथ आश्रम मे अपने परिवार के प्यार के बिना बहुत भी बुरा समय निकला और सरकारी स्कूल मे पढ़ाई शुरू की लेकिन 16 साल की उम्र मे जबरदस्ती उनकी शादी उनसे उम्र मे बहुत बड़े आदमी से करा दी गयी|
इन सब तकलीफों से गुजरने के बाद जिस चीज से ज्योति को सबसे ज्यादा नफरत थी वह थी गरीबी | उन्हें रोज अपने सपनों के पीछे भागना पड़ता| उनके कुछ सपने तो बहुत सरल थे| जैसे चार डब्बे दाल चावल ताकि उनके बच्चे ठीक से खाना खा सके| और कुछ सपने बढ़े थे कैसे सूटकेस में 10 नई साड़ियां
उनका संघर्ष जारी रहा और उन्होंने  1992 मे किसी तरह अपनी बीए पूरी की | और बाद मे एक 396 Rupees  वेतन मे अध्यापक बन कर स्कूल मे पढ़ाने लगी | बाद मे कंप्यूटर कोर्स ज्वाइन किया व् किसी के कहने पर Year 2000 मे यूएस का वीसा लेकर अपने सपने पुरे करने के लिए वहां चली गयी | सपना बड़ा था पर पैसे कम। 

अमेरिका  में करती रही कोशिश

अमेरिका पहुंचते ही  उनपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा,जब उसके हर परिचित ने उसे अपने घर पर शरण देने से इनकार कर दिया। एक अनजाने देश निराश ज्योति को एक गुजराती परिवार ने पेइंग गेस्ट के रूप में शरण दी। दैनिक खर्च के लिए ज्योति ने न्यूजर्सी में एक वीडियो शॉप में सेल्सगर्ल की नौकरी की।
यहां ज्योति के जोश और काम के प्रति इनके लगन को देखकर एक भारतीय व्यक्ति ने उसे CS America नामक कंपनी में रिक्रूटर की जॉब ऑफर की। ज्योति ने कुछ समय यहां काम किया और जल्द ही ICSA नामक कंपनी से उसे बेहतर पैकेज पर जॉब ऑफर मिली। ज्योति ने झट से ये ऑफर स्वीकार ‌कर लिया।
लेकिन कुछ ही दिन बाद आइसीएसए ने यह कहते हुए ज्योति को नौकरी से निकाल दिया कि उसके पास अमेरिका में वर्किंग वीजा नहीं है। नौकरी छोड़ने के बाद वर्किंग वीजा पाने में कई महीने लग गए और ये महिना ज्योति के लिए बहुत कष्टकारी थे। ज्योति ने इस दौरान गैस स्टेशन पर काम किया और बेबी सिटिंग तक की। वर्किंग वीजा पाने के लिए ज्योति मैक्सिको गई और वहां भी वीजा पाने में कई पापड़ बेलने पड़े। तब ज्योति को अहसास हुआ कि वीजा पाने की कोशिशों में वो इतना पेपरवर्क कर चुकी है कि अपनी कंसलटेंसी फर्म तक खोल सकती है। उसने तय किया कि नौकरी की बजाय अपने बिजनेस में हाथ आजमाया जाए।

बेटियों को पढ़ाने के लिए ज्योति के पास नहीं थे पैसे

वे कहती हैं कि वे गरीब घर में पैदा हुई थीं और फिर उनका विवाह भी एक बेहद गरीब परिवार में कर दिया गया और उस दौरान पेट भरने के लिये दाल से भरे 4 डिब्बे और चावल उनके लिये सपने जैसे होते थे। ‘‘मैं अपने बच्चों का पेट भरने के लिये पर्याप्त खाने के बारे में सोचती रहती थी। मैं अपने बच्चों को भी वही जीवन नहीं देना चाहती थी जो मैं जी रही थी।
 16 वर्ष की उम्र में विवाह होने के बाद ज्योति ने मात्र 17 की उम्र में एक बेटी को जन्म दिया और इसके एक वर्ष के भीतर ही वे एक और बेटी की मां बनी। ‘‘मात्र 18 वर्ष की उम्र में मैं 2 लड़कियों की मां बन चुकी थी। हमारे पास कभी भी इतने पैसे नहीं होते थे कि हम उनके लिये दवाईयां खरीद सकें या फिर उन्हें उनके पसंदीदा खिलौने खरीदकर दे सकें।
’’ जब इन बच्चियो को स्कूल भेजने का समय आया तो उन्होंने अंग्रेजी माध्यम के स्थान पर तेलगू माध्यम का चुनाव किया, क्योंकि उसकी फीस सिर्फ 25 रुपये प्रतिमाह थी, जो अंग्रेजी माध्यम की आधी थी। ‘‘मेरे पास अपनी दोनों बेटियों को पढ़ाने के लिये प्रतिमाह सिर्फ 50 रुपये होते थे इसीलिये मैंने उनके लिये तेलुगू माध्यम का चुनाव किया।’’

Thursday, October 8, 2020

 

क्या बिहार चुनाव के बाद जद (यु) धरातल आजायेगी ? क्या लोजपा का वज़न बिहार किराजनीतिक में बढ़ जाएगा ?

 बिहार के जातिवादी राजनीतिक के अंधेरी कोठरी में मोदी ने चिराग जलाया.. 

एस. ज़ेड.मलिक(पत्रजर)

बिहार के जातिवादी राजनीतिक अंधेरी कोठरी में भाजपा ने अपना राजनीतिक शतरंज की बिसात बिछा कर शाह-मात का खेल आरम्भ कर दिया है। ताज्जुब इस बात का है कि शतरंज की बिसात पर दोनो गोटी भाजपा ने ही सजाई है और उसे खेल भी रही है भाजपा, लेकिन एक ओर नीतीश कुमार, को बैठा दिया है तो दूसरी ओर बीमार केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के चश्मों चिराग हैं। पर्दे के पीछे के खिलाड़ी मोदी जी हैं और अपने सामने बिठालिया नीतीश कुमार को ! लेकिन शतरंज की बिसात पर एक ओर जद(यू) के सिपाही हैं तो दूसरी ओर जिसे मोदी जी खेल रहे है उन्होंने अपने पैदल सिपाही वाली गोटी लोजपा को रखा हुआ है तो अब देखना यह है कि दलित चिराग की रोशनी में शतरंज का, कौन सा राजनीतिक खिलाड़ी बाज़ी मार ले जाता है ?इधर हाल में  चिराग पासवान के पिता रामविलास पासवान केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में उपभोक्ता मामलों, खाद्य तथा सार्वजनिक वितरण विभाग के कैबिनेट मंत्री, उनका हार्ट सर्जरी हुआ है और  वह इस समय अस्पताल में भर्ती हैं। पूर्व फ्लॉप बॉलीवुड एक्टर्स एवं राजनितिक में उभरते नये नायक चिराग पासवान पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह आज कल काफी मेहरबान दिखाए दे रहे हैं सुनने में आया की आज कल केंद्रीय ग्रह मंत्री अमित शाह चिराग पासवान को  राजनितिक में शिक्षित कर रहे हैं।  मतलब चिराग पासवान को अमित शाह और मोदी जी का पूर्ण रूप से राजनितिक संरक्षण मिल रहा है। इसलिए की चिराग पासन ने दो दिन पहले जब बिहार में अपना राजनितिक पत्ते खोलने की बात आयी तो उन्हों ने साफ़ तौर से बिहार के समाजवादी राजनितिक  धुरंदर सुशान बाबू कहलाने वाले  'नीतीश कुमार का साथ लेने से साफ़ साफ़ मना कर दिया मना कर दिया लेकिन अपने आपको न तो एनडीए से अलग और , BJP से दूरी बनाया। एक प्रकार से चिराग ने सीधे सीधे भाजपा को बिहार में लाभ पहुंचाने की घोषणा कर दी। यह सब तब सम्भव हो सका जब उन्होंने दिल्ली में अमित शाह के साथ बंद कोठरी में लम्बी बैठक कर भविष्य के लिय अमित शाह से आशीर्वाद लिया। 

 वाह ! आज कल बिहार के राजनितिक गलियारे में यह नारा विपक्षों के मुख से अमूमन सुनने को मिल रहा है - नीतीश तुझ से बैर नहीं, पर नीतीश तेरी खैर नहीं" 

अब लोक जनशक्ति पार्टी अपने आपको बिहार के नितीश वाली गठबंधन से बाहर आ कर तो  दिखाया है, लेकिन ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो समय ही बताएगा। 

अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए पासवान सरदर्द साबित हो सकते हैं। अब लोजपा, जनता दल यूनाइटे के विरोध में 243 सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारेगी, लेकिन उन सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेगी, जो भारतीय जनता पार्टी के हिस्से में होंगी।  और उधर, केंद्र में चिराग पासवान और नीतीश कुमार, दोनों की पार्टियां भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा बनी रहेंगी। 

इसकी रूपरेखा अमित शाह ने तैयार की है, और रणनीति यह है कि नीतीश कुमार के सामने चिराग 'वोट-कटवा' की भूमिका में रहेंगे, जिससे नतीजों में भाजपा को लाभ होगा।  जब विधानसभा चुनाव परिणाम आ जाएंगे, तो इससे BJP के हाथ में नीतीश कुमार से सौदेबाज़ी के लिए ज़्यादा ताकत मौजूद रहेगी. अगर भाजपा  का नतीजा बहुत अच्छा रहा, तो हो सकता है कि वह नीतीश कुमार से छुटकारा पाने की स्थिति में ही आ जाए और पासवान के समर्थन से सरकार का गठन कर ले। 

इस तरह देखें, तो कई सीटों पर चिराग 'दोस्ताना मुकाबला' करते नज़र आ सकते हैं, और ऐसे प्रत्याशी उतार सकते हैं, जो दरअसल दौड़ में न हों. वे उन वोटों को काटेंगे, जो नीतीश की तरफ जा सकते हैं, और नतीजतन भाजपा का प्रत्याशी जीत जाएगा। 

राज्य में पासवान सबसे बड़ा दलित समुदाय है, और कुल आबादी का साढ़े चार फीसदी है. चिराग की महत्वाकांक्षा पार्टी की पहुंच को बढ़ाने की है. उनका मानना है कि नीतीश कुमार के खिलाफ एन्टी-इन्कम्बेंसी लहर (सत्ता के खिलाफ लहर) पर्याप्त है, जिसकी बदौलत अपना जनाधार बढ़ाया जा सकता है. इस विधानसभा चुनाव का एक और पहलू भी है - लालू प्रसाद यादव, कांग्रेस तथा वामदलों का विपक्षी गठबंधन, जिसकी अगुवाई लालू प्रसाद के 30-वर्षीय पुत्र तेजस्वी यादव कर रहे हैं. अगर चिराग यह चाहते हैं कि उन्हें गंभीरता से लिया जाए, तो उन्हें अपने नेतृत्व को उभारना होगा, और आगे बढ़कर काम करना होगा. इस उद्देश्य से वह उतनी ही सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, जितनी सीटों पर नीतीश कुमार लड़ेंगे - लगभग 140. पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने सिर्फ 40 सीटों पर चुनाव लड़ा था. बस, यही है बड़ी खिलाड़ी बनने की कोशिश.

BJP के लिए भी बदलती भूमिकाएं कतई सही हैं. प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि उनकी पार्टी बेशक नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मानकर चुनाव लड़ेगी. लेकिन पिछले कुछ सालों में प्रधानमंत्री की लोकप्रियता ने साबित कर दिया है कि बिहार में उनके नाम भी सीटें आसानी से जीती जा सकती हैं, और नीतीश कुमार के साथ गठबंधन में जूनियर पार्टनर बने रहने की जगह अब अमित शाह 'बड़े भाई' की भूमिका में पहुंचना चाहते हैं. यह बिल्कुल वैसा ही मॉडल है, जैसा वह अन्य गठबंधनों में आज़मा चुके हैं, और जो भाजपा  की ताकत को बढ़ाने में अक्सर कामयाब रहा है। 

बिहार में 243 विधानसभा सीटें हैं।   और नीतीश कुमार संभवतः 119-119 सीटों पर लड़ेंगे, लेकिन नीतीश को पांच सीटें जीतनराम मांझी को भी देनी होंगी, सो, वह भाजपा की तुलना में कम सीटों पर लड़ेंगे. यह ऐसा दृश्य है, जिसकी कुछ साल पहले तक कल्पना भी संभव नहीं थी। 

राज्य में मतदान 28 अक्टूबर को शुरू होगा, और नतीजे 10 नवंबर को आएंगे.

चिराग पासवान ने कई बार मुझसे कहा है कि नीतीश कुमार कुशल प्रशासक नहीं हैं. कोरोना संकट में बिहार में हुए झोलझाल और लॉकडाउन घोषित होने के बाद दिल्ली व मुंबई जैसे शहरों को छोड़कर बिहार के गांवों की तरफ लौटने को मजबूर हुए प्रवासी मज़दूरों के बेहद भावनात्मक मुद्दे पर हुए गड़बड़ियों ने दिखाया है कि नीतीश ज़मीनी हकीकत से कोसों दूर हैं. अब चिराग जब नीतीश के खिलाफ कैम्पेन तैयार कर रहे हैं, उन्हें अपने बेहद तजुर्बेकार पिता का पूरा समर्थन हासिल है। 

नीतीश कुमार की मौजूदगी वाली टीम से बाहर निकलने के लिए चिराग ने जानबूझकर इतनी सीटें मांग लीं, जिनके लिए साझीदारों को इकार ही करना पड़े. बस, फिर वह बाहर निकल आए, और शाह का लिखा कथानक स्पष्ट कर दिया - दिल्ली में साझीदार, बिहार में विरोधी...

नीतीश कुमार को उनकी वास्तविक स्थिति दिखा देने की इस कोशिश से बिहार चुनाव में एक नया ट्विस्ट जुड़ गया है, और साबित करता है कि बिहार में होने वाला कोई भी चुनाव ऊबाऊ नहीं हो सकता. कुछ ही हफ्ते पहले तक नतीजा कतई स्पष्ट दिख रहा था - नीतीश कुमार और भाजपा की आसान जीत. अब, मामला काफी जटिल हो गया है.

मैंने इस आलेख के लिए बिहार के कई नेताओं से बात की. सभी ने एक विरोधाभासी-सी बात कही - पिछले एक साल में खराब गवर्नेन्स के कारण नीतीश कुमार के खिलाफ पैदा हुए गुस्से से किसी भी तरह गठबंधन में शामिल प्रधानमंत्री को नुकसान नहीं पहुंचा है. अगर इसकी कीमत चुकानी पड़ी, तो वह सिर्फ नीतीश ही चुकाएंगे, और गठबंधन को इससे नुकसान नहीं होगा.

नीतीश कुमार राजनैतिक कलाबाज़ियों के मामले में दिग्गज हैं, और अपनी इसी सरकार को बनाए रखने के लिए साझीदार बदल चुके हैं (उन्होंने अपने पुराने सहयोगी BJP का साथ छोड़कर कांग्रेस व लालू यादव के साथ मिलकर सरकार बनाई थी, और फिर उन्हें छोड़कर BJP का दामन थाम लिया था), लेकिन इस बार ऐसा लगता है, वह पीछे छूट सकते हैं।  भाजपा के एक केंद्रीय नेता का कहना था कि अवसर देखकर साझीदार बदलने वाले के तौर पर नीतीश कुमार की छवि ज़ाहिर हो चुकी है. उन्होंने कहा, "हर बिहारी जानता है कि वह 'कुर्सी कुमार' हैं... जहां कुर्सी, वहां नीतीश..."

इन दिनों नीतीश कुमार अपनी अंतरात्मा की उस आवाज़ को लेकर भी चुप हैं, जिसने उनके दावे के मुताबिक उनकी राजनीति की दिशा तय की है। 

अपनी तरक्की के लिए अपने ही साझीदारों का नुकसान करवा देना भाजपा के लिए कोई नई बात नहीं है. बिल्कुल ऐसा ही महाराष्ट्र में शिवसेना और पंजाब में अकाली दल के साथ हुआ था।  दोनों ने भाजपा से नाता तोड़ लिया, लेकिन अपनी क्षेत्रीय पकड़ को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए। 

नीतीश कुमार ने अतीत में साझीदार बदलने के फैसले को अंतरात्मा की आवाज़ बताया था. लेकिन अब उन्हें राजनैतिक अंतर्ज्ञान से काम लेना होगा।