यह विचार, सामाजिक आर्थिक समीक्षक "रोशन लाल अग्रवाल" के हैं।
"गरीबी रेखा नहीं - अमीरी रेखा बननी"
धन का अति संचय समाज के लिए बहुत बड़ी समस्या और अर्थव्यवस्था के लिए भयानक खतरा है, इसका बहुत बड़ा कारण धन संचय से ब्याज के रूप में मिलने वाला अतिरिक्त लाभ है। हालांकि ब्याज का मेहनत से कोई लेना देना नहीं होता लेकिन यह अतिरिक्त आय का बहुत भयानक स्रोत ही नहीं बन जाता बल्कि दूसरे लोगों के शोषण का हथियार भी बन जाता है और समाज के लिए अत्यंत विनाशकारी सिद्ध होता है।
न्याय की दृष्टि से ब्याज पर किसी व्यक्ति का हक होना ही नहीं चाहिए क्योंकि इसका मेहनत से कोई लेना देना नहीं है यह व्यवस्था से मिलने वाला अतिरिक्त लाभ है जो साधनों की भूमिका बढ़ने और आदमी की मेहनत की कीमत घटने के कारण पैदा होता है इसलिए जाग से होने वाली आय व्यक्ति की आय न होकर समाज का सामूहिक लाभ होना चाहिए।
न्याय की दृष्टि से एक व्यक्ति को केवल औ सत सीमा तक ही संपत्ति का मालिक माना जाना चाहिए क्योंकि प्राकृतिक संपदा ही वास्तविक धन है जिन पर सबका जन्मसिद्ध समान अधिकार है। इसलिए न तो कोई व्यक्ति औसत सीमा से अधिक संपत्ति का और ना ही उसके ब्याज का मालिक हो सकता है। जब तक औसत सीमा से अधिक संपत्ति और ब्याज का मालिक किसी भी व्यक्ति को माना जाता रहेगा तब तक अति धन संचय की प्रवृति पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता और न ही समाज से शोषण समाप्त हो सकता है और ना ही व्यक्ति के लोभ पर अंकुश लगाया जा सकता है।
व्यापक समाज हित की दृष्टि से आपको किसी व्यक्ति पर नहीं बल्कि देश के कानूनी ढांचे की कमजोरियों पर अपनी शक्ति लगानी चाहिए।
यदि देश में सही कानून बनें तो कोई गलत व्यक्ति भी गलत नहीं कर पाएगा लेकिन यदि कानून ही गलत होंगे तो सही व्यक्ति भी सही नहीं कर सकता। इसलिए "गरीबी रेखा नहीं - अमीरी रेखा बननी" चाहिए।
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