मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी - वर्तमान अस्थाई कार्यकारणी महासचिव आल इंडिया मुस्लिम प्रसनल्ला बोर्ड दिल्ली के नियुक्त।
Thursday, April 8, 2021
दिल्ली में बढ़ता कोरोना का प्रकोप
दिल्ली में बढ़ता कोरोना का प्रकोप एवं उससे बढ़ती मृत्य दर और उस पर से सरकार द्वारा रात का कर्फ्यू चिंतनीय एवं विचारणीय - दिल्ली एआईएमआईएम
एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)
नई दिल्ली - दिल्ली में कोरोना के मामले दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं जिसके कारण रात में कर्फ्यू भी लगाया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि रमज़ान में तरावीह और सेहरी में मुसलमानों के लिए मुश्किलें पैदा करने के लिए रात का कर्फ्यू लगाया गया है। रात के कर्फ्यू की कोई आवश्यकता नहीं थी क्योंकि लोग रात में अपने घरों में रहते हैं और जरूरत पड़ने पर ही घर से बाहर निकलते हैं यह उन्हें परेशान करेगा जो इमेरजेंसी में घर से निकलना चाहेंगे और पुलिस भी उनको आतंकित करेगी। जहां तक ई-पास की बात है, उसका मिलना भी बहुत सरल नही है अशिक्षित वर्ग उसको प्राप्त नही कर सकता। गलियों में मास्क के नाम पर चालान काटकर पैसा कमाने वाली पुलिस को भी अधिक पैसा कमाने के अवसर मिलेंगे। इसके बजाय, बाजार बंद करने का समय तय किया जा सकता है परन्तु मेडिकल स्टोर को छूट मिलनी चाहिए, कोरोना को नियंत्रित करने और दिल्ली को मॉडल के रूप में प्रस्तुत करने के दिल्ली सरकार के सभी दावे खोखले साबित हुए है।
दिल्ली के एआईएमआईएम के अध्यक्ष श्री कलीमुल हफ़ीज़ ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी उन्होंने दोनों सरकारों पर आरोप लगाते हुए कहा है की दिल्ली में बढ़ते कोरोना के प्रकोप से मृत्यु दर में बढ़ोतरी यह चिन्तनीय एवं विचारणीय है। इस इस भयावर स्थिति के मद्देनज़र दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष ने मजलिस के कार्यकर्ताओं से अनुरोध भी किया कि वे इस महामारी से निपटने के लिए चिकित्सा टीम और लोगों के बीच बेहतर उपचार के लिए काम करें, ताकि लोगों में जागरूकता पैदा हो सके, टीकाकरण को लेकर पैदा होने वाली भ्रांतियों को समझाया जा सके। अपनी गली- मोहल्लों में सफाई व्यवस्था सुचारित रूप से सुनिश्चित कराएं। अगर सरकारी मशीनरी किसी भी वार्ड में विफल हो रही है, तो कानूनी कार्रवाई करें और मजलिस के दिल्ली कार्यालय को भी सूचित करें। उन्होंने कर्फ्यू को एक अनावश्यक कदम करार दिया क्योंकि इससे जनता को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा और पुलिस बिना वजह जनता को सताएगी। कर्फ्यू के नाम से मजदूर वर्ग में दहशत पैदा होगी और बाहर से आने वाले मजदूर रुक जाएंगे। उन्होंने चिंता जताई कि मजदूर वर्ग रात के कर्फ्यू के कारण दिल्ली से लौटने का इरादा कर सकता है। ऐसा होने पर बेरोजगारी बढ़ेगी। कलीमुल हफ़ीज़ ने सुझाव दिया कि रात के कर्फ्यू के बजाय, रात में बाजार को बंद करने के लिए एक समय निर्धारित किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि आवश्यक वस्तुओं की दुकानों को खुला रखने के लिए ध्यान देना चाहिए। उन्होंने मांग की, कि तरावीह और सेहरी के दौरान लोगों को परेशान न किया जाए और टीकाकरण कर्मचारियों को बढ़ाया जाये ताकि प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा किया जा सके। कलीमुल हफ़ीज़ ने दिल्ली होमगार्ड्स द्वारा मास्क के नाम पर लोगों के उत्पीड़न पर भी आपत्ति जताई। उन्होंने सवाल किया कि अगर एक मोटरसाइकिल सवार हेलमेट पहनकर अकेले यात्रा कर रहा हैं तो मोटरसाइकिल चालक को मास्क पहनने की आवश्यकता क्यों है लेकिन दिल्ली पुलिस उसका फोटो खींचकर चलान काट देती है। यह दिल्ली सरकार के लिए गर्व की बात नहीं है कि चालान के माध्यम से लोगों से बड़ी मात्रा में धन इकट्ठा करे। गौरवशाली बात ये है कि दिल्ली सरकार ये ध्यान दे कि महामारी से कैसे निजात पाया जाए जिससे जनता में विश्वास बना रहे और गरीब आदमी आसानी से दो रोटी खा सके।
Friday, March 26, 2021
शिक्षा एन्क्लेव कोआपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी प्रबंधकीय कमेटी द्वारा लगभ 2 करोड़ रूपये का गबन
शिक्षा एन्क्लेव कोआपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी के प्रबंधकीय कमेटी द्वारा लगभ 1.5 से 2 करोड़ रूपये का गबन।
पिछले 21 वर्ष से फ़्लैट के मालिक अपने वैध मालिकाना हक़ से वंचित। उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री व प्रसाशन से न्याय की गुहार।
Friday, March 12, 2021
Wednesday, March 10, 2021
Wednesday, February 24, 2021
Friday, December 25, 2020
किसानों का प्रदर्शित आंदोलन कितना सार्थक ?
किसानों का प्रदर्शित आंदोलन कितना सार्थक ? ,, देशहित में या किसान स्वयं अपने हित में कर रहे हैं प्रदर्शन?
सरकार द्वारा बनाया गया क़ानून किसानो के हित में है - नये क़ानून के तहत एसडीएम बाउंड है, अनुबंध तोड़ने पर एसडीएम को कोई पॉवर कम्पनी विरुद्ध फैसला देने का अधिकार है न की किसान के विरुद्ध कोई अधिकार दिया गया है - श्री अशोक ठाकुर (निर्देशक - नफेड)
इन सवालों का जवाब कुछ समाजिक संगठनो के संचालक और विभिन्न राजनितिक दलों के नेताओं से लेने की कोशिश करेंगे।
एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)
नई दिल्ली - दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर हजारों की संख्या में किसान बीते करीब चार हफ्ते से प्रदर्शन कर नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। लेकिन सरकार अपनी जगह पर अड़ंगीत है और किसान अपनी जगह पर। अब सवाल है की किसानो की मांग कितना सार्थक है ? जबकि एनआरसी और सीएए जैसे शाहीनबाग के आंदोलन जैसा आज यह दिल्ली एनसीआर से लगी दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन दिल्ली और एनसीआर के लोगों के लिए परेशानी का कारण बनता जा रहा है। भविष्य में भारत पर इसका क्या असर पड़ेगा इस मुद्दे पर आईना इंडिया ने विभिन्न समाजिक संगठनों के संचालक एवं कुछ राजनितिक दलों के नेताओं से बात चित कर के स्थिति जानने की कोशीश की प्रस्तुत है सब से पहले नफेड के निर्देशक और भाजपा के सक्रिय एवं
सरकार कृषि सुधार मुद्दे पर पिछले 5 वर्षों से लगातार काम कर रही है। 1991 से स्वामीनाथन आयोग एवं 2004 से 2006 में भी अन्य आयोग बनाये गए वह सभी तो कृषि संबंधित समस्या के समाधान के लिए ही तो बनाया गया लेकिन उसका क्या हुआ। 1965 में 58 से 60 से अब तक जीडीपी गिरते ही गई जो अब 15 प्रतिशत रह गया। मेरी समझ से अभी देश में और भी बड़ी मंडिया बढ़ाने की आवश्यकता है जो सरकार इसी योजना तहत काम कर रही है। कुलमिला कर विरोध ज़रूरी है लेकिन विरोध ऐसा न हो की किसान अपना ही नुक्सान कर लें।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता श्री शिव भाटिया द्वारा - सरकार किसानो के मुद्दे पर गंभीर नहीं है किसानो के साथ मज़ाक़ कर रही है - सरकार को यह खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा। किसानों का यह आंदोलन अपने आप में सार्थक के साथ
विजय भारतीय - समाजिक कार्यकर्ता - गुजरात - किसानो का आंदोलन बिलकुल सार्थक और देश हित में है -
किसानो के मुद्दे को लेकर केंद्र या राज्य सरकारें या कहें दोनों सरकार कभी भी न सक्रिय रही न कभी उस पर गंभीर रही। तीन बिल्स को लेकर किसानो में असमंजसता इसलिए बढ़ी की सरकार ने यह बिल अपने मर्ज़ी से मनमाने ढंग से संसद में पास करवा दिया और न तो किसी भी किसान संगठनों को विश्वास में लिया और न विपक्ष को ही विश्वास में लिया पर क़ानून बना दिया तो सरकार को एहसास दिलाने के लिए यह आंदोलन ज़रूरी था और इस आंदोलन में आज न केवल पंजाब और हरियाणा के किसान हैं बल्कि आज पुरे हिन्दुस्तान के किसानो के अतिरिक्त आम जनता किसानो के साथ है। और यह आंदोलन अभी अहिंसात्मक तरीके से लम्बा चलेगा। हिंसा सरकार फैला रही है न की किसान या जनता। इसलिए सरकार को चाहिए की यह आंदोलन वापस ले कर किसानो को अपने हिसाब से बाज़ार और दाम तय करने की आज़ादी देना चाहिए।चाहिए। एमएसपी - मिनिमम समर्थन मूल्य जो किसानो का अधिकार है जो उसे मिलना चाहिए, जैसे हमारे छत्तीसगढ़ एक मोडल है छत्तीसगढ़ सरकार किसानों को दे रही है। सरकार द्वारा किसानो को सहयोग समर्थन मूल्य जो छत्तीसगढ़ सरकार इस समय किसानों को दे रही है वह सम्पूर्ण भारत के लिए एक मिसाल है। केंद्र सरकार को अपने तीन क़ानून बनाने से बेहतर था की कांग्रेस द्वारा बनाये गए एमएसपी को ही प्राथमिकता से लागू कर किसानो की मदद करती बढ़ावा देती तो आज केंद्र की ऐसी फ़ज़ीहत नहीं होती। किसानो के सारे समस्याओं का समाधान हो जाता। न हमारे देश के किसान परेशान होते न तो नौजवान बेरोज़गार होते । सरकार की क्या मंशा है पता नहीं, लेकिन सरकार अपने मन की बात तो करती है लेकिन अपने दश की जनता के मन की बात नहीं सुनती।
उनकी मांग जाइज़ है सरकार को वह तीनो क़ानून वापस ले लेना चाहिए , किसान को अपने हिसाब से अपने माल को बाज़ार में अपने दाम में बेचने की पूरी छूट होनी चाहिए। सरकार द्वारा बनाये गई क़ानून किसानों को एक दायरे में सीमित कर देता है जो की गलत है। उनका अपना अधिकार है।
Thursday, November 12, 2020
Saturday, October 31, 2020
लोकसभा से कंपनी हित में एक और बिल पारित-15 दिनों के नोटिस पर कंपनीयां बिना मंजूरी के अपने कर्मचारियों की कर सकेंगी छंटनी,
एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)
Friday, October 30, 2020
Thursday, October 22, 2020
देश की हर लड़कियों के लिए प्रेरणा हैं (3 फुट, 2 इंच) महिला IAS आरती डोगरा।
देश की हर लड़कियों के लिए प्रेरणा हैं (3 फुट, 2 इंच) महिला IAS आरती डोगरा।
आईएएस आरती डोगरा ने अपनी कामयाबियों के सफर में कभी अपने कद (3 फुट, 2 इंच) को आड़े नहीं आने दिया। राजस्थान में अपने स्वच्छता मॉडल ‘बंको बिकाणो’ से पीएमओ तक मुग्ध कर देने वाली उत्तराखंड के कर्नल पिता की बिटिया आरती डोगरा राजस्थान ही नहीं पूरे देश के प्रशासनिक वर्ग में एक नई मिसाल बन चुकी हैं।
एस ज़ेड. मलिक (पत्रकार)
18 जुलाई 1979 को उत्तराखंड के देहरादून की विजय कॉलोनी निवासी कर्नल राजेंद्र डोगरा और निजी स्कूल में प्रधानाध्यापक के पद पर विराजमान कुमकुम डोगरा के घर बेटी ही नहीं बल्कि एक साक्षात्कार लक्ष्मी ने जन्म लिया। जिसका नाम आरती रखा गया। कर्नल साहब की यही पहली संतान थी। इसकी शारीरिक बनावट अन्य बच्चों से जुदा थी पर चेहरे पर एक रौनक भी झलक रही थी जिससे कर्नल साहब और उनकी पत्नी को उस मासूम के पर बेहद स्नेह और प्यार भी उमड़ रहा था। धीरे-धीरे उम्र बढ़ती तो गई, लेकिन तीन क़द काठी 3 फीट 6 इंच पर ठहर गई।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार डॉक्टर्स ने आरती डोगरा के जन्म पर कहा था कि यह बच्ची सामान्य जिंदगी नहीं जी पाएगी। वहीं, लोगों ने भी ताने कसे थे। इसे परिवार के लिए बोझ बताया। यहां तक की आरती डोगरा के माता-पिता की दूसरी संतान पैदा करने की नसीहत दे डाली थी, मगर उन्होंने इसी इकलौती बेटी को कामयाब बनाने की ठानी और नतीजा यह है कि आज आरती डोगरा आईएएस अफसर हैं।
राजस्थान के बीकानेर और बूंदी जिलों में कलक्टर रह चुकीं आरती डोगरा अब अजमेर की नई कलेक्टर नियुक्त की गई हैं। वह कद में तो मात्र तीन फुट छह इंच की हैं लेकिन खुले में शौच से मुक्ति के लिए शुरू हुए उनके स्वच्छता मॉडल ‘बंको बिकाणो’ पर पीएमओ भी मुग्ध हो चुका है। वर्ष 2006 बैच की आईएएस आरती डोगरा दून के विजय कॉलोनी की रहने वाली हैं। उनके पिता कर्नल राजेन्द्र डोरा सेना में अधिकारी और मां कुमकुम स्कूल में प्रिसिंपल रही हैं। आरती के जन्म के समय डॉक्टरों ने साफ कह दिया कि उनकी बच्ची सामान्य स्कूल में नहीं पढ़ पाएगी।
माता-पिता के जुनून ने उनको हौसला प्रदान किया। उसी वक्त उनके माता-पिता ने तय कर लिया कि उनकी बिटिया सामान्य स्कूल में अन्य बच्चों के साथ पढ़ने जाएगी। फिर उन्होंने ऐसा ही किया। उनको शुरू से इस बात के लिए प्रेरित किया कि वह पढ़ाई के अलावा खेलकूद और अन्य गतिविधियों में सामान्य बच्चों की तरह ही भाग लेती रहें। कर्नल पिता में ऐसा जुनून था कि बिटिया को उन्होंने न केवल खेलकूद में प्रोत्साहित किया बल्कि घुड़सवारी तक सिखाई। इसके लिए उन्होंने अलग से जीन तक बनवाकर उन्हें घोड़े पर बैठना सिखाया। आरती डोगरा बताती हैं कि सिंगल चाइल्ड के रूप में माता-पिता ने मेरी परवरिश की। उन्होंने इतना हौसला प्रदान किया कि कभी किसी प्रकार की कमी नहीं महसूस हुई।
स्कूल से निकल कर दिल्ली के श्रीराम लेडी कॉलेज से अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन करने के दौरान उन्होंने जमकर छात्र राजनीति में भी भाग लिया और छात्र संघ चुनाव भी जीतीं। वह कॉलेज की सांस्कृतिक गतिविधयों से लेकर डिबेट तक में खुद भाग लेकर अपने व्यक्तित्व को निखारती रहीं। ग्रेजुएशन के बाद पीजी उन्होंने देहरादून से की। इसके बाद अपने पसन्द के काम यानी बच्चों को पढ़ाने में जुट गईं। इस दौरान देहरादून की तत्कालीन कलेक्टर मनीषा के साथ उनकी मुलाकात ने पूरी सोच ही बदल कर रख दी।
मनीषा ने उनको प्रेरित किया कि यदि वे लगन के साथ तैयारी करें तो आसानी से आईएएस अधिकारी बन सकती हैं। इसके बाद उन्होंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि अब उन्हे वही मंजिल प्राप्त करनी है। मन लगाकर तैयारियों में जुट गईं। कर्नल पिता को पता चला तो उन्होंने एक ही बात कही कि चाहे जो काम करो, नतीजों की चिन्ता छोड़ उसमें अपना पूरा सौ फीसदी श्रम और विवेक झोक दो। उन्होंने जमकर मेहनत की और उम्मीद के विपरीत लिखित परीक्षा पास कर ली। अब साक्षात्कार में जाना था। साक्षात्कार के लिए कमरे में प्रवेश करने से पूर्व बुरी तरह से नर्वस हो चुकी थीं। अंदर पहुंचीं तो इंटरव्यू बोर्ड के सदस्यों ने माहौल को कुछ हल्का बनाया तो हिम्मत आई। इसके बाद 45 मिनट तक सवाल-जवाब की दौर चला। आर्मी व अर्थशास्त्र का बैकग्राउंड होने के कारण अधिकांश सवाल इसी से जुड़े रहे। इस तरह वह अपने पहले ही प्रयास में आईएएस सेलेक्ट हो गईं।
वह अपने गृह प्रदेश उत्तराखंड के मसूरी स्थित लाल बहादुर प्रशासनिक अकादमी में ट्रेनी आईएएस अफसरों से भी ‘बंको बिकाणो’ अभियान के अनुभव कई बार साझा कर चुकी हैं। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय की ओर से दिल्ली में आयोजित कार्यशाला में भी वह केंद्र सरकार और मध्य प्रदेश के अफसरों को ‘बंको बिकाणो’ अभियान के बारे में बता चुकी हैं। जयपुर में विश्व बैंक की ओर से दुनियाभर के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में भी उन्होंने इस अभियान पर प्रजेंटेशन दिया था। वह बताती हैं कि जब वह बीकानेर की डीएम थीं, दुनिया के18 देशों के प्रतिनिधि अभियान को धरातल पर देखने समय-समय पर उनके पास पहुंचे थे।
उनकी ओर से मिशन अगेंस्ट एनीमिया ‘मां’ कार्यक्रम और डॉक्टर्स फॉर डॉटर्स कार्यक्रम को भी पहचान मिली है। उन्होंने बीकानेर के कार्यकाल के दौरन जिले के सभी डॉक्टरों के लिए वाट्सएप अनिवार्य कर दिया था, जिससे ऐसे अस्पतालों में पहुंचने वाले मरीजों का भी इलाज वाट्सएप से किया जाने लगा, जहां डॉक्टर तैनात नहीं थे। आज भी वहां तैनात स्वास्थ्य कर्मचारी डॉक्टरों को मरीजों की जांच रिपोर्ट भेजते हैं और इन रिपोर्ट पर डॉक्टर इलाज की सलाह देते हैं। वर्ष 2013 में बीकानेर (राजस्थान) की डीएम रहते हुए उन्होंने ‘बंको बिकाणो’ अभियान शुरू किया। इसमें लोगों को खुले में शौच नहीं करने के लिए प्रेरित किया गया।
धीरे-धीरे यह आंदोलन राजस्थान के बाकी जिलों में फैला और दो साल के भीतर ही राजस्थान के बाहर अन्य राज्यों ने भी इस मॉडल को अपना लिया। आरती डोगरा बताती हैं कि कुछ ही महीनों में बीकानेर की 195 ग्राम पंचायतों में सफलता पूर्वक यह अभियान चला। इसमें प्रशासन के लोग सुबह गांव में पहुंचकर खुले में शौच करने वालों को रोकते थे। ऐसे गांवों में घर-घर पक्के शौचालय बनवाए गए, जिनकी मॉनिटरिंग मोबाइल के जरिए ‘आउट कम ट्रैकर साफ्टवेयर’ से की जाती थी। आरती डोगरा राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कई बार सम्मानित हो चुकी हैं। उन्होंने अपनी सफलता की राह में कभी अपने कद को बाधक नहीं बनने दिया। वह जोधपुर डिस्कॉम का प्रबंध निदेशक भी रह चुकी हैं। इस पद पर नियुक्त होने वाली वे पहली महिला आईएएस अधिकारी रही हैं। वह अपना सबसे बेहतर कार्यकाल बीकानेर कलेक्टर रहने के दौरान मानती हैं, जहां उन्होंने कुछ अनाथ लड़कियों की मदद की। आज भी वे लगातार उनके संपर्क में हैं।
आरती डोगरा अपने जीवन के अनुभव साझा करती हुई बताती हैं कि आईएएस अधिकारी का पद कभी महिला और पुरुष में भेद नहीं करता है। ऐसे में उनको तो कभी इस बात का अहसास ही नहीं हुआ कि वे एक महिला हैं। इस पद पर रहते हुए किसी अधिकारी से जिस काम की अपेक्षा की जाए, वह एक महिला भी आसानी से निभा सकती है। कलेक्टर रहने के दौरान कई बार उन्होंने रात को दो बजे पुरुष अधिकारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपनी ड्यूटी निभाई। उन्हें अपने अब तक के जीवन को लेकर किसी प्रकार का अफसोस नहीं है।
वह मानती हैं कि यह नकारात्मक सोच है और वह कभी ऐसा नहीं सोच सकती हैं। अब तक के कैरियर में उन्हें सबसे अधिक सन्तुष्टि बीकानेर कलेक्टर रहने के दौरान मिली है। वो अनाथ लड़कियां आज बीकानेर के बड़े स्कूलों में शिक्षा हासिल कर रही हैं। वे स्वयं लगातार उनके संपर्क में रहती हैं। वर्ष 2013 में निर्मल भारत अभियान के तहत जब उन्होंने बंको बीकाणा अभियान की लांचिंग की थी, मोबाइल एप, अलसुबह मॉनीटरिंग और जनप्रतिनिधियों के जुड़ाव के चलते उनका प्रयास कैंपेन कम्युनिटी कैम्पेन में तब्दील हो गया। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी उनके अभियान की प्रशंसा करते हुए उसकी और अधिक बेहतर तरीके से मानीटरिंग के निर्देश दिए थे।
डोगरा के तबादले के बाद जिला कलेक्टर पूनम ने भी इस कैंपेन को उसी गंभीरता के साथ आगे जारी रखा। यही कारण रहा कि जब 26 जनवरी को बीकानेर जिला राजस्थान का प्रथम ओडीएफ जिला घोषित हुआ, तो जिला कलेक्टर पूनम को भी राज्यपाल के हाथों सम्मानित किया गया। इस अभियान के लिए राजस्थान में बीकानेर, अजमेर, चूरु, झुंझुनूं और जयपुर जिले नामांकित किए गए थे। बंको बीकाणा अभियान की इस सफलता से न केवल प्रशासनिक अधिकारी रोमांचित रहते हैं, बल्कि बाद में आरती डोगरा को केन्द्रीय मंत्री ने बेहतर काम के लिए अन्य नौकरशाहों के साथ दिल्ली में आमंत्रित किया था।
यह कहानी एक न्यूज़ पोर्टल - यंगस्टोरी हिंदी डॉट कॉम के रिपोटर जयप्रकाश लिखित कहानी जनहित में हमने अपने प्रेरणा बुक के लिए लिया गया है।
Tuesday, October 20, 2020
Monday, October 19, 2020
एक ग्रामीण की नई सोंच - जिसने ग्रामवासियों को दी नई ऊर्जा ।
एक ग्रामीण की नई सोंच - जिसने ग्रामवासियों को दी नई ऊर्जा ।
Saturday, October 17, 2020
Thursday, October 15, 2020
झुग्गी झोपड़ी में जीवन व्यतीत करने वाले भी बन जाते हैं आईपीएस अफसर !
एस.ज़ेड. मलिक (पत्रकार)
झुग्गी झोपड़ी में बचपन बीता, पिता चपरासी थे, अपने अथक प्रयास से बेटा बन गया आईपीएस अफसर: नूरुल हसन की दास्ताँ।
ज्योति के कष्ट भरे जीवन और संघर्ष की दास्तां .
ज्योति के कष्ट भरे जीवन और संघर्ष की दास्तां
’ 16 वर्ष की उम्र में विवाह होने के बाद ज्योति ने मात्र 17 की उम्र में एक बेटी को जन्म दिया और इसके एक वर्ष के भीतर ही वे एक और बेटी की मां बनी। ‘‘मात्र 18 वर्ष की उम्र में मैं 2 लड़कियों की मां बन चुकी थी। हमारे पास कभी भी इतने पैसे नहीं होते थे कि हम उनके लिये दवाईयां खरीद सकें या फिर उन्हें उनके पसंदीदा खिलौने खरीदकर दे सकें।
Thursday, October 8, 2020
क्या बिहार चुनाव के बाद जद (यु) धरातल आजायेगी ? क्या लोजपा का वज़न बिहार किराजनीतिक में बढ़ जाएगा ?
बिहार के जातिवादी राजनीतिक के अंधेरी कोठरी में मोदी ने चिराग जलाया..
अब लोक जनशक्ति पार्टी अपने आपको बिहार के नितीश वाली गठबंधन से बाहर आ कर तो दिखाया है, लेकिन ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो समय ही बताएगा।
अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए पासवान सरदर्द साबित हो सकते हैं। अब लोजपा, जनता दल यूनाइटे के विरोध में 243 सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारेगी, लेकिन उन सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेगी, जो भारतीय जनता पार्टी के हिस्से में होंगी। और उधर, केंद्र में चिराग पासवान और नीतीश कुमार, दोनों की पार्टियां भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा बनी रहेंगी।
इसकी रूपरेखा अमित शाह ने तैयार की है, और रणनीति यह है कि नीतीश कुमार के सामने चिराग 'वोट-कटवा' की भूमिका में रहेंगे, जिससे नतीजों में भाजपा को लाभ होगा। जब विधानसभा चुनाव परिणाम आ जाएंगे, तो इससे BJP के हाथ में नीतीश कुमार से सौदेबाज़ी के लिए ज़्यादा ताकत मौजूद रहेगी. अगर भाजपा का नतीजा बहुत अच्छा रहा, तो हो सकता है कि वह नीतीश कुमार से छुटकारा पाने की स्थिति में ही आ जाए और पासवान के समर्थन से सरकार का गठन कर ले।
इस तरह देखें, तो कई सीटों पर चिराग 'दोस्ताना मुकाबला' करते नज़र आ सकते हैं, और ऐसे प्रत्याशी उतार सकते हैं, जो दरअसल दौड़ में न हों. वे उन वोटों को काटेंगे, जो नीतीश की तरफ जा सकते हैं, और नतीजतन भाजपा का प्रत्याशी जीत जाएगा।
राज्य में पासवान सबसे बड़ा दलित समुदाय है, और कुल आबादी का साढ़े चार फीसदी है. चिराग की महत्वाकांक्षा पार्टी की पहुंच को बढ़ाने की है. उनका मानना है कि नीतीश कुमार के खिलाफ एन्टी-इन्कम्बेंसी लहर (सत्ता के खिलाफ लहर) पर्याप्त है, जिसकी बदौलत अपना जनाधार बढ़ाया जा सकता है. इस विधानसभा चुनाव का एक और पहलू भी है - लालू प्रसाद यादव, कांग्रेस तथा वामदलों का विपक्षी गठबंधन, जिसकी अगुवाई लालू प्रसाद के 30-वर्षीय पुत्र तेजस्वी यादव कर रहे हैं. अगर चिराग यह चाहते हैं कि उन्हें गंभीरता से लिया जाए, तो उन्हें अपने नेतृत्व को उभारना होगा, और आगे बढ़कर काम करना होगा. इस उद्देश्य से वह उतनी ही सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, जितनी सीटों पर नीतीश कुमार लड़ेंगे - लगभग 140. पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने सिर्फ 40 सीटों पर चुनाव लड़ा था. बस, यही है बड़ी खिलाड़ी बनने की कोशिश.
BJP के लिए भी बदलती भूमिकाएं कतई सही हैं. प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि उनकी पार्टी बेशक नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मानकर चुनाव लड़ेगी. लेकिन पिछले कुछ सालों में प्रधानमंत्री की लोकप्रियता ने साबित कर दिया है कि बिहार में उनके नाम भी सीटें आसानी से जीती जा सकती हैं, और नीतीश कुमार के साथ गठबंधन में जूनियर पार्टनर बने रहने की जगह अब अमित शाह 'बड़े भाई' की भूमिका में पहुंचना चाहते हैं. यह बिल्कुल वैसा ही मॉडल है, जैसा वह अन्य गठबंधनों में आज़मा चुके हैं, और जो भाजपा की ताकत को बढ़ाने में अक्सर कामयाब रहा है।
बिहार में 243 विधानसभा सीटें हैं। और नीतीश कुमार संभवतः 119-119 सीटों पर लड़ेंगे, लेकिन नीतीश को पांच सीटें जीतनराम मांझी को भी देनी होंगी, सो, वह भाजपा की तुलना में कम सीटों पर लड़ेंगे. यह ऐसा दृश्य है, जिसकी कुछ साल पहले तक कल्पना भी संभव नहीं थी।
राज्य में मतदान 28 अक्टूबर को शुरू होगा, और नतीजे 10 नवंबर को आएंगे.
चिराग पासवान ने कई बार मुझसे कहा है कि नीतीश कुमार कुशल प्रशासक नहीं हैं. कोरोना संकट में बिहार में हुए झोलझाल और लॉकडाउन घोषित होने के बाद दिल्ली व मुंबई जैसे शहरों को छोड़कर बिहार के गांवों की तरफ लौटने को मजबूर हुए प्रवासी मज़दूरों के बेहद भावनात्मक मुद्दे पर हुए गड़बड़ियों ने दिखाया है कि नीतीश ज़मीनी हकीकत से कोसों दूर हैं. अब चिराग जब नीतीश के खिलाफ कैम्पेन तैयार कर रहे हैं, उन्हें अपने बेहद तजुर्बेकार पिता का पूरा समर्थन हासिल है।
नीतीश कुमार की मौजूदगी वाली टीम से बाहर निकलने के लिए चिराग ने जानबूझकर इतनी सीटें मांग लीं, जिनके लिए साझीदारों को इकार ही करना पड़े. बस, फिर वह बाहर निकल आए, और शाह का लिखा कथानक स्पष्ट कर दिया - दिल्ली में साझीदार, बिहार में विरोधी...
नीतीश कुमार को उनकी वास्तविक स्थिति दिखा देने की इस कोशिश से बिहार चुनाव में एक नया ट्विस्ट जुड़ गया है, और साबित करता है कि बिहार में होने वाला कोई भी चुनाव ऊबाऊ नहीं हो सकता. कुछ ही हफ्ते पहले तक नतीजा कतई स्पष्ट दिख रहा था - नीतीश कुमार और भाजपा की आसान जीत. अब, मामला काफी जटिल हो गया है.
मैंने इस आलेख के लिए बिहार के कई नेताओं से बात की. सभी ने एक विरोधाभासी-सी बात कही - पिछले एक साल में खराब गवर्नेन्स के कारण नीतीश कुमार के खिलाफ पैदा हुए गुस्से से किसी भी तरह गठबंधन में शामिल प्रधानमंत्री को नुकसान नहीं पहुंचा है. अगर इसकी कीमत चुकानी पड़ी, तो वह सिर्फ नीतीश ही चुकाएंगे, और गठबंधन को इससे नुकसान नहीं होगा.
नीतीश कुमार राजनैतिक कलाबाज़ियों के मामले में दिग्गज हैं, और अपनी इसी सरकार को बनाए रखने के लिए साझीदार बदल चुके हैं (उन्होंने अपने पुराने सहयोगी BJP का साथ छोड़कर कांग्रेस व लालू यादव के साथ मिलकर सरकार बनाई थी, और फिर उन्हें छोड़कर BJP का दामन थाम लिया था), लेकिन इस बार ऐसा लगता है, वह पीछे छूट सकते हैं। भाजपा के एक केंद्रीय नेता का कहना था कि अवसर देखकर साझीदार बदलने वाले के तौर पर नीतीश कुमार की छवि ज़ाहिर हो चुकी है. उन्होंने कहा, "हर बिहारी जानता है कि वह 'कुर्सी कुमार' हैं... जहां कुर्सी, वहां नीतीश..."
इन दिनों नीतीश कुमार अपनी अंतरात्मा की उस आवाज़ को लेकर भी चुप हैं, जिसने उनके दावे के मुताबिक उनकी राजनीति की दिशा तय की है।
अपनी तरक्की के लिए अपने ही साझीदारों का नुकसान करवा देना भाजपा के लिए कोई नई बात नहीं है. बिल्कुल ऐसा ही महाराष्ट्र में शिवसेना और पंजाब में अकाली दल के साथ हुआ था। दोनों ने भाजपा से नाता तोड़ लिया, लेकिन अपनी क्षेत्रीय पकड़ को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए।
नीतीश कुमार ने अतीत में साझीदार बदलने के फैसले को अंतरात्मा की आवाज़ बताया था. लेकिन अब उन्हें राजनैतिक अंतर्ज्ञान से काम लेना होगा।
Tuesday, October 6, 2020
नवादा में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये बिहार मलिक ग्रुप की ओर से “मलिक समन्वय एवं मौजूदा दौर में शिक्षा का महत्व और इसकी जरुरत”* पर सेमीनार।
नवादा में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये बिहार मलिक ग्रुप की ओर से “मलिक समन्वय एवं मौजूदा दौर में शिक्षा का महत्व और इसकी जरुरत”* पर सेमीनार।
नवादा में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये बिहार मलिक ग्रुप की ओर से “मलिक समन्वय एवं मौजूदा दौर में शिक्षा का महत्व और इसकी जरुरत”* पर सेमीनार।
Sunday, October 4, 2020
नवादा में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये बिहार मलिक ग्रुप की ओर से "मलिक समन्वय एवं मौजूदा दौर में शिक्षा का महत्व और इसकी जरुरत"* पर सेमीनार।
कांग्रेस नेता राहुल गाँधी के साथ भाजपा का रवैया इस समय दुर्भावनापूर्ण है-शिव भाटिया (वरिष्ठ कांग्रेस नेता)
यूपी में भढ़ता आरक्जकता और जंगल राज का कारण क्या है - 48 घंटे के अंदर दुसरा काण्ड-ज़िम्मेदार कौन ?
एस. ज़ेड मलिक (पत्रकार)

उन्होंने ने कहा की 19 वर्षीय युवती के साथ दुष्कर्म के बाद बर्बरतापूर्ण हत्या ने दिल्ली का निर्भया काण्ड की याद ताज़ा करवादी, वही मृतक पीड़िता के परिवार के बिना मर्ज़ी पुलिस-प्रशासन द्वारा आनन्-फानन में अंतिम संस्कार किया जाना, उत्तर प्रदेश पुलिस ऐसी हरकत कई गंभीर प्रश्नों को जन्म देता है। यह पूरी तरह साजिश दिखाई दे रही है उत्तरप्रदेश सरकार मुजरिम को बचान चाहती है।
राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और कांग्रेस के कई नेता गुरुवार को हाथरस गैंगरेप पीड़िता के परिजनों से मिलने लिए
हाथरस जा रहे थे। पुलिस ने सबको ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस-वे पर ही जबरन यानी विशेष कर जिस प्रकार से राहुल गांधी को कॉलर पकड़ कर रोका गया वह किसी भी पार्टी के नेताओं के लिए भी अशोभनीय होगा। विशेष कर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के साथ यह रवैया दुर्भावनापूर्ण है। स्पष्ट यह भाजपा द्वारा जान बुझ कर इस प्रकार का द्वेषित व दुर्भावनापूर्ण रवैया यूपी पुलिस को निर्देश जारी किये गए हों ? यह देश के लिए दुर्भाग्य है। यदि भाजपा 1975 के आपातकाल का बदला आज स्वर्गीय इंद्रागांधी के परिवार राहुल गांधी, प्रियंका गांधी से लेना चाहती है तो यह देश के लिए इससे बड़ा और दुर्भाग्य नहीं हो सकता।
से अधिक हो गया है। तो वहीं, प्रियंका गांधी की पत्नी का नाम रॉबर्ट वाड्रा लिखा गया है। गलती पता चलने के बाद पुलिस अब इसमें सुधार की बात कह रही है। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और कांग्रेस के कई नेता गुरुवार को हाथरस गैंगरेप पीड़िता के परिजनों से मिलने के लिए हाथरस जा रहे थे। पुलिस ने सबको ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस-वे पर ही जबरन यानी विशेष कर जिस प्रकार से राहुल गांधी को कॉलर पकड़ कर रोका गया वह किसी भी पार्टी के नेताओं के लिए भी अशोभनीय होगा विशेष कांग्रेस यह रवैया दुर्भावनापूर्ण है। स्पष्ट यह भाजपा द्वारा जान बुझ कर इस प्रकार का द्वेषित दुर्भावनापूर्ण रवैया यूपी सरकार का एक हिस्सा हो सकता है। यूपी सरकार निंन्दा एवं भर्तसना की जाए वह कम ही है।
रख सरकार व प्रशासन की लापरवाही को लेकर आक्रोश जताया। देखते ही देखते सैकड़ों की संख्या में कार्यकर्ता एकजुट होकर प्रदर्शन व नारेबाजी करने लगे। प्रदर्शनकारियों ने सड़क पर जोरदार प्रदर्शन कर सरकार विरोधी नारेबाजी की। हंगामे की सूचना मिलते ही मौके पर भारी मात्रा में पुलिस फ़ोर्स पहुंची और प्रदर्शनकारियों को हटाने लगी, लेकिन वह हटने को तैयार नहीं थे। इस पर पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज कर दिया। असलहा लेकर पहुंचा सपा नेता का सुरक्षाकर्मी गिरफ्तार लाठीचार्ज से वहां भगदड़ मच गई और इसमें कई लोग चोटिल हो गए। पुलिस ने बैरिकेडिंग लगाकर प्रदर्शनकार्यों को रोका था। पुलिस ने हथियार लेकर पहुंचे सपा नेता राम सिंह राणा के निजी सुरक्षाकर्मी को गिरफ्तार किया है। वह प्रदर्शन में असलहा लेकर पहुंचे थे। पुलिस उनसे पूछताछ कर रही है। काफी मशक्कत के बाद पुलिस ने सैकड़ों कार्यकताओं को हिरासत में लेकर बसों में भरकर इको गार्डन भेजा। प्रदर्शनकारियों ने सरकार विरोधी नारेबाजी करते हुए कहा कि बेटियों के सम्मान में बीजेपी मैदान में, सिर्फ चुनावी नारा साबित हुआ। प्रदेश में बेटियों को अपनी इज्जत बचाना मुश्किल हो गया है। प्रदर्शन में सपा नेता रविदास मेहरोत्रा सहित तमाम अन्य नेता और पदाधिकारी पहुंचे थे इस दौरान शहर के मुख्य चौराहे की यातायात व्यवस्था चौपट हो गई।