Thursday, June 30, 2016
AINA INDIA: बिजली विभाग की हठधर्मी - Report by S.ZMallick(Jour...
AINA INDIA: बिजली विभाग की हठधर्मी - Report by S.ZMallick(Jour...: बिजली विभाग का ज़बरदस्ती छापा। लोक अदालत के आदेश पर को 22180 रुपया जुरमाना भरा फिर 25 जुलाई 2016 और 22180 रुपया देना है। - मज़दूरी क...
बिजली विभाग की हठधर्मी - Report by S.ZMallick(Journalist)
बिजली विभाग का ज़बरदस्ती छापा। लोक अदालत के आदेश पर को 22180 रुपया जुरमाना भरा फिर 25 जुलाई 2016 और 22180 रुपया देना है। - मज़दूरी करनेवाले ज़ीशान के २५ गज़ के मकान में एसी तथा फ्रिज चालान का इलज़ाम। घर में कोई मर्द की सूरत नहीं। बिजली विभाग के लगभा 10-12 लोग जबरन मकान में घुस कर बंद मीटर का फोटो खिंच कर इलज़ाम लगा दिया की अमानुल्लाह बिजली चोरी कर रहा था। जबरन 74000 हज़ार रूपये का जुर्माना थोक दिया।
उत्तर पशिम जिला के सुलतान पूरी के एक नंबर ऍफ़ ब्लॉक नूरी मस्जिद के सटे २५ गज़ के मकान में १३ मई को लग भाग १२ बजे अस्थानीय बिजली विभाग के लगभग १२-१५ लोग घर में घुस गए और बंद मीटर की फोटो कहना शुरू कर दिया - मकान मालिक समाजसेवी जीशअनुल्लाह के कथनानुसार उस समय वह दिल्ली में उपस्थित नहीं थे और घर में मर्द की सूरत में कोई नहीं था , घर में सिर्फ औरते ही थी। मकान मालिक जीशनुल्लाह के माकन में दो मीटर लगा हुआ है एक दूकान का और दूसरा मकान का, माकन के मीटर का सीए नो० ६०००४५२९२३० , है , इसका बिल हर महीने लग भाग १२-१३ सौ का आता है, जिस में एक सेलिंग फैन और एक कूलर तथा दो बल्ब और एक टिवलाईट का इस्तेमाल है - दूकान के मीटर का कोई खास इस्तेमाल नहीं है, कभी कभी दूकान जब खुलती है तो सिर्फ एक एलईडी बल्ब २-४-१० मिंट के लिए जलाया जाता है। बिजली की इतनी कम खपत, समय पर बिल भरा जा रहा है तो फिर सवाल उठता है आखिर इलज़ाम क्यों लगाया गया? बिजली विभाग ने क्या गुंडे पाल कर अपना बिल वसूल करने का ठेका ले रक्खा है, क्या ऐसा तो नहीं कि बिजली विभाग अपने आक़ा से बिजली बिल न लेकर गरीब और कमज़ोर उपभोगताओं से अपने आकाओं का बिल वसूलती है , इससे पहले भी बिजली विभाग के कर्मचारिओं की ऐसे ओछे हरकतों की कई शिकायतें मिलती रही है , जिसका निपटारा अदालत में किया जाता है और लोक अदालत किसका तो पता चला की वह भी बिजली विभाग का ही है, लोकअदालत का काम है बिजली विभाग द्वारा थोपा गया जुर्माना का सेटलमेंट करा कर उपभोगताओं से आधा जुरमाना बिजली विभाग को अदा करवाना, लोगों को सिर्फ इस बात से संतुष्टि मिलजाती है की लोक अदालत ने हमारा उद्धार कर दिया।
जनता इतनी भावुक बेवक़ूफ़ अशिक्षित है की स्वतंत्रता से अब तक उसे न तो लोकतंत्र का मतलब ही समझ में आया और न तो सरकार का मतलब ही आज तक समझ पायी। 75 प्रतिशत जनत आज भी अपने सांसद , विधायेक तथा निगमपार्षद और मुखिया को ही सरकार कह कर उसके आगे नमस्तक रहती है यही कारन है की यह जनप्रतिनिधि अपने आपको जनता देवता तथा कहीं कहीं भगवान् भी बनजाते हैं। और सरकारी कर्मचारी जो जनता की नौकरी करने के लिए, जनता के समस्याओं के समाधान के लिए बहाल किये गए हैं , ऐसे 75 प्रतिशत अशिक्षित भावुक बेवक़ूफ़ जनता के कारण वह भी अपने आप को कर्मचारी या पदाधिकारी से हट कर अपने आप को देवता या भगवान् से काम नहीं समझते हैं। नतीजा सबके सामने है जो मैं लिख रहा हूँ , ऐसे कौन पढ़ेगा एक शिक्षित और समझदार आदमी , न कि कोई अनपढ़ या बेवक़ूफ़ आदमी , अनपढ़ और बेवक़ूफ़ लोग तो पढ़े लिखे लोगों पर ही यकीन , विश्वाश ,भरोसा, करते हैं , और दूसरे नेताओं पर चाहे वह अनपढ़ क्यों न हों साफ सुथरा कपडा पहनते हैं , खादी पहनते हैं , एसी दफ्तरों में बैठे हैं ऐसे ही लोग इन 75 प्रतिशत जनता को बेवक़ूफ़ बन कर अपना उल्लू सीधा करते हैं , और जनता इनपर तन मन धन निछावर करती है , और यह उनके सीधे पण का पुरा पूरा फायदा उठाते हैं।
क्या इस देश का कभी भला हो सकता है ? कौन आयेगा इन 75 प्रतिशत अनपढ़ लोगों को शिक्षित करने ? इन 75 प्रतिशत जनता ने तो मोदी को 5 वर्षों तक अपने आप को साक्षर बने के नाम पर लूटवाने का ठेका दे दिया है , अभी दो वर्ष गुज़र चुकें हैं - इन दो वर्षों तो सिर्फ अभी हा हा कार मचा है , कही महंगाई को ले कर तो कहीं साम्प्रदायिक दंगों को लेकर , तो कही सरकारी खजाने से एनएसडीसी, डिजिटल इंडिया के नाम की एस्कीमो के नाम पर बड़े उद्योगों तथा बड़ी बेनामी कंपनियों द्वारा लूटने के नाम पर। हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम गुलिस्तां क्या होगा। चाहे केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार हो सभी इस समय लूटने का ही काम कर रहे हैं , जनता अपने आप को लूटवाने पर आमादा है। फिर एक क्रांति आएगी ज़रूर आएगी . . . . . . . .
जनता इतनी भावुक बेवक़ूफ़ अशिक्षित है की स्वतंत्रता से अब तक उसे न तो लोकतंत्र का मतलब ही समझ में आया और न तो सरकार का मतलब ही आज तक समझ पायी। 75 प्रतिशत जनत आज भी अपने सांसद , विधायेक तथा निगमपार्षद और मुखिया को ही सरकार कह कर उसके आगे नमस्तक रहती है यही कारन है की यह जनप्रतिनिधि अपने आपको जनता देवता तथा कहीं कहीं भगवान् भी बनजाते हैं। और सरकारी कर्मचारी जो जनता की नौकरी करने के लिए, जनता के समस्याओं के समाधान के लिए बहाल किये गए हैं , ऐसे 75 प्रतिशत अशिक्षित भावुक बेवक़ूफ़ जनता के कारण वह भी अपने आप को कर्मचारी या पदाधिकारी से हट कर अपने आप को देवता या भगवान् से काम नहीं समझते हैं। नतीजा सबके सामने है जो मैं लिख रहा हूँ , ऐसे कौन पढ़ेगा एक शिक्षित और समझदार आदमी , न कि कोई अनपढ़ या बेवक़ूफ़ आदमी , अनपढ़ और बेवक़ूफ़ लोग तो पढ़े लिखे लोगों पर ही यकीन , विश्वाश ,भरोसा, करते हैं , और दूसरे नेताओं पर चाहे वह अनपढ़ क्यों न हों साफ सुथरा कपडा पहनते हैं , खादी पहनते हैं , एसी दफ्तरों में बैठे हैं ऐसे ही लोग इन 75 प्रतिशत जनता को बेवक़ूफ़ बन कर अपना उल्लू सीधा करते हैं , और जनता इनपर तन मन धन निछावर करती है , और यह उनके सीधे पण का पुरा पूरा फायदा उठाते हैं।
क्या इस देश का कभी भला हो सकता है ? कौन आयेगा इन 75 प्रतिशत अनपढ़ लोगों को शिक्षित करने ? इन 75 प्रतिशत जनता ने तो मोदी को 5 वर्षों तक अपने आप को साक्षर बने के नाम पर लूटवाने का ठेका दे दिया है , अभी दो वर्ष गुज़र चुकें हैं - इन दो वर्षों तो सिर्फ अभी हा हा कार मचा है , कही महंगाई को ले कर तो कहीं साम्प्रदायिक दंगों को लेकर , तो कही सरकारी खजाने से एनएसडीसी, डिजिटल इंडिया के नाम की एस्कीमो के नाम पर बड़े उद्योगों तथा बड़ी बेनामी कंपनियों द्वारा लूटने के नाम पर। हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम गुलिस्तां क्या होगा। चाहे केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार हो सभी इस समय लूटने का ही काम कर रहे हैं , जनता अपने आप को लूटवाने पर आमादा है। फिर एक क्रांति आएगी ज़रूर आएगी . . . . . . . .
Monday, June 27, 2016
AINA INDIA: AINA INDIA: आर्थिक न्याय -रोशन लाल अग्रवाल (लेखक ए...
AINA INDIA: AINA INDIA: आर्थिक न्याय -रोशन लाल अग्रवाल (लेखक ए...: AINA INDIA: आर्थिक न्याय -रोशन लाल अग्रवाल (लेखक एवं समीक्षक आ... : आर्थिक न्याय - रोशन लाल अग्रवाल (लेखक एवं समीक्षक आर्थिक न्याय) ...
Tuesday, June 14, 2016
AINA INDIA: आर्थिक न्याय -रोशन लाल अग्रवाल (लेखक एवं समीक्षक आ...
AINA INDIA: आर्थिक न्याय -रोशन लाल अग्रवाल (लेखक एवं समीक्षक आ...: आर्थिक न्याय - रोशन लाल अग्रवाल (लेखक एवं समीक्षक आर्थिक न्याय) सामाजिक व्यवस्था एक व्यापक समझोता है और उस का ही एक महत्वपूर्ण अंग...
आर्थिक न्याय -
रोशन लाल अग्रवाल (लेखक एवं समीक्षक आर्थिक न्याय)
सामाजिक व्यवस्था एक व्यापक समझोता है और उस का ही एक महत्वपूर्ण अंग अर्थव्यवस्था है। सामाजिक व्यवस्था का मूल आधार न्याय है। और अर्थव्यवस्था उसकी धुूरी है।
सामाजिक व्यवस्था का मूल उद्देश्य लोगोँ के हितों मेँ होने वाले टकराव को न्याय के आधार पर सुलझाना व सब में सामंजस्य की स्थापना करना है ताकि उनके विवादों को शांतिपूर्वक समाप्त किया जा सके और समाज को विवाद टकराव और युद्ध जेसी विनाशकारी स्थितियों से बचाया जा सके।
यह समझोता तभी न्यायपूर्ण माना जा सकता है जब यह बिना किसी अज्ञान भय दबाव या मजबूरी की स्थितियो मेँ पूर्ण सत्य पारदर्शिता सद्भाव विश्वास पवित्र मन से किया गया हो।
ऐसा समझोता ही सब मेँ विश्वास सद्भाव पूरकता संतोष शांति और समृद्धि के उद्देश्योँ को पूरा कर सकता है।
सारे प्राकृतिक संसाधन ही मूल धन है और हमारे जीवन का आधार है इनके उपभोग के बिना हमारा जीवन नहीँ चल सकता प्रकृति मेँ पाए जाने वाले उपभोग के सभी पदार्थ इंन्हीं प्राकृतिक संसाधन से बनाए जाते है ये प्राकृतिक संसाधन मूल रुप से प्रकृति का वरदान है और किसी व्यक्ति ने इन का निर्माण अपनी शक्ति बुद्धि या क्षमता से नहीँ किया है
इसलिए इन सभी प्राकृतिक संसाधनो पर सब लोगोँ का मूलभूत समान जन्मसिद्ध अधिकार है और उसका व्यक्ति की योग्यता क्षमता अथवा परिश्रम से कोई संबंध नहीँ और अर्थात इनके कम या अधिक होने से किसी भी व्यक्ति का मूल अधिकार न तो बढता है और न हीँ घटता है।
क्योंकि यदि हम व्यक्ति के अधिकारोँ का संबंध उसकी उपरोक्त विशेषताओं से जोड़ते है तो उसके आधार पर बनने वाली व्यवस्था न्यायपूर्ण न होकर जंगलराज या जिसकी लाठी उसकी भेंस वाली होगी और उससे समाज मेँ शांति की स्थापना नहीँ की जा सकती।
इसलिए न्याय के आधार पर एक व्यक्ति का मूलभूत जन्मसिद्ध अधिकार केवल औसत सीमा तक संपत्ति पर ही हो सकता है। इससे अधिक पर नहीँ क्योंकि इससे अधिक पर मूल अधिकार मान लेने से किसी अन्य व्यक्ति के मूल अधिकार का हनन होगा जो उसके साथ अंन्याय है।
किंतु इस अधिकार को प्राप्त करने के लिए हर व्यक्ति को अपनी योग्यता क्षमता या पुरुषार्थ पर ही निर्भर रहना होता है। जो सबकी एक समान न होकर बहुत अलग अलग है। ये विशेषताएँ कुछ लोगो की औसत से कम व अन्य कुछ लोगोँ की बहुत ज्यादा भी हो सकती है और होती ही है। इसी कारण कुछ लोगोँ के पास अपनी उपभोग की आवश्यकताओं को पूरा कर लेने के बाद भी मूलभूत औसत अधिकार से बहुत अधिक संपत्ति एकत्रित हो सकती है। जबकि अन्य लोगोँ को अपने मूलभूत अधिकार से बहुत कम आय ही प्राप्त होती हैं, जिससे वे अपने उपभोग की जरुरतोँ को भी ठीक प्रकार से पूरा नहीँ कर पाते।
इस प्रकार औसत सीमा तक संपत्ति एक व्यक्ति की संग्रह अधिकार की अधिकतम सीमा अर्थात् अमीरी रेखा है जो किसी भी समय निजी संपत्ति की कुल मात्रा को उस समय की जनसंख्या से भाग देकर आसानी से निकाली जा सकती है।
इसलिए न्याय के आधार पर एक नागरिक को औसत सीमा से अधिक संपत्ति का स्वामी न मांन कर उसका प्रबंधक (समाज को कर्जदार) माना जाना चाहिए और मूल सीमा से अधिक संपत्ति पर ब्याज की दर से संपत्ति कर लगाया जाना चाहिए।
अंय सभी प्रकार के करों (आयकर सहित) समाप्त कर दिया जाना चाहिए जो किसी भी दृष्टि से समाज के लिए हितकारी नहीँ हे ओर सभी प्रकार को षड़यंत्रों को जन्म देते है।
क्योंकि सारे प्राकृतिक संसाधन ही मूल संपत्ति होते है और इन पर समाज का अर्थ सभी लोगोँ का समान रुप से स्वामित्व होता है। इसलिए संपत्तिकर से इस प्रकार होने वाली आय पूरे समाज की प्राकृतिक संसाधनो से प्राप्त होने वाली अतिरिक्त आय होती है जिस पर सब का समान अधिकार है।
इसलिए इस में से सरकार के बजट का खर्च (व्यवस्था के संचालन का खर्च) काटकर शेष राशि को सारे नगरिकों में बिना किसी भेदभाव के लाभांश के रुप मेँ बाँट दिया जाना चाहिए।
इस प्रकार न्याय के आधार पर हर नागरिक के दो अधिकार होते हैं, पहला मूलभूत स्वामित्व का अधिकार जिसका व्यक्ति की मेहनत से कोई संबंध नहीँ होता है और जो सबका सम्मान होता है।
दूसरा मेहनत या पुरुषार्थ से प्राप्त अधिकार जो मेहनत के आधार पर सबका कम या अधिक हो सकता है।
लाभांश स्वामित्व के अधिकार से मिलने वाला समान लाभ है जिसका व्यक्ति की मेहनत से कोई संबंध नहीँ होता।
भौतिक विज्ञान की उन्नति के कारण प्राकृतिक संसाधनो को उपभोग योग्य बनाने के लिए उन मेँ लगने वाली मेहनत की मात्रा लगातार घटती जा रही है और स्वामित्व के अधिकार का महत्व बरता जा रहा है। और उसके साथ ही लाभांश की मात्रा भी बढ़ती जा रही है।
आज भी एक व्यक्ति की आय का संबंध उसकी शारीरिक या बौद्धिक मेहनत से न होकर उसके साधनो से स्थापित हो गया है जिसके पास अधिक साधन है उसकी आय ज्यादा है जिसके पास कम साधन है उसकी आय भी उसी अनुपात मेँ बहुत कम है।
जिस दिन भौतिक विज्ञान इतनी उन्नति कर लेंगे कि उसके सारे कार्य अनेक प्रकार के यंत्र और उपकरणो की सहायता से ही पूरे होने लगेंगे और मेहनत की कोई भूमिका ही नहीँ बचेगी तब समाज के शांतिपूर्ण संचालन का एकमात्र मार्ग लाभांश ही रह जाएगा मेहनत नहीँ।
हर व्यक्ति चाहता है उसे उसके उपभोग के पदार्थ कम से कम परिश्रम मेँ निरंतर प्राप्त होते रहे और उसे कभी भी अभाव का सामना न करना पड़े। भौतिक विज्ञान की उन्नति ने मनुष्य की इस चीर संचित अभिलाषा को अच्छी तरह से पूरा किया है।
अतः अब सब लोगोँ को अपना पेट भरने के लिए किसी प्रकार की मेहनत करने की बाध्यता से मुक्ति मिलनी चाहिए इसे हरामखोरी कहना या गलत मानना पूरी तरह अज्ञान्ता है।
यह लंबी पोस्ट मुझे इसलिए लिखनी पड़ी है क्यूंकि आपके अनेक गूढ प्रश्नो के उत्तर इस पोस्ट के बिना नहीँ दिए जा सकते अतः आप पहले इस पोस्ट के सभी बिंदुओं पर पूरी गहराई से विचार करेँ और इस के बाद आपके जो प्रश्न बचेंगे उनका मेँ तर्क सहित उत्तर दूँगा।
Monday, June 6, 2016
AINA INDIA: 'बेसिक इनकम गारंटी'
AINA INDIA: 'बेसिक इनकम गारंटी': 'बेसिक इनकम गारंटी' स्विस की जनता ने नाकारा। एस.ज़ेड. मलिक (पत्रकार) ज़ी मीडिया ब्यूरो के सौजन्य से जिनेवा : ...
'बेसिक इनकम गारंटी'
'बेसिक इनकम गारंटी' स्विस की जनता ने नाकारा।
एस.ज़ेड. मलिक (पत्रकार) ज़ी मीडिया ब्यूरो के सौजन्य से
जिनेवा : अगर किसी को घर बैठे हर महीने सरकार की तरफ से बंधी-बंधाई सेलरी मिले तो कौन काम करना चाहेगा? लेकिन एक ऐसा देश है जिसके नागरिकों ने सरकार की इस शानदार पेशकश को ठुकरा दिया है। दुनिया के अमीर देशों में से एक स्विट्जरलैंड के नागरिकों ने सरकार की मुफ्त सेलरी की पेशकश ठुकरा दी है। स्विट्जरलैंड की सरकार ने मुफ्त सेलरी देने को लेकर एक जनमतसंग्रह कराया है जिसके पक्ष में 23 प्रतिशत जबकि प्रस्ताव के विरोध में 77 फीसदी लोगों ने मतदान किया।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक स्विट्जरलैंड की सरकार ने रविवार को 'बेसिक इनकम गारंटी' के नाम से जनमतसंग्रह कराया था।
'बेसिक इनकम गारंटी' के समर्थकों की मांग है कि सरकार करीब उन्हें डेढ़ लाख रुपए से अधिक हर महीने वेतन दे पिछले करीब डेढ़ साल से यहां कुछ लोगों की तरफ से मांग की जा रही थी कि सरकार सभी को न्यूनतम सैलरी दे वो भी बिना कोई काम किए। इस मांग के बाद सरकार ने एक जनमत संग्रह कराया, जिसमें देश के 78% लोगों ने इसे ठुकरा दिया। इसी के साथ यह प्रस्ताव खारिज हो गया। दरअसल, यहां ज्यादातर लोगों के पास काम नहीं है। फैक्ट्रियां में लोगों की जगह रोबोट ने ले ली है, जिससे देश में बेरोजगारी बढ़ रही है।
अगर ये पास हो जाता तो सरकार को हर महीने देश के सभी नागरिकों और 5 साल से वहां रह रहे उन विदेशियों को, जिन्होंने वहां की नागरिकता ले ली है, उन्हें बेसिक सैलरी देनी होती। दुनिया में पहली बार है जब ऐसे किसी प्रस्ताव को किसी देश में नागरिकों के बीच रखा गया था। इस प्रस्ताव में लोगों से पूछा गया था कि क्या वे देश के नागरिकों के लिए एक तय इनकम के प्रावधान का समर्थन करते हैं या नहीं?
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