Monday, June 29, 2020

व्यावस्था परिवर्तन की राह - क्या यह चुनावी एजेंडा नहीं होना चाहिए ?

व्यावस्था परिवर्तन की राह - क्या यह चुनावी एजेंडा नहीं होना चाहिए ?

एस. ज़ेड.मलिक(स्वतन्त्र पत्रकार)


आप इस बात को समझ सकते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था को न्याय पूर्ण बनाने का एकमात्र उपाय अमीरी रेखा बनाकर केवल औसत सीमा से अधिक संपत्ति पर ब्याज की दर से संपत्ति कर लगाना और बाकी सभी करों को पूरी तरह खत्म करना है।

जब दूसरे सभी करों को समाप्त कर दिया जाएगा तो सारी चीजें बहुत सस्ती हो जाएंगी और उद्योग व्यापार कृषि सेवा आदि का हर काम सबके लिए बहुत आसान हो जाएगा क्योंकि तब शासन और प्रशासन का उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।

शासन प्रशासन का सारा हस्तक्षेप खत्म हो जाने से समाज को भ्रष्टाचार से भी मुक्ति मिलेगी और इसका लाभ भी देश की आम जनता को ही मिलेगा।

ज्ञात हो कि देश की 80% संपत्ति केवल 1% से भी कम लोगों के हाथों में इकट्ठी कर दी गई है जिसके कारण पूरे देश की जनता गरीबी का सामना कर रही है और मुट्ठी भर बहुत संपन्न अमीर लोग जनता के साथ मनमानी कर रहे हैं।

वही मुट्ठी भर लोग देश की राजनीति भी मनमाने ढंग से चला रहे हैं और अपनी इच्छा के अनुसार शोषणकारी और अन्याय पूर्ण कानून बनवा लेते हैं।

शासन प्रशासन में बैठे हुए सभी शक्तिशाली लोग इन्हीं अमीरों के कहे अनुसार व्यवस्था भी चलाते हैं और उनके कामों को बहुत ही पक्षपातपूर्ण ढंग से और बेईमानी के साथ भी पूरा करते रहते हैं।

कोई भी विचारवान व्यक्ति इस कड़वी सच्चाई को हर जगह अपनी आंखों से देख सकता है इसी कारण समाज में किसी शक्तिशाली व्यक्ति के विरुद्ध मुंह खोलने का साहस भी समाज में नहीं रह गया है।

संविधान का संरक्षक और सभी कानून विशेषज्ञ पूरी तरह इन्हीं पूंजीपतियों के आगे बिके हुए हैं और पूरी व्यवस्था में गरीबों की कोई सुनवाई नहीं है। इसीलिए इस व्यवस्था को आम आदमी द्वारा जंगलराज ही कहा जा रहा है।

इस अन्याय पूर्ण व्यवस्था को बदलने का सबसे अच्छा और आसान उपाय केवल चुनावों के समय जनता के हाथ में आता है और उसे इसी का फायदा उठाना चाहिए। सरकार के खिलाफ आंदोलन करने से कभी भी उसके हाथ कुछ भी नहीं आ सकता।

जो लोग समाज में आर्थिक न्याय के समर्थक हैं और गरीबी बेरोजगारी अभाव अन्याय और असंतोष को खत्म करना चाहते हैं उनके लिए बिहार का विधानसभा चुनाव बहुत बड़ा स्वर्ण अवसर हो सकता है। चुनावों के समय अगर सारे गरीब न्याय में विश्वास करने वाले लोग मुट्ठी भर अमीरों पर संपत्ति कर लगाकर और देश के हर नागरिक को लाभांश दिलाने के लिए अमीरी रेखा बनाने के लिए ही अपना वोट दें तो उसी के मानने वाले लोगों की सरकार बनेगी और वह गरीबी को खत्म करने के लिए अवश्य अमीरी रेखा बनाएगी।

सारे नागरिकों को यह बात गहराई से समझनी चाहिए की अलग-अलग मांगे उठाकर जानबूझकर सरकार ही समाज को टुकड़े-टुकड़े करने का षड्यंत्र करती है और शक्तिहीन या कमजोर समाज को सरकार आसानी से कुचल देती है।

लेकिन केवल एक मुद्दा अमीरी रेखा बनाए जाने पर पूरा समाज एकजुट होकर अमीरों पर कर लगाने की बात करेगा तो वही लोग चुनाव में जीतेंगे जो लोग अमीरी रेखा बनाने के समर्थक होंगे। लेकिन यह सब तभी होगा जब सब लोग सारे भेदभाव भूलकर अमीरी रेखा बनाने की मांग के समर्थकों को ही अपना वोट देंगे और भेज डालने वाले किसी भी धोखे को अनदेखा कर देंगे।

मैं खासकर यह बात जरूर बताना चाहता हूं कि जाति संप्रदाय गरीब अमीर युवा शक्ति नारी शक्ति के झूठे नारों से समाज को कुछ नहीं मिलेगा और वही मुट्ठी भर शोषक जनता को मूर्ख बना कर सत्ता पर बैठ जाएंगे और समाज में गरीबी नंगा नाच करती रहेगी।

लेकिन यदि सारे लोग अमीरी रेखा बनाने के लिए वोट देंगे और उसके अनुसार सरकार अमीरी रेखा का कानून बनाकर केवल मुट्ठी भर अमीरों पर संपत्ति कर लगाने के लिए बाध्य हो जाएगी तो उससे इतना टैक्स आएगा कि सरकार के बजट का खर्च काटकर देश के हर नागरिक को ₹10000 प्रतिमाह जिंदगी भर अर्थात जन्म से मृत्यु तक मिलता रहेगा और समाज में कोई किसी का शत्रु भी नहीं रहेगा।

आप इस बात पर जरूर विचार कीजिए के जब सारा समाज सर्वसम्मति से हर निर्णय लेने लगेगा तो समाज में कोई ना तो अपराध बचेगा और ना ही कोई असंतोष।

इसलिए अमीरी रेखा बनाने के लिए सब न्याय प्रिय लोगों को खुलकर अपने घरों से निकलना चाहिए और हर आदमी तक इस विचार को पहुंचाना चाहिए ताकि सब लोग असली समस्या को समझ सके और खुद ही उसका इलाज कर सकें जो केवल उनके वोट के द्वारा आसानी से हो सकता है।

Thursday, June 11, 2020

वर्तमान सत्तारूढ़ संघ समर्थित केंद्र सरकार ने बेशर्मी की हद पार करदी

वर्तमान सत्तारूढ़ संघ समर्थित केंद्र सरकार ने बेशर्मी की हद पार करदी - गुलाम मानसिक तौर पर बीमार जनता अपाहिज बानी उसे मूकदर्शक बानी देखती रही।

एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)

वाह ! कमाल है , केंद्र की सत्तारूढ़ मनुवादी संघी सरकार बिहार चुनाव प्रचार में बिहार के ग्रामीणों को अपने मन की बात सुनाने के लिए ग्रामीण क्षत्रों में 144 करोड़ रूपये की "एलईडी"  लगवा कर गृहमंत्री बिहार वासिओं को अपने मन की बात सूना जाते हैं और गुलाम मानसिक तौर पर बीमार जनता अपाहिज बानी उसे मूकदर्शक बानी सुनती और देखती रही। शायद अब भारत में लोक तंत्र की शक्ति क्षिन्न - भिन्न हो गयी है इसलिए जनता शायद अपनी औक़ात समझ चुकी है की भारत में अब 2000 साल पीछे का सामंतिओं का साशन काल दुबारा लौट आया हैं इस लिए चुप रहना मुनासिब है इसलिए की सीएए, एनआरसी, एनआरपी का विरोध करने वालों का का अंजाम भारत की आम जनता देख लिया है इस लिए अब शायद केंद्र सरकार के हर अत्यचार को सहना जनता की मजबूरी बन गई है।
      इसी लिए कोवित 19 कोरोना के आपदा काल के दौरान जब केंद्र सरकार ने अपनी जनता से कोविट 19 कोरोना वाइरस के भारत आगवन पर अपनी जनता से पहलीबार थाली और ताली बाजवा कर स्वागत करवाया था और जनता ने ना चाहते हुए बह भी हँसते हँसते हुये तालिया और थालियां बजाती रही ,   लॉकडाउन में फंसे परीशान गरीब मज़दूरों के लिए राशन , व अन्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए केंद्र सरकार के पास कोई पैसा नहीं था ? पैदल चलने के लिए मजबूर हुए परीशान गरीब मज़दूरों के लिए उनके घर तक पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार के पास न बस की सुविधा न रेल की सुविधा दिया, 8 दिनों तक गरीब मज़दूर महाराष्ट्र , गुजरात, कर्नाटका , आन्ध्राप्रदेश, तेलंगाना, जब तक          

Monday, June 8, 2020

भारत की गिरती आर्थिक दशा और दिशा पर एक संगोष्ठी

भारत की गिरती आर्थिक दशा और दिशा पर एक संगोष्ठी। 

एस.ज़ेड. मलिक(पत्रकार)
   इस वर्तमान सरकार के नयी व्यावस्था ने 30 करोड़ नयें बेरोज़गार और पैदा किया है - यदि मज़दूर अपने घर पर ही रुक जाए और स्वयं रोज़गार वहीँ पैदा करें तो पूंजीवादी घुटनों पर आ जाएंगे - कुमार प्रशांत।


  
नयी दिल्ली - पूर्वी दिल्ली के शकूरपुर  के स्कूल ब्लॉक अखंड हिंदुस्तान भवन लक्ष्मी नगर में भारत में गिरती आर्थिक दशा और दिशा पर एक संगोष्टी का आयोजन किया गया।  
 इस बैठ के अयोजक रोशन लाल अग्रवाल (चिंतक विश्लेषक लेखक आर्थिक न्याय ) ने भारत की गिरती अर्थ व्यवस्था और समाज में फैलते दुराग्रह पर अपनी चिंतन स्पष्ट करते हुए चर्चा  आरम्भ किया। उन्होंने वर्तमान सरकार की नीतिओं पर सवाल खड़ा करते हुए वर्तमान में  कोरोना काल में सरकार द्वारा लगाया गया अचानक से लोकडाउन के कारण समाज में उत्पन्न हुये भयावह स्थिति और देश में सारे व्यापार बंद होने कारण देश की अर्थ व्यावस्था पे इतना बुरा असर पड़ा की भारत की बढ़ती जीडीपी इतना निचे आ गया जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है और सरकार अपनी नाकमिओं को छुपाने के लिए समाज में दुर्भावनापूर्ण दुराग्रह की स्थिति उत्पन्न कर देश के विकास की गति को रोक दया। इससे स्पष्ट है की सरकार पूर्ण रूप से मुट्ठी भर पूँजीपतिओं के दबाओ में काम कर रही है।  
  गरीब मज़दूर भुखमरी के कगार पर आ गए , मज़दूर 2000 किमी सड़कों पर पैदल चलने पर मजबूर हो गये की कोरोना वाइरस से जितनी मौतें नहीं हुयी उससे कहीं अधिक भूक के कारण और अपने गांव की और भूके पैदल प्रवास करने में  थकान से मौतें हुयी जिसके कारण आज समाज में इतनी भयावह दुर्दशा उत्पन्न हो गयी है कि जहाँ एक ओर कुछ लोगों द्वारा समाज में एक समुदाय के प्रति नफरत प्रयोजित किया जा रहा है वहीँ दूसरी और 3 महीने नियमित लोकडाउन के कारण बेरोज़गारी इतनी बढ़ी गयी जिससे गांव में भी कमज़ोर आदमी अपने आपको अपाहिज महसूस कर रहा है तथा अन्य युवा वर्ग अपराध की और अग्रसर हो रहे हैं। अब सवाल है ऐसे आर्थिक मंदी के कारण उत्पन्न हुयी बेरोज़गारी से जिस प्रकार आम आदमी का जीवन अस्त व्यस्त हो रहा उनका फिर से सामान्य स्थिति में कैसे लाया जाए ताकि फिर से जन-जीवन सुचारु रूप से स्थायी और स्थिर हो सके। समाज में बढ़ते दुर्भावनाओ और दुराग्रह के परिपेक्ष्य में अमीरी -गरीबी में सामन्यजस्य्ता कैसे बनायी जाये ? जिससे गरीबों की गरीबी दूर हो और अमीर गरीबों को अपने बराबरी में स्थान दें ? 

इस अवसर पर समाज के बड़े बुद्धिजीवी निष्ठावान चिंतक एवं विश्लेषक श्री कुमार प्रशांत जी(अध्यक्ष-गांधी प्रतिष्ठान नई दिल्ली) श्री किरण त्यागी(अध्यक्ष अखंड हिन्दुस्तान संस्थान), डॉ0 मित्तल(वरिष्ठ समाज सेवी), शिवा कांत गोरखपुरी(वोटर पार्टी ऑफ़ इंडिया के कोर्डिनेटर एवं वरिष्ठ समाज) श्री हरेंद्र सूर्यवंशी(चिंतक एवं विचारक आर्थिक न्याय संस्थान) , प्रो0 डॉ0 धर्मवीर सिंह(उर्दू विभाग-अंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली), सैयद हसन अकबर,(चेयरमैन जनमानस सोसाइटी),एस. ज़ेड. मलिक(पत्रकार) विजय पांडे(युवा क्रांतिकारी समाज सेवक), सौरभ त्यागी(आईटी सेल आर्थिक न्याय संस्थान कोर्डिनेटर), गोपाल सिंह परिहार(समाज सेवी गौरक्षक दल एवं आर्थिक न्याय के समन्वयक) उपस्थित दर्ज कराते हुए रोशन लाल अग्रवाल के विश्लेषण पर अपने अपने विचार प्रस्तुत किया   । 

इस अवसर पर सैयद हसन अकबर(अध्यक्ष-जनमानस सोसाइटी) ने अग्रवाल जी के विश्लेषण का समर्थन करते हुए कहा कि कोरोना से उत्पन्न स्थिति से जहां एक एक समाज त्रस्त है वही समाज में कुछ लोगों द्वारा नफ़रत का वातावरण प्रयोजीत कर समाज मे बहुत भयानक स्थिति बना कर आपसी सौहार्द भाई चार खराब करने की कोशिश की है जिसे समय रहते यदि नहीं रोका गया तो इसका आगामी बहुत गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं हमे आर्थिक विषमता को समाप्त करने के साथ साथ नफ़रत के दुर्गामी परिणाम को भी ध्यान में रखते हुए ठोस क़दम उठाने होंगे हम सरकार से अधिक अपेक्षा नहीं कर सकते, हमें स्वयं ही अपने स्तर से समाज में समन्वय बनाने की कोशिश करनी होगी। 

वहीं उपस्थित, प्रोफेसर धर्मवीर सिंह(उर्दू विभाग अंबेडकर विश्वविधालय-दिल्ली)  ने कहा, कोरोना महामारी के कारण हुए लॉक डाउन में जहां बेरोज़गारी की भयानक स्थिति पैदा की वहीं प्रयोजित मीडिया और सोशल मीडिया ने भी समाज में आपसी सौहार्द में बहुत ही व्यवस्थापित तरीक़े से विष घोलने का काम किया जिसके कारण आज की तिथि में समाज दलित पिछड़ी, हिन्दू, मुसलमान का भेद - भाव सब से अधिक देखने को मिल रहा है, जो बेरोज़गारी से अधिक भयानक है,जिससे समाज का हर व्यक्ति एक दूसरे से सशंकित है।  यदि हमारे आपसी सौहार्द भाईचारा स्थापित रहेगा तो हम आसानी से एक दूसरे के सहयोग से बेरोज़गारी समाप्त कर सकते चाहे सरकार हमारी मदद करे या न करे - हमारे अंदर ऐसी ऊर्जा है जो समाज को सुंदर और स्वस्थ्य बना सकते हैं। बशर्ते की आपसी भेद भाव मिटा दें। 

     शिवा कांत गोरखपुरी(वोटर पार्टी ऑफ़ इंडिया के कोर्डिनेटर एवं वरिष्ठ समाज सेवी)  ने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा हम व्यवस्था परिवर्तन को बात करते है? और यह ज़रूरी भी  है लेकिन सवाल  कैसे ? क्या इसके लिये सभी संगठनों को एक प्लेटफार्म पर संगठित करना अनभव है , जब तक सभी समाजिक संगठन एक प्लेटफार्म पर एक मत हो कर नहीं आते सामाजिक या आर्थिक परिवर्तन असंभव है, मेरा मत है की इसके लिए मतदाताओं को अधिकार जिस प्रकार वोट देना का अधिकार सैंवधानिक है उसी प्रकार अपने क्षेत्र मे काम न करने वाले प्रतिनिधिओं को भी मतदाताओं को हटाने का अधिकार मिलना चाहिए। तथा सरकार यदि एक क़ानून बना कर वोटर्स के लिए एक भारतीय नागरिक होने नाते उसे 6000 रुपया प्रतिमाह   को भी वोटरशीप के रूप में सरकार अदा करे। जब जनता द्वारा चने हुए प्रतिनिधिओं को सरकार साड़ी सुविधा प्रदान करती है तो मतदाताओं को वोटरशिप अमाउंट क्यूँ नहीं ? परिवर्तन के लिए हमे इस पर वह आवाज़ उठाने की आवश्यकता है।
  
 सौरभ त्यागी - (युवा विचारक एवं आईटी सेल आर्थिक न्याय संस्थान) ने अग्रवाल जी के विचारों का समर्थन करते हुए कहा की यदि हमारा समाज गरीबो को बराबरी से जीने का अधिकार दे दे तो सरे झगड़े ही समाप्त हो जाते हैं लेकिन ऐसा संभव नहीं है इसके लिए हमे गरीबों को समाज में सम्मान से जीने के लिए उन्हें समाजिक संस्थायें को ही मदद के लिए आना होगा हमें ग्रासरूट समन्यव्य का कार्य करना होगा। 
   
श्री हरेंद्र सूर्यवंशी(चिंतक एवं विचारक आर्थिक न्याय संस्थान) - ने सभी विचारकों के विचारों का समर्थन करते हुए कहा की सबसे  बड़ा झगड़ा धन का है। जबकि हमारे देश में धन की कमी नहीं है केवल विचारों, व्यवस्था तथा ईमानदारी की कमी है। हमारे देश में आपार धन है जिसका इस्तेमाल करने का आम जनता को अधिकार नहीं है जनता को केवल देने का सांवैधानिक अधिकार दिया गया है लेने का नहीं।  जनता को जागरूक करने की आवश्यकता है इसके लिए हमे ग्रामीण क्षत्रों से ज़मीनी स्तर पर नियमित लगनपूर्वक कार्य करने  आवश्यकता है। सरकार हमारे वोटरशिप का गलत इस्तेमाल कर रही है जब कि वोटर शिप संवैधानिक एक पिलर मान कर जनता को उसका अधिकार मिलना चाहिये। 

श्री किरण त्यागी(अध्यक्ष अखंड हिन्दुस्तान संस्थान) ने कहा की जहां धन की कमी है वही व्यवहार और विचार तथा सभ्यता, संस्कार भारत से लुप्त सी होते जा रही है  आज आवश्यकता है भारत के विशेष कर ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा को प्राथमिकता देना जो हम नहीं दे पा रहे है परिणामस्वरूप, आज स्थिति अभावग्रस्त होने के कारण अपराधीकरण एक विकराल रूप धारण कर लिया है जिसे  इतना आसान नहीं है हमे सर्व प्रथम रोज़गार शिक्षा को प्राथमिकता देना होगा, इसके लिए हमें कोई ठोस क़दम उठाना होगा। हर काम सरकार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता।     
डॉ0 मित्तल(वरिष्ठ समाज सेवी), ने कहा की आज समाज से आर्थिक विषमता दूर होना चाहिए , उन्होंने कहा की करोना  को ले कर देश बहुत संकट में है। भुखमरी जैसी स्थितियाँ पैदा हुई है ,सरकार द्वारा सकल उत्पाद 20 लाख रु0 मुहैया कराएँ तो शायद गरीब मज़दूरों को राहत मिल की उम्मीद बन पायेगी और गरीब अपने क्षेत्र में ही उसे रोज़गार उत्पन्न कर  सकता है दूसरी और मेरा अंदाज़ है कि लगभग 30 करोड़ मज़दूर जो अपने घर वापस हुए है उन्हें सरकार मनरेगा की तर्ज़ दिहाड़ी दे कर रोज़गार मुहैया करा सकती है, तथा शहरों में भी ग्रामीण मनरेगा के तर्ज़ पर ही शहरी मनरेगा में रोज़गार गारंटी देना चाहिए। ताकि ऐसे आपदा के दौरान दिहाड़ी मज़दूरों को परेशानी का सामना न करना पड़े। इस समय स्थिति के अनुसार सरकार को चाहिए की हर व्यक्ति को काम की गारंटी दे और कम से कम 500 रू दिहाड़ी दी जिये। सरकार द्वारा प्रति व्यक्ति 2 लाख आये का साधन उपलब्ध कराना चाहिए तभी आम जनता की स्थिति में सुधार आ सकती है और 30 हज़ार महीने कीआमदनी वाले लोगों से प्रोपर्टी टेक्स वसूल किया जा सकता।  सरकार को इसके मुनाफे से सकल घरेलु उत्पाद  को बढ़ावा दे कर आर्थिक दिशा और दशा दोनों ही बदला जा सकता है। 
विजय पांडे(युवा क्रांतिकारी समाज सेवक) - ने अपना अनुभव के आधार पर बताया की इस समय गाँव और शहरों की स्थितियाँ अलग अलग हैं कोरोना काल के कारण छोटे और मंझोले किसानों की फसल, पर इतना बुरा असर पड़ा है की किसानो को आने वाले समय में बिना मदद के वह खेत को दुबारा जीवित कर ही नहीं सकते इस समय ग्रामीण क्षत्रों में छोटे और मंझोले किसानों जीवित रखने के लिए बिना ब्याज के सरकार उन्हें मदद करेगी तो तो ही वह जीवित रहते हुए दुबारा से अपने आपको मार्केट के योग बना सकते हैं। 
  
श्री कुमार प्रशांत जी(अध्यक्ष-गांधी प्रतिष्ठान नई दिल्ली) - ने सभी उपस्थिति विश्लेषकों के विचारों को सुनने के बाद कहा कहा ग़रीबी बढ़ी है और बढ़ेगी इस लिए की व्यवस्था बहुत ही कमज़ोर है इस कोरोना काल के महामारी में लॉक डाउन के दरमियान जो सरकार ने जो नयी व्यवस्था बनायी वह बहुत ही दयनीय और चिन्ताजनक  है।  सरकार के नए क़ानून ने भारत  की सम्पूर्ण व्यवस्था ही अस्त-व्यस्त कर दी लेकिन इनके हर नयी क़ानून से केवल और केवल गरीबों को ही मार पड़ा है ना की अन्य किसी विशेष लोगों को पूँजीपतिओं को इस समय भारत के सारे धन इकट्ठा करने को क़ानून के साथ अवसर दिया जा रहा है। जबकि इस वर्तमान सरकार दूसरे कार्यकाल ने अपने नए व्यावस्था में  30 करोड़ नयें बेरोज़गार और पैदा किया है। उन्होंने कहा की इस समय भारत  में दो प्रकार की शक्तियां काम कर रहीं हैं एक राजनितिक जिसकी बहुमत है दुसरा बड़े उधोगिक पूंजीपति ब्रोकर यही दो मिल कर सरकार चला रही है और जनता का ध्यान भटकाने के लिए सराकर अपने तीसरे  शक्ति का प्रयोग  करती है जिस समाज में न चाहते हुए भी नफरत लोग एक दूसरे से नफरत केर रहे है । और सरकार अपने सरकारी एजेंसीओ द्वारा कोरोना के चादर के नीचे राजनीति व्यवस्था तय कर रही  है।
 उन्होंने सुझाव देते हुए कहा की यदि इस समय जो मज़दूर अपने गांव चले गए हैं अब उन्हें शहर वापस ना आने दिया जाए तो फिर से गांव खुशहाल हो सकता है, गाँव मे ही अपनी नई व्यवस्था स्थापित कर सकते है, इसलिए की यही मज़दूर जब अपनी दिहाड़ी के लिए दूसरे के लिए उनकी नयी योजना को विकसित कर उन्हें उद्योग पति  योग बना देते हैं तो वही मज़दूर अपने राज्यों में अपने जिला में डीएम और उधोगिक आयुक्त के साथ मिल कर अपनी योजना क्यों नहीं सफल  कर सकते।  उन्हें तो केवल मार्गदर्शक की आवश्यकता है जो आप और हम कर सकते है हमे इस पहलु गंभीरता से विचार  कर  के अमल में लाना चाहिए इससे पूंजीवाद घुटनो के बल आ जाएंगे।  जिससे  सरकारी व्यवस्था ने गांव वापसी पर मजबूर कर दिया था  वही सरकार उनके पास चल कर गाँव मे आएगी और बाज़ार उनके पास चल कर उनके पास कदमो पर आएगा ? इस कोरोना काल में सरकार ने अपना हाँथ खड़ा कर लिया है। जबकि क्रोना क्या है - अभी एक भ्रम बना हुआ है। 



Saturday, June 6, 2020

AINA INDIA:   95 पर 5 प्रतिशत हावी ! भारत सरकार पर पूंजीवाद क़ब...

AINA INDIA:   95 पर 5 प्रतिशत हावी ! भारत सरकार पर पूंजीवाद क़ब...:   95 पर 5 प्रतिशत हावी ! भारत सरकार पर पूंजीवाद क़ब्ज़ा ?    भारत सरकार अबतक सम्पत्ति टेक्स भारतीय भू-स्वामिओ, और भू-माफियाओं से क्यूँ ...
  95 पर 5 प्रतिशत हावी ! भारत सरकार पर पूंजीवाद क़ब्ज़ा ?
  
भारत सरकार अबतक सम्पत्ति टेक्स भारतीय भू-स्वामिओ, और भू-माफियाओं से क्यूँ नही वसूल रही है ?. 

  इससे सरकार को कम से कम सम्पूर्ण भारत से 75प्रतिशत राजस्व प्राप्त होगा और सरकार के खज़ाना में इतना पैसा आ जायेगा कि सरकार अपना सारे बजट की पूर्ति करके भारत के प्रत्येक नागरिकों को बिना भेद भाव के10 हज़ार रुपया प्रति माह नागरिकता भत्ता के दे सकती है।   

एस.ज़ेड.मलिक(पत्रकार) 


  भारत के स्वतंत्रता के बाद से अब तक सरकार और सरकार में बैठे बड़े अधिकारी तथा प्रतिनिधियों का भू-स्वामिओ और भू-माफियाओं के साथ बड़ा ही कटु और घनिष्ट सम्बन्ध रहा है। जिसके कारण आज भारत मे गरीबी, और दिन प्रतिदिन बेरोज़गारी बढ़ती रही है। गोपनीयता के मज़बूत क़ानून के कारण आज हर करदाता रिटर्न गलत भरकर 90 प्रतिशत भारत का राजस्व बचा कर वह ऐश मौज करता है। 

 214 से अब तक भारत की आर्थिक दशा और दिशा दोनो का ही सर्वर डाउन चल रहा है नतीजा देश का ग्रोथ रेट यानी बढ़ता मूल्य घटे में यानी -3% निचले पायदान पर आ गया है। और वर्तमान सरकार इस कोरोना काल में अपने देश की जनता से ताली बाजवा रही तो कभी थाली बाजवा रही तो कभी टॉर्च जलवा रही है। सरकार अपने 5 प्रतिशत लोगों से अपनी बड़ाई के लिए प्रचार प्रसार करवग रही है। और यह 5%जनता बड़ी ही मुस्तैदी से भाजपा सरकार की वाहवाही कर रही है। इसलिये की सरकार इन्हें इनके अनुकूल सुख साधन मुहैया करा रही है।
 
 देश की जनता लग-भग 33 प्रतिशत बुद्धिमान, बुद्धिजीवी है, 65 प्रतिशत में 35 प्रतिशत अंधभक्त हैं और 15 प्रतिशत स्वार्थी, धर्म जाती के सौदागर जो सरकारी धन को अपने टीए/डीए पर खर्च करते हैं जैसे पासवान, अठावले, और अन्य दलित पिछड़ी जाती के ठेकेदार,नेतागण , तथा 15 प्रतिशत में 10 प्रतिशत भारत का ग्रोथ और भारत की अर्थ व्यावस्था पर कंट्रोल रखते हैं और मात्र 5 प्रतिशत लोग ही सरकार चलाते हैं और जो 95 प्रतिशत पर हावी हैं। अब रहा सवाल इसका समाधान क्या है ? तो मेरे पास कुछ वैचारिक और व्यावहारिक समाधान है - 1)- 1977 के जैसा एक आंदोलन "जिसका स्लोगन " मानुवादी सरकार भगाओ - देश बचाओ " 2)- जनता को गोपनीयता का क़ानून समाप्त करो, और पारदर्शिता का क़ानून बनाने के लिये आवाज़ उठाने होंगे, 3)- अब अमीरी रेखा बनाने की मांग करना होगा। अमीरी रेखा बनने के बाद ही देश का आर्थीक वजन बढ़ेगा, और दशा मज़बूत होगा और विकास की दिशा बदलेगी, अमीरी रेखा बनाने के बाद वर्तमान मूल्यों के तहत ढाई प्रतिशत के हिसाब से सरकार सम्पत्ति टैक्स वसूल करे देश का जीडीपी इतना बढ़ जाएगा कि विश्व भारत को विश्व गुरु मानने पर माजबूर हो जाएगा। पारदर्शिता का क़ानून बनने से भू-माफियाओं पे लगाम लगेगा, तथा अन्य निम्नवर्गीय एवं मध्यवर्गीय आयस्त्रोत के लोगों को अपने आवश्यकता अनुसार पर्याप्त धन अर्जित करने का अवसर मिलेगा। आवश्यकता से अधिक धन अर्जित करने का डर लोगों में आ जायेगा।
ज्ञात हो कि भारत मे इस समय मात्र 2 प्रतिशत लोगों का भारत की भूमि का एक तिहाई भाग पर क़ब्ज़ा है  जिसका राजस्व सरकार जानबूझ कर माफियाओं से नहीं लेते है या सरकार के पास उसका कोई लेखा जोखा ही नहीं है। इस समय भू-माफियों के पास बेनामी सम्पत्ति काफी है। जिसपर सरका का कोई पकड़ नहीं है। पारदर्शिता का कानीं बनने के बाद यह सारी गोपनीय सम्पत्ति सामने आ जायेगी जिससे जनता भी देख सकेगी और समय समय पर जनता का सहयोग सरकार को मिलता रहेगा। दूसरे टेक्स जो भारत का हर व्यापारी हो या अधिकारी, राष्ट्रपति हो या सर्वोच्च्य न्ययालय का सरवोच्च्य न्यायाधीश, या एक गांव का मुखिया सभी टेक्स चोरी करते है अपनी सम्पत्ति को छपाते है अपने आये को छुपाते है और कम से कम टेक्स भरते है। पारदर्शिता का क़ानून आने के बाद उनका टेक्स भी जनता के समक्ष होगा और जब भी कोई अपनी सम्पत्ति या आये छुपाने की कोशिश करेगा जनता ही सरकार को सहयोग कर छुपाने वालों का बेयोरा देगी। उसे ना चाहते हुए भी अपना सही रिटर्न भरना पड़ेगा । इससे सरकार को कम से कम सम्पूर्ण भारत से 75प्रतिशत राजस्व प्राप्त होगा और सरकार के खज़ाना में इतना पैसा आ जायेगा कि सरकार अपना सारे बजट की पूर्ति करके भारत के प्रत्येक नागरिकों को बिना भेद भाव के10 हज़ार रुपया प्रति माह नागरिकता भत्ता के दे सकती है।  यदि सरकार चाहे तो भारत तमाम छोटे व्यापारिओं का राजस्व समाप्त कर सकती है सरकार को इससे किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचेगा। दूसरे भारत जो पैसा के अभाव के कारण अपराध होते रहते हैं उसमे कमी आएगी।