देश और दुनिया की पूरी अर्थव्यवस्था संक्रमण (बदलाव)
रोशन लाल अग्रवाल
देश और दुनिया की पूरी अर्थव्यवस्था
बहुत अधिक तेजी के साथ संक्रमण (बदलाव) के दौर से गुजर रही है और उसी के साथ लोगों में बेचैनी असंतोष और टकराव भी बढ़ रहा है। इसका कारण यह है कि पुरानी अर्थ व्यवस्था का आधार मानवीय श्रम था जबकि वर्तमान बदलती हुई अर्थव्यवस्था का आधार केवल पूंजी अर्थात साधन और संपत्ति ही है।
मानवीय श्रम की भूमिका इतनी अधिकखत्म हो गई है अब कोई भी व्यक्ति श्रम से होने वाली आय के बल पर अपना जीवन नहीं चला सकता लेकिन साधन और संपत्ति के बल पर होने वाली आय लगातार बढ़ती जा रही है। मुठी भर लोगों के पास संपत्ति के अतः सागर बन गए हैं और वर्तमान अर्थव्यवस्था
में उनमें निरंतर वृद्धि ही होनी है और किसी भी कारन से और कभी भी उसमें कमी नहीं आ सकती। इसलिए अब हम यदि समाज को शांतिपूर्वक
चलाना चाहते हैं तो एक व्यक्ति के संपत्ति संग्रह की मूलभूत अधिकतम सीमा का निर्धारण करना आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य है दूसरा कोई भी उपाय समाज को भारी विनाश से नहीं बचा पाएगा.
कोई भी ऐसी व्यवस्था जिस से उत्पन्न होने वाले हानि और लाभ होगा समाज में न्याय पूर्ण वितरण नहीं होता हो वह समाज में शांति सद्भाव सहयोग विश्वास प्रेम आत्मीयता और संतुष्टि एवं समृद्धि का निर्माण बिल्कुल नहीं कर सकती और ऐसी अर्थव्यवस्था
समाज के लिए वरदान नहीं बल्कि अभिशाप ही सिद्ध होगी इसमें किसी भी प्रकार का संदेह नहीं है।
सरकार द्वारा उठाए जा रहे अर्थव्यवस्था संबंधी बदलाव के सारे कदम समाज से बिल्कुल छिपाकर झूठ का मायाजाल फैलाकर अर्थात संपूर्ण समाज को धोखा देकर किए जा रहे है और सत्ता और संपत्ति का यह भयानक बदसूरत और खतरनाक खेल समाज में व्यवस्था के प्रति भीषण असंतोष पैदा करने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं कर रहा है।
इस खेल को केवल निजी संपत्ति की गोपनीयता को खत्म करके बाजार मूल्यों के आधार पर संपत्ति का वास्तविक मूल्य निर्धारण करके साधनों से होने वाली षुद्ध आय को देश के सारे नागरिकों में समानता के आधार पर वितरित आसानी से किया जा सकता है।
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