लोकसभा से कंपनी हित में एक और बिल पारित-15 दिनों के नोटिस पर कंपनीयां बिना मंजूरी के अपने कर्मचारियों की कर सकेंगी छंटनी,
एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)
लोकसभा से कंपनी हित में एक और बिल पारित-15 दिनों के नोटिस पर कंपनीयां बिना मंजूरी के अपने कर्मचारियों की कर सकेंगी छंटनी,
एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)
एस ज़ेड. मलिक (पत्रकार)
18 जुलाई 1979 को उत्तराखंड के देहरादून की विजय कॉलोनी निवासी कर्नल राजेंद्र डोगरा और निजी स्कूल में प्रधानाध्यापक के पद पर विराजमान कुमकुम डोगरा के घर बेटी ही नहीं बल्कि एक साक्षात्कार लक्ष्मी ने जन्म लिया। जिसका नाम आरती रखा गया। कर्नल साहब की यही पहली संतान थी। इसकी शारीरिक बनावट अन्य बच्चों से जुदा थी पर चेहरे पर एक रौनक भी झलक रही थी जिससे कर्नल साहब और उनकी पत्नी को उस मासूम के पर बेहद स्नेह और प्यार भी उमड़ रहा था। धीरे-धीरे उम्र बढ़ती तो गई, लेकिन तीन क़द काठी 3 फीट 6 इंच पर ठहर गई।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार डॉक्टर्स ने आरती डोगरा के जन्म पर कहा था कि यह बच्ची सामान्य जिंदगी नहीं जी पाएगी। वहीं, लोगों ने भी ताने कसे थे। इसे परिवार के लिए बोझ बताया। यहां तक की आरती डोगरा के माता-पिता की दूसरी संतान पैदा करने की नसीहत दे डाली थी, मगर उन्होंने इसी इकलौती बेटी को कामयाब बनाने की ठानी और नतीजा यह है कि आज आरती डोगरा आईएएस अफसर हैं।
राजस्थान के बीकानेर और बूंदी जिलों में कलक्टर रह चुकीं आरती डोगरा अब अजमेर की नई कलेक्टर नियुक्त की गई हैं। वह कद में तो मात्र तीन फुट छह इंच की हैं लेकिन खुले में शौच से मुक्ति के लिए शुरू हुए उनके स्वच्छता मॉडल ‘बंको बिकाणो’ पर पीएमओ भी मुग्ध हो चुका है। वर्ष 2006 बैच की आईएएस आरती डोगरा दून के विजय कॉलोनी की रहने वाली हैं। उनके पिता कर्नल राजेन्द्र डोरा सेना में अधिकारी और मां कुमकुम स्कूल में प्रिसिंपल रही हैं। आरती के जन्म के समय डॉक्टरों ने साफ कह दिया कि उनकी बच्ची सामान्य स्कूल में नहीं पढ़ पाएगी।
माता-पिता के जुनून ने उनको हौसला प्रदान किया। उसी वक्त उनके माता-पिता ने तय कर लिया कि उनकी बिटिया सामान्य स्कूल में अन्य बच्चों के साथ पढ़ने जाएगी। फिर उन्होंने ऐसा ही किया। उनको शुरू से इस बात के लिए प्रेरित किया कि वह पढ़ाई के अलावा खेलकूद और अन्य गतिविधियों में सामान्य बच्चों की तरह ही भाग लेती रहें। कर्नल पिता में ऐसा जुनून था कि बिटिया को उन्होंने न केवल खेलकूद में प्रोत्साहित किया बल्कि घुड़सवारी तक सिखाई। इसके लिए उन्होंने अलग से जीन तक बनवाकर उन्हें घोड़े पर बैठना सिखाया। आरती डोगरा बताती हैं कि सिंगल चाइल्ड के रूप में माता-पिता ने मेरी परवरिश की। उन्होंने इतना हौसला प्रदान किया कि कभी किसी प्रकार की कमी नहीं महसूस हुई।
स्कूल से निकल कर दिल्ली के श्रीराम लेडी कॉलेज से अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन करने के दौरान उन्होंने जमकर छात्र राजनीति में भी भाग लिया और छात्र संघ चुनाव भी जीतीं। वह कॉलेज की सांस्कृतिक गतिविधयों से लेकर डिबेट तक में खुद भाग लेकर अपने व्यक्तित्व को निखारती रहीं। ग्रेजुएशन के बाद पीजी उन्होंने देहरादून से की। इसके बाद अपने पसन्द के काम यानी बच्चों को पढ़ाने में जुट गईं। इस दौरान देहरादून की तत्कालीन कलेक्टर मनीषा के साथ उनकी मुलाकात ने पूरी सोच ही बदल कर रख दी।
मनीषा ने उनको प्रेरित किया कि यदि वे लगन के साथ तैयारी करें तो आसानी से आईएएस अधिकारी बन सकती हैं। इसके बाद उन्होंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि अब उन्हे वही मंजिल प्राप्त करनी है। मन लगाकर तैयारियों में जुट गईं। कर्नल पिता को पता चला तो उन्होंने एक ही बात कही कि चाहे जो काम करो, नतीजों की चिन्ता छोड़ उसमें अपना पूरा सौ फीसदी श्रम और विवेक झोक दो। उन्होंने जमकर मेहनत की और उम्मीद के विपरीत लिखित परीक्षा पास कर ली। अब साक्षात्कार में जाना था। साक्षात्कार के लिए कमरे में प्रवेश करने से पूर्व बुरी तरह से नर्वस हो चुकी थीं। अंदर पहुंचीं तो इंटरव्यू बोर्ड के सदस्यों ने माहौल को कुछ हल्का बनाया तो हिम्मत आई। इसके बाद 45 मिनट तक सवाल-जवाब की दौर चला। आर्मी व अर्थशास्त्र का बैकग्राउंड होने के कारण अधिकांश सवाल इसी से जुड़े रहे। इस तरह वह अपने पहले ही प्रयास में आईएएस सेलेक्ट हो गईं।
वह अपने गृह प्रदेश उत्तराखंड के मसूरी स्थित लाल बहादुर प्रशासनिक अकादमी में ट्रेनी आईएएस अफसरों से भी ‘बंको बिकाणो’ अभियान के अनुभव कई बार साझा कर चुकी हैं। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय की ओर से दिल्ली में आयोजित कार्यशाला में भी वह केंद्र सरकार और मध्य प्रदेश के अफसरों को ‘बंको बिकाणो’ अभियान के बारे में बता चुकी हैं। जयपुर में विश्व बैंक की ओर से दुनियाभर के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में भी उन्होंने इस अभियान पर प्रजेंटेशन दिया था। वह बताती हैं कि जब वह बीकानेर की डीएम थीं, दुनिया के18 देशों के प्रतिनिधि अभियान को धरातल पर देखने समय-समय पर उनके पास पहुंचे थे।
उनकी ओर से मिशन अगेंस्ट एनीमिया ‘मां’ कार्यक्रम और डॉक्टर्स फॉर डॉटर्स कार्यक्रम को भी पहचान मिली है। उन्होंने बीकानेर के कार्यकाल के दौरन जिले के सभी डॉक्टरों के लिए वाट्सएप अनिवार्य कर दिया था, जिससे ऐसे अस्पतालों में पहुंचने वाले मरीजों का भी इलाज वाट्सएप से किया जाने लगा, जहां डॉक्टर तैनात नहीं थे। आज भी वहां तैनात स्वास्थ्य कर्मचारी डॉक्टरों को मरीजों की जांच रिपोर्ट भेजते हैं और इन रिपोर्ट पर डॉक्टर इलाज की सलाह देते हैं। वर्ष 2013 में बीकानेर (राजस्थान) की डीएम रहते हुए उन्होंने ‘बंको बिकाणो’ अभियान शुरू किया। इसमें लोगों को खुले में शौच नहीं करने के लिए प्रेरित किया गया।
धीरे-धीरे यह आंदोलन राजस्थान के बाकी जिलों में फैला और दो साल के भीतर ही राजस्थान के बाहर अन्य राज्यों ने भी इस मॉडल को अपना लिया। आरती डोगरा बताती हैं कि कुछ ही महीनों में बीकानेर की 195 ग्राम पंचायतों में सफलता पूर्वक यह अभियान चला। इसमें प्रशासन के लोग सुबह गांव में पहुंचकर खुले में शौच करने वालों को रोकते थे। ऐसे गांवों में घर-घर पक्के शौचालय बनवाए गए, जिनकी मॉनिटरिंग मोबाइल के जरिए ‘आउट कम ट्रैकर साफ्टवेयर’ से की जाती थी। आरती डोगरा राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कई बार सम्मानित हो चुकी हैं। उन्होंने अपनी सफलता की राह में कभी अपने कद को बाधक नहीं बनने दिया। वह जोधपुर डिस्कॉम का प्रबंध निदेशक भी रह चुकी हैं। इस पद पर नियुक्त होने वाली वे पहली महिला आईएएस अधिकारी रही हैं। वह अपना सबसे बेहतर कार्यकाल बीकानेर कलेक्टर रहने के दौरान मानती हैं, जहां उन्होंने कुछ अनाथ लड़कियों की मदद की। आज भी वे लगातार उनके संपर्क में हैं।
आरती डोगरा अपने जीवन के अनुभव साझा करती हुई बताती हैं कि आईएएस अधिकारी का पद कभी महिला और पुरुष में भेद नहीं करता है। ऐसे में उनको तो कभी इस बात का अहसास ही नहीं हुआ कि वे एक महिला हैं। इस पद पर रहते हुए किसी अधिकारी से जिस काम की अपेक्षा की जाए, वह एक महिला भी आसानी से निभा सकती है। कलेक्टर रहने के दौरान कई बार उन्होंने रात को दो बजे पुरुष अधिकारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपनी ड्यूटी निभाई। उन्हें अपने अब तक के जीवन को लेकर किसी प्रकार का अफसोस नहीं है।
वह मानती हैं कि यह नकारात्मक सोच है और वह कभी ऐसा नहीं सोच सकती हैं। अब तक के कैरियर में उन्हें सबसे अधिक सन्तुष्टि बीकानेर कलेक्टर रहने के दौरान मिली है। वो अनाथ लड़कियां आज बीकानेर के बड़े स्कूलों में शिक्षा हासिल कर रही हैं। वे स्वयं लगातार उनके संपर्क में रहती हैं। वर्ष 2013 में निर्मल भारत अभियान के तहत जब उन्होंने बंको बीकाणा अभियान की लांचिंग की थी, मोबाइल एप, अलसुबह मॉनीटरिंग और जनप्रतिनिधियों के जुड़ाव के चलते उनका प्रयास कैंपेन कम्युनिटी कैम्पेन में तब्दील हो गया। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी उनके अभियान की प्रशंसा करते हुए उसकी और अधिक बेहतर तरीके से मानीटरिंग के निर्देश दिए थे।
डोगरा के तबादले के बाद जिला कलेक्टर पूनम ने भी इस कैंपेन को उसी गंभीरता के साथ आगे जारी रखा। यही कारण रहा कि जब 26 जनवरी को बीकानेर जिला राजस्थान का प्रथम ओडीएफ जिला घोषित हुआ, तो जिला कलेक्टर पूनम को भी राज्यपाल के हाथों सम्मानित किया गया। इस अभियान के लिए राजस्थान में बीकानेर, अजमेर, चूरु, झुंझुनूं और जयपुर जिले नामांकित किए गए थे। बंको बीकाणा अभियान की इस सफलता से न केवल प्रशासनिक अधिकारी रोमांचित रहते हैं, बल्कि बाद में आरती डोगरा को केन्द्रीय मंत्री ने बेहतर काम के लिए अन्य नौकरशाहों के साथ दिल्ली में आमंत्रित किया था।
यह कहानी एक न्यूज़ पोर्टल - यंगस्टोरी हिंदी डॉट कॉम के रिपोटर जयप्रकाश लिखित कहानी जनहित में हमने अपने प्रेरणा बुक के लिए लिया गया है।
एस.ज़ेड. मलिक (पत्रकार)
झुग्गी झोपड़ी में बचपन बीता, पिता चपरासी थे, अपने अथक प्रयास से बेटा बन गया आईपीएस अफसर: नूरुल हसन की दास्ताँ।
अब लोक जनशक्ति पार्टी अपने आपको बिहार के नितीश वाली गठबंधन से बाहर आ कर तो दिखाया है, लेकिन ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो समय ही बताएगा।
अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए पासवान सरदर्द साबित हो सकते हैं। अब लोजपा, जनता दल यूनाइटे के विरोध में 243 सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारेगी, लेकिन उन सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेगी, जो भारतीय जनता पार्टी के हिस्से में होंगी। और उधर, केंद्र में चिराग पासवान और नीतीश कुमार, दोनों की पार्टियां भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा बनी रहेंगी।
इसकी रूपरेखा अमित शाह ने तैयार की है, और रणनीति यह है कि नीतीश कुमार के सामने चिराग 'वोट-कटवा' की भूमिका में रहेंगे, जिससे नतीजों में भाजपा को लाभ होगा। जब विधानसभा चुनाव परिणाम आ जाएंगे, तो इससे BJP के हाथ में नीतीश कुमार से सौदेबाज़ी के लिए ज़्यादा ताकत मौजूद रहेगी. अगर भाजपा का नतीजा बहुत अच्छा रहा, तो हो सकता है कि वह नीतीश कुमार से छुटकारा पाने की स्थिति में ही आ जाए और पासवान के समर्थन से सरकार का गठन कर ले।
इस तरह देखें, तो कई सीटों पर चिराग 'दोस्ताना मुकाबला' करते नज़र आ सकते हैं, और ऐसे प्रत्याशी उतार सकते हैं, जो दरअसल दौड़ में न हों. वे उन वोटों को काटेंगे, जो नीतीश की तरफ जा सकते हैं, और नतीजतन भाजपा का प्रत्याशी जीत जाएगा।
राज्य में पासवान सबसे बड़ा दलित समुदाय है, और कुल आबादी का साढ़े चार फीसदी है. चिराग की महत्वाकांक्षा पार्टी की पहुंच को बढ़ाने की है. उनका मानना है कि नीतीश कुमार के खिलाफ एन्टी-इन्कम्बेंसी लहर (सत्ता के खिलाफ लहर) पर्याप्त है, जिसकी बदौलत अपना जनाधार बढ़ाया जा सकता है. इस विधानसभा चुनाव का एक और पहलू भी है - लालू प्रसाद यादव, कांग्रेस तथा वामदलों का विपक्षी गठबंधन, जिसकी अगुवाई लालू प्रसाद के 30-वर्षीय पुत्र तेजस्वी यादव कर रहे हैं. अगर चिराग यह चाहते हैं कि उन्हें गंभीरता से लिया जाए, तो उन्हें अपने नेतृत्व को उभारना होगा, और आगे बढ़कर काम करना होगा. इस उद्देश्य से वह उतनी ही सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, जितनी सीटों पर नीतीश कुमार लड़ेंगे - लगभग 140. पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने सिर्फ 40 सीटों पर चुनाव लड़ा था. बस, यही है बड़ी खिलाड़ी बनने की कोशिश.
BJP के लिए भी बदलती भूमिकाएं कतई सही हैं. प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि उनकी पार्टी बेशक नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मानकर चुनाव लड़ेगी. लेकिन पिछले कुछ सालों में प्रधानमंत्री की लोकप्रियता ने साबित कर दिया है कि बिहार में उनके नाम भी सीटें आसानी से जीती जा सकती हैं, और नीतीश कुमार के साथ गठबंधन में जूनियर पार्टनर बने रहने की जगह अब अमित शाह 'बड़े भाई' की भूमिका में पहुंचना चाहते हैं. यह बिल्कुल वैसा ही मॉडल है, जैसा वह अन्य गठबंधनों में आज़मा चुके हैं, और जो भाजपा की ताकत को बढ़ाने में अक्सर कामयाब रहा है।
बिहार में 243 विधानसभा सीटें हैं। और नीतीश कुमार संभवतः 119-119 सीटों पर लड़ेंगे, लेकिन नीतीश को पांच सीटें जीतनराम मांझी को भी देनी होंगी, सो, वह भाजपा की तुलना में कम सीटों पर लड़ेंगे. यह ऐसा दृश्य है, जिसकी कुछ साल पहले तक कल्पना भी संभव नहीं थी।
राज्य में मतदान 28 अक्टूबर को शुरू होगा, और नतीजे 10 नवंबर को आएंगे.
चिराग पासवान ने कई बार मुझसे कहा है कि नीतीश कुमार कुशल प्रशासक नहीं हैं. कोरोना संकट में बिहार में हुए झोलझाल और लॉकडाउन घोषित होने के बाद दिल्ली व मुंबई जैसे शहरों को छोड़कर बिहार के गांवों की तरफ लौटने को मजबूर हुए प्रवासी मज़दूरों के बेहद भावनात्मक मुद्दे पर हुए गड़बड़ियों ने दिखाया है कि नीतीश ज़मीनी हकीकत से कोसों दूर हैं. अब चिराग जब नीतीश के खिलाफ कैम्पेन तैयार कर रहे हैं, उन्हें अपने बेहद तजुर्बेकार पिता का पूरा समर्थन हासिल है।
नीतीश कुमार की मौजूदगी वाली टीम से बाहर निकलने के लिए चिराग ने जानबूझकर इतनी सीटें मांग लीं, जिनके लिए साझीदारों को इकार ही करना पड़े. बस, फिर वह बाहर निकल आए, और शाह का लिखा कथानक स्पष्ट कर दिया - दिल्ली में साझीदार, बिहार में विरोधी...
नीतीश कुमार को उनकी वास्तविक स्थिति दिखा देने की इस कोशिश से बिहार चुनाव में एक नया ट्विस्ट जुड़ गया है, और साबित करता है कि बिहार में होने वाला कोई भी चुनाव ऊबाऊ नहीं हो सकता. कुछ ही हफ्ते पहले तक नतीजा कतई स्पष्ट दिख रहा था - नीतीश कुमार और भाजपा की आसान जीत. अब, मामला काफी जटिल हो गया है.
मैंने इस आलेख के लिए बिहार के कई नेताओं से बात की. सभी ने एक विरोधाभासी-सी बात कही - पिछले एक साल में खराब गवर्नेन्स के कारण नीतीश कुमार के खिलाफ पैदा हुए गुस्से से किसी भी तरह गठबंधन में शामिल प्रधानमंत्री को नुकसान नहीं पहुंचा है. अगर इसकी कीमत चुकानी पड़ी, तो वह सिर्फ नीतीश ही चुकाएंगे, और गठबंधन को इससे नुकसान नहीं होगा.
नीतीश कुमार राजनैतिक कलाबाज़ियों के मामले में दिग्गज हैं, और अपनी इसी सरकार को बनाए रखने के लिए साझीदार बदल चुके हैं (उन्होंने अपने पुराने सहयोगी BJP का साथ छोड़कर कांग्रेस व लालू यादव के साथ मिलकर सरकार बनाई थी, और फिर उन्हें छोड़कर BJP का दामन थाम लिया था), लेकिन इस बार ऐसा लगता है, वह पीछे छूट सकते हैं। भाजपा के एक केंद्रीय नेता का कहना था कि अवसर देखकर साझीदार बदलने वाले के तौर पर नीतीश कुमार की छवि ज़ाहिर हो चुकी है. उन्होंने कहा, "हर बिहारी जानता है कि वह 'कुर्सी कुमार' हैं... जहां कुर्सी, वहां नीतीश..."
इन दिनों नीतीश कुमार अपनी अंतरात्मा की उस आवाज़ को लेकर भी चुप हैं, जिसने उनके दावे के मुताबिक उनकी राजनीति की दिशा तय की है।
अपनी तरक्की के लिए अपने ही साझीदारों का नुकसान करवा देना भाजपा के लिए कोई नई बात नहीं है. बिल्कुल ऐसा ही महाराष्ट्र में शिवसेना और पंजाब में अकाली दल के साथ हुआ था। दोनों ने भाजपा से नाता तोड़ लिया, लेकिन अपनी क्षेत्रीय पकड़ को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए।
नीतीश कुमार ने अतीत में साझीदार बदलने के फैसले को अंतरात्मा की आवाज़ बताया था. लेकिन अब उन्हें राजनैतिक अंतर्ज्ञान से काम लेना होगा।
यूपी में भढ़ता आरक्जकता और जंगल राज का कारण क्या है - 48 घंटे के अंदर दुसरा काण्ड-ज़िम्मेदार कौन ?
एस. ज़ेड मलिक (पत्रकार)
उन्होंने ने कहा की 19 वर्षीय युवती के साथ दुष्कर्म के बाद बर्बरतापूर्ण हत्या ने दिल्ली का निर्भया काण्ड की याद ताज़ा करवादी, वही मृतक पीड़िता के परिवार के बिना मर्ज़ी पुलिस-प्रशासन द्वारा आनन्-फानन में अंतिम संस्कार किया जाना, उत्तर प्रदेश पुलिस ऐसी हरकत कई गंभीर प्रश्नों को जन्म देता है। यह पूरी तरह साजिश दिखाई दे रही है उत्तरप्रदेश सरकार मुजरिम को बचान चाहती है।
राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और कांग्रेस के कई नेता गुरुवार को हाथरस गैंगरेप पीड़िता के परिजनों से मिलने लिए
यूपी में भढ़ता आरक्जकता और जंगल राज का कारण क्या है - 48 घंटे के अंदर दुसरा काण्ड-ज़िम्मेदार कौन ?
धारा 144 लागू होने की बात कहते हुए राहुल को यूपी पुलिस द्वारा कॉलर पकड़ कर आगे जाने से रोका गया-कांग्रेसियों पर दर्ज हुई इस एफआईआर, यूपी पुलिस-प्रशासन द्वारा अंतिम संस्कार किए जाने की पर राजनीतिक गरमाई। यूपी में भढ़ता आरक्जकता और जंगल राज का कारण क्या है ज़िम्मेदार कौन ? सरकार द्वारा जान बुझ कर बढ़ावा दिया जा रहा या योगी सरकार यूपी को संभालने में पूरी तरह से फेल्योर हो चुकी है ?
एस. ज़ेड मलिक (पत्रकार)
नोएडा - गौतमबुद्ध नगर के ग्रेटर नोएडा में ईकोटेक वन पुलिस स्टेशन में 153 काँग्रेसियों के नामजद किये गए, जबकि 50 के खिलाफ अज्ञात के नाम पर मामला दर्ज हुआ। हालांकि, कांग्रेसियों पर दर्ज हुई इस एफआईआर की कॉपी को लेकर नोएडा पुलिस के किर्याक्लापों तथा यूपी पुलिस के साक्षारता पर सवाल उठ रहे हैं। दरअसल एफआईआर में 'प्रियंका गांधी को रॉबर्ट वाड्रा का पति' लिख दिया गया था, राहुल समेत 203 लोगों पर मुकदमा दर्ज किया था।
अत्यंत महँगे 'तालीमि प्रॉजेक्ट ' ( एक प्रकार का सॉफ्टवेयर ) स्कूलों पर थोपने का विरोध करने पर , इंटरनेशनल इंडियन स्कूल- जेद्दा के चेयरमैन एवं सदस्यों प्रबंधकीय समिति से निकाला गया !