Wednesday, November 30, 2016

Indian Government is really sincere and generous to the people? Blogger by S.Z.Mallick(Journalist)

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क्या भारत सरकार सचमुच जनता के प्रति ईमानदार व उदार है?
भारतीय संविधान की धारा 21 जिसका संबंध निजी संपत्ति की गोपनीयता से है भ्रष्टाचार और काले धन की जननी है इसके साथ साथ यह धारा व्यक्ति को समाज से अलग करके शासन का गुलाम बना देती है इसलिए जो लोग समाज को काले धन भ्रष्टाचार सत्ता की मनमानी से छुटकारा दिलाना चाहते हैं और एक न्यायपूर्ण स्वतंत्र सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करना चाहते हैं तो उनको भारतीय संविधान की इस विनाशकारी धारा को समझने और उसे खत्म कराने हेतु जनमत जागृत करना चाहिए।
जब तक इस धारा को समाप्त करके सही प्रावधान लागू नहीं किए जाएंगे कब तक इस देश की 80% जनता को गरीबी अभाव बेरोजगारी अन्याय अपमान उपेक्षा और गुलामी की जिंदगी से छुटकारा नहीं मिल सकता इसी धारा के कारण समाज में दलितों वंचितों और जानवरों जैसा कष्टदाई जीवन जीना पढ़ रहा है इसलिए इस धारा को खत्म कराने के लिए समाज में जागृति लानी चाहिए। 

Tuesday, November 22, 2016

एस.के. पाण्डेय (प्रो०-इत्तिहासविद्य एवं राजनितिक विशखक)



एस.के. पाण्डेय (प्रो०-इत्तिहासविद्य एवं राजनितिक विशखक)
प्रस्तावना प्रकथन या भूमिका पुस्तक की आत्मा होती है।  ऐसा विद्धवता जन की अवधारणा है।  आर्थिक न्याय संस्थान के संस्थापक श्री रोशन लाल अग्रवाल द्वारा लिखित पुस्तक " गरीबी नहीं अमीरी रेखा " यह लेखक के स्वाभाविक विचार कम देशकाल और परिस्थितियों की उपज ज़्यादा है।  125 करोड़ की आबादी का देश ज़िंदा जीवन जीने वालों की संख्या बमुश्किल 25 करोड़ है 100 करोड़ की शेष आबादी मरी हुयी ज़िन्दगी जीती है या यूं कहें की रोज़ मरती है रोज़ जीती है। 
प्रस्तुत पुस्तक भारत की वर्तमान अर्थ व्यवस्था और रोज़मर्रा के जीवन की ज्वलंत तस्वीर को रेखांकित करती है।  देश में व्यप्त आर्थिक समानता और उसके दुषप्रभाव के भाव को प्रदर्शित करने का अपने आप में अनुभव प्रयास किये हुए हैं।  इस पुस्तक का मानवीय पक्ष सब से ज्वलंत है की जो पैदा हुआ है वह खायेगा यह उसका नैर्सगिक अधिकार है। यह केवल कल्पनाओं में नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था के समग्र वितरण की में भी संविहित है।  "कमाने वाला खायेगा की जगह पैदा होने वाला खाने का अधिकार लेकर पैदा होगा।  यह मानव जीवन की सबसे बड़ी बीमा है।  
ज़रूरत के हिसाब से धन की आवश्यकता हर मानव की है असमान वितरण न केवल अमीरी और गरीबी पैदा करता है बल्कि मानव जीवन को दानव जीवन भी बना देता है।  यह मानवीय संस्कृति पर भी कलंक जैसा है। मानव जीवन और संस्कृति को कलंकित होने से बचाने का सुगम प्रयास इस पुस्तक के ज़रिये लेखक द्वारा किया गया है उसके मानवीय पक्ष की सराहना किये बिना मैं  नहीं रह सकता। 
आदर्श अर्थव्यवस्था की अवधारणा और मूर्त रूप देने की व्यवस्था , वह भी आर्थिक असमानता के बावजूद किन्तु जीवन रक्षक युक्त , जहाँ किसी की प्रतिभा का हनन भी नहीं वही हर किसी के जीवन रक्षक अधिकारों की गारंटी देता है।  वास्तव में आदर्श वयवस्था की अवधारणा प्रस्तूत की गयी है जो भारत जैसे देशकी पुरातन संस्कृति में निहित है।  मैं यह नहीं जनता की लेखक शैक्षणिक रूप से कितने उन्नत हैं किन्तु यह साबित करता है की व्यवहारिक ज्ञान के बिना सैम्वैधानिक ज्ञान केवल हवा हवाई होता है ऐसा मई महसूस करता हूँ की इस किताब को लिखने से पहले लेखक उन प्रस्थितियों  से दो दो हाँथ आज़माएँ हैं। 
धन के सदप्रभाव और दुष्प्रवाह दोनों के बीच का केवल संतुलित प्रभाव की अवधारणा और उसे कैसे अभकी जामा पहनाया जा सकता की व्यवस्था सर्वनिहित करते हुए दीं दयाल उपाध्याय के एकात्म मानव वाद के नज़दीक जाने की लेखक की कोशिश अपने आप में अनुभव प्रयास भर नहीं अंगीकार करने की सम्पूर्ण व्यवस्था लिए हैं यदि समाज सरकार और न्याय पूर्ण व्यवस्था इसे आत्मा शांत करें तो निश्चित रूप से देश में एक उन्नत और न्याय पूर्ण व्यवस्था की अस्थापना हो सकती है।  
लेखक के विलक्षणता का रोचक पहलु है की इस पुस्तक को आम बोल चाल की भाषा में लिखा गया जिसे हर साक्षर मनुष्य पढ़ और समझ सकता है अर्थ जगत के शब्दों का इस्तेमाल किये बिना अर्थव्यवस्था का सामान्य भाषा में प्रस्तुतिकरण पुस्तक और लेखक दोनों की विलक्षण ता प्रशिक्षित करती है।  मैं लेखक के प्रयासों और उनके उद्देश्यों की सफलता की कामना करता हूँ।               

चुनाव के मद्देनज़र रूपये बदले गए हैं ? बैंक कर्मियों की चांदी है - Blogger by S.Z.Mallick(Journalist)



बैंक कर्मियों की चांदी है। 
एस.ज़ेड.मलिक (पत्रकार)  
 नोट बंदी का यह एक भ्रमित शब्द की उत्पत्ति जान बूझ कर समाज को गुमराह करने के लिए बनाया गया है जबकि नोट बंद किया ही नहीं गया बल्कि बाजार में एक और नए नोट का उत्पादन किया गया। जिससे जमाखोर लोग अधिक से अधिक रुपया कम से कम जगहों में रख सकें । केंद्र सरकार ने जमाखोरों और काला बाज़ारी करनेवालों को अधिक धन इकट्ठा करने का एक सुनहरा अवसर दे दिया है।  जबकि पहले से दस, बीस, पचास, सौ,पाँचसौ, हज़ार, और अब दो हज़ार यह तो नोटों में बढ़ोतरी हो रही है बंदी कहाँ हुयी दरअसल सरकार को नक़ली नोटों या काला धन को रोकना नहीं बल्कि काला धन को एकत्रित करने में आरही रूकावटें को दूर करने के लिए एक शतरंज की चाल चली गयी है , इसलिए की आरएसएस तथा हिन्दू संगठनों को काला धन एकत्रित करने में विपक्षियों द्वारा आरही रूकावटो के कारण भारत की जनता को भर्मित करने के लिए मोदी जी ने पकिस्तान, बंगाल देश और चीन से आ रहे नक़ली मुद्राओं को रोकने नाम पर यह आनन् फानन में ऐसे क़दम उठाये हैं , यह मैं नहीं कह रहा हूँ , मोदी जी यह बात जनता को अब बता रहे हैं जो उनकी ही चहेती मीडिया दिखा रही हैं।
दरअसल अभी तीन प्रदेशों में तीन, चार, पाँच, महीने के अन्तर्गत चुनाव होने हैं। जहाँ भाजपा को विभिन्न प्रत्याशियों का सामना पडेगा तथा सभी भाजपा प्रत्याशियों को भरी ख़र्च का भी सामना करना पड़ेगा, शायद इज़राइल ने आरएसएस को इस चुनाव में पैसे देने से इनकार कर दिया इसलिए इन्हें इस तरह की प्रस्थितियां को पैदा करना पड़ा। इससे सबसे बड़ा असर गैरभाजपाई और विपक्षी पार्टियों को पड़ेगा, ऐसा मना जा रहा है की नए रूपये पूर्ण रूप से भाजपा के थैलियों में पहुँच चुके हैं।     
प्रधान मंत्री नरेंद्र भाई मोदी पिछले दो दिनों से मीडिया पर यह बयान दे रहे हैं की बहुत बड़ी मात्रा में नक़ली नोटों का खेप भारत के बाज़ारों में उतरने वाला था जिस में से कुछ पकड़ा गया इसलिए इसे रोकने के लिए मुझे आनन् फानन में ऐसा क़दम उठाना पड़ा, बहनो भाइयों मुझे 50 दिन और दो मैं सब ठीक कर दूंगा। ऐसा सुनने को मिल रहा है और देखने को भी मिल रहा है। सवाल यह है की अभी भारत की करंसी पूर्णरूप से छपी भी नहीं और और छः महीना पहले ही भारत के मार्किट में नक़ली मुद्रा कैसे उतर गयी और फिर पकड़ा भी जाता है। कमाल की बात है , इन्ही की मीडिया के अनुसार पिछले दिनों कश्मीर के पूंछ सेक्टर में दो आतंकवादियों को मार दिया गया और उनके पास से दो हज़ार रूपये दो नोट मेलें हैं ताज्जुब है - या तो वह आतंकवादी नहीं होंगे या तो उन आतंकवादियों के पास हमारे किसी भारतीय भक्तों द्वारा भारत की करंसी थोड़े मात्रा में ही सही लेकिन पहुँच गयीं हैं।     
भ्रष्टाचार न समाप्त हुआ है न होगा , इसकी मिसाल मैं बहरी दिल्ली के पूठ गांव से दूंगा, एस्टेट बैंक ऑफ़ पटियाला , और ओरिएंटल बैंक और कॉमर्स तथा मंगोलपूरीखर्द गांव के मेन कंझावला रोड पर इस्थित है यहां आज भी भीड़ काम नहीं हुयी है कारन इन क्षेत्रों में अवैध गृह उद्योग काफी है इन उद्धोगों से अस्थानीय पुलिस प्रसाशन और नगर निगम तथा एसडीएम डीसी का ऊपरी खर्च चलता रहता है।  आमदनी नहीं थी तो बेचारे बैंक कर्मियों की इसलिए यह केंद्र सरकार ने विशेष कर ऐसे बैंक कर्मियों पर मेहरबानी करते हुए ऊपरी आमदनी के रस्ते खोल दिए इसलिए आज यह बैंक कर्मी केंद्र सरकार का लाख लाख शुक्रिया अदा कर रहे हैं।  
   बहरहाल, आज से बीस दिनों पहले जब ऐसी दुरप्रविर्तियाँ आरंभ हुयी थी तो भारत के हर जगहों पर हाहाकार मचा हुआ था तब बैंको में रूपये बड़े बैगों और अटैचियों में भर भर कर आ रहे थे और उसी तरह से भरके जा रहे थे तब लोगों की भीड़ को यह लग रहा था की सरकार जनता को नोट पूर्ति करने की पुज़ोर कोशिश कर रही है इस तरह से दस दिनों तक नियमित रूप से चलता रहा , लेकिन जब हज़ारों की लाइन में खड़े मात्र डेढ़ सौ से 200 लोगों को ही 4000,रुपया बदलवाने में कामयाब हो पते थे , फिर पुलिस द्वारा यह लाइन लगाए लोगों को सूचित करवा दिया जाता था की रुपया समाप्त हो गया - उन बैंकों के आस पास मैं तीन दिनों तक चक्कर लगाते रहा , बार बार सोंचता था की सारे दिन लोग लाइनों में खड़े रहते हैं और सिर्फ डेढ़ सौ से मात्र दो सौ लोगों को ही रुपये मिल पते हैं सरकार बैंकों को कितना काम रुपया भेजती है की तुरंत दोपहर होते होते रुपया समाप्त हो जाता है , बड़ा ताजुब होरहा था आखिर कार एक संध्या लगभग साढ़े छे बजे बैंक ऑफ़ पटियाला का एक कर्मचारी एक इसी पूठ गांव के भाजपा के अस्थानीय नेता जिन्हें मैं अक्सर निगम पार्षद दिवेंद्र सोलंकी के साथ देखा करता था उनके ही साथ बातें करते हुए सूना , अजी महाराज आप चिंता न करें जितना भी होगा आप ले आएं या मुझे बता दें मैं आपके यहां आ जाऊंगा, शाम को बैंक बंद होते ही आपको भेजवा दूंगा , जब वह नेता उनसे अलग हुआ तो मैंने उन महाशय को नमस्कार करके उनसे संपर्क में आया, जब मैंने उन से कहा की भाईसाब आप हमारी भी थोड़ी मदद करदो जो भी आपको लेना हो बता दो मिल जाएगा - पहले तो वह मुझ से बड़ा ही टेढ़े शब्दों में बात किया जब मैंने उस को बताया की आपकी सारी बातें सुन लिया है और मैं भी सामाजिक कार्यकर्ता हूँ , और मेरे भी काफी बड़े दायरे हैं तब वह थोड़ा हिचकते हुए कहा की कहाँ रहता है भाई, मैं कहा इसी पूठ में फिर वह बोला कितना है - मैंने जवाब दिया भतेरे हैं यानी बहुत हैं - उसने कहा 25 लगेंगे मैं बोला ठीक लेकिन बदकिस्मती से न मेरे पास इतना था और न कोई ऐसा आदमी था जिसे कहें की भाई इतने पर तू बदलवा ले , और न किसी ने बदलवाने के लिए दिया, वैसे कुछ विशेष लोग मिझे पत्रकार से जानते हैं , दूसरे दिन वह आदमी दुबारा नहीं मिला और वहां इसी तरह नोट बदलवाने की प्रतिक्रिया चलता रहा और आज भी चल रहा है।  इतना तो पता चल गया की इन दिनों बैंको में बैंक कर्मियों की चांदी है , और पुलिस कर्मियों को मिल रहा है सिलवर, आम जनता बेचारी थी बेचारी है और बेचारी रहेगी। इतना तो पता चल गया की यह एक सोंची समझी चाल थी और अब इस चाल में मोदी जी स्वमं ही फंसते जा रहे हैं अब केंद्र सरकार को न उगलते बन रहा है न निगलते बन रहा है। हिदू राज की कल्पना करने वाले बेशक आज अपने आपको असहाय मान रहे हैं लेकिन हार नहीं मान रहे हैं।  कुतर्क करके अपने आप को और मोदी जी बचाने की जी जान तोड़ कोशिश कर रहे हैं।
बहरहाल! यदि सरकार सचमुच इमानदार होती और भ्रष्टाचार समाप्त करने पर सचमुच गम्भीर होती एवं काला धन निकालना चाहती तो अमीरी रेखा कि सीमा तय कर सम्पत्ती कर (टेक्स) छोङ कर सारे कर(टेक्स) समाप्त कर के हर साल करंसी बदलने का तीन महीना पहले से एलान करती और ऐलान से पहले प्रयाप्त मात्रा में नये नोट देश के बैंकों भर देती । इस से किसी को दिक्कत नहीं आती , नोट बदलने का प्रावधान आधार कार्ड से जोड़ा जाता और धीरे धीरे तीन महीने तक पुराने नोटों को हटाते चली जाती। तीन महीने के बाद सरकार टेक्स का नाम लिए बिना यह एलान कर देती की की जिन जिन के पास पुराने नोट जमा हैं वह निर्धारित समय तक अपना पुराना नोट जमा करा दें नहीं तो वह नोट रद्दी में जाएगा। फिर देखते की नोट कैसे बाहार आने लगता है लेकिन सरकार ने ऐसा न कर , गरीबों को दौड़ा दौड़ा कर रुला दिया , और अपने यानी अमीरों को भर भर कर सुला दिया। कोई नहीं !  अंग्रेज भारत को सोने की चिड़िया यूँही नहीं कहते थे। अंग्रजों ने भारत को जितना लूटना था लूटा और फिर यहां से जाने लगे तो आपना दलाल यहि छोड़ गए की बाद में भी किसी न किसी रूप में भारत से लेते सूद के तौर पर लेते रहेंगे। और वह ले रहे हैं। और जनता ख़ुशी ख़ुशी इन सरकारों के माध्यम से दे रही है। जो डॉलर की तुलना में भारत के रूपये का महत्व् कम है। और काम रहेगा।    
सब से चौकाने वाली बात यह है की सबसे पहले 2000 हज़ार का नोट सितंबर महीने में ही मार्किट में कैसे आ गया ? और वह भी किसी वयापारी के पास नहीं बल्कि भाजपा विधायक और सांसद के पास कैसे आया ? इससे स्पष्ट हो जाता है की भारतीय करंसी नोट की शक्ल में सत्ता धारी लोगों के पास सरकार ने पहले पहुंचा दिया था और और ध्यान भटकाने के लिए कभी काश्मीर का मुद्दा उठा दिया तो कभी जेएनयू का मुद्दा उठाती रहे , लोग आपस में उलझते रहें और नये नोट आसानी से भाजपा नेताओं तक पहुँचता रहे।                 
500 , 1000 का नोट को अचानक बन्द करने का फैसला से सारे छोटे वयापारीयों तथा अढ़तीयों की साँसे फूल गयी उन्हें न उगलते बन रहा है न निगलते बन रहा है । सच तो यह है की कला धन विदेशों में हो या न हो, लेकिन भारत में बड़े अढ़तियों जमाखोरों और उद्दोगपतियों और भाजपा के नेताओं के पास अवश्य है। 

Saturday, November 19, 2016

औसत सीमा से अधिक संपत्ति, समाज , देश , और सरकार के लिए घातक है। Blogger by S.Z.Mallick(Journalist)






यह विचार, सामाजिक आर्थिक समीक्षक "रोशन लाल अग्रवाल" के हैं।
"गरीबी रेखा नहीं - अमीरी रेखा बननी"
धन का अति संचय समाज के लिए बहुत बड़ी समस्या और अर्थव्यवस्था के लिए भयानक खतरा है, इसका बहुत बड़ा कारण धन संचय से ब्याज के रूप में मिलने वाला अतिरिक्त लाभ है। हालांकि ब्याज का मेहनत से कोई लेना देना नहीं होता लेकिन यह अतिरिक्त आय का बहुत भयानक स्रोत ही नहीं बन जाता बल्कि दूसरे लोगों के शोषण का हथियार भी बन जाता है और समाज के लिए अत्यंत विनाशकारी सिद्ध होता है।
न्याय की दृष्टि से ब्याज पर किसी व्यक्ति का हक होना ही नहीं चाहिए क्योंकि इसका मेहनत से कोई लेना देना नहीं है यह व्यवस्था से मिलने वाला अतिरिक्त लाभ है जो साधनों की भूमिका बढ़ने और आदमी की मेहनत की कीमत घटने के कारण पैदा होता है इसलिए जाग से होने वाली आय व्यक्ति की आय न होकर समाज का सामूहिक लाभ होना चाहिए।
न्याय की दृष्टि से एक व्यक्ति को केवल औ सत सीमा तक ही संपत्ति का मालिक माना जाना चाहिए क्योंकि प्राकृतिक संपदा ही वास्तविक धन है जिन पर सबका जन्मसिद्ध समान अधिकार है। इसलिए न तो कोई व्यक्ति औसत सीमा से अधिक संपत्ति का और ना ही उसके ब्याज का मालिक हो सकता है। जब तक औसत सीमा से अधिक संपत्ति और ब्याज का मालिक किसी भी व्यक्ति को माना जाता रहेगा तब तक अति धन संचय की प्रवृति पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता और न ही समाज से शोषण समाप्त हो सकता है और ना ही व्यक्ति के लोभ पर अंकुश लगाया जा सकता है।
व्यापक समाज हित की दृष्टि से आपको किसी व्यक्ति पर नहीं बल्कि देश के कानूनी ढांचे की कमजोरियों पर अपनी शक्ति लगानी चाहिए।
यदि देश में सही कानून बनें तो कोई गलत व्यक्ति भी गलत नहीं कर पाएगा लेकिन यदि कानून ही गलत होंगे तो सही व्यक्ति भी सही नहीं कर सकता। इसलिए "गरीबी रेखा नहीं - अमीरी रेखा बननी" चाहिए।

Saturday, November 12, 2016

स्वार्थी सरकार बे सब्र स्वार्थी जनता ! । Report by S.Z.Mallick(Journalist)

   



 तू चले डाले डाल हम चलें पाते पात , की कहावत पर जनता आधारित है। सरकार के नीतियां को लागू करते ही जनता उसका तोड़ निकाल लेती है।
सरकार के नोट बंदी के एका एक एलान से जनता थोड़ी ज़रूर हुयी  - जिस प्रकार आज जनता रूपये रूपये के लिए मोहताज हो रही है - और मोदी कह रहें की 50 दिन जनता और सब्र करे - क्या यह संभव है ? ऐसे करने से क्या काला धन बहार आजायेगा ? मैं समझता हूँ की जमाखोरों को और अधिक काला धन संग्रह करने का यह सबसे बड़ा अवसर मिला है। जहाँ जमाखोरों के पास पहले 500 , 1000 रूपये के नोटो की गड्डियां अधिक हुआ करती थीं तो बहुत ज़्यादा वज़न हुआ करता था पर नोट कम हुआ करते थे लेकिन आज और नोटों की संख्या अधिक अधिक हो गयी और वज़न कम हो गया इसलिए की 2000 नोटों की गड्डियां बनने के कारण उन गड्डियां की संख्या कम हो गयी। 
 स्वार्थी सरकार बे सब्र स्वार्थी जनता ! आज मोदी जी की नितीयों के कारण जिस प्रकार सम्पुर्ण भारत में आपा धापी मची हुई है एसा लगता है अब शायद लगों के पास रूपया कभी नहीं आयेग , लेकिन यदि सरकार सचमुच इमानदार होती और भ्रष्टाचार समाप्त करने पर सचमुच गम्भीर होती अमीरी रेखा कि सीमा तय कर सम्पत्ती कर (टेक्स) छोङ कर सारे कर(टेक्स) समाप्त कर के हर साल करंसी बदलने का तीन महीना पहले से एलान करती और ऐलान से पहले प्रयाप्त मात्रा में नये नोट देश के बैंकों भर देती । इस से किसी को दिक्कत नहीं आती , नोट बदलने का प्रावधान आधार कार्ड से जोड़ा जाता और धीरे धीरे तीन महीने तक पुराने नोटों को हटाते चली जाती। तीन महीने के बाद सरकार टेक्स का नाम लिए बिना यह एलान कर देती की की जिन जिन के पास पुराने नोट जमा हैं वह निर्धारित समय तक अपना पुराना नोट जमा करा दें नहीं तो वह नोट रद्दी में जाएगा। फिर देखते की नोट कैसे बाहार आने लगता है लेकिन सरकार ने ऐसा न कर , गरीबों को दौड़ा दौड़ा कर रुला दिया , और अपने यानी अमीरों को भर भर कर सुला दिया। कोई नहीं !  अंग्रेज भारत को सोने की चिड़िया यूँही नहीं कहते थे। अंग्रजों ने भारत को जितना लूटना था लूटा और फिर यहां से जाने लगे तो आपना दलाल यहि छोड़ गए की बाद में भी किसी न किसी रूप में भारत से लेते सूद के तौर पर लेते रहेंगे। और वह ले रहे हैं। और जनता ख़ुशी ख़ुशी इन सरकारों के माध्यम से दे रही है। जो डॉलर की तुलना में भारत के रूपये का महत्व् कम है। और काम रहेगा।    
सब से चौकाने वाली बात यह है की सबसे पहले 2000 हज़ार का नोट सितंबर महीने में ही मार्किट में कैसे आ गया ? और वह भी किसी वयापारी के पास नहीं बल्कि भाजपा विधायक और सांसद के पास कैसे आया ? इससे स्पष्ट हो जाता है की भारतीय करंसी नॉट की शक्ल में सत्ता धारी लोगों के पास सरकार ने पहले पहुंचा दिया था और और ध्यान भटकाने के लिए कभी काश्मीर का मुद्दा उठा दिया तो कभी जेएनयू का मुद्दा उठाती रहे , लोग आपस में उलझते रहें और नये नोट आसानी से भाजपा नेताओं तक पहुँचता रहे।                 
500 , 1000 का नोट को अचानक बन्द करने का फैसला से सारे बड़े वयापारी तथा अढ़ती की साँसे फूल गयी उन्हें न उगलते बन रहा था न निगलते बन रहा था।  सच तो यह है की कला धन विदेशों में हो या न हो,
लेकिन भारत के हर घर में  किसी न किसी रूप में छुपा हुआ था। 500 रूपये का नोट चाहे वह किसी भिखारी या मज़दूर के थैली में या ग्रहणियों के किचन के किसी डब्बे में क्यों न पड़ा हो एक ही झटके में सब के सब बाहार तो आ गये। लेकिन इनकी परेशानियां दुगुनी बढ़ गयी फिरभी इनकी परेशानी बहुत छोटी है ,  जिनके पास 500, 1000, 2000, 4000,10000, हैं वह अपने नोटों को किसी न किसी प्रकार बैंकों में धक्के खा कर भंजा लेंगे पर वह जो अरबों करोड़ों रुपया बोरियों में बन्द कर के जहाँ तहाँ छिपा रखा है जो 30 दिसम्बर के बाद रद्दी बन जायेगा वैसे लोगों का क्या होगा उनकी तो नींद हैराम हो गयी है। आज गरीबों को काफी सुकून मिल रहा है ,लेकिन सच तो यह है की मोदीजी के इस प्रकार की नीतियों से आज सबसे ज़्यादा गरीबों का नुकसान हो रहा। इसलिए की सेठ साहूकारों जमाखोरों ने अपने बचने का और जमाखोरी का दुसरा रास्ता भी इन्ही गरीबों के सहारे चुन लिया।  शातिर दिमाग लोग तो न जाने क्या क्या सोंच रहे है, लोग तो अब एक साल आगे की सोंचने लगे हैं अगले साल उत्तर प्रदेश विधान सभा और दिल्ली में निगम का चुनाव है, भाजपा ने उन चुनाव के मद्देनज़र यह खेल खेला है। दूसरी बात जो लोग कर रहे हैं की 2000 के नोटों में सरकार ने नई टेक्नालॉजी लगाई है ताकि यह नोट का आसानी पता चल साके की नोट किसके पास और कहाँ कहाँ है  इस नोटों को रखने की एक सीमा एक अहद बनाई होगी जो सिर्फ सरकार को ही पता होगा उस सीमा या हद से पार करते ही सरकार को नोटों के अधिक होने का पता चल जाएगा और सरकार उस पर तुरंत छापे मार कर अपने क़ब्ज़े में ले लेगी। हर व्यक्ति अपनी तरह से सोंचने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है।  यह उसके अभिव्यक्ति की आज़ादी है। लेकिन क्या ग़लत करने के लिए भी उसके अभिव्यक्ति की आज़ादी है - यदि है तो ठीक है लोगों को करनेवाले व्यक्ति से न कोई कष्ट होना चाहिए और न उसपर कोई प्रशासनिक कारवाई होना चाहिए।  
यदि भारत के लोग स्वार्थी न होते तो शायद आज भारत में राम राज होता शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पी रहे होते। प्रधानमंत्री नरेन्द्रमोदी जी के अचानक फैसला लिये जाने से सम्पूर्ण भारत के आम नागरिकों  को जो समस्यायों का सामना करना पड़ रहा है शायद भारत की जनता ऐसे समस्याओं का सामना करने के लिए न तो कभी तयार रही होगी और न तो कभी सोंचा ही नहीं होगा, सम्पूर्ण भारत में अफरातफरी मच गयी है। बेशक आज गरीग ठेली चलानेवाला, रिक्शा चलानेवाला, फुटपाथ पर काम करनेवाला, मज़दूरी करनेवाला हर व्यक्ति इसलिए खुश होरहा है की मोदी जी एक झटके में हर अमीरों को भी लाइन में लगा दिया।  क्या ऐसा करने से भ्रष्टाचार रुक जाएगा ? न भ्रष्टाचार रुका न रुकेगा।  सभी बैंक कर्मियों के कान खड़े होगये सुबह होते ही बैंककर्मियों ने सबसे पहले अपने 500 , 1000 के नोटों को 100 ,100 तथा 2000 के नोटों में परिवर्तित किया फिर अपने रिश्तेदारों का और सगे सम्बन्धियों तथा दोस्तों का भला किया और अब कमीशन पर अपना घर भर रहे है।  20 से 30 % पर अपने क्षेत्र के बड़े सेठ साहूकारो का कल्याण कर रहे हैं। यह मामला दिल्ली के पूठ गांव , मंगोलपुरी , नागलोई , सुल्तानपुरी , शकूरपुर आज़ादपुर जैसे इलाके में धड़ल्ले से किया जारहा है।  दूसरे ऐसे सेठ साहूकार लोग अपने लेबरों को अपना अथॉराइजेशन लेटर दे कर 4000/4000 रुपया जमा कराने के लिय लाइन में लगा दिया तो कुछ लोगों ने अपने रुपयों को एक नम्बर बनाने के लिए 10 नवम्बर की रात तक 65 हज़ार रूपये भरी तक लोगो ने सोना खरीदा। जिन पत्नियों अपने पति छुपा कर नोट जमा कर रही थीं उन्हें भी अपने जमा किये रुपयों को पति को समर्पित करना पड़ा। 
आज सब से बड़ी परेशानी की एटीएम में अब तक 100 , 100 रूपये के नॉट आये ही नहीं हैं यह कब तक आएंगे पता नहीं। दुकानदार 500 के सामान में गरीब का सारा रुपया काट रहा है नहीं तो 500 के 400 रुपया दे रहा है गरीब करे तो क्या करे।  पैसे वालों के लिए कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। वह तो 500 रूपये का कर में तेल डलवालेंगे या कोई सामान खरीद लेंगे। लेकिन जिनका 500 रुपयों से घर चलता हो वह क्या करेंगे। 


        एस.ज़ेड.मलिक (पत्रकार)
09891954102
ainaindia04@gmail.com,   
                         

स्वार्थी सरकार बे सब्र स्वार्थी जनता ! । Report by S.Z.Mallick(Journalist)

   



 तू चले डाले डाल हम चलें पाते पात , की कहावत पर जनता आधारित है। सरकार के नीतियां को लागू करते ही जनता उसका तोड़ निकाल लेती है।
सरकार के नोट बंदी के एका एक एलान से जनता थोड़ी परीक्षण ज़रूर हुयी  - जिस प्रकार आज जनता रूपये रूपये के लिए मोहताज हो रही है - और मोदी कह रहें की 50 दिन जनता और सब्र करे - क्या यह संभव है ? ऐसे करने से क्या काला धन बहार आजायेगा ? मैं समझता हूँ की जमाखोरों को और अधिक काला धन संग्रह करने का यह सबसे बड़ा अवसर मिला है। जहाँ जमाखोरों के पास पहले 500 , 1000 रूपये के नोटो की गड्डियां अधिक हुआ करती थीं तो बहुत ज़्यादा वज़न हुआ करता था पर नोट कम हुआ करते थे लेकिन आज और नोटों की संख्या अधिक अधिक हो गयी और वज़न कम हो गया इसलिए की 2000 नोटों की गड्डियां बनने के कारण उन गड्डियां की संख्या कम हो गयी। 
 स्वार्थी सरकार बे सब्र स्वार्थी जनता ! आज मोदी जी की नितीयों के कारण जिस प्रकार सम्पुर्ण भारत में आपा धापी मची हुई है एसा लगता है अब शायद लगों के पास रूपया कभी नहीं आयेग , लेकिन यदि सरकार सचमुच इमानदार होती और भ्रष्टाचार समाप्त करने पर सचमुच गम्भीर होती अमीरी रेखा कि सीमा तय कर सम्पत्ती कर (टेक्स) छोङ कर सारे कर(टेक्स) समाप्त कर के हर साल करंसी बदलने का तीन महीना पहले से एलान करती और ऐलान से पहले प्रयाप्त मात्रा में नये नोट देश के बैंकों भर देती । इस से किसी को दिक्कत नहीं आती , नोट बदलने का प्रावधान आधार कार्ड से जोड़ा जाता और धीरे धीरे तीन महीने तक पुराने नोटों को हटाते चली जाती। तीन महीने के बाद सरकार टेक्स का नाम लिए बिना यह एलान कर देती की की जिन जिन के पास पुराने नोट जमा हैं वह निर्धारित समय तक अपना पुराना नोट जमा करा दें नहीं तो वह नोट रद्दी में जाएगा। फिर देखते की नोट कैसे बाहार आने लगता है लेकिन सरकार ने ऐसा न कर , गरीबों को दौड़ा दौड़ा कर रुला दिया , और अपने यानी अमीरों को भर भर कर सुला दिया। कोई नहीं भारत को अंग्रेज सोने की चिड़िया यूँही नहीं कहते थे। अंग्रजों ने जितना लूटना था लूटा और फिर आपना दलाल यहि छोड़ गए की बाद में भी किसी न किसी रूप में भारत से लेते रहेंगे। 
सब से चुकाने वाली बात यह है की सबसे पहले 2000 हज़ार का नोट सितंबर महीने में ही मार्किट में कैसे आ गया ? और वह भी किसी वयापारी के पास नहीं बल्कि भाजपा विधायक और सांसद के पास कैसे आया ? इससे स्पष्ट हो जाता है की भारतीय करंसी नॉट की शक्ल में सत्ता धारी लोगों के पास सरकार ने पहले पहुंचा दिया था और और ध्यान भटकाने के लिए कभी काश्मीर का मुद्दा उठा दिया तो कभी जेएनयू का मुद्दा उठाती रहे , लोग आपस में उलझते रहें और नये नोट आसानी से भाजपा नेताओं तक पहुँचता रहे।                 
500 , 1000 का नोट को अचानक बन्द करने का फैसला से सारे बड़े वयापारी तथा अढ़ती की साँसे फूल गयी उन्हें न उगलते बन रहा था न निगलते बन रहा था।  सच तो यह है की कला धन विदेशों में हो या न हो,
लेकिन भारत के हर घर में  किसी न किसी रूप में छुपा हुआ था। 500 रूपये का नोट चाहे वह किसी भिखारी या मज़दूर के थैली में या ग्रहणियों के किचन के किसी डब्बे में क्यों न पड़ा हो एक ही झटके में सब के सब बाहार तो आ गये। लेकिन इनकी परेशानियां दुगुनी बढ़ गयी फिरभी इनकी परेशानी बहुत छोटी है ,  जिनके पास 500, 1000, 2000, 4000,10000, हैं वह अपने नोटों को किसी न किसी प्रकार बैंकों में धक्के खा कर भंजा लेंगे पर वह जो अरबों करोड़ों रुपया बोरियों में बन्द कर के जहाँ तहाँ छिपा रखा है जो 30 दिसम्बर के बाद रद्दी बन जायेगा वैसे लोगों का क्या होगा उनकी तो नींद हैराम हो गयी है। आज गरीबों को काफी सुकून मिल रहा है ,लेकिन सच तो यह है की मोदीजी के इस प्रकार की नीतियों से आज सबसे ज़्यादा गरीबों का नुकसान हो रहा। इसलिए की सेठ साहूकारों जमाखोरों ने अपने बचने का और जमाखोरी का दुसरा रास्ता भी इन्ही गरीबों के सहारे चुन लिया।  शातिर दिमाग लोग तो न जाने क्या क्या सोंच रहे है, लोग तो अब एक साल आगे की सोंचने लगे हैं अगले साल उत्तर प्रदेश विधान सभा और दिल्ली में निगम का चुनाव है, भाजपा ने उन चुनाव के मद्देनज़र यह खेल खेला है। दूसरी बात जो लोग कर रहे हैं की 2000 के नोटों में सरकार ने नई टेक्नालॉजी लगाई है ताकि यह नोट का आसानी पता चल साके की नोट किसके पास और कहाँ कहाँ है  इस नोटों को रखने की एक सीमा एक अहद बनाई होगी जो सिर्फ सरकार को ही पता होगा उस सीमा या हद से पार करते ही सरकार को नोटों के अधिक होने का पता चल जाएगा और सरकार उस पर तुरंत छापे मार कर अपने क़ब्ज़े में ले लेगी। हर व्यक्ति अपनी तरह से सोंचने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है।  यह उसके अभिव्यक्ति की आज़ादी है। लेकिन क्या ग़लत करने के लिए भी उसके अभिव्यक्ति की आज़ादी है - यदि है तो ठीक है लोगों को करनेवाले व्यक्ति से न कोई कष्ट होना चाहिए और न उसपर कोई प्रशासनिक कारवाई होना चाहिए।  
यदि भारत के लोग स्वार्थी न होते तो शायद आज भारत में राम राज होता शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पी रहे होते। प्रधानमंत्री नरेन्द्रमोदी जी के अचानक फैसला लिये जाने से सम्पूर्ण भारत के आम नागरिकों  को जो समस्यायों का सामना करना पड़ रहा है शायद भारत की जनता ऐसे समस्याओं का सामना करने के लिए न तो कभी तयार रही होगी और न तो कभी सोंचा ही नहीं होगा, सम्पूर्ण भारत में अफरातफरी मच गयी है। बेशक आज गरीग ठेली चलानेवाला, रिक्शा चलानेवाला, फुटपाथ पर काम करनेवाला, मज़दूरी करनेवाला हर व्यक्ति इसलिए खुश होरहा है की मोदी जी एक झटके में हर अमीरों को भी लाइन में लगा दिया।  क्या ऐसा करने से भ्रष्टाचार रुक जाएगा ? न भ्रष्टाचार रुका न रुकेगा।  सभी बैंक कर्मियों के कान खड़े होगये सुबह होते ही बैंककर्मियों ने सबसे पहले अपने 500 , 1000 के नोटों को 100 ,100 तथा 2000 के नोटों में परिवर्तित किया फिर अपने रिश्तेदारों का और सगे सम्बन्धियों तथा दोस्तों का भला किया और अब कमीशन पर अपना घर भर रहे है।  20 से 30 % पर अपने क्षेत्र के बड़े सेठ साहूकारो का कल्याण कर रहे हैं। यह मामला दिल्ली के पूठ गांव , मंगोलपुरी , नागलोई , सुल्तानपुरी , शकूरपुर आज़ादपुर जैसे इलाके में धड़ल्ले से किया जारहा है।  दूसरे ऐसे सेठ साहूकार लोग अपने लेबरों को अपना अथॉराइजेशन लेटर दे कर 4000/4000 रुपया जमा कराने के लिय लाइन में लगा दिया तो कुछ लोगों ने अपने रुपयों को एक नम्बर बनाने के लिए 10 नवम्बर की रात तक 65 हज़ार रूपये भरी तक लोगो ने सोना खरीदा। जिन पत्नियों अपने पति छुपा कर नोट जमा कर रही थीं उन्हें भी अपने जमा किये रुपयों को पति को समर्पित करना पड़ा। 
आज सब से बड़ी परेशानी की एटीएम में अब तक 100 , 100 रूपये के नॉट आये ही नहीं हैं यह कब तक आएंगे पता नहीं। दुकानदार 500 के सामान में गरीब का सारा रुपया काट रहा है नहीं तो 500 के 400 रुपया दे रहा है गरीब करे तो क्या करे।  पैसे वालों के लिए कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। वह तो 500 रूपये का कर में तेल डलवालेंगे या कोई सामान खरीद लेंगे। लेकिन जिनका 500 रुपयों से घर चलता हो वह क्या करेंगे। 


        
                         

50दिनों में गृह युध्द संभव-रुपयों की कालाबाज़ारी । Report by S.Z.Mallick(Journalist)

पचास दिनों तक यहि हाल रहा तो भारत में गृह युध्द संभव। भ्रष्टाचार न बंद हुआ है न बंद होगा। 

आज एक ओर जहाँ  गरीब हंस रहा है - अमीर रो रहा है। वहीं हर आम आदमी एक एक रूपये के लिए परीशान भी हो रहा है - बैंको में रूपये आ रहे हैं लेकिन रूपये बैक डोर अस्थानीय सेठ साहूकार नेताओं और बैंक कर्मि अपने रिश्तेदारों के घर पहुंचा रहे हैं।     

गृहणियों की भी अपने पति के सामने खुल गई पोल।  

एक झटके में गरीब से अमीर तक की सब की पोल खुल गयी। 

       

वाह मोदी जी वाह ! आज आप ने इस नई नीति लागू कर आपने साबित कर दिया की आप को राजनीत नहीं बल्कि जनता को सुधारना भी आता है । लेकिन यहां की जनता है सब कुछ जानती है , तू चले डाले डाल हम चलें पाते पात , की कहावत पर जनता आधारित है - फिर भी सब्र नहीं है - जिस प्रकार आज जनता रूपये रूपये के लिए मोहताज हो रही है - और मोदी कह रहें की 50 दिन जनता और सब्र करे - क्या यह संभव है ? ऐसे करने से क्या काला धन बहार आजायेगा ? जमाखोरों को काला धन संग्रह करने का यह सबसे बड़ा अवसर मिला है। सबसे पहले 2000 हज़ार का नोट सितंबर महीने में ही मार्किट में कैसे आ गया ?        
500 , 1000 का नोट को अचानक बन्द करने का फैसला से सारे बड़े वयापारी तथा अढ़ती की साँसे फूल गयी उन्हें न उगलते बन रहा था न निगलते बन रहा था।  सच तो यह है की कला धन विदेशों में हो या न हो, लेकिन भारत के हर घर में  किसी न किसी रूप में छुपा हुआ था। 500 रूपये का नोट चाहे वह किसी भिखारी या मज़दूर के थैली में या ग्रहणियों के किचन के किसी डब्बे में क्यों न पड़ा हो एक ही झटके में सब के सब बाहार तो आ गये। लेकिन इनकी परेशानियां दुगुनी बढ़ गयी फिरभी इनकी परेशानी बहुत छोटी है ,  जिनके पास 500, 1000, 2000, 4000,10000, हैं वह अपने नोटों को किसी न किसी प्रकार बैंकों में धक्के खा कर भंजा लेंगे पर वह जो अरबों करोड़ों रुप्या बोरियों में बन्द कर के जहाँ तहाँ छिपा रखा है जो 30 दिसम्बर के बाद रद्दी बन जायेगा वैसे लोगों का क्या होगा उनकी तो नींद हैराम हो गयी है। आज गरीबों को काफी सुकून मिल रहा है ,लेकिन सच तो यह है की मोदीजी के इस प्रकार की नीतियों से आज सबसे ज़्यादा गरीबों का नुकसान हो रहा। इसलिए की सेठ साहूकारों जमाखोरों ने अपने बचने का और जमाखोरी का दुसरा रास्ता भी इन्ही गरीबों के सहारे चुन लिया।  शातिर दिमाग लोग तो न जाने क्या क्या सोंच रहे है, लोग तो अब एक साल आगे की सोंचने लगे हैं अगले साल उत्तर प्रदेश विधान सभा और दिल्ली में निगम का चुनाव है, भाजपा ने उन चुनाव के मद्देनज़र यह खेल खेला है। दूसरी बात जो लोग कर रहे हैं की 2000 के नोटों में सरकार ने नई टेक्नालॉजी लगाई है ताकि यह नोट का आसानी पता चल साके की नोट किसके पास और कहाँ कहाँ है  इस नोटों को रखने की एक सीमा एक अहद बनाई होगी जो सिर्फ सरकार को ही पता होगा उस सीमा या हद से पार करते ही सरकार को नोटों के अधिक होने का पता चल जाएगा और सरकार उस पर तुरंत छापे मार कर अपने क़ब्ज़े में ले लेगी। हर व्यक्ति अपनी तरह से सोंचने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है।  यह उसके अभिव्यक्ति की आज़ादी है। लेकिन क्या ग़लत करने के लिए भी उसके अभिव्यक्ति की आज़ादी है - यदि है तो ठीक है लोगों को करनेवाले व्यक्ति से न कोई कष्ट होना चाहिए और न उसपर कोई प्रशासनिक कारवाई होना चाहिए।  
यदि भारत के लोग स्वार्थी न होते तो शायद आज भारत में राम राज होता शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पी रहे होते। प्रधानमंत्री नरेन्द्रमोदी जी के अचानक फैसला लिये जाने से सम्पूर्ण भारत के आम नागरिकों  को जो समस्यायों का सामना करना पड़ रहा है शायद भारत की जनता ऐसे समस्याओं का सामना करने के लिए न तो कभी तयार रही होगी और न तो कभी सोंचा ही नहीं होगा, सम्पूर्ण भारत में अफरातफरी मच गयी है। बेशक आज गरीग ठेली चलानेवाला, रिक्शा चलानेवाला, फुटपाथ पर काम करनेवाला, मज़दूरी करनेवाला हर व्यक्ति इसलिए खुश होरहा है की मोदी जी एक झटके में हर अमीरों को भी लाइन में लगा दिया।  क्या ऐसा करने से भ्रष्टाचार रुक जाएगा ? न भ्रष्टाचार रुका न रुकेगा।  सभी बैंक कर्मियों के कान खड़े होगये सुबह होते ही बैंककर्मियों ने सबसे पहले अपने 500 , 1000 के नोटों को 100 ,100 तथा 2000 के नोटों में परिवर्तित किया फिर अपने रिश्तेदारों का और सगे सम्बन्धियों तथा दोस्तों का भला किया और अब कमीशन पर अपना घर भर रहे है।  20 से 30 % पर अपने क्षेत्र के बड़े सेठ साहूकारो का कल्याण कर रहे हैं। यह मामला दिल्ली के पूठ गांव , मंगोलपुरी , नागलोई , सुल्तानपुरी , शकूरपुर आज़ादपुर जैसे इलाके में धड़ल्ले से किया जारहा है।  दूसरे ऐसे सेठ साहूकार लोग अपने लेबरों को अपना अथॉराइजेशन लेटर दे कर 4000/4000 रुपया जमा कराने के लिय लाइन में लगा दिया तो कुछ लोगों ने अपने रुपयों को एक नम्बर बनाने के लिए 10 नवम्बर की रात तक 65 हज़ार रूपये भरी तक लोगो ने सोना खरीदा। जिन पत्नियों अपने पति छुपा कर नोट जमा कर रही थीं उन्हें भी अपने जमा किये रुपयों को पति को समर्पित करना पड़ा। 
आज सब से बड़ी परेशानी की एटीएम में अब तक 100 , 100 रूपये के नॉट आये ही नहीं हैं यह कब तक आएंगे पता नहीं। दुकानदार 500 के सामान में गरीब का सारा रुपया काट रहा है नहीं तो 500 के 400 रुपया दे रहा है गरीब करे तो क्या करे।  पैसे वालों के लिए कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। वह तो 500 रूपये का कर में तेल डलवालेंगे या कोई सामान खरीद लेंगे। लेकिन जिनका 500 रुपयों से घर चलता हो वह क्या करेंगे। 


        
                         

50दिनों में गृह युध्द संभव-रुपयों की कालाबाज़ारी । Report by S.Z.Mallick(Journalist)

पचास दिनों तक यहि हाल रहा तो भारत में गृह युध्द संभव। भ्रष्टाचार न बंद हुआ है न बंद होगा। 

आज एक ओर जहाँ  गरीब हंस रहा है - अमीर रो रहा है। वहीं हर आम आदमी एक एक रूपये के लिए परीशान भी हो रहा है - बैंको में रूपये आ रहे हैं लेकिन रूपये बैक डोर अस्थानीय सेठ साहूकार नेताओं और बैंक कर्मि अपने रिश्तेदारों के घर पहुंचा रहे हैं।     

गृहणियों की भी अपने पति के सामने खुल गई पोल।  

एक झटके में गरीब से अमीर तक की सब की पोल खुल गयी। 

       

वाह मोदी जी वाह ! आज आप ने इस नई नीति लागू कर आपने साबित कर दिया की आप को राजनीत नहीं बल्कि जनता को सुधारना भी आता है । लेकिन यहां की जनता है सब कुछ जानती है , तू चले डाले डाल हम चलें पाते पात , की कहावत पर जनता आधारित है - फिर भी सब्र नहीं है - जिस प्रकार आज जनता रूपये रूपये के लिए मोहताज हो रही है - और मोदी कह रहें की 50 दिन जनता और सब्र करे - क्या यह संभव है ? ऐसे करने से क्या काला धन बहार आजायेगा ? जमाखोरों को काला धन संग्रह करने का यह सबसे बड़ा अवसर मिला है। सबसे पहले 2000 हज़ार का नोट सितंबर महीने में ही मार्किट में कैसे आ गया ?        
500 , 1000 का नोट को अचानक बन्द करने का फैसला से सारे बड़े वयापारी तथा अढ़ती की साँसे फूल गयी उन्हें न उगलते बन रहा था न निगलते बन रहा था।  सच तो यह है की कला धन विदेशों में हो या न हो, लेकिन भारत के हर घर में  किसी न किसी रूप में छुपा हुआ था। 500 रूपये का नोट चाहे वह किसी भिखारी या मज़दूर के थैली में या ग्रहणियों के किचन के किसी डब्बे में क्यों न पड़ा हो एक ही झटके में सब के सब बाहार तो आ गये। लेकिन इनकी परेशानियां दुगुनी बढ़ गयी फिरभी इनकी परेशानी बहुत छोटी है ,  जिनके पास 500, 1000, 2000, 4000,10000, हैं वह अपने नोटों को किसी न किसी प्रकार बैंकों में धक्के खा कर भंजा लेंगे पर वह जो अरबों करोड़ों रुप्या बोरियों में बन्द कर के जहाँ तहाँ छिपा रखा है जो 30 दिसम्बर के बाद रद्दी बन जायेगा वैसे लोगों का क्या होगा उनकी तो नींद हैराम हो गयी है। आज गरीबों को काफी सुकून मिल रहा है ,लेकिन सच तो यह है की मोदीजी के इस प्रकार की नीतियों से आज सबसे ज़्यादा गरीबों का नुकसान हो रहा। इसलिए की सेठ साहूकारों जमाखोरों ने अपने बचने का और जमाखोरी का दुसरा रास्ता भी इन्ही गरीबों के सहारे चुन लिया।  शातिर दिमाग लोग तो न जाने क्या क्या सोंच रहे है, लोग तो अब एक साल आगे की सोंचने लगे हैं अगले साल उत्तर प्रदेश विधान सभा और दिल्ली में निगम का चुनाव है, भाजपा ने उन चुनाव के मद्देनज़र यह खेल खेला है। दूसरी बात जो लोग कर रहे हैं की 2000 के नोटों में सरकार ने नई टेक्नालॉजी लगाई है ताकि यह नोट का आसानी पता चल साके की नोट किसके पास और कहाँ कहाँ है  इस नोटों को रखने की एक सीमा एक अहद बनाई होगी जो सिर्फ सरकार को ही पता होगा उस सीमा या हद से पार करते ही सरकार को नोटों के अधिक होने का पता चल जाएगा और सरकार उस पर तुरंत छापे मार कर अपने क़ब्ज़े में ले लेगी। हर व्यक्ति अपनी तरह से सोंचने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है।  यह उसके अभिव्यक्ति की आज़ादी है। लेकिन क्या ग़लत करने के लिए भी उसके अभिव्यक्ति की आज़ादी है - यदि है तो ठीक है लोगों को करनेवाले व्यक्ति से न कोई कष्ट होना चाहिए और न उसपर कोई प्रशासनिक कारवाई होना चाहिए।  
यदि भारत के लोग स्वार्थी न होते तो शायद आज भारत में राम राज होता शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पी रहे होते। प्रधानमंत्री नरेन्द्रमोदी जी के अचानक फैसला लिये जाने से सम्पूर्ण भारत के आम नागरिकों  को जो समस्यायों का सामना करना पड़ रहा है शायद भारत की जनता ऐसे समस्याओं का सामना करने के लिए न तो कभी तयार रही होगी और न तो कभी सोंचा ही नहीं होगा, सम्पूर्ण भारत में अफरातफरी मच गयी है। बेशक आज गरीग ठेली चलानेवाला, रिक्शा चलानेवाला, फुटपाथ पर काम करनेवाला, मज़दूरी करनेवाला हर व्यक्ति इसलिए खुश होरहा है की मोदी जी एक झटके में हर अमीरों को भी लाइन में लगा दिया।  क्या ऐसा करने से भ्रष्टाचार रुक जाएगा ? न भ्रष्टाचार रुका न रुकेगा।  सभी बैंक कर्मियों के कान खड़े होगये सुबह होते ही बैंककर्मियों ने सबसे पहले अपने 500 , 1000 के नोटों को 100 ,100 तथा 2000 के नोटों में परिवर्तित किया फिर अपने रिश्तेदारों का और सगे सम्बन्धियों तथा दोस्तों का भला किया और अब कमीशन पर अपना घर भर रहे है।  20 से 30 % पर अपने क्षेत्र के बड़े सेठ साहूकारो का कल्याण कर रहे हैं। यह मामला दिल्ली के पूठ गांव , मंगोलपुरी , नागलोई , सुल्तानपुरी , शकूरपुर आज़ादपुर जैसे इलाके में धड़ल्ले से किया जारहा है।  दूसरे ऐसे सेठ साहूकार लोग अपने लेबरों को अपना अथॉराइजेशन लेटर दे कर 4000/4000 रुपया जमा कराने के लिय लाइन में लगा दिया तो कुछ लोगों ने अपने रुपयों को एक नम्बर बनाने के लिए 10 नवम्बर की रात तक 65 हज़ार रूपये भरी तक लोगो ने सोना खरीदा। जिन पत्नियों अपने पति छुपा कर नोट जमा कर रही थीं उन्हें भी अपने जमा किये रुपयों को पति को समर्पित करना पड़ा। 
आज सब से बड़ी परेशानी की एटीएम में अब तक 100 , 100 रूपये के नॉट आये ही नहीं हैं यह कब तक आएंगे पता नहीं। दुकानदार 500 के सामान में गरीब का सारा रुपया काट रहा है नहीं तो 500 के 400 रुपया दे रहा है गरीब करे तो क्या करे।  पैसे वालों के लिए कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। वह तो 500 रूपये का कर में तेल डलवालेंगे या कोई सामान खरीद लेंगे। लेकिन जिनका 500 रुपयों से घर चलता हो वह क्या करेंगे। 


        
                         

स्वार्थी सरकार बे सब्र स्वार्थी जनता ! । Report by S.Z.Mallick(Journalist)

   



 तू चले डाले डाल हम चलें पाते पात , की कहावत पर जनता आधारित है। सरकार के नीतियां को लागू करते ही जनता उसका तोड़ निकाल लेती है।
सरकार के नोट बंदी के एका एक एलान से जनता थोड़ी परीक्षण ज़रूर हुयी  - जिस प्रकार आज जनता रूपये रूपये के लिए मोहताज हो रही है - और मोदी कह रहें की 50 दिन जनता और सब्र करे - क्या यह संभव है ? ऐसे करने से क्या काला धन बहार आजायेगा ? मैं समझता हूँ की जमाखोरों को और अधिक काला धन संग्रह करने का यह सबसे बड़ा अवसर मिला है। जहाँ जमाखोरों के पास पहले 500 , 1000 रूपये के नोटो की गड्डियां अधिक हुआ करती थीं तो बहुत ज़्यादा वज़न हुआ करता था पर नोट कम हुआ करते थे लेकिन आज और नोटों की संख्या अधिक अधिक हो गयी और वज़न कम हो गया इसलिए की 2000 नोटों की गड्डियां बनने के कारण उन गड्डियां की संख्या कम हो गयी। 
 स्वार्थी सरकार बे सब्र स्वार्थी जनता ! आज मोदी जी की नितीयों के कारण जिस प्रकार सम्पुर्ण भारत में आपा धापी मची हुई है एसा लगता है अब शायद लगों के पास रूपया कभी नहीं आयेग , लेकिन यदि सरकार सचमुच इमानदार होती और भ्रष्टाचार समाप्त करने पर सचमुच गम्भीर होती अमीरी रेखा कि सीमा तय कर सम्पत्ती कर (टेक्स) छोङ कर सारे कर(टेक्स) समाप्त कर के हर साल करंसी बदलने का तीन महीना पहले से एलान करती और ऐलान से पहले प्रयाप्त मात्रा में नये नोट देश के बैंकों भर देती । इस से किसी को दिक्कत नहीं आती , नोट बदलने का प्रावधान आधार कार्ड से जोड़ा जाता और धीरे धीरे तीन महीने तक पुराने नोटों को हटाते चली जाती। तीन महीने के बाद सरकार टेक्स का नाम लिए बिना यह एलान कर देती की की जिन जिन के पास पुराने नोट जमा हैं वह निर्धारित समय तक अपना पुराना नोट जमा करा दें नहीं तो वह नोट रद्दी में जाएगा। फिर देखते की नोट कैसे बाहार आने लगता है लेकिन सरकार ने ऐसा न कर , गरीबों को दौड़ा दौड़ा कर रुला दिया , और अपने यानी अमीरों को भर भर कर सुला दिया। कोई नहीं भारत को अंग्रेज सोने की चिड़िया यूँही नहीं कहते थे। अंग्रजों ने जितना लूटना था लूटा और फिर आपना दलाल यहि छोड़ गए की बाद में भी किसी न किसी रूप में भारत से लेते रहेंगे। 
सब से चुकाने वाली बात यह है की सबसे पहले 2000 हज़ार का नोट सितंबर महीने में ही मार्किट में कैसे आ गया ? और वह भी किसी वयापारी के पास नहीं बल्कि भाजपा विधायक और सांसद के पास कैसे आया ? इससे स्पष्ट हो जाता है की भारतीय करंसी नॉट की शक्ल में सत्ता धारी लोगों के पास सरकार ने पहले पहुंचा दिया था और और ध्यान भटकाने के लिए कभी काश्मीर का मुद्दा उठा दिया तो कभी जेएनयू का मुद्दा उठाती रहे , लोग आपस में उलझते रहें और नये नोट आसानी से भाजपा नेताओं तक पहुँचता रहे।                 
500 , 1000 का नोट को अचानक बन्द करने का फैसला से सारे बड़े वयापारी तथा अढ़ती की साँसे फूल गयी उन्हें न उगलते बन रहा था न निगलते बन रहा था।  सच तो यह है की कला धन विदेशों में हो या न हो,
लेकिन भारत के हर घर में  किसी न किसी रूप में छुपा हुआ था। 500 रूपये का नोट चाहे वह किसी भिखारी या मज़दूर के थैली में या ग्रहणियों के किचन के किसी डब्बे में क्यों न पड़ा हो एक ही झटके में सब के सब बाहार तो आ गये। लेकिन इनकी परेशानियां दुगुनी बढ़ गयी फिरभी इनकी परेशानी बहुत छोटी है ,  जिनके पास 500, 1000, 2000, 4000,10000, हैं वह अपने नोटों को किसी न किसी प्रकार बैंकों में धक्के खा कर भंजा लेंगे पर वह जो अरबों करोड़ों रुपया बोरियों में बन्द कर के जहाँ तहाँ छिपा रखा है जो 30 दिसम्बर के बाद रद्दी बन जायेगा वैसे लोगों का क्या होगा उनकी तो नींद हैराम हो गयी है। आज गरीबों को काफी सुकून मिल रहा है ,लेकिन सच तो यह है की मोदीजी के इस प्रकार की नीतियों से आज सबसे ज़्यादा गरीबों का नुकसान हो रहा। इसलिए की सेठ साहूकारों जमाखोरों ने अपने बचने का और जमाखोरी का दुसरा रास्ता भी इन्ही गरीबों के सहारे चुन लिया।  शातिर दिमाग लोग तो न जाने क्या क्या सोंच रहे है, लोग तो अब एक साल आगे की सोंचने लगे हैं अगले साल उत्तर प्रदेश विधान सभा और दिल्ली में निगम का चुनाव है, भाजपा ने उन चुनाव के मद्देनज़र यह खेल खेला है। दूसरी बात जो लोग कर रहे हैं की 2000 के नोटों में सरकार ने नई टेक्नालॉजी लगाई है ताकि यह नोट का आसानी पता चल साके की नोट किसके पास और कहाँ कहाँ है  इस नोटों को रखने की एक सीमा एक अहद बनाई होगी जो सिर्फ सरकार को ही पता होगा उस सीमा या हद से पार करते ही सरकार को नोटों के अधिक होने का पता चल जाएगा और सरकार उस पर तुरंत छापे मार कर अपने क़ब्ज़े में ले लेगी। हर व्यक्ति अपनी तरह से सोंचने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है।  यह उसके अभिव्यक्ति की आज़ादी है। लेकिन क्या ग़लत करने के लिए भी उसके अभिव्यक्ति की आज़ादी है - यदि है तो ठीक है लोगों को करनेवाले व्यक्ति से न कोई कष्ट होना चाहिए और न उसपर कोई प्रशासनिक कारवाई होना चाहिए।  
यदि भारत के लोग स्वार्थी न होते तो शायद आज भारत में राम राज होता शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पी रहे होते। प्रधानमंत्री नरेन्द्रमोदी जी के अचानक फैसला लिये जाने से सम्पूर्ण भारत के आम नागरिकों  को जो समस्यायों का सामना करना पड़ रहा है शायद भारत की जनता ऐसे समस्याओं का सामना करने के लिए न तो कभी तयार रही होगी और न तो कभी सोंचा ही नहीं होगा, सम्पूर्ण भारत में अफरातफरी मच गयी है। बेशक आज गरीग ठेली चलानेवाला, रिक्शा चलानेवाला, फुटपाथ पर काम करनेवाला, मज़दूरी करनेवाला हर व्यक्ति इसलिए खुश होरहा है की मोदी जी एक झटके में हर अमीरों को भी लाइन में लगा दिया।  क्या ऐसा करने से भ्रष्टाचार रुक जाएगा ? न भ्रष्टाचार रुका न रुकेगा।  सभी बैंक कर्मियों के कान खड़े होगये सुबह होते ही बैंककर्मियों ने सबसे पहले अपने 500 , 1000 के नोटों को 100 ,100 तथा 2000 के नोटों में परिवर्तित किया फिर अपने रिश्तेदारों का और सगे सम्बन्धियों तथा दोस्तों का भला किया और अब कमीशन पर अपना घर भर रहे है।  20 से 30 % पर अपने क्षेत्र के बड़े सेठ साहूकारो का कल्याण कर रहे हैं। यह मामला दिल्ली के पूठ गांव , मंगोलपुरी , नागलोई , सुल्तानपुरी , शकूरपुर आज़ादपुर जैसे इलाके में धड़ल्ले से किया जारहा है।  दूसरे ऐसे सेठ साहूकार लोग अपने लेबरों को अपना अथॉराइजेशन लेटर दे कर 4000/4000 रुपया जमा कराने के लिय लाइन में लगा दिया तो कुछ लोगों ने अपने रुपयों को एक नम्बर बनाने के लिए 10 नवम्बर की रात तक 65 हज़ार रूपये भरी तक लोगो ने सोना खरीदा। जिन पत्नियों अपने पति छुपा कर नोट जमा कर रही थीं उन्हें भी अपने जमा किये रुपयों को पति को समर्पित करना पड़ा। 
आज सब से बड़ी परेशानी की एटीएम में अब तक 100 , 100 रूपये के नॉट आये ही नहीं हैं यह कब तक आएंगे पता नहीं। दुकानदार 500 के सामान में गरीब का सारा रुपया काट रहा है नहीं तो 500 के 400 रुपया दे रहा है गरीब करे तो क्या करे।  पैसे वालों के लिए कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। वह तो 500 रूपये का कर में तेल डलवालेंगे या कोई सामान खरीद लेंगे। लेकिन जिनका 500 रुपयों से घर चलता हो वह क्या करेंगे। 


        
                         

Friday, November 11, 2016

JIH diamond to Supreme Court for seeking a probe of Bhopal encounter case. Report by S.Z.Mallick(Journalist)

 

 जमाअत इस्लामी हिन्द की भोपाल इन्काउंटर मामले की सुप्रीम कोर्ट से जांच की मांग।

नई दिल्ली । जमाअत इस्लामी हिन्द के प्रधान महासचिव मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने मध्यप्रदेश पुलिस के द्वारा भोपाल के निकट 8 विचाराधीन मुस्लिम कैदियों के मारे जाने की खबर पर गंभीर चिंता प्रकट की । जमाअत इस्लामी हिन्द के मुख्यालय में आयोजित नियमित मासिक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि मीडिया के द्वारा दिखाई जाने वाली इन्काउंटर की रिपोर्ट और विडियो से इसकी संदिग्घता का पता चलता है और कई गंभीर प्रश्न खड़े करते हैं जिसका जवाब सरकार और पुलिस को देना आवश्यक है । इन्काउंटर को लेकर सवाल करने वालों पर ही संदेह किया जा रहा है, यह कैसा लोकतंत्र है ? यह घटना पिछले घटनाओं की कड़ी नजर आ रही है। इससे पहले खलिद मुजाहिद, कतील सिद्दीकी और मोहम्मद वकास की भी हिरासत हत्या कर दि गई थी। जो लोग इस तरह की घटनाओं पर प्रश्न खड़ा करते हैं उन्हें यह कह कर चुप कराने का प्रयास किया जाता है कि इससे पुलिस का मनोबल कम होता है, जमाअत इस्लामी हिन्द इस बात को ठीक नहीं समझती है और इसे लोकतंत्र के विपरित मानती है। उन्हों ने कहा सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने पिछले फैसले में कहा है कि ‘‘ पुलिस इन्काउंटर के नाम पर की गई हत्या का स्वंत्रतापूर्वक और निष्पक्ष जांच की जानी चाहिए। इसमें कोई अंतर नहीं कि मृतक आम नागरिक था, या आतंकवादी तथा कट्टरपंथी विचार धारा वाला था। बहरहाल कार्रवाई किसी एजेंसी के द्वारा की गई हो या सरकार के द्वारा इसकी जांच की जानी चाहिए। कानून सबके लिए समान है और यह लोकतंत्र की आत्मा है।’’ इसलिए जमाअते इस्लमी इस इन्काउंटर की उच्च स्तरीय जांच की मांग करती है कि जेल ब्रेक से लेकर इन्काउंटर तक का सारा मामला सामने आ सके और सच्चाई से पर्दा उठाया जा सके। जमाअत इस्लामी हिन्द ने इन्काउंटर की जांच सुप्रीम कोर्ट से कराये जाने और इन्काउंटर करने वाले दोषियों को कठोर दंड देने की मांग की।
झारखंड के जामताड़ा में पुलिस हिरासत में हिंसा के कारण मुस्लिम नौजवान मिनहाज अंसारी की निर्मम हत्या की जमाअत इस्लामी ने सीबीआई जांच की मांग की है। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में कहा गया है कि उसके शरीर पर चोट के निशान पाये गये हैं। तथा गुन्तांग में भी गहरे चोट के निशान पाये गए हैं। पुलिस की बर्बरता का शिकार होने वाले नौजवान के शरीर से इतना अधिक खून का रिस गया कि वह मौत हो गई। जमाअत मांग करती है कि इस तरह की निर्ममता का प्रदर्शन करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए और मृतक के परिजन को न्याय दिलाया जाए।
सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता को देश पर जबारन थोपने के प्रयासों का जमाअत इस्लामी हिन्द पुरजोर विरोध करती है। जमाअत महसूस करती है की देश के अल्पसंख्यकों को पर्सनल लॉ के मामले में संविधान द्वारा प्रदत्त अपने धर्म पर अमल करने के अधिकार से वंचित करने की साजिश है। जमात का मानना है कि देश की बहुलता, विविधता और हर किसी को अपनी संस्कृति अपनाने का पूरा अधिकार है और साथ ही समान नागरिक संहिता को अपने रस्मो रिवाज पर चलने के संविधानिक अधिकार के लिए खतरा समझती है। शादी-विवाह, तलाक और विरासत के अलग अलग नियम उनके यहां प्रचलित हैं और वे सदियों से इसको अपनाये हुए हैं। सरकार उनकी पहचान उनसे नहीं छीन सकती और उन पर जबर्दस्ती किसी भी तरह का कानून लागू नहीं कर सकती। सरकार उन तमाम समुदायों पर एक तरह का कानून कैसे लागू कर सकती है ? इस देश में समान नागरिक संहिता को लागू करके देश को तबाही की तरफ ले जाएगी जिसका जमाअत विरोध करती रहेगी। विधि आयोग की प्रश्नावली देश को गुमराह करने के लिए तैयार किया गया है ताकि बहुसंख्यक की राये का बहाना बना कर दूसरे समुदायों की पारिवारिक व्यवस्था में हस्तक्षेप किया जा सके। जमाअत इस्लामी हिन्द पूरी तरह से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ के साथ है और वह उसके हर फैसले का समर्थन करती है जिसमें विधि आयोग की प्रश्नावली का बहिष्कार भी शामिल है। संविधान के अनुच्छेद 44 में राष्ट्र को बाध्य किया गया है कि वे समान नागरिक संहिता को लागू करने के सिलसिले में विभिन्न समुदायों की सहमति को ध्यान में रखेगी। वह उन पर इसे बलात् लागू नहीं कर सकती और वर्तमान सरकार संविधान की आत्मा के विरुद्ध काम करने पर तुली है जिसकी स्वीकृति किसी भी स्थिति में नहीं दी जा सकती।जमाअत सवाल उठाती है कि सरकार अन्य निर्देशक सिद्धांतों जैसे मुक्त एवं अनिवार्य शिक्षा कि अनदेखी क्यों कर रही है । सामान नागरिक संहिता साम्प्रदायिकता के आधार पर देश के धुरवीकरण का प्रयास है जो राष्ट्र कि विविधता और सम्प्रभूता को नष्ट कर देगी ।
जमाअत इस्लामी हिन्द जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय एमएससी (बायोटेक्नॉलोजी) के प्रथम वर्ष के छात्र नजीब अहमद की एक लम्बे समय से गुमशुदगी पर भी गहरी चिंता प्रकट करते हुये उन्हों ने कहा कि एक दिन पहले नजीब का एबीवीपी से संबंधित छात्रों के साथ विवाद हुआ था। उन लड़कों ने सामुहिक तौर पर उसकी पिटाई भी की थी। परन्तु जेएनयू की चुप्पी और उदासीनता से पता चलता है कि जेएनयू प्रशासन निर्दोष छात्र की हिमायत के विपरीत सम्प्रदायिक्ता का समर्थन कर रहा है। प्रशासन की चुप्पी साधने के कारण ही यह मामला रहस्यमयी बना हुआ है और नजीब का सुराग अब तक नहीं मिल सका है। जमाअत इस्लामी हिंद के विचार में अगर उन लड़कों से पूछगछ की जाती तो संभवतः अब तक कोई सुराग सामने आ जाता और उसकी खोज आसान हो जाती । इस पूरे मामले में जेएनयू कुलपति के न केवल पक्षपात का पता चलता है बल्कि अब यह कहा जा सकता है कि एबीवीपी के उन लड़कों को बचाने का पूरा प्रयास किया जा रहा है जो आम छात्रों के हित एवं लोकतंत्र के खिलाफ है। जमाअत दिल्ली पुलिस के कार्रवाई की भी निंदा करती है कि उसने जांच के नाम पर केवल कागजी खानापूर्ति की और उन छात्रों से अबतक किसी प्रकार कि पूछताछ नहीं कि गई जिन्होंने भीड़ के सामने नजीब को मारा-पीटा था। समान नागरिक संहिता ,एनडीटीवी प्रसारण पर एक दिन के प्रतिबन्ध कि निंदा अंतर-मंत्रालय पैनल द्वारा एनडीटीवी के प्रसारण पर एक दिन के प्रतिबंध के फैसले की जमाअत इस्लामी हिन्द ने निंदा की है। यह फैसला प्रेस को मिलने वाली आजादी का खुला उल्लंघन है और आपातकाल के बुरे दिनों की याद ताजा करने वाला है। जमाअत सरकार से मांग करती है कि इस फैसले को तुरंत वापस लिया जाए इससे अभिव्यक्ति की आजादी और न्याय की प्रक्रिया प्रभावित होती है । जमाअत इस्लामी हिन्द सरकार से मांग करती है कि वह इस फैसले को अविलंब वापस ले।

Thursday, November 10, 2016

गाय के रक्षा के लिए सरकार पर धावा बोला- Report by S.Z. Mallick(Journalist)




सर्वदलीय गौ रक्षा मंच एवं गौरक्षा महासंघ गोपाष्टमी पर गाय की रक्षा के लिए केंद्र सरकार पर धावा बोला। 

सर्वदलिये गौ रक्षा मंच एवम अखिल भारतीय गुरुकुल एवम गौशाला अनुसंधान संस्थान ने - गऊ मंत्रालय एवम गाय रक्षा के लिए कड़े क़ानून लागू करने की सरकार से मांग की। 

नई दिल्ली - गोपाष्टमी के अवसर पर गौ के रक्षा के लिए जहाँ एक ओर गौरक्षा माहसंघ एवम अन्य गाय रक्षक संगठनों ने जंतर मंतर पर सरकार को चेतावनी देने के लिए एक दिन का प्रदर्शन किया वहीँ गऊ रक्षक संत गोपाल दास जी के साथ सर्वदलिये गौ रक्षा मंच के संस्थापक अध्यक्ष ठाकुर जयपाल सिंह नयाल सनातनी के नेतृत्व में तथा अखिल भारतीय गुरुकुल एवम गौशाला अनुसंधान परिषद ने नई दिल्ली के जंतरमंतर पर आठ दिनों तक धरना दे कर प्रदर्शन किया।
इस अवसर पर अखिल भारतीय गुरुकुल एवम गौशाला अनुसंधान संस्थान के अध्यक्ष गौतम कुमार श्रीवास्तव ने अपने मंच से केंद्र सरकार को चेतवनी देते हुए गौमांत्रालय बनाने की मांग की , उन्हों ने कहा की यदि मोदी सरकार गौभक्तों के भावनाओं की क़दर नहीं करती है तो मोदी जी को अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। तथा सर्वदलीय गौरक्षा मंच के संस्थापक अध्यक्ष श्री ठाकुर जयपाल सिंह नयाल ने सभा को संबोधित करते हुए कहा की गौमाता से हम भारतीयों की आस्था जुड़ी हुयी है इसलिए सरकार इसे राष्ट्र माता घोषित करे। यदि सरकार गौमाता को राष्ट्रमाता घोषित नहीं करती है तबतक हम आंदोलन स्वरुप प्रदर्शन करते रहेंगें।  उन्होंने कहा की गौमाता हमारी राष्ट्र्धन है इसलिए गौबैंक भी खुलना अर्निवार्य है। ताकि गाय के पोषण के लिए संपत्ति अर्जित किया जा सके। 
सर्वदलिये गौरक्षा मंच एवम अखिल भारतीय गुरुकुल एवम गौशाला अनुसंधान संस्थान के प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन के सामने संसद भवन लाइब्रेरी एवम एनेक्सी के पास गोलचक्कर पर 1966 में मारे गये गौभक्तों की याद में उस धरती पर मत्था टेका  तथा सरकार से 1966 में मारे गये गौभक्तों कों शहीद का दर्जा देने एवं उस धरती को गौभक्त शहीद अस्थल घोषित करने की मांग कि। इस अवसर पर बालाजी गौशाला व्रिद्धाश्रम समिति मध्य प्रदेश अध्यक्ष लालचंद श्रीवास, मध्यप्रदेश अम्बा, गौसेवा सदन के संचालक एवम अध्यक्ष सहदेव सिंह तोमर, मचं के सचिव नृत्य गोपालदास गौसदन, हरयाणा के गौभक्त आस मुहम्मद, आशा शुक्ला ने भी सभा को संबोधित किया। आठ दिवसीय धरना एवमं प्रदर्शन में पांच दिन गौकथा, दो दिन कवी सम्मेलन एवं एक दिन का धरना चलता रहा।  गौ कवी सम्मेलन में गौरक्षक गौभक्त गौकवी अब्दुल गफ्फार ने कवी सम्मलेन मंच का संचालन किया।      
  इन आठ दिवसिये कार्यक्रम के आयोजन श्री गोपाल सिंह परिहार ने किया तथा गौसेवक रियाजुद्दीन ने कार्यक्रम के आयोजन में काफी सराहनीय एवं सक्रिय भूमिका निभाई। तथा  भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष पुष्पेंदर चौहान , आर्थिक न्याय संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष रोशन लाल अग्रवाल , संन्त प्रभु दत्त ब्रह्मचारी महाराज विचार मंच, रमा शंकर ओझा तथा रणवीर मलिक हरियाणा ने आंदोलन प्रदर्शन को नैतिक समर्थन दिया।    








  S.Z.Mallick(Journalist)
09891954102
Email- ainaindia04@gmail.com

Wednesday, November 2, 2016

Under trial 8 murder in Bhopal-Report by S.Z.Mallick(Journalist)




Under trial 8 murder in Bhopal, Jamaat-e-Islami Hind anxious

New Delhi, Jamaat-e-Islami Hind (JIH) has voiced grave concern over the killing of eight SIMI under-trial activists in an encounter by the police in Bhopal. 
The Secretary General of Jamaat-e-Islami Hind, Muhammad Salim Engineer said, “We are highly disturbed at the news of 8 under-trial prisoners being killed near Bhopal by the police. Some media reports are suggesting that it was a fake encounter as the entire episode raises a lot of uncomfortable questions like: Was it possible for the accused to scale over 30 feet high wall of the most secure jail in MP? How could they lay hands on weapons? Why are there contradictory statements from officials over whether prisoners had weapons or not. How they got new clothes, watches and bands? If they had connections to get weapons, why couldn’t they get a vehicle to escape? Why no policeman was injured in the ‘encounter’? Why were the CCTVs not functioning? How all of them moved together rather than dispersing and couldn’t go further in eight hours”? 
The JIH Secretary General continued, “according to the lawyer of the accused the case against his clients was very weak and there was every likelihood that they would be acquitted soon. If this was the case then they had no reason to escape from prison. The whole incident bears a deep resemblance to the custodial deaths of Khalid Mujahid, Qateel Siddiqui and Mohammed Waqas”.
Salim Engineer said, ‘it is incorrect to state that we must not question the authenticity of the encounter as it would damage the morale of the police force. Rather, we must investigate how could terror accused escape from such a highly secure jail as the Bhopal Central Jail. We demand a high level enquiry under the supervision of the Supreme Court to bring out all the facts about the jail break and the encounter.”

Under trial 8 murder in Bhopal-Report by S.Z.Mallick(Journalist)




Under trial 8 murder in Bhopal, Jamaat-e-Islami Hind anxious

New Delhi, Jamaat-e-Islami Hind (JIH) has voiced grave concern over the killing of eight SIMI under-trial activists in an encounter by the police in Bhopal. 
The Secretary General of Jamaat-e-Islami Hind, Muhammad Salim Engineer said, “We are highly disturbed at the news of 8 under-trial prisoners being killed near Bhopal by the police. Some media reports are suggesting that it was a fake encounter as the entire episode raises a lot of uncomfortable questions like: Was it possible for the accused to scale over 30 feet high wall of the most secure jail in MP? How could they lay hands on weapons? Why are there contradictory statements from officials over whether prisoners had weapons or not. How they got new clothes, watches and bands? If they had connections to get weapons, why couldn’t they get a vehicle to escape? Why no policeman was injured in the ‘encounter’? Why were the CCTVs not functioning? How all of them moved together rather than dispersing and couldn’t go further in eight hours”? 
The JIH Secretary General continued, “according to the lawyer of the accused the case against his clients was very weak and there was every likelihood that they would be acquitted soon. If this was the case then they had no reason to escape from prison. The whole incident bears a deep resemblance to the custodial deaths of Khalid Mujahid, Qateel Siddiqui and Mohammed Waqas”.
Salim Engineer said, ‘it is incorrect to state that we must not question the authenticity of the encounter as it would damage the morale of the police force. Rather, we must investigate how could terror accused escape from such a highly secure jail as the Bhopal Central Jail. We demand a high level enquiry under the supervision of the Supreme Court to bring out all the facts about the jail break and the encounter.”

Monday, October 24, 2016

चाइना के प्रोडक्ट का बहिष्कार-Blogger S.Z.Mallick(Journalist)


जार्ज विचार मंच ने चाइना के प्रोडक्ट का बहिष्कार किया। 

एस.ज़ेड. मलिक(पत्रकार)
पिछले दिनों 23  अक्तुबर 2916  नई दिल्ली के जंतरमंतर पर दिल्ली के जॉर्ज विचार मंच ने उदय भान दिल्ली प्रभारी एवम युवा प्रभारी दिल्ली के नेतृत्व में सैंकड़ों कायकर्ताओं ने भारत में बिक रहे चाइना के वस्तुओं का भहिष्कार कर उन वस्तुयों में आग लगा कर विरोध जताया।  इस अवसर पर बलूच मुक्ति मंच के अध्यक्ष प्रो - बी. एन. चौधरी तथा दिल्ली मंच के प्रभारी उदयभान ने मंच के कार्यकर्ताओं को संबोधित किया।  
   



इस अवसर पर आर्थिक न्याय संस्थान के कोऑर्डिनेटर जी. एस. परिहार ने रोशन लाल अग्रवाल द्वारा लिखित पुस्तक "गरीबी नहीं "अमीरी रेखा "  बलूच मुक्ति मंच के अध्यक्ष प्रो - बी. एन. चौधरी को भेंट की। www.facebook/ainaindia.mallick
   

Tuesday, October 18, 2016

अब अमीरी रेखा बननी चाहिए - Blogger by S.Z.Mallick(Journalist)













यह एक अत्यंत आश्चर्य जनक बात है कि मनुष्य ने सब लोगों में सामंजस्य की स्थापना करने के लिए सामाजिक व्यवस्था का निर्माण तो किया लेकिन लोगों के बीच होने वाले टकराव के मूल कारण को न्याय के आधार पर हल करने का प्रयास नहीं किया अथवा उसे इसमें सफलता नहीं मिली और इसीलिए आज तक शांति की स्थापना का लक्ष्य मनुष्य को नहीं मिल पाया है। 
सभी लोगों के बीच होने वाली टकराव का मुख्य कारण मूल रूप से संपत्ति अधिकार है।  न्याय के आधार पर एक व्यक्ति को केवल औसत सीमा तक ही सम्पत्ति का मालिक माना जाना चाहिये और इससे अधिक संपत्ति के लिए व्यक्ति को समाज का कर्जदार माना जाना चाहिए इसलिए औसत सीमा से अधिक संपत्ति पर ब्याज की दर से संपत्ति कर लगाया जाना और अन्य सभी प्रकार के करों को पूरी तरह समाप्त कर दिया जाना चाहिए। 
संपत्ति कर से होने वाली आय में से ही सरकार के बजट का खर्च काटा जाना चाहिए और शेष बचे धन को समाज का सामूहिक लाभ मानते हुए देश के सारे नागरिकों में लाभांश के रुप में बराबर बराबर बांट दिया जाना चाहिए। 
इससे सब लोग बहुत ही सुख संपन्नता स्वतंत्रता स्वावलंबन संतोष शान्ति और सुरक्षा के साथ अपना जीवन बिता सकेंगे और किसी को भी किसी दूसरे व्यक्ति से कोई शत्रुता टकराव प्रतिद्वंदिता या विवाद नहीं करना होगा। 
अब अमीरी रेखा बननी चाहिए 

गरीबी समाज की सबसे महत्वपूर्ण और सबसे जटिल समस्या हे जो लोग न्याय में विश्वास करते हैं और सबको सुख देने वाली व्यवस्था का निर्माण करना चाहते हैं , उन सब की प्राथमिकता समाज से गरीबी को खत्म करना होना चाहिए। 
समाज से गरीबी को पूरी तरह खत्म करने का सबसे सरल रास्ता अमीरी रेखा का निर्माण करना है। 
अमीरी रेखा बनने पर न केवल देश के सारे लोगोँ को सभी प्रकार के करो से मुक्ति मिल जाएगी बल्कि देश के हर नागरिक को देश की अर्थव्यवस्था से मिलने वाले लाभ मेँ भी उस का हिस्सा मिल सकेगी। 
जिससे हर व्यक्ति भूख ओर अभाव से मुक्ति पा सकेगा। 
इसलिए देश के सभी नागरिकोँ को अपनी अलग अलग माँगों के साथ साथ सबसे पहले देश मेँ अमीरी रेखा के निर्माण की आवाज को बुलंद करना चाहिए। 
जिस दिन देश के सभी मतदाता किसी दल या पार्टी को वोट देने की बजाय अमीरी रेखा के निर्माण हेतु अपना वोट देने के के लिए सहमत हो जायेंगे उसी दिन अमीरी रेखा बनेगी और देश के सारे लोगोँ को गरीबी अभाव बेरोजगारी भूख ओर अपमान से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा। 
इसलिए देश के सभी नागरिकोँ को बिना किसी भेदभाव के संपन्नता और सम्मान का जीवन प्रदान करने के लिए चारोँ ओर से अमीरी रेखा के निर्माण की आवाज बुलंद करनी चाहिए।