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Thursday, April 27, 2017

AINA INDIA: मलिंगार मौत के कागार पर। एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)

AINA INDIA: मलिंगार मौत के कागार पर। एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार): मलिंगार मौत के कागार पर।   एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)    हरी भरी पहाड़ीओं के बीच दक्षिण हिमालय की कोख में बसा मसूरी से 6 किलोमीटर दूर मलिं...
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Wednesday, April 26, 2017

मलिंगार मौत के कागार पर। एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)

मलिंगार मौत के कागार पर।  एस. ज़ेड. मलिक (पत्रकार)   

हरी भरी पहाड़ीओं के बीच दक्षिण हिमालय की कोख में बसा मसूरी से 6 किलोमीटर दूर मलिंगार पहाड़ी पर खूबसूरत शहर मलिंगार, लैण्डौर कैंट जहाँ बसे लग भाग 1000 लोगो का जीवन मौत के कागार पर है। उत्तराखंड सरकार का मसूरी प्रसाशन अचेत है। जब तक दो चार सौ लोग मौत के मुंह में नहीं चले जाते शायद तब तक सरकार और प्रसाशन की नींद नहीं खुलेगी।
जानकार सूत्रों द्वारा भारत में ब्रिटिश हुकूमत अपना क़ब्ज़ा जमा लेने के पश्चात मसूरी के पहाड़ियों में मुलिंगार हिल के ऊपर पहली स्थायी इमारत 1825 में लण्डौर इस्थित लैंडौर छावनी बनाई गई। यह इमारत मसूरी के "शोधकर्ता" कप्तान फ्रेडरिक यंग ने बनाया था, जो पहले गोरखा बटालियन के कमांडेंट थे।  प्रचलित गोरखा युद्ध के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने भारत में बढ़ती गर्मिओं के मद्देनज़र अपने परिवार व विशेष कर अपनी सेना के लिए के लिए "ब्रिटिश यंग्स" के नाम से "मल्लिंगार" में "एल" आकार का एक विशाल भवन तैयार किया। जिसके अंदर  "एल"  मोड़ के साथ एक बाहरी आंगन जिसे अहाता  भी कहते हैं। 
बहरहाल आज उस मुलिंगार में न तो सेना का शिविर है और ना कोई ब्रिटिश सरकार का कोई मेहमान - न मेहमानखाना न उसमे कोई ब्रिटिश सरकार का सेवादार, न भारत सरकार का कोई प्रतिनिधि ही रहता है। आज यदि वहाँ कोई रहता है तो वह है कुछ गढ़वाली समुदाय के लोग तथा गैरगढ़वाली, उक्त भवन पर पूर्णतः अवैध क़ब्ज़ा है। जो न तो  उक्त भवन का कोई मरम्मत कराने को सोंचता है न कोई किराया देता है न तो उत्तराखंड सरकार इन लोगों से किराया लेती है।  जिस में लगभग 100 कमरे हैं सभी पर अवैध क़ब्ज़े हैं  जिस अंदर ही अंदर लोगों ने अपने सुविधा अनुसार रूम बना कर अपने परिवार के साथ जीवन व्यतीत कर रहे हैं। 
जानकार सूत्रों द्वारा 1947 में अंग्रेज़ों द्वारा उक्त भवन को भारत सरकार को सुपुर्द करने के बाद से अबतक उक्त भवन में किसी भी प्रकार की मरम्मति का काम नहीं हुआ है - आज उन भवनों में जगह जगह दरारें पड़  चुकी हैं जो आने वाले दुर्घटना का संकेत दे रही है।  मरम्मति के नाम पर कई ठीकेदारों और बिल्डरों ने सरकार से टेंडर ले ले कर कागज़ों में भवनों की मरम्मत तथा नवीकरण व विकास को आज तक दर्शाते रहे हैं लेकिन सच्चाई प्रत्यक्ष रूप से चिल्ला चिल्ला कर कह रही है की इन के साथ नइंसाफ़ी हो रही है और इसमें रहनेवाला कोई भी परिवार सुरक्षित नहीं है। 
ज्ञात हो की मलिंगार की वर्तमान आबादी लगभग 3700 सौ की है। जिसमें लगभग 1000 लोग उक्त भवन में अवैधरूप से रहते हैं। यदि उत्तराखंड साकार व देहरादून प्रसाशन अब भी नहीं चेती तो आने वाले  समय में यदि कोई दुर्घटना होती है तो उस की ज़िम्मेवार उत्तराखंड साकार व देहरादून प्रसाशन ही होगा। इसलिए की वहां आये दिन भूकंप, आंधी तूफ़ान आते ही रहते हैं जिस के कारण कही न कही जानी माली नुकसान होता रहता है। आज मलिंगार भी मौत के कागार पर खड़ा थरथरा रहा है।  
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यह वही भवन है जो मलिंगार के लण्डौर कैंट कहा जाता है जो सब से ऊंचाई पर है जो जार जार इस्थिति में है।  
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Tuesday, April 25, 2017

AINA INDIA: जीआईआरडी द्वारा "बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ " कार्यकरम...

AINA INDIA: जीआईआरडी द्वारा "बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ " कार्यकरम...: नई दिल्ली - ग्रीन इंस्टिट्यूट फॉर रिसर्च एंड डेवलपमेंट द्वारा आरके पुरम  सेक्टर 4 में दिल्ली मलियाली असोसिएशन के...
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Monday, April 17, 2017

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं!- पलाश विश्वास

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अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं ! पलाश विश्वास

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आजीविका के बतौर पेशेवर पत्रकार से पत्रकारिता से पिछले साल 16 मई को रिटायर हो गया हूं।इस बीच जो लोग बिना पारिश्रामिक मुझे छाप रहे थे,इस केसरिया दुःसमय में वे भी मुझ जैसे दुर्मुख को छापना सही नहीं मान रहे हैं।बाजार में होने की उनकी सीमाएं हैं।फिरभी कभीकभार वे मुझे छाप ही देते हैं,पैसे भले न दें।
माननीय प्रभाष जोशी की कृपा से उनके धर्मनिरपेक्ष,प्रगतिवादी,गांधीवादी चित्र में कोटे का चेहरा बन जाने के बावजूद,वेतन बोर्ड के मुताबिक समाचार संपादक का स्केल तक पहुंच जाने के बावजूद उप संपादक पद से रिटायर हुआ हूं और मेरा प्रोफाइल या सीवी किसी के काम का नहीं है।
विविध विषयों को पढ़ा सकता हूं,विभिनिन भाषाओं में लिख पढ़ सकता हूं,लेकिन बाजार में हमारे विचार और सपने प्रतिबंधित हैं।
ऐसे हालात में चूंकि सामंती मनोवृत्ति का नहीं हूं।जैसे हमारे पुरखे पूर्वी बंगाल के जमींदारों सामंती मूल्यों के आधार पर बाकी लोगों पर खुद हावी हो जाते थे,वैसा हमने इतने सालों से कोशिश करके न करने का अभ्यास करते हुए अपना डीएनए बदल डालने की निरंतर कोशिश की है।
हम ऐसा फैसला कुछ नहीं कर सकते,जिसपर मेरे परिवार के लोगों को ऐतराज हो।इसलिए फिलहाल घर वापसी के रास्ते बंद हैं तो महानगर में बिना किसी स्थाई छत के जिंदा रहना हमारी बची खुची क्रयशक्ति के हिसाब से नामुमकिन है।
इसलिए पत्रकारिता से भी रिटायर होने का वक्त हो आया है।साहित्य से रिटायर होते वक्त भी कलेजा लहूलुहान था।
1980 से लगातार सारे ज्वलंत मुद्दों को बिना देरी संबोधित करने की बुरी लत रही है।1991 से आर्थिक मुद्दों और नीति निर्धारण की वैश्विक व्यवस्था पर मेरा लगातार फोकस रहा है।
अब मेरे पास वैकल्पिक माध्यम कोई नहीं है।
यह सोशल मीडिया भी मुक्तबाजार का एकाधिकार क्षेत्र है,जहां विचारों और सपनों पर सख्त पहरा है।
हम जिंदगी भर कोशिश करेक जमीन पर कोई स्वतंत्र स्वनिर्भर वैकल्पिक मीडिया गढ़ नहीं सके हैं।यह हमारी सबसे बड़ी अयोग्यता है।
जन्मजात मेधावी नहीं रहा हूं।हमेशा हमने सीखने समझने की कोशिश की है और उसी बूते लगातार संवाद जारी रखने की कोशिश की है।
अब मौजूदा हालात में जब मेरे पास लिखने की कोई फुरसत निकलना क्रमशः मुश्किल होता जा रहा है,हम भविष्य में ऐसे किसी विषय पर नहीं लिखेंगे,जो घटनाक्रम की प्रतिक्रिया में लिखा जाये।
क्योंकि इन प्रतिक्रियाओं से जनविरोधी नरसंहारी संस्कृति के लिए धार्मिक ध्रूवीकरण और तेज होता है।
किसी भी राजनीतिक गतिविधि,समीकरण पर मेरी अब कोई टिप्पणी नहीं होगी क्योंकि पूरा राजनीतिक वर्ग आम जनता के खिलाफ लामबंद है और इस वर्ग से हमारा किसी तरह का कोई संबंध नहीं है और जनसरोकार से बिल्कुल अलहदा यह सत्ता की मौकापरस्त राजनीति आम जनता के किसी कामकाज की नहीं है।
जिन मुद्दों पर जानकारी मीडिया या अन्य माध्यमों तक आपको मिल रही है, उनपर अपना विचार व्यक्त करने की जरुरत नहीं है।
इसलिए मीडिया की सुर्खियों पर अपना पक्ष अब नहीं रखेंगे।
जरुरी हुआ तो कभी कभार आर्थिक,सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों या नीति निर्धारण प्रक्रिया पर लिखेंगे।
राजनीतिक कवायद नहीं,अब हम जमीन पर जो भी रचनात्मक हलचल है या जो प्रासंगिक द्सतावेज मिलते रहेंगे, उन पर कभी कभार मंतव्य करेंगे।यह पत्रकारिता नहीं होगी और न प्रतिक्रिया होगी।सीधे हस्तक्षेप होगा।
अब तक जो लोग मुझे झेलते रहे हैं,उनका आभारी हूं।
खासकर उन मित्रों का आभार जो लगातार पांच दशकों से मेरा समर्थन करते रहे हैं और जिनके बना मेरा मेरा कोई वजूद है ही नहीं।
कविता छोड़कर पत्रकारिता अपनाने की जो गलती की है,वह सुधारी नहीं जा सकती,लेकिन अब रोजमर्रे की पत्रकारिता से मेरा अवसान।धन्यवाद।
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जीआईआरडी द्वारा "बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ " कार्यकरम का आयोजन। एस. जेड. मलिक(पत्रकार)







नई दिल्ली - ग्रीन इंस्टिट्यूट फॉर रिसर्च एंड डेवलपमेंट द्वारा आरके पुरम सेक्टर 4 में दिल्ली मलियाली असोसिएशन के सभागार में भारत की प्रथम दलित महिला शिक्षिका श्रीमती सावित्री बाई पहले की याद में तथा भारत के संविधान लेखक  डॉ. भीमराओ अम्बेदकर के जयंती पर भारत सरकार द्वारा लागु  'बेटी बचाओ, बेटी पढाओ' कार्यक्रम का आयोजन किया। इस कार्यक्रम का प्रयोजन हाऊसिंग एंड अर्बन डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन एवं डॉ. अम्बेदकर फाउण्डेशन ने किया। कार्यक्रम दो शिफ्टों में सुबह 10 बजे से संध्या 5 बजे तक रहा। इस कार्यक्रम का संचालन जीआईआरडी के सचिव श्री ए.के. शमशुद्दीन क़ादर ने किया तथा इस के मुख्य अतिथि आंबेडकर फाउण्डेशन के एडिटर श्री

सुधीर हिलसियां थे। एवं विशिष्ठ अतिथि श्री मेंबंधु सेन कंसलटेंट महिला विकास कोष एवं दिल्ली महिला आयोग उत्तरी पश्मी जिला के प्रोजेक्ट हेड एवं अध्यक्ष अल हिन्द युवा संघ के अब्दुल वाहिद सिद्दीक़ी तथा दिल्ली महिला आयोग उत्तरी पश्मी जिला की कांसुलर सुश्री मुक्ता, विस्डम पब्लिक स्कूल की प्रीती टोकास, विद्या जोशी तथा मंच की अध्यक्षता श्री केपी हरिन्दरान अचारी (अध्यक्ष जीआईआरडी) ने कि। इस अवसर पर सामाज सेविका सुजाता हिलसियां , एकता सुधार समिति की अध्यक्षा श्रीमती नरगिस खान , पैराहन ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया की निदेशक,श्रीमती सल्तनत ज़ैदी , वरिष्ठ  सेवक अशफ़ाक़ मुहम्मद एवं प्रभुदयाल जी ने ''बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ'' पर अपने व्याख्यान दिये। 
इस अवसर पर एएचवाईएस के प्रोजेक्ट पीएमकेवाई के स्कील की छात्राओं ने भी इस कार्यक्रम में ''बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ'' पर अपने व्याख्यान दे कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। उनके श्रेष्ट वक्तव्य पर जीआईआरडी द्वारा प्रतिभाशाली छात्राओं को इनाम के तौर पर नगद राशि भी भेंट किया गया।
       
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