शोषण और ब्याज का स्वामित्व।
समाज में लोभ लालच की प्रवृत्ति पर अंकुश रखने और सबको शोषण से मुक्ति का सरलतम उपाय अमीरी रेखा का निर्माण करना है।
असल मैं सारा झगड़ा संपत्ति के अधिकार का है सीमित मात्रा में संपत्ति के संचय को तो भविष्य की अनिश्चितता के भय से मुक्ति का उचित कारण माना जा सकता है किंतु असीमित मात्रा में संपत्ति संचय को उचित ठहराया जाना गलत है क्योंकि इस से समाज में धन की कृत्रिम कमी या अभाव पैदा होता है जिससे शोषण की प्रवृति को बल मिलता है।
इस का एकमात्र कारण संपत्ति से व्यास के रूप में लेवल अतिरिक्त लाभ जिसका मेहनत से कोई संबंध नहीं होता बल्कि यह कमजोर व्यक्ति की मजबूरी से पैदा होता है।
शोषण की यह प्रवृत्ति मनुष्य मात्र का प्राकृतिक दुर्गुण है और यह हर व्यक्ति में डन्म से ही कम या अधिक मात्रा में मौजूद रहती है। सामाजिक व्यवस्था की दृष्टि से इस पर अंकुश रखा जाना बेहद जरूरी है।
इस पर अंकुश रखने का न्यायपूर्ण उपाय यही है कि एक सीमा से अधिक संपत्ति के संचय पर ब्याज की दर से संपत्ति कर लगाया जाए और उससे होने वाली आय को समाज में बराबर बराबर बांट कर उस संख्या से होने वाली क्षति की पूरी कर दी जाए।
इससे सीमित मात्रा में संपत्ति के संचय से व्यक्ति अभाव के भय से तो मुक्त हो सकेगा लेकिन दूसरों का शोषण नहीं कर पाएगा जो सबके लिए सुखदाई व्यवस्था में होना अत्यंत आवश्यक है।
इसलिए अमीरी रेखा बनानी चाहिए और अमीरी रेखा से अधिक संपत्ति पर ब्याज की दर से संपत्ति कर लगाया जाना चाहिए ताकि कोई भी व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का शोषण न सके और यह पूरी तरह उचित है।
जब तक ब्याज से होने वाली आय को व्यक्ति की आय माना जाएगा तब तक न्याय पूर्ण अर्थव्यवस्था की स्थापना नहीं हो सकती और न ही समाज में स्थाई शांति की स्थापना संभव हो सकती है।
वास्तव ब्याज की उत्पत्ति सामूहिक व्यवस्था से उत्पन्न होती है क्योंकि इससे उत्पादन और विनिमय में साधनों की भूमिका बढ़ने से मेहनत की भूमिका में कमी आ जाती है और ब्याज की आय का मालिक धन पति कौ मान सिऐ जाने परे धन और महनत के बीच प्रतिद्वंदिता उत्पन्न हो जाती है।
समाज से शोषण को समाप्त करने के लिए धन और मेहनत की इस प्रतियोगिता को समाप्त करना अनिवार्य है जिसका सरलतम उफाय ब्याज की आय को व्यक्ति की आय मानने की बजाए पूरे समाज की सानूहिक आय माना जाय।
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