Saturday, November 13, 2021

एक हिंदुस्तानी पत्नी की दिलकश रूदाद!!

एक हिंदुस्तानी पत्नी की दिलकश रूदाद!!: 🔊 Listen This News मुझे राजीव लौटा दीजिए मैं लौट जाऊंगी, नहीं लौटा सकते तो उनके पास यहीं मिट्टी में मिल जाने दीजिए। (सोनिया गांधीजी के पत्र का एक अंश!) एक हिंदुस्तानी पत्नी की दिलकश रूदाद !! आपने देखा है न उन्हें। चौड़ा माथा, गहरी आंखे, लम्बा कद और वो मुस्कान। जब मैंने भी उन्हें […]

Friday, September 24, 2021

मौलाना कलीम सिद्दीकी को तुरंत रिहा किया जाए – जमाअत इस्लामी हिन्द

मौलाना कलीम सिद्दीकी को तुरंत रिहा किया जाए – जमाअत इस्लामी हिन्द

मोदी राज में पूंजीपति मालामाल, किसान मजदूर हो गए कंगाल।

मोदी राज में पूंजीपति मालामाल, किसान मजदूर हो गए कंगाल।: 🔊 Listen This News मोदी राज में पूंजीपति मालामाल, किसान मजदूर हो गए कंगाल। मजदूर और किसान संगठनों के आवाहन पर भारत बचाओ दिवस के तहत बनी प्रभावी मानव श्रृंखला संभाग आयुक्त कार्यालय पर प्रदर्शन कर मजदूर संहिता और काले कृषि कानून वापस लेने की मांग इंदौर – अखिल भारतीय संयुक्त अभियान समिति के आवाहन […]

10-16 Aug. 2020

10-16 Aug. 2020

Sunday, May 30, 2021

प्रेरणा - खुद्दार एक भारतीय नारी की कहानी

प्रेरणा - खुद्दार एक भारतीय नारी की कहानी - कटनी की एक गरीब महिला कुली ? 


 एस.ज़ेड.मलिक (पत्रकार)
  
मध्य्प्रदेश  के कटनी जंक्शन पर 45 कुलियों के बीच अकेली महिला कुली न० 36 हैं, वह इज्जत से कमाती हैं, मेहनत की खाती है  बच्चों को अधिकारी  बनाना चाहती हैं।

एक संघर्षील महिला का जीवन " न नहिरे सुख न सौहरे सुख " वाली कहावत पर चिर्तार्थ होती विशेष कर एक गरीब परिवार की महिला के जीवन में वैसे ही कम संघर्ष नहीं होता है, उस पर अगर उसके पति की मृत्यु हो जाए, तब तो परिवार और बच्चों की जिम्मेदारी भी उसी पर आ जाती है। फिर भी वह घर की और बाहर की दोनों जिम्मेदारियाँ बखूबी निभाती है ।

  मध्यप्रदेश के कटनी जंक्शन में कुली का काम करने वाली अकेली 31वर्षीय महिला "संध्या" को देख कर यात्री अचम्भित रहते हैं, लेकिन यह महिला लोगों की   अपना काम पूरी ईमानदारी और मेहनत से करती हैं। वह कहती हैं कि “भले ही मेरे सपने टूट गए हैं, पर हौसले अभी अभी बुलंद है। ज़िन्दगी ने मुझसे मेरा हमसफर छीन लिया है, लेकिन अब बच्चों को पढ़ा लिखाकर फ़ौज में अफसर बनाना चाहती हूँ। इसके लिए मैं किसी के आगे हाथ नहीं फैलाऊंगी। कुली नंबर 36 हूँ और मेहनत से कमाती हूँ और इज़्ज़त से खाती हूँ।”   स्वाभिमानी महिला हैं, किसी से मदद की याचना करने की बजाय वे महंत करके अपने परिवार के लिए रोज़ी रोटी कमाने में विश्वास रखती हैं ।

हर रोज़ मध्य प्रदेश के कटनी रेलवे स्टेशन पर कुली का काम करती हैं। उनके ऊपर एक बूढ़ी सास और तीन बच्चों के पालन पोषण की जिम्मेदारी है, इसलिए वे यह जिम्मेदारी उठाने के लिए, यात्रियों का बोझ उठती हैं। उन्होंने अपने नाम का रेल्वे कुली का लाइसेंस भी बनवा लिया है और अब वे इस काम को पूरे परिश्रम और हिम्मत के साथ करती हैं। रेल्वे प्लेटफॉर्म जब वे यात्रियों का वज़न उठाकर चल रहे होते हैं तो सभी लोग उन्हें देखकर आश्चर्य में पड़ जाते हैं और उनकी हिम्मत की तारीफ किए बिना नहीं रह पाते हैं ।

कुली नम्बर 36 कटनी जंक्शन पर कुली का काम करती हैं, इनका पूरा नाम संध्या मारावी है। वे जनवरी 2017 से लेकर यह काम कर रहीं हैं। उन्होंने बताया कि वे यह काम मजबूरी में करती हैं क्योंकि उन्हें अपनी बूढ़ी सास और तीन बच्चों को पालना है। वे कहती हैं कि वह अपने पति के साथ कटनी में ही रहती थीं। उनके तीन बच्चे हैं ।
30 वर्ष की उम्र में पहले संध्या अन्य महिलाओं की तरह ही घर और बच्चों को संभाला करती थी। इसी बीच उनके पति भोलाराम बीमार हो गए। उनकी बीमारी काफ़ी समय तक चली और फिर 22 अक्टूबर 2016 को उनकी मृत्यु हो गई। जब उनके पति बीमार थे, तब भी वे मजदूरी करके अपने घर का ख़र्च उठाते थे। पति के गुजर जाने के बाद सारी जिम्मेदारी संध्या पर आ गई। उनको अपने परिवार के लिए रोजी-रोटी की चिंता होने लगी इसलिए उन्हें जल्द से जल्द किसी नौकरी की आवश्यकता थी, अतः जब कोई अन्य नौकरी ना मिल पाई तो उन्होंने कुली की नौकरी ही कर ली ।

संध्या कहती हैं कि जिस समय हमें नौकरी खोज रही थी तब किसी व्यक्ति ने उन्हें बताया कि कटनी रेलवे स्टेशन पर कुली की आवश्यकता है तो उन्होंने जल्दी से इस नौकरी के लिए आवेदन कर दिया। वह बताती है कि इस रेलवे स्टेशन पर 45 पुरुष कुली हैं और उनके बीच में अकेली संध्या महिला कुली के तौर पर काम करते हैं पिछले वर्ष ही उन्हें बिल्ला नंबर 36 मिला ।

सन्ध्या जबलपुर में रहती हैं और नौकरी के लिए कुंडम से प्रतिदिन 90 किमी ट्रैवल (45 किमी आना-जाना) करके कटनी रेलवे स्टेशन पहुँचती हैं। फिर काम करके जबलपुर और फिर घर लौट पाती हैं। इस दौरान जब वे नौकरी के लिए जाती हैं तो उनकी सास बच्चों की देखभाल करती हैं ।

संध्या के तीन बच्चे हैं, साहिल उम्र 8 वर्ष, हर्षित 6 साल व बेटी पायल 4 वर्ष की है। इन तीनों बच्चों के पालन और अच्छी शिक्षा के लिए वह लोगों का बोझ उठाकर अपने बच्चों को पढ़ाती हैं। वे चाहती हैं कि उनके बच्चे बड़े होकर देश की सेवा के लिए फ़ौज में अफसर बनें। बच्चों के लिए स्वाभिमान के साथ संघर्ष करती हुई इस माँ के जज्बे को सलाम है ।

Saturday, May 29, 2021

मोदी ने बनाया अपने रिश्तेदारों को करोड़पति।

 बहुत महत्वपूर्ण जानकारी: -

मोदी ने बनाया अपने रिश्तेदारों को करोड़पति।


*बीजेपी नेता और बीजेपी आईटी सेल के लोग लगातार यह कहते नहीं थकते हैं कि .... मोदी अपने रिश्तेदारों के सामने घास भी नहीं डालते। लेकिन ये सभी पिछले कुछ वर्षों में करोड़पति और कुछ अरबपति कैसे बन गए हैं।*

1. *सोमाभाई मोदी (75 वर्ष)* सेवानिवृत्त स्वास्थ्य अधिकारी - वर्तमान में गुजरात में भर्ती बोर्ड के अध्यक्ष हैं।

2. *अमृतभाई मोदी (72 वर्ष)*
पूर्व में एक निजी कारखाने में कार्यरत, वह आज अहमदाबाद और गांधीनगर में सबसे बड़े रियल एस्टेट टाइकून हैं।

3. *प्रह्लाद मोदी (64 वर्ष)* की राशन की दुकान हुआ करती थी, वर्तमान में हुंडई, मारुति और होंडा के अहमदाबाद, वडोदरा में चार पहिया वाहन शोरूम हैं।

4.  *पंकज मोदी (58 वर्ष)* पूर्व में सूचना विभाग में एक सामान्य कर्मचारी थे, आज सोमा भाई भर्ती बोर्ड के उपाध्यक्ष के रूप में उनके साथ हैं।

5. *भोगीलाल मोदी (67 वर्ष)* स्वामित्व वाले किराना स्टोर, आज अहमदाबाद, सूरत और वडोदरा में रिलायंस मॉल के मालिक हैं।

6.  *अरविंद मोदी (64 वर्ष)* वे एक स्क्रैप डीलर थे, आज वह रियल एस्टेट और बड़ी निर्माण कंपनियों के लिए स्टील ठेकेदार हैं।

7.  *भारत मोदी (55 वर्ष)* एक पेट्रोल पंप पर काम कर रहे थे। आज, वह अहमदाबाद में अगियारस पेट्रोल पंप के मालिक हैं।

8.  *अशोक मोदी (51 वर्ष)* की पतंग और किराने की दुकान थी। आज, वह भोगीलाल मोदी के साथ रिलायंस में भागीदार हैं।

9.  *चंद्रकांत मोदी (48 वर्ष)* एक गौशाला में काम कर रहे थे। आज, अहमदाबाद, गांधीनगर में इसके नौ दुग्ध उत्पादन केंद्र हैं।

10.  *रमेश मोदी (57 वर्ष)* शिक्षक के रूप में कार्यरत थे। आज उनके पास पांच स्कूल, 3 इंजीनियरिंग कॉलेज, आयुर्वेद, होम्योपैथी, फिजियोथेरेपी कॉलेज और मेडिकल कॉलेज हैं।

11. *भार्गव मोदी (44 वर्ष)* अध्यापन केंद्र में काम करते हुए रमेश मोदी की संस्थाओं में भागीदार हैं

12. *बिपिन मोदी (42 वर्ष)* अहमदाबाद लाइब्रेरी में काम करते थे। आज केजी से  12 वीं तक पुस्तक वितरण करने वाले एक प्रकाशन कंपनी में भागीदार है जो केजी से 12 वीं तक की स्कूली पुस्तकों की आपूर्ति करती है।

*1 से 4 - प्रधानमंत्री मोदी के भाई*

*5 से 9 - मोदी के चचेरे भाई*

*10 - जगजीवन दास मोदी, चचेरे भाई*

 *11 - भार्गव कांतिलाल*,
 *12 - बिपिन जयंतीलाल मोदी* (प्रधानमंत्री के सबसे छोटे चाचा) के पुत्र हैं।
सभी से अनुरोध है कि यह संदेश हर भारतीय तक पहुंचे ... *जिस अंधभक्त को विश्वास न हो कृपया वो "मुख्य सचिव गुजरात सरकार" से RTI मांग कर संतुष्ट हो सकता है🙏 जय हिन्द*

Friday, May 28, 2021

वैक्सीन एक साजिश है ?-

वैक्सीन एक साजिश है ? 

वैक्सीन मानव अंग पे जिस जगह पर इंजेक्ट किया गया है उस जगह पर मैग्नेट का एक छोटा सा टुकड़ा सटाएं वह मैग्नेट उस जगह पर चिपक जाएगा जहां वैक्सीन दिया गया है। इसका मतलब है कि उस वैक्सीन इंजेक्शन में लिकवीड माइक्रो चिप्स मानव शरीर मे इंजेक्ट किया जा रहा है । या तो मानव शरीर को कोई न कोई अपने नियंत्रण में रखना चाहते है- या मानव शरीर को चलती फिरती लाश बनाना चाहता है ? कुछ तो है जो उस जगह पर मैग्नेट  चिपक रहा है- मैग्नेट ऐसे मानव के किसी अंग पर तो चिपकता नहीं है।

 एस. जेड.मलिक(पत्रकार)

मिल्लत के नाम एक पैगाम .

 मिल्लत के नाम एक पैगाम 


इत्तिलाये बिरादराने मिल्लत दुनियां में मुसलमानो की गिरती हालात के मद्देनजर आपका तवज्जो चाहता हूं, लेहाज़ा मुझे अल्लाह की ज़ात से उम्मीद है की मेरे इस इरादे पर अमल करें या करें लेकिन एक बार अपने आप मे मंथन ज़रूर करेंगे। 
1 - हम सब कहने के लिए ईमान वाले अलमुस्लेमीन वलमुसलमात उम्मते मोहम्मदिया हैं, जैसा की हम अपने बुज़ुर्गों से सुनते आ रहा हैं की हम विशेष कर मलिक जो सैयद बिरादरी में आते हैं और हम अहले बैत भी हैं , यह हम बदकिस्मती कहें या स्वार्थ या मौजूदा हालात के तहत अपने आपको निचले तबके यानी ओबीसी (अन्य पिछड़ी जातिओं के पायदान पर अपने आपको खड़ा कर के बाज़ाप्ते सरकार के यहां पंजीकृत यानी रजिस्ट्रेशन भी करा लिया - इसलिए मेरा मानना है कि क़ौम ए मोहम्मदिया विशेष कर मेरी बिरादरी मेरे मिल्लत के लोग - आज आपस मे न इत्तिफ़ाक़ रखते हैं ना इत्ततिहाद में हैं, रहें भी कैसे,, हमारे  अंदर जो दुनियावी लालच आ गई , अल्लाह का फरमान है हर मोमिन मर्द व औरत को एक दूसरे को फायदे पहुंचाने के लिए पैदा यानी दुनियां पर भेजा है दुनियां में धन जमा करने के लिए नहीं बल्कि आपसे कम अक़ल रखने वालों और बेसहारा गरीब लाचार मजबूर लोगों को मदद करने के लिए लेकिन हम खुदा के एहकाम को भूल कर दुनियाँ कमाने में  अपना क़ीमती वक़्त को लगा रहे हैं , दुनियां में रहना है तो ऐसा तो करना पडेगा ही - इसलिए की हम दुनियाँ की प्रयोगिता में पिछड़ न जायें और इसी सोंच के कारण हमारे अंदर ईर्ष्या , द्वेष ने जन्म ले कर हमें दीनी आइतबार से मुआशरे में हमारे मुजाहादियत को समाप्त कर इतना गिरा दिया की हम मुंसिफ न हो कर मुजरिम हो गये। और हाँथ फैलाने वाले हो गये। जिसकी वजह कर आज हम माशियत के नुख्ते नज़रिया , आर्थिक दृष्टिकोण economically कंडीशन से कमज़ोर हो गये हैं । बावजूद इसके हमारे बिरादरी के अंदर अपने आप में घमंड , जलन , हसद 95 प्रतिशत यानी फीसद में देखने  को मिलता है।  और तो और , इनसब बुराइयों के अलावा खास कर गांव देहातों में खानदान के लोग अपना वक़्त अधिकतर एक दूसरों को नीचा दिखाने और एक दूसरे को गिराने और एक दूसरे को एक दूसरे का रास्ता रोकने में लगाते हैं।  क्या यह आदत सही है ?- जबकि अल्लाह ने मलिक बिरादरी को एक ख़ास रुतबे से नवाज़ा है, जबकि मलिक बिरादरी 80 के दशक से पहले अशिक्षित होने के बावजूद खानदानी विरासती तजुर्बा, ज़मींदाराना हाव-भाव और रईसाना ठाट के साथ साथ एक दूसरे से हमदर्दी और एक दीसरे की मदद करने के लिए सभी के अंदर वह जज़्बा देखने मिलता था - लेकिन ऐसा नहीं है की आज यह जज़्बा लोगों के अंदर से खत्म हो गया गया है - वह जज़्बा आज भी है लेकिन कमी आयी है इसे तस्लीम करना पड़ेगा। कल के बनिस्बत आज बिरादरी के कुछ लोगों के अंदर नयी सोंच के साथ समाज में कुछ नया करने का मन बना है , और लोग कर रहे हैं।  बहुत ख़ुशी और फ़क़्र की बात है।  लेकिन इसी काम को अगर एक इत्तिहाद और इत्तिफ़ाक़ के साथ निज़ाम यानी बेहतर व्यवस्था management के साथ अगर समाज में ज़रूरतनंदों की मदद की जाए तो बेहतर होगा जैसे अभी मेरी नज़र में बिहार अंजुमन और रियाद मलिक वेफेयर सोसायटी रहबर कोचिंग सेंटर जो समाज के उन्नति के लिए काम कर रहे हैं वह सराहनीय है ,, बिहार अंजुमन और रहबर कोचिंग गरीब के टैलेंटेड बच्चों को सेलेक्ट करता है और सरमायादारों से सम्पर्क कर उन्हें उन बच्चों का लिस्ट सौंप देते हैं जो बच्चे इंजिनियर, डॉक्टर, टीचर,आईएएस, आईपीएस के लायक है उन्हें उन सरमायादारों से उन बच्चों के कोर्स के अवधी यानी मेयारी वक़्त तक उनके सलाहियत के मुताबिक़ उनका खर्च उठाने की ज़िम्मेदारी लेने की आजज़ी यानी आग्रह करते है और सरमायादार ऐसा करते है की अपने हस्बे औक़ात एक दो बच्चों की ज़िम्मेदारी उठाते हैं, जैसे कनाडा के केयरलीक फाउंडेशन, और आतिना केयर फाउंडेशन बिहार शरीफ में गरीब ज़रूररतमन्द लोगों को एक महीने का राशन और दो बच्चों को स्कॉलरशिप दे रही है। इसी तरह हमारी बिरादरी भी चाहे तो हमारे क़ौम में कोई भी इंसान न भिखारी रहेगा और न कोई मोहताज रहेगा, न बेरोज़गार रहेगा अगर हमारे बिरादरी के लोग सवा करोड़ सरदारों के जैसे देने वाले बन जायें तो - भारत में 20 करोड़ हमारी क़ौम अलमुस्लीमीन -वलमुसलमात एक मन बना लें मात्र 1 रुपया एक आदमी पर हर घर में निकालें औसतन हर घर में 3 आदमी मान के चलें - 3 रुपया , 20 करोड़ की आबादी के हिसाब से तीन रुपिया एक घर से निकलता तो 20 गुना 3 रुपया = 60 करोड़ यानी एक दिन में 60 करोड़ इसे 30 दिन से गुणा करें तो 180 करोड़ आपके बैतुमाल में आ जाता है, और 180 करोड़ को 12 महीना से मल्टीपलाई करें तो 2.160 करोड़ रुपया जमा होता है। यानी 2160 करोड़ एक साल में बैतुलमाल में जमा हो जाता है। इसके अलावा जो आपके धर्म के मुताबिक़ फितरा ज़कात, सदक़ा, का पैसा भी उसी बैतूल माल में जमा करें, तो आपके बैतुलमाल में हर साल औसतन 200 करोड़ जमा होता है यानी हर साल आपके बैतूल मॉल में लगभग 25 से 3000 करोड़ जमा होता है. इसमें से आप 1-1 करोड़ रुपया भारत के प्रत्येक नागरिकों को वितरित कर दें - भारत का हर व्यक्ति रोज़गारयुक्त हो जाएगा सबकी बेरोज़गारी दूर हो जायेगी। फिर मुस्लिम क़ौम मुंसिफ हो जाएगी। भारत की जनता का विश्वास मुसलमानो पर होगा। मुसलमान भारत सरकार का पैटर्न यानी सहयोगी होगा आरएसएस और जमात इस्लामी हिन्द , जमात उलमा हिन्द , ज़कात फाउंडेशन जैसी संस्था समाप्त हो जाएगी। 

व्यवस्था कैसे करें ?  

निज़ाम अर्थात व्यवस्था यानी management कैसे करेंगे - जैसे हज़रत उम्र बिन ख़त्ताब रज़ि० ने अपने ख़िलाफ़त के  ज़माने में किया था - जहाँ जहां भी मुसलमानो की बस्ती थी , वहाँ वहां उस बस्ती की आबादी के हिसाब से हर बस्ती में बैतुलमाल की व्यवस्था की और बैतूल माल अर्थात बैंक आपके हर एक ब्लॉक में हो और इसका रीज़नल ऑफिस जिला में होना चाहिए। और इस बैतुलमाल का हेड ऑफिस हर राज्य के राजधानी में होना चाहिए और इसका हेड ऑफिस देशकी राजधानी में होनी चाहिए और इस इस बैतूल माल को भारतीय रिजर्ब बैंक से जोड़ना चाहिए ताकि कम्युनिटी का सरकार के हिस्सेदार हो - भारत में होने के नाते और रिज़ेब बैंक से लाभ भारतीय अन्य समाज के हित की खातिर आप इंट्रेस्ट यानी लाभ का कारोबार कर सकते हैं परन्तु अपने समाज के लिए बिना ब्याज के लोन दे कर समय अवधि पर वसूल कर सकते हैं - लेकिन किसी गैर मुस्लिम समाज या व्यापारी समाज से बे झिझक इंट्रेस्ट के साथ कारोबार कर सकते हैं। ऐसे कर्यों से आप सरकार के सहयोगी बन कर पैरलर गोवेर्मेंट चला सकते हैं। इसका अन्य लाभ व ब्याज आप सरकार को देश के विकास में दे सकते हैं जिससे आकार आपकी एक प्रकार से क़र्ज़दार रहेगी। व्यवस्था पर हम मंथन कर उसकी कार्यपालिका तय कर सकते हैं। 

एस. ज़ेड. मलिक(पत्रकार)
9891954102

Thursday, April 8, 2021

 मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी - वर्तमान अस्थाई कार्यकारणी महासचिव आल इंडिया मुस्लिम प्रसनल्ला बोर्ड दिल्ली के नियुक्त। 


एस. ज़ेड. मलिक(पत्रकार)

*मौलाना खालिद सैफ उल्ला साहब रहमानी को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड का अस्थाई जनरल सेकेट्री नियुक्त किया गया ।*

एस. जेड.मलिक(पत्रकार)

  नई दिल्ली - ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड  के
जनरल सेकेट्री का पद रिक्त हो गया था जिसके कारण बोर्ड के आवश्यक कार्यो में समस्यायें उत्पन्न होने लगी थी उसके मद्देनज़र ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड के महासचिव पद पर प्रख्यात इस्लामी विद्वान मौलाना खालिद सैफ उल्ला रहमानी साहब को बोर्ड का अस्थायी जनरल सेकेट्री नियुक्त किया गया है। ज्ञात हो कि यह नियुक्ति ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड के अध्यक्ष हज़रत मौलाना मोहम्मद रावे हसनी नदवी साहब ने मौलाना की बोर्ड प्रति ईमानदारी व उनकी क़ाबलियत एवं उनकी समुदाय के प्रति समर्पण तथा सक्रियता को देखते हुए उनका नाम इस ज़िम्मेदार पद के लिए चुना है।

दिल्ली में बढ़ता कोरोना का प्रकोप

दिल्ली में बढ़ता कोरोना का प्रकोप एवं उससे बढ़ती मृत्य दर और उस पर से सरकार द्वारा रात का कर्फ्यू चिंतनीय एवं विचारणीय - दिल्ली एआईएमआईएम  


एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)   


दोनों सरकारें मुसलमानो  के साथ लूका छिपी का खेल - खेल रही है।  ऐसा लगता है रमज़ान के मद्दे नज़र दिल्ली सरकार व केंद्र सरकार द्वारा क़दम उठाया गया है। दिल्ली सरकार के सारे दावे खोखले साबित हो रहे हैं  - कलीमुल हफ़ीज़

 

नई दिल्ली - दिल्ली में कोरोना के मामले दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं जिसके कारण रात में कर्फ्यू भी लगाया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि रमज़ान में तरावीह और सेहरी में मुसलमानों के लिए मुश्किलें पैदा करने के लिए रात का कर्फ्यू लगाया गया है। रात के कर्फ्यू की कोई आवश्यकता नहीं थी क्योंकि लोग रात में अपने घरों में रहते हैं और जरूरत पड़ने पर ही घर से बाहर निकलते हैं यह उन्हें परेशान करेगा जो इमेरजेंसी में घर से निकलना चाहेंगे और पुलिस भी उनको आतंकित करेगी। जहां तक ई-पास की बात है, उसका मिलना भी बहुत सरल नही है अशिक्षित वर्ग उसको प्राप्त नही कर सकता। गलियों में मास्क के नाम पर चालान काटकर पैसा कमाने वाली पुलिस को भी अधिक पैसा कमाने के अवसर मिलेंगे। इसके बजाय, बाजार बंद करने का समय तय किया जा सकता है परन्तु मेडिकल स्टोर को छूट मिलनी चाहिए, कोरोना को नियंत्रित करने और दिल्ली को मॉडल के रूप में प्रस्तुत करने के दिल्ली सरकार के सभी दावे खोखले साबित हुए है। 

 दिल्ली के एआईएमआईएम के अध्यक्ष श्री कलीमुल हफ़ीज़ ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी उन्होंने दोनों सरकारों पर आरोप लगाते हुए कहा है की दिल्ली में बढ़ते कोरोना के प्रकोप से मृत्यु दर में बढ़ोतरी यह चिन्तनीय एवं विचारणीय है। इस इस भयावर स्थिति के मद्देनज़र दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष ने मजलिस के कार्यकर्ताओं से अनुरोध भी किया कि वे इस महामारी से निपटने के लिए चिकित्सा टीम और लोगों के बीच बेहतर उपचार के लिए काम करें, ताकि लोगों में जागरूकता पैदा हो सके, टीकाकरण को लेकर पैदा होने वाली भ्रांतियों को समझाया जा सके। अपनी गली- मोहल्लों में सफाई व्यवस्था सुचारित रूप से सुनिश्चित कराएं। अगर सरकारी मशीनरी किसी भी वार्ड में विफल हो रही है, तो कानूनी कार्रवाई करें और मजलिस के दिल्ली कार्यालय को भी सूचित करें। उन्होंने कर्फ्यू को एक अनावश्यक कदम करार दिया क्योंकि इससे जनता को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा और पुलिस बिना वजह जनता को सताएगी। कर्फ्यू के नाम से मजदूर वर्ग में दहशत पैदा होगी और बाहर से आने वाले मजदूर रुक जाएंगे। उन्होंने चिंता जताई कि मजदूर वर्ग रात के कर्फ्यू के कारण दिल्ली से लौटने का इरादा कर सकता है। ऐसा होने पर बेरोजगारी बढ़ेगी। कलीमुल हफ़ीज़ ने सुझाव दिया कि रात के कर्फ्यू के बजाय, रात में बाजार को बंद करने के लिए एक समय निर्धारित किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि आवश्यक वस्तुओं की दुकानों को खुला रखने के लिए ध्यान देना चाहिए। उन्होंने मांग की, कि तरावीह और सेहरी के दौरान लोगों को परेशान न किया जाए और टीकाकरण कर्मचारियों को बढ़ाया जाये ताकि प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा किया जा सके। कलीमुल  हफ़ीज़ ने दिल्ली होमगार्ड्स द्वारा मास्क के नाम पर लोगों के उत्पीड़न पर भी आपत्ति जताई। उन्होंने सवाल किया कि अगर एक मोटरसाइकिल सवार हेलमेट पहनकर अकेले यात्रा कर रहा हैं तो मोटरसाइकिल चालक को मास्क पहनने की आवश्यकता क्यों है लेकिन दिल्ली पुलिस उसका फोटो खींचकर चलान काट देती है। यह दिल्ली सरकार के लिए गर्व की बात नहीं है कि चालान के माध्यम से लोगों से बड़ी मात्रा में धन इकट्ठा करे। गौरवशाली बात ये है कि दिल्ली सरकार ये ध्यान दे कि महामारी से कैसे निजात पाया जाए जिससे जनता में विश्वास बना रहे और गरीब आदमी आसानी से दो रोटी खा सके।

Friday, March 26, 2021

शिक्षा एन्क्लेव कोआपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी प्रबंधकीय कमेटी द्वारा लगभ 2 करोड़ रूपये का गबन

 शिक्षा एन्क्लेव कोआपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी के प्रबंधकीय कमेटी  द्वारा लगभ 1.5 से 2 करोड़ रूपये का गबन। 

 पिछले 21 वर्ष से फ़्लैट के मालिक अपने वैध मालिकाना हक़ से वंचित। 
उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री व प्रसाशन से न्याय की  गुहार। 


जी. एस. परिहार (स्वतंत्र पत्रकार )
  
गाज़ियाबाद  - 1992, से शिक्षा एन्क्लेव कोआपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी, वसुंधरा,  सेक्टर-6 गाज़ियाबाद  स्तित्व में आयी।  तब से अब तक सोसाइटी के आला अधिकारी अपने सदस्यों को बेवक़ूफ़ बना कर अपना हित साधते आ रहे हैं। जानकार सूत्रों से शिक्षा एन्क्लेव कोआपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी, वसुंधरा, सेक्टर-6, गाज़ियाबाद में लगभग 1.5 से 2 करोड़ रूपये का गबन का मामला प्रकाश में आया है। 
 दरअसल उक्त सोसाइटी के कुछ  मानना है की वर्तमान में सोसायटी भ्रष्टाचार का भण्डार बना हुआ हैं, जिसमें लगभग एक करोड़ चालीस लाख बारह हजार रुपये रकम का घपला पहले ही हो चुका है, जिसके सन्दर्भ में उच्चस्तरीय जांच के लिए उत्तर प्रदेश प्रसाशन से गुहार लगाईं जा चुकी है। और प्रसाशन मानो घोर निंद्रा में तल्लीन है और रहे भी क्यों नहीं , शायद सोसाइटी उत्तर प्रदेश प्रसाशन के लिए दुदहर गाये जो साबित हो रही है इसलिए प्रसाशन भी मौन है।
 बहरहाल  मामल उत्तर प्रदेश प्रसाशन में बैठे चंद स्वार्थी लोगों के कारण सरकार के राजस्व का नुक्सान हो रहा है।  जानकार सूत्रों द्वारा 1998 में इस समिति को दो एकड़ भूमी आवंटित किया गया तथा समिति ने दिनांक 17/02/2000 तक "आवास विकास परिषद्" को उक्त आवंटित भूमी की पूरी कीमत चुका दी और दिनांक 19/02/2000 को ‘नो-ड्यू’ सर्टिफिकेट भी हासिल कर लिया था। इसके साथ ही समिति ने (HIG, MIG & LIG तीन श्रेणी के) 120 फ्लैटों का निर्माण करके इच्छुक खरीदारों को फ्लैटों का आवंटन भी कर दिया। जिन लोगों ने फ्लैफ खरीदा उन सभी को बीते लगभग 23 वर्षों में अलग-अलग तारीखों पर क़ब्ज़ा भी मिल गया , परन्तु क़ब्ज़ा लेने वाले सदस्यों का दुर्भाग्य कहें या उनकी गलती कि न तो उक्त भूमि की आज तक सोसाइटी के जमीन की रजिस्ट्री हो पाई है और न ही इसमें बने फ्लैटों की किसी को रजिस्ट्री ही दी गई । तो फिर रजिस्ट्री न होने का कारण क्या है ? दरअसल सोसाइटी की जमीन और फ्लैटों की रजिस्ट्री न होना सोसाइटी के गवर्निंग बॉडी के कुछ विशेष सदस्यों द्वारा किया गया भ्रष्टाचार एक प्रमुख कारण है।                

 ज्ञात हो कि फरवरी सन-2000 में सोसाइटी द्वारा खरीदी गई ज़मीन के रजिस्ट्री की पूरी कीमत चुकाने के बावजूद "आवास विकास परिषद् गाज़ियाबाद" ने दिनांक 27/03/2002 को 8190151/- रुपये का बकाया डिमांड नोटिस समिति को भेज दिया, जिसमें बकाया न चुकाने पर समिति की आवंटित भूमि को रद्द करने की बात कही गई थी। इस बाबत में आवास विकास परिषद को सोसाइटी के सदस्यों ने अपना किल्यरेंस की सफाई देते रहे पत्राचार करते रहे।  इस विषय में पत्राचार और बात-चीत से कोई हल नहीं निकला तो "आवास विकास परिषद् गाज़ियाबाद" द्वारा भेजा गया डिमांड नोटिस के विरुद्ध फिर एक रिट पिटीशन इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी गयी, उसके बाद इस विवाद पर लगभग 14 वर्ष बाद 16-अक्टूबर सन 2015 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपना फैसला सोसाइटी के पक्ष में सुनाया, और आवास विकास परिषद् गाज़ियाबाद द्वारा जारी दिनांक 27/03/2002 के उक्त डिमांड नोटिस को नाजायज करार देते हुए रद्द कर दिया | बावजूद उसके इसी क्रम में आवास विकास परिषद् द्वारा तीन बार रिव्यू पिटीशन डाला और हाई कोर्ट ने तीनो बार ही, 2016 को 13/01/2017 में रद्द कर दिया। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी आवास विकास परिषद् द्वारा दाखिल स्पेशल लीव पिटीशन (SLP-Civil) डायरी नं.-9177/2018 को भी दिनांक 26/03/2018 को रद्द कर दिया।  
 लेकिन, सवाल यह है की इतना सब होने के बाद भी, समिति द्वारा फरवरी सन-2000 में  जमीन का पूरा मूल्य चुकाने के लगभग 21 साल बाद भी समिति के जमीन की रजिस्ट्री आज तक नहीं हो पाई है, आखिर रजिस्ट्री न होने का कारण क्या है ?   

 जानकार सूत्रों द्वारा सोसाइटी की पुरानी प्रबंधकीय गवनिंग बॉडी में अध्यक्ष और महा सचिव व ट्रेजरार इनकी मनमाना यह लोगों आज तक न सोसाइटी में कभी चुनाव कराया और ना कभी कोई समान्य बैठक ही बलाई जो भी करना होता है जो भी निर्णय लेना होता है यही तीन लोग अपने आप में चुनाव भी करा लेते हैं और अध्ह्यक्ष महासचिव और कोषाध्यक्ष भी बन जाते हैं जिससे अधिकतर आवासीय सोसाइटियों (समितियों) का प्रबंधन चाहता ही नहीं कि सोसाइटी के जमीन की रजिस्ट्री हो, जिसके परिणाम स्वरूप, सोसाइटी के प्रबंधन के सामने समिति में बने मकानों की रजिस्ट्री उन मकानों के खरीदारों के नाम कराने की बाध्यता खड़ी हो जाए। यह एक कड़वा सच है कि मकानों की रजिस्ट्री न होने की स्थिति में, मकानों के क्रय-विक्रय होने पर, एक व्यक्ति का मकान दूसरे के नाम ट्रांसफर करने के नाम पर समिति के कार्यकर्ताओं का क्रेता-विक्रेता दोनों से अवैध रूप से मोटा पैसा वसूलने का धंधा चलता है। 
 19-फरवरी-2000 को आवास विकास परिषद् से No Due Certificate लेने के दो वर्ष बाद तक भी न तो सोसाइटी की तत्कालीन प्रबंधन कमेटी ने सोसाइटी की जमीन की रजिस्ट्री के लिए के लिए न प्रभावी तरीके से सही कदम उठाये और न ही 26-मार्च-2018 को आवास विकास परिषद् की  SLP खारिज होने के बाद, पिछले तीन वर्ष के बीच सोसाइटी के वर्तमान प्रबंधन ने ऐसा कुछ सही निर्णय ही लिया  जिससे कि सोसाइटी की जमीन की रजिस्ट्री फरवरी-सन-2000 में लागू स्टाम्प ड्यूटी रेट से हो। निश्चित ही सोसाइटी के प्रबंधन की इन्हीं जानबूझ कर की गईं लापरवाही या यूँ कहें ड्रामा और अवैध गतिविधियों के परिणाम स्वरूप बहुत बड़े भरताचार को उजागर करता है। उक्त सोसइटी की जमीन और सोसाइटी में बने फ्लैटों की रजिस्ट्री भी आज तक नहीं हो पाई है।  यही कारण है की सोसाइटी में बने फ्लैटों (मकानों) के खरीदार मानसिक और आर्थिक दोनों प्रकार से परीशान हो रहे हैं, क्योंकि सोसाइटी की जमीन की जो रजिस्ट्री सन-2000 और सन 2008 के बीच मात्र 22,33,250/- रुपये के स्टाम्प ड्यूटी के खर्चे पर होनी थी, आज उसका खर्चा बढ़ कर लगभग चार से पांच करोड़ रुपये के बीच पहुँच चुका है। और इसी प्रकार जिस एक एचआईजी फ्लैट की रजिस्ट्री उस दौर में मात्र 50 से 60 रूपए के खर्चे में होनी था आज की तारीख में उसका खर्चा बढ़ कर लगभग साढ़े छह लाख रूपए पहुँच चुका है और इस सबके लिए आवास विकास परिषद् और शिक्षा एन्क्लेव कोआपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी का पिछला और वर्तमान प्रबंधन बराबर के जिम्मेदार हैं। यह तो उच्चस्तरीय जांच का विषय है। अब जहां एक ओर फ्लैटों के खरीदार पिछले लगभग 23 वर्षों से अपने क़ब्ज़े में होने के बावजूद अपने फ्लैटों के वैध मालिकाना हक़ से वंचित हैं वहीं दुसरी ओर उक्त सोसायटी से उत्तर प्रदेश सरकार भी करोड़ों रुपये के राजस्व के लाभ से वंचित है।